
प्रेम पाठकों को एक अभिनव हर्ष समाचार
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पुनर्गठन योजना के अंतर्गत समस्त आत्मीय परिजनों को एक सुव्यवस्थित सूत्र शृंखला में बाँध दिया गया है। इस सघन संबद्धता का एक मात्र उद्देश्य इस परिवार के प्रत्येक सदस्य के व्यक्तित्व का सर्वतोमुखी विकास करना है। इसके लिए यह बताया जाना आवश्यक होगा कि किस परिस्थिति में किसे, किस प्रकार अपने दृष्टिकोण एवं क्रिया-कलाप में हेर-फेर करना चाहिए। प्रत्यक्ष मार्ग-दर्शन और परोक्ष शक्ति संवर्धन के उभयपक्षीय अनुदान परिजनों को मिलते रह सके। यह प्रयोजन पुनर्गठन का रहा है। इस दिशा में प्राथमिक कार्य आश्विन नवरात्र तक पूरा हो भी गया है। परिजनों की परिस्थिति एवं मनःस्थिति की पर्याप्त जानकारियाँ केन्द्र के पास संग्रहित हो गयी है तदनुसार उनकी अधिक सेवा-सहायता सम्भव हो गयी है।
आत्म-निर्माण परिवार-निर्माण और समाज-निर्माण के लिए सामान्य गृहस्थ जीवन में किस प्रकार क्या किया जा सकता है, प्रस्तुत कठिनाइयों का समाधान क्या हो सकता है, इसका स्पष्ट मार्गदर्शन एवं परामर्श परिजनों को अगले ही दिनों मिलने लगेगा। यह कार्य साप्ताहिक युग-निर्माण योजना के माध्यम से चलेगा। इस परामर्श मार्गदर्शन को गुरुदेव स्वयं ही लिखेंगे। जिस प्रकार अखण्ड-ज्योति के पृष्ठो पर उनकी निजी लेखनी से लिखा गया उनका तत्त्वदर्शन पाठकों के पास पहुँचता है ठीक उसी प्रकार ये स्वयं ही परिजनों के व्यावहारिक जीवन में उत्कृष्टता का ऐसा समावेश करेंगे जो सर्व साधारण के लिए सरल एवं सम्भव हो सके। कठिन और अति उच्चस्तरीय गतिविधियाँ तो कुछ विशिष्ट व्यक्ति ही अपना सकते हैं। व्यस्त और अनभ्यस्त व्यक्तियों के तो सरलता ही व्यवहार में उतर पाती है। प्रस्तुत मार्गदर्शन में सर्वसाधारण की स्थिति को ध्यान में रखकर ही परामर्श दिये जाते रहेंगे।
गायत्री उपासना में आरम्भिक और उच्चस्तरीय साधकों के लिए हर अंग में पृथक-पृथक परामर्श रहेगा। मार्ग में आने वाली कठिनाइयों के कारण एवं निराकरण भी छपते रहेंगे। इसके अतिरिक्त शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक सामाजिक एवं आध्यात्मिक प्रगति के लिए किसको, किस प्रकार क्या करना चाहिए यह भी सुझाया जाता रहेगा। इस प्रकार साप्ताहिक पत्रिका में भविष्य में गुरुदेव का प्रत्यक्ष और व्यावहारिक मार्गदर्शन समझा जा सकेगा। इसके अतिरिक्त परिवार के अन्य वरिष्ठ साधकों के अनुभव परामर्श एवं विचार भी इस पत्रिका में छपते रहेंगे। यह एक नई उपलब्धि पाठकों के लिए पुनर्गठन वर्ष का अनुपम उपहार समझी जा सकती है गुरुदेव का कार्यकाल जब तक है यह क्रम अनवरत रूप से चलता रहेगा।
इन पंक्तियों को प्रत्येक परिजन के लिए एक आग्रह पूर्ण परामर्श समझा जाय और साप्ताहिक पत्रिका को पढ़ना अखण्ड-ज्योति की तरह ही आवश्यक माना जाय। पाक्षिक युग निर्माण में 20 पृष्ठ अर्थात् महीने में कुल 40 पृष्ठ रहते थे। अब 1 नवम्बर से साप्ताहिक के हर अंग में 6 पृष्ठ महीने में 64 पृष्ठ रहेंगे। 40 पृष्ठ के 16) तो 64 पृष्ठ के 5) रुपये होने चाहिए। यह लागत मूल्य है। किन्तु गुरुदेव का अभिनव मार्गदर्शन सभी परिजनों के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक समझकर चन्दा नगण्य ही बढ़ाया गया है उसमें स्पष्ट घाटा देना स्वीकार किया गया है। अब साप्ताहिक का चन्दा 20) वार्षिक होगा। पिछले चार महीने से उसमें पृष्ठ 12 रहते रहे हैं। अब नवम्बर से 16 पृष्ठ रहने लगेंगे । साप्ताहिक को यदि सभी पाठक न मँगा सकें तो कई मिल-जुलकर उसे मँगा लिया करें और बारी-बारी से उसे पढ़ लिया करे। जो मँगा सकते हों वे उसे तुरन्त ही मँगाना आरम्भ कर दें और जो नहीं मँगा सकते हैं उन्हें पढ़ाते रहने का उत्तरदायित्व स्वयं अपने कन्धों पर उठाये।
इन पंक्तियों में प्रत्येक परिजन को दिया गया एक आवश्यक परामर्श और अनुरोध समझा जाये और साप्ताहिक को मँगाना व पढ़ना पढ़ाना आवश्यक समझा जाये। झोला पुस्तकालय, ज्ञानरथ में उसे संजो रखा जाये। जो नहीं मँगा सकते हैं उन पर पहुँचाने और पढ़ाने की व्यवस्था भी परिजनों को ही करनी होगी। परिवार के विचारशील परिजन उसे तुरन्त मँगाना प्रारम्भ कर दें ताकि 1 नवम्बर से आरम्भ होने वाले मार्गदर्शन समूचे परिवार को नियमित रूप से पहुँचने प्रारम्भ हो जायें।
-भगवती देवी शर्मा