• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • धर्म चेतना का अधिक विस्तृत प्रयोग
    • सम्पत्ति ही नहीं सदाशयता भी
    • कठिनाइयों से डरें नहीं, उन्हें खिलौना भर समझें
    • धर्म के बिना हमारा काम नहीं चलेगा
    • प्रगति तो हुई-पर किस दिशा में
    • निकट भविष्य में यह परिस्थितियाँ सामने आयेंगी
    • ख्यातिनामा पियानो वादक (kahani)
    • मानवी प्रगति में अपना नगण्य किन्तु महत्वपूर्ण योगदान
    • Quotation
    • श्री को इतना महत्व किसलिए?
    • Quotation
    • चन्द्र मान्यताएँ कितनी वास्तविक कितनी अवास्तविक
    • वातावरण प्रदूषण का क्या कोई समाधान है?
    • गेरावाल्डी ने अपने देश का (kahani)
    • मैं के जानने में ही ज्ञान की पूर्णता है।
    • हम अहंकारी नहीं स्वाभिमानी बनें।
    • वर्नेड रसेल (kahani)
    • लापरवाही राई जैसी, हानि पहाड़ जैसी
    • Quotation
    • काश हम ध्वंस छोड़कर सृजन में लग सकें
    • Quotation
    • महत्वाकाँक्षाओं की उद्विग्नता अवाँछनीय और अहितकर
    • वेदान्त पलायनवादी दर्शन नहीं है।
    • योग का वामाचारी प्रयोग रोका जाय
    • विद्यार्थियों की साधना (kahani)
    • नेकी कर और दरिया में डाल
    • सूर्य सेवन हमारे लिये परम उपयोगी
    • सत्य और असत्य (kahani)
    • दुर्बुद्धि महान उपलब्धियों को भी विभीषिका बना देगी।
    • Quotation
    • दूध पीना है तो गाय का ही पीयें
    • हम अपना उत्तरदायित्व समझें और उन्हें निवाहें
    • प्रसन्नता स्वयं सिद्ध उपलब्धि
    • बोझ लादे चींटियाँ गन्तव्य की ओर (kahani)
    • सुसन्तति प्राप्ति के उपहासास्पद प्रयत्न
    • धातु उद्योग का विकास (kahani)
    • नीति पूर्वक कमायें विवेक पूर्वक खायें।
    • नव-निर्माण के प्रयासों में तीव्रता अपेक्षित है।
    • पात्रता का अभाव
    • पात्रता का अभाव (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • धर्म चेतना का अधिक विस्तृत प्रयोग
    • सम्पत्ति ही नहीं सदाशयता भी
    • कठिनाइयों से डरें नहीं, उन्हें खिलौना भर समझें
    • धर्म के बिना हमारा काम नहीं चलेगा
    • प्रगति तो हुई-पर किस दिशा में
    • निकट भविष्य में यह परिस्थितियाँ सामने आयेंगी
    • ख्यातिनामा पियानो वादक (kahani)
    • मानवी प्रगति में अपना नगण्य किन्तु महत्वपूर्ण योगदान
    • Quotation
    • श्री को इतना महत्व किसलिए?
    • Quotation
    • चन्द्र मान्यताएँ कितनी वास्तविक कितनी अवास्तविक
    • वातावरण प्रदूषण का क्या कोई समाधान है?
    • गेरावाल्डी ने अपने देश का (kahani)
    • मैं के जानने में ही ज्ञान की पूर्णता है।
    • हम अहंकारी नहीं स्वाभिमानी बनें।
    • वर्नेड रसेल (kahani)
    • लापरवाही राई जैसी, हानि पहाड़ जैसी
    • Quotation
    • काश हम ध्वंस छोड़कर सृजन में लग सकें
    • Quotation
    • महत्वाकाँक्षाओं की उद्विग्नता अवाँछनीय और अहितकर
    • वेदान्त पलायनवादी दर्शन नहीं है।
    • योग का वामाचारी प्रयोग रोका जाय
    • विद्यार्थियों की साधना (kahani)
    • नेकी कर और दरिया में डाल
    • सूर्य सेवन हमारे लिये परम उपयोगी
    • सत्य और असत्य (kahani)
    • दुर्बुद्धि महान उपलब्धियों को भी विभीषिका बना देगी।
    • Quotation
    • दूध पीना है तो गाय का ही पीयें
    • हम अपना उत्तरदायित्व समझें और उन्हें निवाहें
    • प्रसन्नता स्वयं सिद्ध उपलब्धि
    • बोझ लादे चींटियाँ गन्तव्य की ओर (kahani)
    • सुसन्तति प्राप्ति के उपहासास्पद प्रयत्न
    • धातु उद्योग का विकास (kahani)
    • नीति पूर्वक कमायें विवेक पूर्वक खायें।
    • नव-निर्माण के प्रयासों में तीव्रता अपेक्षित है।
    • पात्रता का अभाव
    • पात्रता का अभाव (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1976 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


मानवी प्रगति में अपना नगण्य किन्तु महत्वपूर्ण योगदान

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 7 9 Last
सामान्य दृष्टि से देखने पर मनुष्य अन्य जीवधारियों की तुलना में बुद्धिमान और साधन सम्पन्न दीखता है। इसे एक सुयोग, सौभाग्य ही कहना चाहिए कि प्रकृति प्रदत्त बुद्धि अनुदान को जहाँ अन्य जीवधारी परम्परागत स्तर पर ही बनाये रहे वहाँ मनुष्य ने उसका विकास करने की आवश्यकता समझी और क्रमशः प्रगति के पथ पर बढ़ते हुए वहाँ पहुँच गया जहाँ आज है। यह स्थिति आदिमकाल में नहीं थी। तब वह भी अन्य प्राणियों की तरह अपना निर्वाह करता था। सहयोग की प्रवृत्ति पनपी तो पारस्परिक आदान-प्रदान का द्वार खुल गया। प्रगति का चस्का लगा तो फिर वह रुका नहीं। सहयोग का महत्व और बुद्धि का लाभ समझ में आया तो वह मार्ग मिल गया जिसकी लम्बी मंजिल पूरी करते हुए उसके प्राणि जगत का अधिनायक और सृष्टि का मुकुट मणि बनने का अवसर प्राप्त कर लिया।

अभी प्रगति का एक छोटा चरण पूर्ण हुआ है। सहकारिता और सामूहिकता के महत्व को अधिक गम्भीरता से समझा जा रहा है और प्रयत्न किया जा रहा है कि मनुष्य व्यक्तिगत इकाई बनकर न रहे वरन् समष्टि का एक घटक भर अपने को अनुभव करे। उसकी समस्त क्षमताएँ समाज के लिए समर्पित रहें और समर्थ समाज व्यक्ति को उतना सुनिश्चित लाभ प्रदान करे जो एकाकी जीवन में किसी भी प्रकार सम्भव नहीं हो सकता। इस मान्यता को समूहवाद या समाजवाद कह सकते हैं। इस दिशा में चिन्तन को चिरकाल से मोड़ा जाता रहा है। पशु प्रवृत्ति में एकाकीपन की प्रधानता रहती है। अन्य प्राणी इसीलिए पिछड़े रह गये कि वे सहयोग का महत्व न समझ सके। कई प्राणी झुण्ड बनाकर तो रहते हैं, पर एक दूसरे के लिए आदान-प्रदान बहुत ही स्वल्प मात्रा में करते हैं। जिन प्राणियों में जितना अधिक सहयोग है वे अपने को उतना ही सुरक्षित और सुखी अनुभव करते हैं। मनुष्य ने सहकारिता का महत्व अधिक गम्भीरता से समझा है और उसे विकसित करने पर जोर दिया है।

धर्म और अध्यात्म की आधार शिला इस बात पर रखी गई है कि व्यक्ति अपनी उपलब्धियों से समाज को अधिकाधिक लाभान्वित करे। निज के लिए कम से कम में निर्वाह की बात सोचे। संयम, तप, तितीक्षा, दान, पुण्य, दया, उदारता जैसे आदर्शों के पीछे तथ्य सन्निहित है कि मनुष्य निजी सुख-सुविधाओं की उपेक्षा करके दूसरों को अधिक समुन्नत बनाने के प्रयत्न में लगा रहे। स्वार्थ की निन्दा और परमार्थ की प्रशंसा इसी उद्देश्य से की गई है कि इस मान्यता को अपनाकर मनुष्य निजी सुख सुविधा जुटाने की अपेक्षा सामूहिक उत्कर्ष को प्रधानता दे सके।

धर्म के क्षेत्र में परमार्थ परायण और समाज-सेवियों की प्रशंसा की गई है। इस उद्देश्य में संलग्न साधु और ब्राह्मणों को धरती का देवता कहकर असाधारण सम्मान दिया जाता रहा है और पुण्य परमार्थ का फल स्वर्ग आदि बताया जाता रहा है। अब इस सामूहिकता की प्रवृत्ति को आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक स्तर पर मान्यता दी जा रही है। आर्थिक उन्नति के लिए सहकारी समितियों को प्रोत्साहन मिल रहा है। सामूहिक सुरक्षा एवं प्रगति के लिए संस्था संगठन खड़े हो रहे हैं। सरकार स्वयं एक सार्वजनिक संगठन है। अब सरकारी ढाँचे इस प्रकार बनाये जा रहे हैं जिनमें व्यक्तिवाद को निरुत्साहित करके समूहवाद को प्रधानता दी जाय। समाजवाद, साम्यवाद आदि इसी दिशा में बढ़ते हुए कदम हैं। आशा की जानी चाहिए कि मानवी प्रगति क्रमशः इसी दिशा में कदम बढ़ाती चलेगी और एक दिन वह होगा जब ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का आदर्श शास्त्रों में लिखा न रहेगा। धर्मोपदेश की तरह ही उसका प्रयोग न होता रहेगा, वरन् उसे पूर्ण व्यावहारिक मान्यता मिल जायगी। अगले दिनों सारी मनुष्य जाति एक भाषा, एक धर्म, एक संस्कृति, एक राष्ट्र की परिधि में बँध जायगी। व्यक्ति की समस्त क्षमताएँ समाज के लिए समर्पित होंगी और समाज अपने समस्त घटकों का समुचित पोषण करेगा। इसी सिद्धान्त को अपनाकर अपने शरीर का निर्वाह क्रम सुविधापूर्वक चल रहा है। समूची मानव जाति को इसी सिद्धान्त को अपनाने में अधिक लाभ होगा। सहकारिता का आदर्श जितनी मात्रा में अपना लिया जायगा उतनी ही सुख-शान्ति बढ़ेगी और प्रगति का आनन्द मिलेगा। संसार निश्चित रूप से इसी दिशा में बढ़ेगा।

मानवी प्रगति की दूसरी धारा है- बुद्धिमता। चिन्तन को ऊबड़-खाबड़ न रहने देकर उसे व्यवस्थित और परिष्कृत करके उपयोगी दिशा में लगाये जाने का नाम ही बुद्धिमानी है। आदिमकाल के चिन्तन को किस प्रकार व्यक्तियों तथा परिस्थितियों के साथ ताल-मेल बिठा सकने में सक्षम रखा जा सकता है। वह उपार्जन, उपभोग एवं सुरक्षात्मक प्रयोजनों में किस प्रकार प्रवीण हो सकता है ऐसी जानकारी देने की कला को शिक्षा कहते हैं। विद्यालयों तथा अन्य प्रकार के शिक्षणों से इस आवश्यकता को पूरा किया जाता है। मस्तिष्क के भीतर क्या भरा है? उसके कोष्ठक किस प्रकार जड़े जकड़े हैं। यह ज्ञान तो शवच्छेद की पद्धति विकसित होने के साथ ही मिल गया था। पीछे मस्तिष्कीय सूक्ष्मताओं के बारे में अनेकानेक बातें जानी गईं और एक स्वतन्त्र मनःशास्त्र बन गया जिसे मनोविज्ञान कहते हैं। इस अन्वेषण ने चेतन-अचेतन की कई परतें ढूंढ़ निकालीं और बताया कि मस्तिष्क की कार्य-पद्धति क्या है और उसे प्रशिक्षित परिष्कृत कैसे किया जा सकता है? मानसिक रोगों के स्वरूप एवं उनके निराकरण का विधान भी मोटे रूप में हाथ लग गया है।

स्थूल से सूक्ष्म में प्रवेश का युग अब अधिकाधिक प्रखर होता चला जा रहा है। पदार्थ की सूक्ष्म शक्ति ढूंढ़ निकाली गई है। ताप, प्रकाश, शब्द, भाप, बिजली, अणु, विकरण आदि के सम्बन्ध में बहुत कुछ जाना जा चुका है अब पदार्थ के अन्तर्गत काम करने वाले चेतन शब्द को जाना जायेगा। वैज्ञानिक कुछ समय पूर्व तक जड़ को विशुद्ध जड़ मानते थे, पर आइन्स्टीन प्रभृति मूर्धन्य वैज्ञानिकों ने यह स्थापना की थी कि परमाणु की गतिशीलता के पीछे एक चेतना काम करती है और सन्तुलन बनाये रहने के लिए वही उत्तरदायी है। विश्वास किया जाना चाहिए कि यह स्थापना क्रमशः विकसित होगी और हर सारा-पसारा चेतन सत्ता का ही लीला कल्लोल समझा जाने लगेगा। “ईशा वास्य मिदं सर्वं यत्किंचित् जगत्वाँ जगत्” की ऋषि प्रगति मान्यता कल प्रयोगशालाओं में भी सिद्ध होकर रहेगी।

शरीर मोटे तौर से निर्वाह की गतिविधियाँ चालू रखने और इन्द्रिय सम्वेदनाओं को रसास्वादन कराने भर के लिए उपयोगी दीखता है, पर प्रगति के मार्ग पर चलते हुए इसे एक जीवन्त विद्युत संस्थान माना जायगा और इसके कलपुर्जों का उतना अद्भुत उपयोग होने लगेगा जितना वैज्ञानिकों की अद्यावधि उपलब्धियों के आधार पर सम्भव होता है। कई प्रकार के यन्त्र-आविष्कार हमारे भौतिक प्रयोजन पूरे करते हैं। प्रकृति की जिन शक्तियों को करतलगत करने के लिए यंत्रों की आवश्यकता पड़ती है वे सभी यान्त्रिक विशेषताएँ मानवी काया में विद्यमान हैं। अब तक उसे खाने-कमाने, सोने, भोगने भर के लिए प्रयुक्त किया जाता रहा है आगे उसका उपयोग श्रेष्ठतम बहुमुखी प्रयोजनों में प्रयुक्त हो सकने वाले महा यन्त्र के रूप में होने लगेगा। शारीरिक सूक्ष्म क्षमताओं को अतीन्द्रिय क्षमता कहते हैं। यह इन्द्रियातीत इसलिए कही जाती है कि सामान्य प्रचलन उनका कुछ है नहीं। इन उपलब्धियों को सुषुप्ति का जागरण भर कह सकते हैं।

मन मस्तिष्क यों सोचने-समझने, निर्णय लेने और कल्पना करने के लिए प्रयुक्त होता है और उसके कारण समझदारी की मात्रा बढ़ती है। समझदार अधिक कमा सकता है और अधिक सफल हो सकता है। यह मोटी बात हुई। मस्तिष्कीय चेतना विश्व चेतना का एक स्फुल्लिंग है। चिनगारी में दावानल की सारी विशेषताएँ और संभावनाएँ विद्यमान हैं, यह सूक्ष्म ज्ञान हुआ। व्यक्ति का मस्तिष्क विश्व मस्तिष्क के साथ जुड़ा होने के कारण प्रयत्नपूर्वक उस स्थिति में पहुँच सकता है जिसमें कि स्वयं विश्व मस्तिष्क की-विश्वात्मा की स्थिति है। इस स्तर पर पहुँचा हुआ मनुष्य देवता अथवा परमात्मा कहा जा सकता है। मस्तिष्कीय विकास की परिधि मात्र बुद्धिमता तक सीमित नहीं है। वरन् उस अलौकिक सामर्थ्य से भी सम्बन्धित है जिसके माध्यम से अति मानव स्तर के कार्य किये जा सकते हैं। इस क्षमता को ब्रह्म वर्चस नाम दिया जाता रहा है।

भूतकाल में तत्वदर्शी महामनीषियों द्वारा ब्रह्मविद्या के नाम से मानवी दिव्य क्षमता को समझने- विकसित करने एवं प्रयोग में लाने की पद्धति की स्थापना हुई थी। उसका एक पक्ष था दर्शन-अर्थात् योग। दूसरा पक्ष था विज्ञान-अर्थात् तप। दर्शन को साधना और तप को उपासना कहा गया है। प्राचीनकाल में इस दिशा में उत्साहवर्धक प्रगति हुई थी और इस विद्या के विशेषज्ञों ने अपनी उपलब्धियों को ऋद्धि-सिद्धियों के रूप में सर्व साधारण के सामने रखा था। अपने शरीर और मस्तिष्क को एक अच्छी-खासी वैज्ञानिक प्रयोगशाला के रूप में परिणत करके उन्होंने इस तथ्य को प्रमाणित किया था कि “पूर्ण मदः पूर्ण मिदं” पूर्ण से उत्पन्न हुआ यह भी पूर्ण है। आवश्यकता केवल प्रसुप्ति को जागृति में परिणत करने भर की है। ‘साधना’ इसी प्रयत्न का नाम है। अपनी अविज्ञात अलौकिकताओं को विज्ञात एवं प्रत्यक्ष बनाने में सफलता प्राप्त होती है उसी का नाम सिद्धि है। यह कोई जादुई आकस्मिकता नहीं, वरन् पूर्णतः वैज्ञानिक एवं प्रामाणिक सूत्रों के साथ जुड़ी हुई विधि व्यवस्था है।

सहकारिता के उपयुक्त वातावरण बनाने के लिए व्यक्ति को अनुशासित रहना पड़ता और उदार बनना पड़ता है। अध्यात्म का दर्शन शास्त्र इसी आदर्शवादी कर्तृत्व की प्रेरणा देता रहा है। अगले दिनों इस प्रवृत्ति को अधिकाधिक उत्साह के साथ उभारना पड़ेगा। अध्यात्म दर्शन का जीवन-साधना पथ इसी आवश्यकता पूर्ति के लिए है।

बुद्धिमत्ता की चिन्तन प्रक्रिया लोक-व्यवहार से आगे बढ़ेगी और प्रत्याहार, धारणा, ध्यान समाधि की कक्षाएँ उत्तीर्ण करते हुए वह स्थिति पैदा करेगी जिसमें आत्मा अपने आपको विश्वास की दिव्य क्षमताओं से सुसम्पन्न अनुभव कर सके। आत्मा को परमात्मा का उत्तराधिकार पाने का अधिकार है। अधिकार पत्र पाने के लिए जिस क्षमता और प्रामाणिकता की आवश्यकता पड़ती है उसी की पूर्ति उपासना द्वारा सम्भव होती है।

प्रगति का प्रस्तुत कदम यह है कि हम स्थूल को वेधन करके सूक्ष्म की भूमिका में प्रवेश कर रहे हैं। पदार्थ, शरीर, मस्तिष्क सभी क्षेत्रों में अद्भुत सामर्थ्य इसी सूक्ष्मता में सन्निहित है। मनुष्य जाति की प्रगति का यात्रा क्रम अभी और द्रुतगामी बनाना पड़ेगा। भौतिक विज्ञानी जिस उत्साह से पदार्थ की शक्ति को करतलगत करते जा रहे हैं; अध्यात्म विज्ञानियों को उसी तत्परता के साथ चेतना की सूक्ष्म परतों के साथ अपना सम्बन्ध बनाना होगा। इस दिशा में जितना बढ़ा जा सकेगा उतनी ही उल्लास भरी परिस्थितियाँ सामने होंगी। मनुष्य में देवत्व का अवतरण जिस अनुपात से होगा उसी क्रम से धरती पर स्वर्ग की परिस्थितियाँ विनिर्मित होती चली जायेंगी।

उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में मानवी चेतना की सूक्ष्म सत्ता का विकास आवश्यक है। हमें यही करना है। दूसरों को इस दिशा में विश्वास और उत्साह मिल सके ऐसा वातावरण उत्पन्न करना है। अध्यात्म विज्ञान को सर्व साधारण के लिए सुलभ बनाया जाना चाहिए। अखण्ड-ज्योति इसी प्रयास में निरत है। साधना जयन्ती वर्ष में तो इसी दिशा में व्यापक वातावरण बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

आशा की जानी चाहिए कि अपने प्रयास मानवी प्रगति क्रम को तीव्र करने में-उसके एक अति महत्वपूर्ण पक्ष को उपेक्षा के गर्त से निकाल कर सर्वजनीन उपयोग की प्रक्रिया बनाने में उत्साहवर्धक सफलता मिलेगी। मानवी भविष्य को अधिक उज्ज्वल बनाने में -प्रगति क्रम को अधिक परिष्कृत करने में-अपने प्रयास निश्चित रूप से अपनी महत्वपूर्ण भूमिका सम्पन्न करेंगे।

First 7 9 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • धर्म चेतना का अधिक विस्तृत प्रयोग
  • सम्पत्ति ही नहीं सदाशयता भी
  • कठिनाइयों से डरें नहीं, उन्हें खिलौना भर समझें
  • धर्म के बिना हमारा काम नहीं चलेगा
  • प्रगति तो हुई-पर किस दिशा में
  • निकट भविष्य में यह परिस्थितियाँ सामने आयेंगी
  • ख्यातिनामा पियानो वादक (kahani)
  • मानवी प्रगति में अपना नगण्य किन्तु महत्वपूर्ण योगदान
  • Quotation
  • श्री को इतना महत्व किसलिए?
  • Quotation
  • चन्द्र मान्यताएँ कितनी वास्तविक कितनी अवास्तविक
  • वातावरण प्रदूषण का क्या कोई समाधान है?
  • गेरावाल्डी ने अपने देश का (kahani)
  • मैं के जानने में ही ज्ञान की पूर्णता है।
  • हम अहंकारी नहीं स्वाभिमानी बनें।
  • वर्नेड रसेल (kahani)
  • लापरवाही राई जैसी, हानि पहाड़ जैसी
  • Quotation
  • काश हम ध्वंस छोड़कर सृजन में लग सकें
  • Quotation
  • महत्वाकाँक्षाओं की उद्विग्नता अवाँछनीय और अहितकर
  • वेदान्त पलायनवादी दर्शन नहीं है।
  • योग का वामाचारी प्रयोग रोका जाय
  • विद्यार्थियों की साधना (kahani)
  • नेकी कर और दरिया में डाल
  • सूर्य सेवन हमारे लिये परम उपयोगी
  • सत्य और असत्य (kahani)
  • दुर्बुद्धि महान उपलब्धियों को भी विभीषिका बना देगी।
  • Quotation
  • दूध पीना है तो गाय का ही पीयें
  • हम अपना उत्तरदायित्व समझें और उन्हें निवाहें
  • प्रसन्नता स्वयं सिद्ध उपलब्धि
  • बोझ लादे चींटियाँ गन्तव्य की ओर (kahani)
  • सुसन्तति प्राप्ति के उपहासास्पद प्रयत्न
  • धातु उद्योग का विकास (kahani)
  • नीति पूर्वक कमायें विवेक पूर्वक खायें।
  • नव-निर्माण के प्रयासों में तीव्रता अपेक्षित है।
  • पात्रता का अभाव
  • पात्रता का अभाव (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj