
कठिनाइयों से डरें नहीं, उन्हें खिलौना भर समझें
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एक लड़की को रात में अक्सर शेर का सपना आता था, जब भी वह ऐसा देखती डर के मारे बेतरह रोने-चिल्लाने लगती। सपने वाला दृश्य दिन में भी उसे याद रहता फलतः वह दुबली होती जा रही थी। पिता उसे एक कुशल चिकित्सक के पास ले गया। चिकित्सक ने पूरी बात ध्यान से सुनी और लड़की से बोला-बच्ची, ठीक तुम्हारी तरह वही शेर मेरे सपने में भी आता है। पर मैंने उससे दोस्ती कर ली है। वह काटने वाला शेर नहीं, सिर्फ खेलने-खिलाने की आदत का है और जिन्हें वह प्यार करता है उन्हीं के सपने में आता है। तुम उससे दोस्ती करलो-फिर देखना वह कितना भला है रात भर तुम्हें हँसाता-खिलाता रहेगा और दूसरे दिन नये-नये उपहार लेकर तुम्हें खुश करने के लिए आयेगा। मेरे साथ उसका व्यवहार अब तक इसी प्रकार का रहता है। मैं उसकी दोस्ती से बहुत खुश हूँ।
लड़की ने डॉक्टर की बात पर भरोसा कर लिया। शेर का सपना तो उसके बाद भी आता रहा, पर अभिभावकों ने देखा कि अब सोते हुए उसकी मुखाकृति हँसती मुसकाती प्रतीत होती है। पूछने पर वह लड़की शेर के साथ खेलने में जो आनन्द आता है उसे बहुत उत्साहपूर्वक सुनाती और कहती डॉक्टर की तरह मैं भी शेर की दोस्ती से बहुत खुश हूँ।
कठिनाइयाँ सपने के शेरों की तरह हैं यदि उन्हें शत्रु न मानकर मित्र मान लिया जाय तो उन्हें पुरुषार्थ एवं साहस को विकसित करने वाले सहायक साधन अनुभव किया जा सकता है। संसार में जितने भी मनस्वी महामानव हुए हैं उनमें से प्रत्येक ने कठिनाइयों की अग्नि परीक्षा में प्रवेश करके अपने प्रखर व्यक्तित्व का परिचय दिया है। तीखी तलवारें शान के पत्थर से बार-बार रगड़ी जाती हैं। हीरे पर चमक तभी आती है जब उसके पहलू काटे छाँटे जाते हैं। सोने की डली गले में धारण करने योग्य अलंकरण बनने से पहले गलाई, पिघलाई जाती है। ऐतिहासिक महापुरुषों की गौरव गरिमा का इतिहास इस आधार पर लिखा गया है कि उन्होंने उच्च आदर्शों के प्रति अपनी गहरी निष्ठा का प्रमाण पग-पग पर कठिनाइयों का सामना करते हुए दिया है। यदि उन्हें किसी भी कठिनाई का सामना न करना पड़ा होता और सरल जीवन जीते रहने का सुअवसर ही पल्ले बँधा रहा होता तो उनकी गरिमा पर कोई विश्वास न करता। बिना परीक्षा दिये कोई स्नातक नहीं बन सकता है और बिना पदवी के उच्च पद पर नियुक्ति नहीं हो सकती। यह दुनिया किसी को उच्च स्थान और सम्मान देने से पूर्व यह परखना चाहती है कि वह आदर्श रक्षा के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का सामना करते हुए अपने खरेपन का प्रमाण किस सीमा तक दे सकता है। आपत्तियाँ डरावनी तो होती हैं, पर यदि उनसे खेलने की आदत डाल ली जाय तो वे सपने के शेर की तरह शत्रु न रहकर भला खिलौना बन जाती हैं।
शत्रुओं से घिरे एक नगर की प्रजा अपना माल असबाब पीठ पर लादे हुए जान बचाकर भाग रही थी। सभी घबराये और दुखी स्थिति में थे; पर उन्हीं में से एक खाली हाथ चलने वाला व्यक्ति सिर ऊँचा किये अकड़ कर चल रहा था। लोगों ने उससे पूछा तेरे पास तो कुछ भी नहीं है, इतनी गरीबी के होते फिर अकड़ किस बात की? दार्शनिक वायस ने कहा- ‘मेरे साथ जन्म भर की संग्रहीत पूँजी है और उसके आधार पर अगले ही दिनों फिर अच्छा भविष्य सामने आ खड़ा होने का विश्वास है। वह पूँजी है अच्छी परिस्थितियाँ फिर बना लेने की हिम्मत। इस पूँजी के रहते मुझे दुखी होने और नीचा सिर करने की आवश्यकता ही क्या है।’
अरस्तू कहते थे-लोग डरने, घबराने में जितनी शक्ति नष्ट करते हैं उसकी आधी भी यदि प्रस्तुत कठिनाइयों से निपटने का उपाय सोचने के लिए लगायें तो आधा संकट तो अपने आप ही टल सकता है।
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