
हाथ में घड़ी-चाल में सुस्ती
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आप नई-नई स्कूटर या साइकिल खरीदिए और फिर उस पर सवारी करना बन्द कर दीजिए, तो हर परिचित मित्र ओर स्वजन रोज-रोज पूछेंगे-टोकेंगे कि आखिर आपने वह वाहन खरीदा किस लिए है। खुद आपको भी झेंप लगेगी।
लेकिन एक वस्तु इन दिनों ऐसी भी फैशन में है कि जिसे अधिकाँश लोग खरीदते तो हैं, लेकिन फिर उसके उपयोग से पूरी तरह से बे खबर रहते हैं और इसके लिए न तो कोई परिचित मित्र टोकते, न खुद खरीदने वाला कभी झेंपता। शायद आप सोच रहे हैं कि भला ऐसी भी कोई वस्तु सम्भव है क्या? कौन ऐसा पागल होगा, जो किसी वस्तुतः को खरीदकर फिर उसका कोई भी उपयोग न करें?
लेकिन समाज का दुर्भाग्य है कि ऐसे ही लोगों की बहुतायत है और फिर न वह वस्तुतः भी कोई रुपये-दो रुपए की नहीं, उसकी कीमत सौ से तो ऊपर ही होती है। वह वस्तु है घड़ी।
घड़ी का एकमात्र प्रयोजन जो जग जाहिर है, वह है समय की जानकारी। लेकिन हमारे समाज की मानसिकता इन दिनों कैसी विचित्र और रुग्ण है कि घड़ी खरीदने की ललक तो हर एक को है, पर फिर उसके द्वारा समय की जानकारी रखने और समय के प्रति सजग रहने का भाव प्रायः किसी में उत्पन्न नहीं होता।
कई लोग तो घड़ी देखना नहीं जानते, फिर भी उन्हें घड़ी पहने देखा जा सकता है। घड़ी अब समय की जानकारी की आवश्यकता पूरी नहीं करती वरन् हाथ की शोभा ही बढ़ाती है। यहाँ तक कि घड़ी पहने हुए व्यक्तियों को भी दूसरों से समय पूछते हुए देखा गया है। घड़ी पहनने वाले सौ व्यक्तियों से यदि यह प्रश्न पूछा जाय कि आपने घड़ी क्यों बाँधी तो नब्बे लोग यही कहेंगे कि कलाई की शोभा के लिए। लेकिन यह स्वस्थ स्थिति नहीं है। यह इस तथ्य का परिचायक भर है कि जीवन की सर्वोपरि सम्पदा समय के प्रति हमारे लोगों के मन में कितनी अवज्ञा और उपेक्षा का भाव है। यहाँ तक कि समय का मूल्य महत्व बताने वाले यन्त्र-घड़ी को फैशन और आभूषण बना डाला। कथनी और करनी में कितना फर्क हो गया है, इस तथ्य की भी द्योतक यह प्रवृत्ति है। लोग समय-निष्ठ होना नहीं चाहते, दूसरों को यह बताना भर चाहते हैं हम समय-निष्ठ हैं। उसी प्रकार जैसे अधिकाँश लोग व्यक्तित्व और .चरित्र से धार्मिक होना नहीं चाहते, चन्दन लगाकर या रुद्राक्ष आदि पहनकर अपने को धार्मिक व्यक्ति जताना भर चाहते है॥ यह एक ह्रासशील समाज का लक्षण है।
कोई भी चीज जब फैशन बन जाती है तो उसका मूल्य महत्व कम और प्रदर्शन की चीज ज्यादा हो जाती है। घड़ी फैशन और आभूषण बन गयी है। आदमी के जीवन और व्यवहार में से घड़ी का वास्तविक महत्व या उपयोग लुप्त हो गया है। आज स्थिति यह है कि हाथ में घड़ी बँधी हो और वह कोई काम समय पर नहीं करता हो तो भी कोई नहीं पूछेगा कि आप दफ्तर देर से क्यों आते हैं या समय पर जाग क्यों नहीं पाते? उल्टे सभाओं और अन्य दूसरे कार्यक्रमों में जो लोग देर से पहुँचते हैं उनके हाथ में सुन्दर और कीमती घड़ियाँ बंधी होगी। आदमी अपनी पहली तनख्वाह से घड़ी खरीदेगा ताकि वह असल में बाबू कहला सके। माँ बाप अपने बच्चों को थोड़ा बड़ा होते ही घड़ी बँधवा देंगे ताकि औरों की दृष्टि में वे तथा उनके परिवार प्रतिष्ठित और सम्पन्न दिखाई दें। ब्याह शादियों के अवसर पर दूल्हे राजा अपने सास ससुर से घड़ी की ही फर्माइश सबसे पहले करेंगे। नव-वधू मुँह दिखाई में सर्वप्रथम घड़ी की ही माँग करेंगी। यह सच इसलिए नहीं कि घड़ी-समय बताने वाली मशीन है, बल्कि इसलिए कि घड़ी रौब दर्शाने वाली, फैशन और प्रदर्शन की चीज है।
यदि घड़ी को फैशन नहीं बनाया जाता तो उन्हीं हाथों में वह दिखाई देती जो समय के पाबन्द है या घड़ी पहनने वाला व्यक्ति समय को पकड़ने की कोशिश करता। घड़ी रखना तो आज तक एक व्यक्ति का सार्थक हुआ था। वे थे महात्मा गाँधी। उनकी कमर में लटकती घड़ी ने उन्हें एक-एक क्षण का बोध कराया। न तो उन्होंने कभी किसी क्षण को व्यर्थ गँवाया और न ही वे किसी सभा या कार्यक्रम में कभी देर से पहुँचे।
एक बार पण्डित नेहरू घड़ी बाँध कर उनके पास पहुँचे। महात्मा गाँधी ने देखते ही तुरन्त पूछा- ‘घड़ी’ तुम्हारे चलिए आवश्यक है या शौक।
नेहरूजी ने पूछा- ‘मैं आपकी बात समझा नहीं।’
मैं इधर कुछ दिनों से देख रहा हूँ कि किसी भी कार्यक्रम या आयोजन में देर से पहुँचने लगे हो। घड़ी पहनकर भी अपने इस दोष को सुधार भी सकोगे या नहीं’ -बापू ने का।
‘पूरी कोशिश करूंगा’- नेहरू का उत्तर था। उनकी कोशिश पूर्ण हुई हो यान हुई हो परन्तु गाँधीजी से जब कभी मुलाकात के लिए मिलने जाते तो घड़ी का सर्वाधिक ध्यान रखते। आज जब कभी कोई घड़ी वाला व्यक्ति किसी स्थान पर देर से पहुँचता है तो वह घर से ही घड़ी को ठीक कर लेता है। यह बताने के लिए कि वह तो ठीक समय पर ही पहुँचा परन्तु घड़ी धोखा दे गयी। लेकिन मजे कि बात तो यह है कि आगे रखी गयी सुइयों के बावजूद भी, अपनी ही घड़ी के हिसाब से वह देर से पहुँचता है। जो लोग इसे आभूषण मानते हैं उनकी यह दशा है।
घड़ी का सही और उचित प्रयोग करना सीख लिया जाय तो आदमी की उम्र पच्चीस साल और बढ़ जायगी। साठ वर्ष का आदमी अपनी इसी उम्र में पच्चासी वर्ष का काम कर दिखायेगा। क्योंकि वह अपनी दिनचर्या को उतना ही नियमबद्ध रखेगा जितनी कि घड़ी।
समय की पाबन्दी-अच्छे व्यक्तित्व और उन्नत चरित्र का एक अनिवार्य गुण है। घड़ी की आवश्यकता को समझा जाय, तो घड़ी न भी हो तो काम चल जायगा और मनुष्य अपने व्यक्तित्व को विकास की उच्चतम सीढ़ियों तक ले जायगा।
घड़ी पास में होने पर भी, जो समय के प्रति लापरवाही करते हैं, समयबद्ध जीवनक्रम नहीं अपनाते, उन्हें विकसित व्यक्तित्व का स्वामी नहीं कहा जा सकता, घड़ी कोई गहना नहीं है। उसे पहनकर फिर जीवन में उसका कोई भी प्रभाव नहीं परिलक्षित होने दिया जाता तो यह गर्व की नहीं, शर्म की बात है, समय की अवज्ञा कैसे भी हेय है, फिर समय-निष्ठा का प्रतीक-चिन्ह धारण करने के बाद यह अवज्ञा तो एक अपराध ही है। यदि आपके पास घड़ी है, तो उसकी इज्जत की रक्षा कीजिए। अपनी गतिविधियों में उसका प्रभाव झलकने दीजिए।