• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • संकल्प और आत्मबल एक ही तथ्य के दो पक्ष हैं।
    • इसे खरीदेगा कौन?
    • जीवन विराट् पार्थिव नहीं -विराट् तत्व
    • शरीर एवं मन (kahani)
    • धर्म और विज्ञान का समन्वय ही एक मात्र चारा
    • एक साधक था (kahani)
    • एकांगी साधना-अधूरी साधना
    • सपनों में सन्निहित जीवन सत्य
    • जब सिकन्दर भारत को विजित करता हुआ लौट रहा था (kahani)
    • भारतीय संस्कृति और उसकी विशेषताएं
    • बुरों पर रहम कर(kahani)
    • आस्था, जिम्मेदारी और हिम्मत
    • दो भाई थे (kahani)
    • मनुष्य जीवन भी एक प्रवास ही तो है।
    • Quotation
    • सौर-ऊर्जा का अथाह सिन्धु, काश! उसे धारण कर पायें
    • Quotation
    • कर्मचारी नौकर की आवश्यकता थी (kahani)
    • नीति निष्ठा का निर्वाह इस तरह बन पड़ेगा!
    • व्याधि निवारण के लिए धर्मानुष्ठानों का उपचार
    • स्वर्ग जाने की तरकीबें (kahani)
    • मनःशक्ति की विकृति और विनाश एक है।
    • मित्रता और उसका निर्वाह
    • विक्षिप्तता और उसका स्थायी समाधान
    • दारिद्रय की समस्या और एक विकल्प
    • तीर्थयात्रा का आधार, स्वरूप और प्रतिफल
    • Quotation
    • ज्ञान-प्रसाद की दिशा में
    • चटोरापन स्वास्थ्य की बर्बादी का सबसे बड़ा कारण
    • सूर्य सेवन हमारे लिये परम उपयोगी
    • अकबर के यहाँ माँगने के लिए गया (kahani)
    • ध्यान योग का पूर्वाभ्यास शिथिलीकरण मुद्रा से!
    • गढ़े खजाने ढूँढ़ने पर भी मिलते क्यों नहीं?
    • गायत्री जयन्ती पर सभी परिजन अपनी भावभरी श्रद्धा का परिचय दें
    • गायत्री महा विद्या के अमूल्य ग्रन्थरत्न
    • प्राणों की तरुणाई
    • प्राणों की तरुणाई (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • संकल्प और आत्मबल एक ही तथ्य के दो पक्ष हैं।
    • इसे खरीदेगा कौन?
    • जीवन विराट् पार्थिव नहीं -विराट् तत्व
    • शरीर एवं मन (kahani)
    • धर्म और विज्ञान का समन्वय ही एक मात्र चारा
    • एक साधक था (kahani)
    • एकांगी साधना-अधूरी साधना
    • सपनों में सन्निहित जीवन सत्य
    • जब सिकन्दर भारत को विजित करता हुआ लौट रहा था (kahani)
    • भारतीय संस्कृति और उसकी विशेषताएं
    • बुरों पर रहम कर(kahani)
    • आस्था, जिम्मेदारी और हिम्मत
    • दो भाई थे (kahani)
    • मनुष्य जीवन भी एक प्रवास ही तो है।
    • Quotation
    • सौर-ऊर्जा का अथाह सिन्धु, काश! उसे धारण कर पायें
    • Quotation
    • कर्मचारी नौकर की आवश्यकता थी (kahani)
    • नीति निष्ठा का निर्वाह इस तरह बन पड़ेगा!
    • व्याधि निवारण के लिए धर्मानुष्ठानों का उपचार
    • स्वर्ग जाने की तरकीबें (kahani)
    • मनःशक्ति की विकृति और विनाश एक है।
    • मित्रता और उसका निर्वाह
    • विक्षिप्तता और उसका स्थायी समाधान
    • दारिद्रय की समस्या और एक विकल्प
    • तीर्थयात्रा का आधार, स्वरूप और प्रतिफल
    • Quotation
    • ज्ञान-प्रसाद की दिशा में
    • चटोरापन स्वास्थ्य की बर्बादी का सबसे बड़ा कारण
    • सूर्य सेवन हमारे लिये परम उपयोगी
    • अकबर के यहाँ माँगने के लिए गया (kahani)
    • ध्यान योग का पूर्वाभ्यास शिथिलीकरण मुद्रा से!
    • गढ़े खजाने ढूँढ़ने पर भी मिलते क्यों नहीं?
    • गायत्री जयन्ती पर सभी परिजन अपनी भावभरी श्रद्धा का परिचय दें
    • गायत्री महा विद्या के अमूल्य ग्रन्थरत्न
    • प्राणों की तरुणाई
    • प्राणों की तरुणाई (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1978 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


दारिद्रय की समस्या और एक विकल्प

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 24 26 Last
                                                                       दारिद्रय  की समस्या और  एक  विकल्प

    प्रायः लोग बात-बात में धनाभाव और निर्धनता का रोना रोया करते हैं ; जबकि उनसे होना जाना कुछ नहीं है। इस प्रवृत्ति को निराशा और ऋणात्मक ही कहा जायगा क्योंकि यह सभी कोई जानते हैं कि परिस्थितियों की विकरालता का बारंबार चिन्तन व्यक्ति को न केवल जीवन्त रूप से तोड़ देता है, वरन् वे स्रोत भी बन्द कर देता है। जिन पर विचार किया जाता, तो बहुत सम्भावना थी कि निर्धनता इतनी कष्टकारक नहीं बनती। संसार के सभी महापुरुषों ने स्वेच्छा से गरीबी का वरण किया हैं ? गरीबी कोई बुरी चीज नहीं है- बुरी और कष्टकारक है ,उसके प्रति हमारा अपना दृष्टिकोण। भारत और विश्व के इतिहास में कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं ,जिनमें कई महापुरुषों ने अपना जीवन - खर्च चलाया।

      सुकरात के सम्बन्ध में प्रसिद्ध है ,किसी भी वस्तु को खरीदने से पहले वे इसका विचार करते थे कि क्या इसके बिना मेरा काम किसी प्रकार नहीं चलेगा। यदि उत्तर मिलता कि चल सकता है तो वे नहीं खरीदते ; क्योंकि उसे खरीदने के लिए जो वे पैसा खर्च करना पड़ता, उसे अर्जित करने में जीवन लक्ष्य के लिए दिये जाने वाले समय में कटौती करनी पड़ती। उन्हें अर्थकष्ट निरन्तर बना रहता था ,यहाँ तक कि कई बार उधार लेकर खाना पड़ता ,परन्तु उन्होंने अपनी निर्धनता पर कभी हीन दृष्टि से विचार नहीं किया, फलतः वे जीवन भर सन्तुष्ट और प्रसन्न वदन रहे।

        वस्तुतः जिन्हें निर्धनता ,अभिशाप लगती है और जीवन की प्राथमिक आवश्यकताएँ  पूरी होने योग्य भी जो उपार्जन नहीं कर पाते, उन्हें चाहिए कि वे निराश और चिन्तित रहने की अपेक्षा सोच- विचारपूर्वक काम लें। आमदनी किन उपायों से बढ़े , इस पर विचार करने से पूर्व हमें अपनी आवश्यकताओं पर विचार करना चाहिए। क्योंकि आज के समय में लोगों के पास व्यर्थ के खर्च इतने अधिक बढ़ गये हैं, जो अनावश्यक रूप से अनिवार्य है। यदि देखा जाय तो आम आदमी की आवश्यकतायें , जिन्हें प्राथमिक आवश्यकतायें कहना चाहिए, वे पाँच हैं - भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा और बचत। बचत का अर्थ कि कई  ऐसी जरूरतें होती हैं ; जो रोज तो नहीं आतीं ;पर उनके लिए पास में थोड़ी बहुत राशि जमा रखना आवश्यक है। जैसे बीमारी के समय ही नही, रिश्तेदारों में यथावसर आने-जाने के लिए भी बचत आवश्यक है। इन पाँच जरूरतों में से चार पर तो खर्च होता है। पाँचवीं और नियमित रूप से कुछ बचाते रहना चाहिए।

        इन आवश्यकताओं के तीन खण्ड किये जा सकते हैं- जीवनयापन विषयक, सुख विषयक और विलास विषयक। जीवनयापन विषयक आवश्यकतायें न पूरी होने वालों की अपेक्षा उन लोगों की संख्या अधिक है, जिनकी दूसरी और तीसरी विषयक आवश्यकतायें पूरी नहीं होतीं। जीवनयापन के लिए उन्हीं आवश्यकताओं की गणना की जा सकती है, जिनकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है। पर उनको भी अविवेकपूर्ण ढंग से पूरा करने वाले लोगों की ही अधिक संख्या है। कुछ वर्ष पूर्व डॉ. कैरेम कोर्ड ने मजदूरों के भोजन व्यय का अध्ययन किया तो पता चला कि बहुत से मजदूर अनावश्यक वस्तुएँ खरीदते हैं और खाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अनुपयोगी होने के साथ साथ हानिकारक भी हैं। उन आवश्यकताओं को पूरा करने में भी विवेक का परिचय देना चाहिए।

     सुख और विलासपूर्ण आवश्यकताओं का तो कोई अन्त ही नहीं है। इनमें फैशन, मिथ्याप्रदर्शन से लेकर दुर्व्यसनों , मूढ़तापूर्ण ,प्रतिस्पर्धाओं तक कितनी ही निरुपयोगी बातें हैं। एक विचारक के अनुसार , अधिकांश व्यक्तियों की आर्थिक चिन्ताओं के मूल में जो कारण प्रमुख है, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं- कृत्रिम आवश्यकता की अभिवृद्धि, दूसरों के सामने स्वयं को बढ़ा-चढ़ाकर प्रदर्शित करना, शौक-मौज की वस्तुओं में खर्च करना, नशेबाजी और अन्य दुर्व्यसनों की लत, ब्याह-शादियों में हैसियत से अधिक खर्च करना, सन्तानोत्पादन तथा मित्रों के साथ रहकर खर्च करने में अपना सिक्का जमाना।

   यदि अपनी आवश्यकताओं को पूरी करने में सूझ-बूझ से काम लिया जाय ,तो कम आमदनी में भी अच्छे स्तर का सुखी जीवन जिया जा सकता है। अल्प आय में गुजारा करने के बावजूद उसमें से कुछ बचा लेने के लिए विख्यात प. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने व्यय कला पर अपने जीवनवृत में पं. बनारसीदास जी चतुर्वेदी जी ने लिखा है - “एक वर्ष अजमेर में पन्द्रह रुपये प्रतिमाह पर नौकरी करने के बाद तार का काम सीखने के लिए बम्बई गये और वहाँ से बीस रुपये प्रतिमाह पर तार बाबू बने लेकिन वहाँ अपने मातहतों पर अत्याचार करने की अपेक्षा उन्होंने नौकरी छोड़ देना अधिक उचित समझा और त्यागपत्र दे दिया। फिर वे बीस रुपये प्रतिमास पर ही ‘सरस्वती’ में आ गये।”

इतने में अपना गुजारे चलाने के बावजूद भी उन्होंने काफी कुछ बचाया और जब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तो उसमें छात्रों को

शिष्यवृत्ति देने के लिए दे दिया। द्विवेदी एक-एक पैसा सोच समझकर खर्च करते थे और उसका हिसाब-किताब भी रखते थे।

     मितव्ययिता और सूझबूझ पूर्वक खर्च द्वारा अपने सीमित साधनों में भी इस प्रकार ‘सन्तुष्ट’ रहा जा सकता है। अपनी आवश्यकताएँ जीवन-यापन स्तर की रखने और एक-एक पैसा सोच-समझकर खर्च करने के साथ स्वावलम्बन भी एक ऐसा गुण है, जिससे कितनी ही बचत की जा सकती है। सामर्थ्य   है तो क्या जरूरी है कि धोबी से कपड़े धुलवाये जाएँ या नाई से ठोड़ी बनवायी जाएे। जूतों पर पालिश, टूटी-फूटी चीजों की मरम्मत, घर की सफाई आदि काम अपने हाथ से किये जा सकते हैं। न आता हो तो इन कामों को सीखा भी जा सकता है। इसमें एक ओर जहाँ खर्चों की बचत होगी, वहीं दूसरी ओर स्वावलम्बन की वृत्ति भी पनपेगी।

      अपनी आर्थिक समस्याओं का रोना रोते रहने के स्थान पर यदि इन पहलुओं पर भी विचार किया जाय तो आशा की जा सकती है कि एक सीमा तक हमें आर्थिक परेशानियों से राहत मिल सकती है।

Normal 0 false false false EN-US X-NONE HI /* Style Definitions */ table.MsoNormalTable {mso-style-name:"Table Normal"; mso-tstyle-rowband-size:0; mso-tstyle-colband-size:0; mso-style-noshow:yes; mso-style-priority:99; mso-style-qformat:yes; mso-style-parent:""; mso-padding-alt:0in 5.4pt 0in 5.4pt; mso-para-margin-top:0in; mso-para-margin-right:0in; mso-para-margin-bottom:10.0pt; mso-para-margin-left:0in; line-height:115%; mso-pagination:widow-orphan; font-size:11.0pt; mso-bidi-font-size:10.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif"; mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin; mso-hansi-font-family:Calibri; mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-font-family:Mangal; mso-bidi-theme-font:minor-bidi;} अपना काम अपने हाथ से करना कोई अशोभनीय कार्य नहीं है। संसार के सभी महापुरुष अपने कार्यों को अपने हाथ से करते रहे हैं। अमेरिका के इतिहास पुरुष राष्ट्रपति लिंकन के सम्बन्ध में तो विख्यात है  - एक बार वे अपने जूतों पर पालिश कर रहे थे। तभी एक सिनेटर वहाँ आ पहुँचा। उन्होंने राष्ट्रपति को यह करते देखा , तो बड़ा चौंका और उन्होंने कहा  -" मि. लिंकन। यह क्या ? आप अपने जूतों पर पालिश कर रहे हैं।"

बिना शरमाये अपने काम में लगे रहते हुए लिंकन ने चुटकी ली - " तो क्या मेरे लिए यह उचित होगा कि दूसरों के जूतों पर पालिश करना शुरू कर दूंँ।"  कहने का अर्थ यह कि हमारी आर्थिक समस्याओं के पीछे आमदनी का इतना दोष नहीं है, जितना कि हमारी खर्च करने की पद्धति का। कहा भी गया है कि धन कमाना सरल है , पर उसे खर्च करना कठिन। निस्सन्देह पर्याप्त धनोपार्जन करते रहने के बावजूद भी जो लोग खर्च करने की विधि नहीं जानते , वे दीन-हीन और कंगाली का ही जीवन ढोते रहते हैं। इस सम्बन्ध में अंग्रेजी के विख्यात कवि और उपन्यासकार गोल्ड स्मिथ का उदाहरण देना अप्रासंगिक न होगा। वे एक उच्चकोटि के कवि और नाटककार थे। लेखन में उन्हें आमदनी भी खूब होती थी , किन्तु जो भी आय होती , उसे खर्च करने में उन्होंने जरा भी सूझ-बूझ का उपयोग नहीं किया। जिन दिनों वे अध्यापक थे, उस समय जो कुछ बचाया वह सब एक दिन भावावेश में आकर घोड़ा खरीदने में लगा दिया। उनके सम्बन्धियों ने एक बार कुछ रकम इकट्ठीकर उन्हें कानून की शिक्षा पढ़ने के लिए भेजा , तो उस रकम से वे शराब पी गये और जुआ खेलते रहे।

किस्मत ने साथ दिया ; तो उनकी लेखनी खूब सफल होने लगी ;फिर भी वे दूध का बिल चुकाने, मकान किराया न देने के कारण पकड़े गये। उन्होंने काफी कमाया; पर जो कमाया; वह सब व्यर्थ के कार्यों में खर्च कर डाला और यहाँ तक कि जब वे मरे, तब भी उनके शरीर पर दर्जी से उधार ली हुई कोट और पेन्ट थी।

     अपनी आर्थिक समस्याओं का रोना रोते रहने के स्थान पर यदि इन पहलुओं पर भी विचार किया जाय, तो आशा की जा सकती है कि एक सीमा तक हमें आर्थिक परेशानियों से राहत मिल सकती है।

                                                                               ----***----

                                                                                      

First 24 26 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • संकल्प और आत्मबल एक ही तथ्य के दो पक्ष हैं।
  • इसे खरीदेगा कौन?
  • जीवन विराट् पार्थिव नहीं -विराट् तत्व
  • शरीर एवं मन (kahani)
  • धर्म और विज्ञान का समन्वय ही एक मात्र चारा
  • एक साधक था (kahani)
  • एकांगी साधना-अधूरी साधना
  • सपनों में सन्निहित जीवन सत्य
  • जब सिकन्दर भारत को विजित करता हुआ लौट रहा था (kahani)
  • भारतीय संस्कृति और उसकी विशेषताएं
  • बुरों पर रहम कर(kahani)
  • आस्था, जिम्मेदारी और हिम्मत
  • दो भाई थे (kahani)
  • मनुष्य जीवन भी एक प्रवास ही तो है।
  • Quotation
  • सौर-ऊर्जा का अथाह सिन्धु, काश! उसे धारण कर पायें
  • Quotation
  • कर्मचारी नौकर की आवश्यकता थी (kahani)
  • नीति निष्ठा का निर्वाह इस तरह बन पड़ेगा!
  • व्याधि निवारण के लिए धर्मानुष्ठानों का उपचार
  • स्वर्ग जाने की तरकीबें (kahani)
  • मनःशक्ति की विकृति और विनाश एक है।
  • मित्रता और उसका निर्वाह
  • विक्षिप्तता और उसका स्थायी समाधान
  • दारिद्रय की समस्या और एक विकल्प
  • तीर्थयात्रा का आधार, स्वरूप और प्रतिफल
  • Quotation
  • ज्ञान-प्रसाद की दिशा में
  • चटोरापन स्वास्थ्य की बर्बादी का सबसे बड़ा कारण
  • सूर्य सेवन हमारे लिये परम उपयोगी
  • अकबर के यहाँ माँगने के लिए गया (kahani)
  • ध्यान योग का पूर्वाभ्यास शिथिलीकरण मुद्रा से!
  • गढ़े खजाने ढूँढ़ने पर भी मिलते क्यों नहीं?
  • गायत्री जयन्ती पर सभी परिजन अपनी भावभरी श्रद्धा का परिचय दें
  • गायत्री महा विद्या के अमूल्य ग्रन्थरत्न
  • प्राणों की तरुणाई
  • प्राणों की तरुणाई (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj