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Magazine - Year 1976 - Version 2

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Language: HINDI
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निकट भविष्य में यह परिस्थितियाँ सामने आयेंगी

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मनुष्यों का हाथ देख और जन्म-पत्र देखकर उसका भविष्य बताने वाले, रेखाओं और ग्रह-गणित का सहारा लेते हैं। इसमें परम्परागत मान्यताएँ आधार रहती हैं, भविष्यवक्ता की व्युत्पन्न मति का प्रयोग कम ही होता है। किन्तु संसार में ऐसे भी भविष्यवक्ता हैं जो बदलती हुई परिस्थितियों और घूमते हुए घटना-चक्र को ध्यान में रखते हुए अपनी इस दुनिया का भविष्य बताने का भी साहस करते हैं। उनका दावा है कि उनका अनुमान फलित ज्योतिषियों की तरह निराधार नहीं वरन् कम्प्यूटर द्वारा प्रस्तुत किये गये निष्कर्षों की तरह है। वे अपने प्रतिपादन उस प्रवाह को ध्यान में रखते हुए करते हैं जो प्रचण्ड धारा की तरह बह रहा है। नदी के उद्गम पर उत्पन्न हुआ जल का उभार देखकर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नदी तट पर बसे हुए किस क्षेत्र में कितनी बाढ़ आवेगी। मानसून, आँधी-तूफान और टिड्डी दल के चल पड़ने पर मौसम विशेषज्ञ आगे के क्षेत्रों में सूचना भेज देते हैं कि कितनी देर में कितना बड़ा परिवर्तन उन्हें देखने को मिलेगा। विश्व के भविष्य कथन के सम्बन्ध में जो पूर्व सूचनाएँ दी गई हैं उनका आधार भी इसी स्तर का है।

इन भविष्य वक्ताओं में चार प्रमुख हैं-(1) एल्डुअस हक्सले (2) जूलवर्न (3) जार्ज आर्वेल (4) एच॰ जी॰ वेल्स। यह चारों ही विश्व विख्यात साहित्यकार, दार्शनिक और दूरगामी चिन्तन कर सकने वालों में मूर्धन्य गिने जाते हैं।

एल्डुअस हक्सले ने अपनी पुस्तक ‘व्रेव न्यू वर्ल्ड’ में लिखा है-संसार के सामने सबसे बड़े खतरे दो हैं-एक बढ़ती हुई जनसंख्या और सभ्यता का यन्त्रीकरण। जिस हिसाब से लोग बच्चे पैदा करते चले जा रहे हैं यदि उसमें कोई बहुत बड़ी रोकथाम न हुई तो अगले 100 वर्ष में ही, मनुष्य के निर्वाह का प्रश्न जटिल हो जायगा और इसके बाद तो लोग जीवित रहने को-अन्न, जल और हवा की-रोटी, कपड़ा और मकान की-प्राथमिक आवश्यकताएँ पूरी न हो सकने के कारण ही अभावग्रस्त परिस्थितियों में दम तोड़ने लगेंगे। सरकारी नियन्त्रण और औद्योगिक उत्पादन वितरण का ठीक तरह से निर्वाह सम्भव न होगा और सामाजिकता उच्छृंखलता में बदल जायगी। इतनी बड़ी भीड़ में और इतनी जटिल परिस्थितियों में आदर्शवादी मान्यताओं की रक्षा नहीं हो सकती। मनुष्य के बीच जंगल का कानून चल पड़ेगा और वन्य पशुओं की तरह बिना किसी रीति-नीति का जीवन जीना पड़ेगा।

सभ्यता का यन्त्रीकरण में इस प्रकार बताते हैं कि मनुष्य के चिन्तन पर यन्त्रों का इतना दबाव पड़ेगा कि वह स्वतन्त्र रीति से कुछ सोच ही न सकेगा और लगभग पराधीन हो जायगा। प्रेस प्रकाशन, रेडियो, टेलीविजन और फिल्में चलाने का अधिकार, सत्ता अथवा सम्पत्ति के आधार पर चन्द लोगों के हाथों चला जा रहा है। वे लोक-मानस पर अपनी मर्जी का दबाव आकर्षक पोटलियों में लपेट कर इस कदर डालते हैं कि आदमी उससे भिन्न प्रकार नहीं सोच सकते उसे हाथ-पाँवों की हरकत करने भर की आजादी रहती है सोचने की नहीं। फलतः वह बौद्धिक कठपुतली बनता जा रहा है। यह एक बड़ा खतरा है जिसमें जीवित मनुष्य सोचने की दिशा में उसी तरह पराधीन होंगे जैसे कि ग्रामोफोन की मशीन बोलने के लिए अपने मालिक की आज्ञानुवर्ती होती है।

हक्सले ने अपने एक अन्य ग्रन्थ “दि जीनियस एण्ड दि गार्डस” में यह संकेत दिया है कि प्रजा का स्तर उठाये बिना आजकल जो प्रजातन्त्र का छकड़ा चल रहा है उससे केवल निहित स्वार्थों का भला होगा। प्रजा जब अपना कर्त्तव्य और अधिकार समझ ही नहीं सकेगी तो उसका मत पत्र कोई भी झटक लेगा ऐसी दशा में वह उद्देश्य पूरा न हो सकेगा जिसके अनुसार प्रजा द्वारा प्रजा के लिए शासन करने और सबको न्याय मिलने की घोषणा की गई थी। प्रजातन्त्र क्रमशः एकाधिकारी शासन में बदलते जायेंगे। यह उनकी असफलता की स्पष्ट घोषणा होगी। किन्तु इससे भी कोई हल न निकलेगा। अधिनायकों की सनकें सामन्तवादी शासन काल में रहने वाली प्रजा की अधिक पराधीन परिस्थिति लाकर खड़ी कर देगी और लोग अपने को विवशता से घिरे, लाचार और असहाय प्राणी की तरह अनुभव करेंगे।

कुछ शताब्दियों बाद मनुष्य की आकृति में क्या कुछ परिवर्तन होगा? इस प्रश्न के उत्तर में प्रसिद्ध अँग्रेज विज्ञान लेखक एच॰ जी0 वेल्स का कहना है कि अगले दिनों मनुष्यों के सिर काफी बड़े होंगे। अमेरिका के शरीर विज्ञानी ओलैफ स्टेन ने लिखा है कि भविष्य में मनुष्य की आँतें इतनी जटिल न रहेंगी, वे सीधी-साधी और छोटी होंगी। रूसी नृतत्ववेत्ता अलेक्सान्देर वेल्याएव की मान्यता है कि भविष्य में स्त्रियों के सिर बड़े, बाल छोटे, दाँत थोड़े और होंठ पुरुषों जैसे रोम युक्त होंगे। उन्हें भूरी हलकी मूँछें भी कह सकेंगे। नाखूनों का कड़ापन चला जायगा, मात्र उस जगह उनके निशान भर रह जायेंगे।

लन्दन की रायल सोसाइटी आव आर्ट ने एक शताब्दी बाद संसार का स्वरूप क्या होगा इस विषय पर इंग्लैंड के दूरदर्शी विद्वानों का मत संग्रह किया है और उसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि निकट भविष्य में संसार की परिस्थितियाँ तेजी से बदलेंगी और वे उससे लगभग सर्वथा भिन्न होंगी जैसी कि आज हैं।

विज्ञान की प्रगति रुकने वाली नहीं है। उसे अधिकाधिक सुख-सुविधा के साधन प्रस्तुत करने के लिए प्रयुक्त किया जायगा फलतः वे उपाय हाथ लग जायेंगे तो कम खर्च में अधिक आराम दे सकते हैं। दूसरी ओर जनसंख्या की वृद्धि रुकेगी नहीं, धीमी करने के प्रयास करते-करते भी संख्या इतनी बढ़ जायगी कि धरती के साधन कम पड़ेंगे अस्तु जो उपलब्ध होगा उसका न्यूनतम भाग लेकर ही लोगों को सन्तोष करना पड़ेगा। विज्ञान और प्रजनन की घुड़दौड़ की पूँछ से बँधी हुई परिस्थितियाँ भी आगे बढ़ने के लिए विवश होंगी अतएव स्वभावतः उनका स्वरूप आज की अपेक्षा बहुत अधिक भिन्न हो जायगा।

सर्वेक्षण के अनुसार अब से सौ वर्ष बाद सन् 2100 के लगभग-घर-घर में चौका-चूल्हा जलने का वर्तमान झंझट उपहासास्पद पिछड़ापन गिना जायगा। प्लास्टिक के थैलों में बन्द स्टेण्डर्ड भोजन हर जगह मिलेगा। वे पैकिट पाँच औंस से भारी नहीं होंगे, पोषक पदार्थ आवश्यक मात्रा में मिले रहने से इतनी खुराक पूरी मानी जायगी। तब पेट भी अधिक बोझ उठाने, पचाने की स्थिति में नहीं होंगे, फिर वस्तुओं का वितरण भी तो जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने का ध्यान रखते हुए करना पड़ेगा। इस दृष्टि से पाँच औंस की भोजन मात्रा पूर्ण एवं पर्याप्त मानी जायगी। उसे बड़ी फैक्ट्रियां पकावेंगी। थोड़े से कपड़ा मिल लाखों करोड़ों लोगों का तन ढक देते हैं फिर कोई कारण नहीं कि एक इलाके का एक भोजन मिल सैकड़ों मील के क्षेत्र में लोगों की खाद्य आवश्यकता पूरी न कर दे। घर-घर चूल्हा जलाने से जो गन्दगी, परेशानी और समय तथा स्थान की बर्बादी होती है उसका सर्व सम्मति से सफाया कर दिया जायगा। इससे ईंधन की समस्या हल होगी और चौके जो स्थान घेरते हैं, उसमें लाखों लोगों को रहने की जगह मिलेगी।

विवाह शादियों के नियम तो और भी सरल हो जायेंगे, पर बच्चे पैदा करने पर नियन्त्रण क्रमशः बढ़ते ही जायेंगे। इसके लिए लाइसेन्स प्राप्त करने होंगे। आज आतिशबाजी हर कोई नहीं बना सकता। उसके लिए योग्यता, इलाका, साधन, आवश्यकता आदि अनेक बातों का ध्यान रखकर ही लाइसेन्स दिये जाते हैं। बच्चा पैदा करने का लाइसेन्स देते समय भी ऐसे अनेकों प्रश्न पूछे जायेंगे और व्यक्ति तथा देश की स्थिति देखते हुए ही लाइसेन्स मिलेंगे। तमाखू, अफीम, भाँग, शराब आदि का उत्पादन करने की इच्छा अथवा क्षमता होने पर रोक इसलिए लगी हुई है कि वे अधिक तादाद में पैदा होंगी तो जनस्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा। शहरों के घने इलाके में जानवर पालने की छूट नहीं मिलती। क्योंकि वे गन्दगी पैदा करते हैं। ठीक इसी तरह बच्चे पैदा होने से लेकर समझदार होने तक लगातार गन्दगी तथा अव्यवस्था फैलाते हैं। उन्हें जनने का ही नहीं पलने का भी नगरों से कुछ दूर प्रबन्ध किया जाया करेगा।

खाद्य पदार्थों में से दूध, घी ही नहीं माँस भी हटा दिया जायेगा क्योंकि जमीन जब मनुष्यों के लिए ही कम पड़ेगी तो जानवरों को उस पर कौन रहने देगा। जानवर न रहेंगे तो दूध, माँस की बात ही कहाँ बनेगी। जलाशयों में पाई जाने वाली मछलियों का चूर्ण ही तब खाद्य पदार्थों में मिलाकर माँसाहारी रुचि के लोगों को मिल सकेगा। अन्न खाने की आदत भी लोग छोड़ देंगे। तरह-तरह की घासें उगाई जायेंगी और उन्हीं से खाद्य पदार्थ बना लिये जायेंगे। जलाशयों पर काई उगाई जायेगी और वह भी खाने के काम आयेगी। चीनी, तेल आदि की आवश्यक मात्रा घास और पेड़ों से ही निकल आया करेगी। कपड़े सूत, ऊन या रेशम के नहीं बनेंगे। रासायनिक धागों का आजकल प्रचलन बढ़ रहा है आगे चलकर शरीर ढ़कने का काम पूरी तरह इन्हीं धागों से लिया जायेगा।

आकाश से जमीन का काम लिया जायेगा। कम से कम तिमंजली जमीन तो हो ही जायेगी। रिहाइशी मकान तो कई-कई मंजिल के होंगे ही। रेलगाड़ियाँ जमीन के नीचे-पैदल जमीन पर और मोटरें पुल बनाकर खड़ी की गई सड़कों पर दौड़ा करेंगी। तब तक हैलिकॉप्टर के अच्छे किस्म की उड़ान मोटरें भी बन जायेंगी और वे खुले आसमान में उड़ेंगी, वैसा चलना उन्हें भी निर्धारित रास्तों से ही पड़ेगा अन्यथा उनकी भी टक्करें और दुर्घटनाएँ होंगी। रेलें, बसें कई मंजिल की होंगी ताकि उनमें जमीन कम घिरे और आदमी अधिक बैठ सकें। स्कूल, फैक्टरी आदि सभी दुमंजिले होंगे।

कृषि के लिए खेत मकानों की ऊपरी मंजिल पर रहेंगे ताकि पूरी जमीन लोगों के रहने, कल-कारखानों और यातायात के लिए प्रयुक्त हो सके। खम्भे लगाकर अधर में कृषि फार्म बना लिए जायेंगे और हरियाली उसी पर टँगी रहा करेगी। बड़े पेड़ भी जानवरों की तरह ही संसार से समाप्त हो जाएंगे। छोटी झाड़ियों से ही फल, फूल आदि का काम चल जायेगा और घास की लुगदी से लकड़ी बन जायेगी। जलावन के लिए सिर्फ बिजली प्रयुक्त होगी फिर पेड़ों की जरूरत भी क्या है?

प्रेस उद्योग नाम मात्र का रह जायेगा। रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन समाचार सुनाने तथा पत्र-व्यवहार का माध्यम बनेंगे। स्कूली पढ़ाई भी इन्हीं साधनों के सहारे हो जाया करेगी। महत्वपूर्ण तथ्यों वाली पुस्तकें ‘माइक्रो फिल्मों’ के रूप में उपलब्ध रहेंगी। पत्र-पत्रिकाएँ, पुस्तकें आज जितना कागज खराब करती हैं उसकी तब बिलकुल आवश्यकता न रहेगी। प्रमुख समस्या जीवनयापन के साधनों की होगी। रोटी, कपड़ा और मकान का प्रबन्ध ही जब कठिन हो जाएगा तो ‘प्रेस’ जैसे विलासी साधन को जीवित रखने के लिए कागज तथा दूसरे साधन कहाँ से जुटाये जा सकेंगे।

कारण, तर्क, आधार और तथ्यपूर्ण सम्भावनाओं के आधार पर विज्ञ व्यक्ति भविष्य के जो अनुमान लगाते हैं उनमें से अधिकाँश सत्य होते हैं। संसार की बड़ी-बड़ी योजनाएँ इसी आधार पर बनती और सफल होती हैं। निकट भविष्य में मानव जाति को किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा इसकी भविष्य वाणियाँ विश्व के मूर्धन्य विचारकों ने प्रामाणिक तथ्यों के आधार पर की हैं। इन्हें हम सहज ही झुठला नहीं सकते। फिर भी इतना तो सोचने को विवश होते ही हैं कि क्या उन कारणों को समय रहते रोका नहीं जा सकता, जिनके फलस्वरूप विकट विभीषिकाएँ कल-परसों सामने उपस्थित होंगी और महाविनाश की भूमिका प्रस्तुत करेंगी।

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Type: TEXT
Language: HINDI
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Language: HINDI
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