
ज्ञान-प्रसाद की दिशा में
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ज्ञान-प्रसाद की दिशा में
दिनोंदिन शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे प्रसार तथा तीव्रगति से हो रही विज्ञान की प्रगति ने यह आवश्यक बना दिया है कि ज्ञानप्रसार के समस्त साधनों में निरन्तर वृद्धि होती रहे। जिस देश में जितना अच्छा साहित्य उपलब्ध होगा , उतना ही अच्छा उसका विचार व आचरण बनेगा, यदि पूरे देश में सद्साहित्य के बड़े भंडार हो जाएँ सद्साहित्य की पुस्तकें विपुल मात्रा में व सस्ती दरों पर सुलभ कराई जाती रहें, तो अधिकाधिक शिक्षित व्यक्ति उसका अध्ययनकर तद्नुसार अपना विचार व कार्य व्यवहार बनावेंगे तथा कुसाहित्य स्वयमेव ही अदृश्य हो जायगा। देश के युवकों व बच्चों को कुछ भी पढ़ने की स्वाभाविक इच्छा तो रहती ही है यदि उन्हें सद्साहित्य सुलभ न हुआ तो जो भी साहित्य उन्हें सरलता से उपलब्ध हो जाता है, उसे ही वे पढ़ते हैं अतः यदि सुसाहित्य सृजन का क्रम चलता रहा तो सृजनात्मक प्रवृत्तियों वाला समाज भी बनाया जा सकता है। Normal 0 false false false EN-US X-NONE HI /* Style Definitions */ table.MsoNormalTable {mso-style-name:"Table Normal"; mso-tstyle-rowband-size:0; mso-tstyle-colband-size:0; mso-style-noshow:yes; mso-style-priority:99; mso-style-qformat:yes; mso-style-parent:""; mso-padding-alt:0in 5.4pt 0in 5.4pt; mso-para-margin-top:0in; mso-para-margin-right:0in; mso-para-margin-bottom:10.0pt; mso-para-margin-left:0in; line-height:115%; mso-pagination:widow-orphan; font-size:11.0pt; mso-bidi-font-size:10.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif"; mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin; mso-hansi-font-family:Calibri; mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-font-family:Mangal; mso-bidi-theme-font:minor-bidi;} इस दिशा में जर्मन जनवादी गणतन्त्र में हो रहे प्रयास अनुकरणीय है | वहाँ का "अकादमी फेरलाग" नामक प्रकाशन पर औसतन एक पुस्तक -पुस्तिका अथवा विवरणिका प्रतिदिन प्रकाशित करता है |यह पुस्तकघर आज से पच्चीस वर्ष पूर्व स्थापित हुआ था| इस अवधि में अभी तक 7200 पुस्तकें ही प्रकाशित करता है | पुस्तक प्रकाशन के अतिरिक्त "अकादमी फेरलाग 60 वैज्ञानिक पत्रिकाएँ भी प्रकाशित करता है| इसमें से अनेकों का सम्पादन-मण्डलों द्वारा किया जाता है | यहाँ की प्रकशित पुस्तकें तथा पत्र-पत्रिकाएँ विश्व के 45 देशों में जाती हैं | यहाँ की पुस्तकें मुख्यतः ,विश्व ,भारत ,जापान ,संयुक्त राज्य अमेरिका आदि में अधिक आयात होती है |"
जर्मन- जनवादी -गणतन्त्र के विश्व ज्ञान - भण्डार में इस योगदान का न केवल स्वयं जर्मन -जनवादी -गणतन्त्र में ही, अपितु विश्व के अन्यान्य राष्ट्रों में भी बड़ा प्रभावपूर्ण लाभ हुआ है। जर्मन -जनवादी- गणतन्त्र में प्रायः अधिकांश बच्चों, युवकों, शिक्षितों में विज्ञान के क्षेत्र में अधिकाधिक जानकारियाँ प्राप्त करने की रुचि बढ़ी है तथा यहाँ के वैज्ञानिक विश्व में नई-नई प्रतिभाओं को उभरने का अवसर दिया है। इस देश में सत्साहित्य -प्रचार का कार्य इस प्रकाशन -घर तक ही सीमित नहीं है ; वरन् पूरे देश में इस तरह के और भी कई प्रकाशन - घर है, जो विज्ञान के अतिरिक्त ज्ञान के अन्यान्य क्षेत्रों से सम्बन्धित साहित्य का प्रकाशन करते हैं। बात प्रकाशन तक ही सीमित नहीं रहती, यहाँ पर प्रायः हर छोटे-बड़े नगर में एक-एक पुस्तकालय है, सामूहिक वाचनालय है जहाँ पर साहित्य पठन-पाठन की निःशुल्क व्यवस्था है। इन पुस्तकालयों, वाचनालयों से यहाँ बच्चे व अन्यान्य व्यक्तियों में सुसाहित्य के स्वाध्याय के प्रति अभिरुचि बढ़ी है, जिसका स्पष्ट परिणाम यह परिलक्षित हुआ कि न केवल विज्ञान के क्षेत्र में ही अपितु अन्यान्य क्षेत्रों में भी नई-नई प्रतिभाएं उभरने लगी हैं। यह राष्ट्र साहित्य के माध्यम से समर्थ व संपत्तिवान बनने की ओर निरन्तर आगे बढ़ता ही जा रहा है। जर्मन- जनवादी- गणतन्त्र के इस अनूठे योगदान से भारत भी लाभान्वित हुआ है। भारतवर्ष में भी यहाँ की पुस्तकें लोकप्रिय होती जा रही है तथा यहाँ के साहित्य से मुख्यतः विज्ञान के क्षेत्र में एक नई विचारशैली पनपने लगी है। जर्मन -जनवादी - गणतन्त्र का साहित्य प्रसार-प्रचार की दिशा में यह एक प्रशंसनीय व अनुकरणीय योगदान है। ----***----
दिनोंदिन शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे प्रसार तथा तीव्रगति से हो रही विज्ञान की प्रगति ने यह आवश्यक बना दिया है कि ज्ञानप्रसार के समस्त साधनों में निरन्तर वृद्धि होती रहे। जिस देश में जितना अच्छा साहित्य उपलब्ध होगा , उतना ही अच्छा उसका विचार व आचरण बनेगा, यदि पूरे देश में सद्साहित्य के बड़े भंडार हो जाएँ सद्साहित्य की पुस्तकें विपुल मात्रा में व सस्ती दरों पर सुलभ कराई जाती रहें, तो अधिकाधिक शिक्षित व्यक्ति उसका अध्ययनकर तद्नुसार अपना विचार व कार्य व्यवहार बनावेंगे तथा कुसाहित्य स्वयमेव ही अदृश्य हो जायगा। देश के युवकों व बच्चों को कुछ भी पढ़ने की स्वाभाविक इच्छा तो रहती ही है यदि उन्हें सद्साहित्य सुलभ न हुआ तो जो भी साहित्य उन्हें सरलता से उपलब्ध हो जाता है, उसे ही वे पढ़ते हैं अतः यदि सुसाहित्य सृजन का क्रम चलता रहा तो सृजनात्मक प्रवृत्तियों वाला समाज भी बनाया जा सकता है। Normal 0 false false false EN-US X-NONE HI /* Style Definitions */ table.MsoNormalTable {mso-style-name:"Table Normal"; mso-tstyle-rowband-size:0; mso-tstyle-colband-size:0; mso-style-noshow:yes; mso-style-priority:99; mso-style-qformat:yes; mso-style-parent:""; mso-padding-alt:0in 5.4pt 0in 5.4pt; mso-para-margin-top:0in; mso-para-margin-right:0in; mso-para-margin-bottom:10.0pt; mso-para-margin-left:0in; line-height:115%; mso-pagination:widow-orphan; font-size:11.0pt; mso-bidi-font-size:10.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif"; mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin; mso-hansi-font-family:Calibri; mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-font-family:Mangal; mso-bidi-theme-font:minor-bidi;} इस दिशा में जर्मन जनवादी गणतन्त्र में हो रहे प्रयास अनुकरणीय है | वहाँ का "अकादमी फेरलाग" नामक प्रकाशन पर औसतन एक पुस्तक -पुस्तिका अथवा विवरणिका प्रतिदिन प्रकाशित करता है |यह पुस्तकघर आज से पच्चीस वर्ष पूर्व स्थापित हुआ था| इस अवधि में अभी तक 7200 पुस्तकें ही प्रकाशित करता है | पुस्तक प्रकाशन के अतिरिक्त "अकादमी फेरलाग 60 वैज्ञानिक पत्रिकाएँ भी प्रकाशित करता है| इसमें से अनेकों का सम्पादन-मण्डलों द्वारा किया जाता है | यहाँ की प्रकशित पुस्तकें तथा पत्र-पत्रिकाएँ विश्व के 45 देशों में जाती हैं | यहाँ की पुस्तकें मुख्यतः ,विश्व ,भारत ,जापान ,संयुक्त राज्य अमेरिका आदि में अधिक आयात होती है |"
जर्मन- जनवादी -गणतन्त्र के विश्व ज्ञान - भण्डार में इस योगदान का न केवल स्वयं जर्मन -जनवादी -गणतन्त्र में ही, अपितु विश्व के अन्यान्य राष्ट्रों में भी बड़ा प्रभावपूर्ण लाभ हुआ है। जर्मन -जनवादी- गणतन्त्र में प्रायः अधिकांश बच्चों, युवकों, शिक्षितों में विज्ञान के क्षेत्र में अधिकाधिक जानकारियाँ प्राप्त करने की रुचि बढ़ी है तथा यहाँ के वैज्ञानिक विश्व में नई-नई प्रतिभाओं को उभरने का अवसर दिया है। इस देश में सत्साहित्य -प्रचार का कार्य इस प्रकाशन -घर तक ही सीमित नहीं है ; वरन् पूरे देश में इस तरह के और भी कई प्रकाशन - घर है, जो विज्ञान के अतिरिक्त ज्ञान के अन्यान्य क्षेत्रों से सम्बन्धित साहित्य का प्रकाशन करते हैं। बात प्रकाशन तक ही सीमित नहीं रहती, यहाँ पर प्रायः हर छोटे-बड़े नगर में एक-एक पुस्तकालय है, सामूहिक वाचनालय है जहाँ पर साहित्य पठन-पाठन की निःशुल्क व्यवस्था है। इन पुस्तकालयों, वाचनालयों से यहाँ बच्चे व अन्यान्य व्यक्तियों में सुसाहित्य के स्वाध्याय के प्रति अभिरुचि बढ़ी है, जिसका स्पष्ट परिणाम यह परिलक्षित हुआ कि न केवल विज्ञान के क्षेत्र में ही अपितु अन्यान्य क्षेत्रों में भी नई-नई प्रतिभाएं उभरने लगी हैं। यह राष्ट्र साहित्य के माध्यम से समर्थ व संपत्तिवान बनने की ओर निरन्तर आगे बढ़ता ही जा रहा है। जर्मन- जनवादी- गणतन्त्र के इस अनूठे योगदान से भारत भी लाभान्वित हुआ है। भारतवर्ष में भी यहाँ की पुस्तकें लोकप्रिय होती जा रही है तथा यहाँ के साहित्य से मुख्यतः विज्ञान के क्षेत्र में एक नई विचारशैली पनपने लगी है। जर्मन -जनवादी - गणतन्त्र का साहित्य प्रसार-प्रचार की दिशा में यह एक प्रशंसनीय व अनुकरणीय योगदान है। ----***----