
परिस्थितियाँ हम स्वयं ही बनाते हैं।
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नैपोलियन कहता था कि-मैं स्वयं ही परिस्थितियों को जन्म देता हूँ।” यह बात उसने भले ही अहंकार वश कही है, पर उसमें सच्चाई कूट-कूट कर भरी है। हर व्यक्ति जाने या अनजाने में अपनी परिस्थितियों का निर्माण आप करता है। आत्म-विश्वास से विचार, विचार से कर्म यही है- जीवन का प्रवाहक्रम जिसके फलस्वरूप परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
ईसा कहते हैं- यदि तेरे भीतर आत्म-विश्वास है तो असफलता का मुँह न देखना पड़ेगा। असफलताओं का एक कारण तो यह होता है कि सामर्थ्य और साधनों का विचार न करते हुए ऐसे कदम बढ़ा लिए जायें जो विचारशीलता की दृष्टि से उस समय उपयुक्त नहीं थे। दूसरा कारण होता है आत्म-विश्वास की कमी। आत्म-विश्वास अनियन्त्रित भावुकता का नाम नहीं है, वरन् उस दूर-दर्शिता का नाम है जिसके साथ संकल्प और साहस जुड़ा रहता है। ऐसे आत्म-विश्वासी जो भी काम करते हैं उसमें न ढील-पोल होती है, न उपेक्षा न गैर जिम्मेदारी। वे जो कहते हैं उसे पूरी भावना, विचारणा और तत्परता के साथ करते हैं। इस स्तर के कार्य प्रायः असफल नहीं ही होते हैं।
ईसाई धर्म प्रचारकों में अग्रणी ड्वाइटमूडी जवानी तक अनपढ़ रहा। उसकी स्त्री थी तो कम पढ़ी पर चाहती यह थी कि उसका पति पादरी बने। सो उसने उसे पढ़ना लिखना स्वयं सिखाया और जोर देकर गिरजे का शौक लगाया। वह लगी ही रही और अन्ततः मूडी को धर्म प्रचारक ही बनाकर मानी। पादरी भी ऐसा जिसने ईसाई जगत में असाधारण ख्याति और प्रतिष्ठा प्राप्त की।
अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का पालन-पोषण उनकी सौतेली माँ ने किया था। गरीबी और कठिनाइयों के बीच दिन काटने वाली उस महिला ने इस बालक को ऐसी प्रेरणाएँ और नसीहतें दीं जिनके सहारे बच्चे की समझ और शिक्षा ही नहीं, आत्मा भी ऊँची उठती चली गई और वह राष्ट्रपति ही नहीं विश्व के महामानवों में से एक बना। एक बार अब्राहम लिंकन से उनकी उन्नति का कारण और शिक्षा का आधार पूछा तो उनने एक शब्द में उतना ही कहा-जन्मदात्री न होते हुए भी जिसने मेरी निर्मात्री का कार्य पूरा किया उसी अपनी माँ का बनाया हुआ मैं एक खिलौना भर हूँ।’
महान वैज्ञानिक टामस अल्वा एडीसन बचपन में अत्यन्त मन्द बुद्धि थे। पढ़ने में उनकी अक्ल चलती ही न थी। सो अध्यापक ने बच्चे के हाथों अभिभावकों को पत्र भेजा। इसे स्कूल से उठा लें, मन्द बुद्धि होने के कारण वह पढ़ न सकेगा। बच्चे की माँ ने भरी आँखों और भारी मन से पत्र को पढ़ा। बच्चे को दुलारा और छाती से चिपका कर कहा-मेरे बच्चे, तुम मन्द बुद्धि नहीं हो सकते। मैं स्वयं ही तुम्हें पढ़ाऊंगी।” बच्चे को स्कूल से उठा लिया गया और उसकी माँ ने पढ़ाना प्रारम्भ कर दिया। परिणाम सभी के सामने है। बच्चा विश्व के मूर्धन्य वैज्ञानिकों में से एक बना।
अस्पताल की एक नर्स फ्लोरेन्स नाइटिंगल जब रेडक्रास सोसाइटी की स्थापना का उद्देश्य और स्वरूप लेकर बड़े आदमियों के पास गई तो उसकी हैसियत और कार्य की गरिमा को देखते हुए यही कहते रहे-आपके लिए इतनी बड़ी उड़ानें अनुपयुक्त हैं। नाइटिंगल हताश नहीं हुई। उसने अपनी हैसियत के अनुरूप काम आरम्भ किया किन्तु धीरे-धीरे विकसित होते हुए वह मिशन आज अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के महान् संस्थानों में से एक है।
तत्परता और तन्मयता जहाँ भी एकत्रित होगी वहाँ अभिनव सामर्थ्य के ऐसे शक्ति प्रवाह चल पड़ेंगे जो शब्दबेधी बाण की तरह लक्ष्य को पूरा करके ही रहें।