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Magazine - Year 1979 - October 1979

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Language: HINDI
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अपनों से अपनी बात- - सृजन शिल्पियों के प्रशिक्षण की नयी सत्र श्रृंखला

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पिछले दिनों अपने परिवार का बहुत तेजी से और व्यापक विस्तार हुआ है। इस थोड़ी-सी अवधि में परिजनों की संख्या 10 लाख से बढ़कर 28 लाख हो गई है। इतने परिजनों में आधे से अधिक परिजन ऐसे हैं जो पिछले दो वर्ष की अवधि में ही मिशन के संपर्क में आए हैं और इसी बीच उन्होंने परिवार की सदस्यता ग्रहण की है। जागृत आत्माओं को भी महाकाल के युग निमन्त्रण ने इन्हीं दिनों झकझोरा है। पिछले दिनों महापुरश्चरण योजना में लाखों व्यक्ति भागीदार हुए, प्रव्रज्या अभियान के अंतर्गत वरिष्ठ, कनिष्ठ और समयदानी वर्ग के सहस्रों सृजन शिल्पी वरिष्ठ, कनिष्ठ और समयदानी परिव्राजकों के रूप में कार्यक्षेत्र में उतरे हैं। शक्ति पीठों के स्थायी परिव्राजकों के साथ अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। महिला जागरण अभियान को भी इन्हीं दिनों नवजीवन दिया गया है और उसका स्वरूप परिवार निर्माण अभियान जैसा बना दिया गया है।

इसके विस्तार और व्यापक होने की प्रक्रिया को अभूतपूर्ण कहा जा सकता है। प्रज्ञावतार को प्रभात बेला में आलोक वितरण की प्रक्रिया द्रुतगति से चल पड़ी है और नव सुजन की दिशा में बहुमुखी प्रयास अभिनव उत्साह के साथ आरम्भ हुए है। इन परिस्थितियों में अपने परिवार को नये सिरे से, नई परिस्थितियों के अनुरूप प्रशिक्षित करने की व्यवस्था बनाना अनिवार्य हो गया है। पिछले सात वर्षा से शान्ति कुंज में विविध प्रयोजनों के लिए लोक सेवियों को प्रशिक्षित करने के लिए विभिन्न सत्र श्रृंखला चल रही हैं। इन शिविरों में लगभग 30 हजार कार्यकर्ता प्रशिक्षित हुए। जो भी इसमें सम्मिलित हुआ वह अपने जीवन क्रम में कुछ सुखद और शुभ संकल्प लेकर ही वापिस लौटा है।

इन शिविरों की सार्थकता और प्रभावोत्पादकता को सभी ने एक स्वर से सराहा है। अब सत्र श्रृंखलाओं का नये सिरे से निर्धारण किया गया है। पहले स्थान सम्बन्धी कमी की कठिनाई थी। अब वह कमी गायत्री नगर का एक बड़ा भाग बन जाने से लगभग पूरी हो गई हे। समय की माँग बढ़ी है। नई परिस्थितियाँ, नई चुनौतियों के समान सामने आई हैं। उनका सामना करने के लिए जागृत आत्माओं को नई आवश्यकताएँ पूरी कर सकने के लिए उपयुक्त बनाने वाला प्रशिक्षण भी नितान्त आवश्यक हो गया है। इस आवश्यकता को देखते हुए दीपावली बाद इसी नवम्बर माह से सात सत्रों की श्रृंखला आरम्भ की जा रही है।

इन प्रशिक्षणों में जागृत आत्माओं का सम्मिलित होना नितान्त आवश्यक है। जो पिछले सात वर्षा में किन्हीं सत्रों में सम्मिलित हो चुके हैं, उन्हें भी नये सिरे से, इन नये स्तर के सत्रों में सम्मिलित होना चाहिए। पहले की अपेक्षा अब की परिस्थितियों में काफी अन्तर आ गया है, इसलिए विकसित कार्यपद्धति बनानी पड़ी है और उसी आधार पर प्रशिक्षण में नये तत्वों का समावेश करके उनका अभिनव निर्धारित करना पड़ा है। इस दृष्टि से पुराने सत्रों में सम्मिलित होने की बात को अपर्याप्त समझना चाहिए तथा नये सिरे से सभी युग शिल्पियों को इनमें सम्मिलित होने का प्रयत्न करना चाहिए।

इन सभी सत्रों के लिए आवेदन पत्र प्राप्त होने के उपरान्त ही स्वीकृतियाँ दी जायेंगी और शिविरार्थियों की योग्यता तथा आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ही सम्मिलित होने के लिए कहा जायगा। साथ ही अनुशासन के पालन पर विशेष जोर दिया जायगा ताकि अस्त-व्यस्तता के कारण व्यवस्था सम्बन्धी गड़बड़ियां पैदा न हो सकें और प्रशिक्षण का स्तर ऊंचा ही बना रहे। स्मरणीय है कि प्रत्येक महत्वपूर्ण कार्य के लिए प्रशिक्षण लेना आवश्यक होता है। सुशिक्षित तथा कार्य कुशल व्यक्ति भी हर काम में हाथ डालने और उसमें सफलता प्राप्त करने में समर्थ या सक्षम नहीं होते।

इंजीनियर हो अथवा डाक्टर, कलाकार हो या शिल्पी, पहलवान हो या अध्यापक कहने का आशय यह कि अपने विषय में प्रवीणता प्राप्त करने के लिए सभी प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। युग सृजन तो इन सभी कार्या से बड़ा व्यापक, जटिल और महत्वपूर्ण हे। इस उत्तरदायित्व को सम्हालने वाले व्यक्ति के लिए भी यह आवश्यक है कि वह अपने विषय में दक्ष हो। नये शिविरों की श्रृंखला इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए बनाई गई है। इसे युगान्तरीय चेतना की प्राणवान प्रक्रिया ही समझा जाना चाहिए और सभी जीवन्त आत्माओं को अपनी परिस्थिति के अनुरूप किन्हीं सत्रों में सम्मिलित होने का प्रयत्न करना चाहिए।

नये निर्धारित किये गये सात सत्रों की श्रृंखला इस प्रकार है -

(1) एक माह का परिव्राजक सत्र

क्षेत्रों में बने रहे शक्ति पीठों के लिए इन्हीं दिनों परिव्राजकों की नियुक्तियाँ की जानी हैं। उनमें अनुभवी कार्यकर्ता ही काम करेंगे, जो भी दायित्व इन कार्यकर्ताओं को सौंपा जायगा वह सर्वथा नये प्रकार का होगा। पूजा, अर्चा, नियमित रूप से होते रहने वाला हवन यज्ञ, जन-संपर्क, जन्म-दिन आयोजन, क्षेत्र में यज्ञों का आयोजन, भाषण और सम्भाषण में प्रवीणता, युग साहित्य को घर-घर पहुँचाने का अनुभव, स्लाइड प्रोजेक्टर के सहारे प्रवचन करना, कार्यक्षेत्र में रचनात्मक प्रवृत्तियों को गति देना, निर्माणाधीन शक्ति पीठों के भवन निर्माण की देखभाल करना, उनकी स्थानीय व्यवस्था बनाना, आगन्तुकों को सन्तुष्ट करने की क्षमता कार्यक्षेत्र की परिस्थितियां समझते हुए उसके अनुरूप गतिविधियाँ चलाना, अपना निज का दृष्टिकोण, व्यक्तित्व एवं व्यवहार प्रभावोत्पादक बनाना जैसी अनेकों योग्यताएं होनी चाहिए। इन योग्यताओं के अभाव में सुशिक्षित व्यक्ति भी शक्ति पीठों के वे उत्तरदायित्व पूरे नहीं कर सकते जो अप्रत्याशित रूप से उनके कन्धों पर आ रहा है।

शक्ति पीठें जहाँ बन रही हैं, या बनने वाली हैं, उनके निर्माण कर्ताओं से कहा है कि उन्हें अभी से अपने क्षेत्र को जागृत करने के लिए सचेष्ट रहना चाहिए। 24 लाख मन्त्र लेखन संग्रह जन जागरण के लिए छोटे बड़े यज्ञ आयोजन, भवन निर्माण आदि के कार्या में सहायता देने वाले कार्यकर्ता नियुक्त किये जाने चाहिए। इन दिनों तो ऐसे कार्यकर्त्ताओं की यों भी अधिक आवश्यकता है तो क्यों न उन्हें काम में लगाया जाय? ऐसे व्यक्तियों को अभी से तलाशना आरम्भ कर देना है, जो इस उत्तरदायित्व को सम्हालने के लिए हों। उन्हें खोज कर प्रशिक्षण के लिए हरिद्वार भेजना चाहिए।

एक महीने का प्रशिक्षण फिलहाल तो उन्हीं को दिया जायगा, जो शक्ति पीठों द्वारा भेजे जायेंगे। बाद में वरिष्ठ, और समयदानी परिव्राजकों को भी इन सत्रों में सम्मिलित होना होगा। टोली नायकों और कार्यवाहकों के लिए भी लोक नेतृत्व का यह प्रशिक्षण आवश्यक होगा। इसका सिलसिला अभी से आरम्भ कर दिया गया है। अंग्रेजी महीने की पहली तारीख से मई जून के दो माह छोड़कर शेष दसों महीनों यह प्रशिक्षण नियमित रूप से चलते रहेंगे। शक्ति पीठ किस महीने कितने कार्यकर्ता अपने यहाँ से भेजेंगे, इसके लिए अभी से आवेदन करके स्वीकृति प्राप्त कर लेनी चाहिए।

(2) तीन माह के भजनोपदेशक सत्र

शक्ति पीठों का कार्य क्षेत्र प्रायः देहात है। वहाँ प्रवचनों की अपेक्षा भजनोपदेशक अधिक प्रभावशाली सिद्ध हो सकते हैं। यह कार्यक्रम शिक्षित व्यक्ति भी जिनका कण्ठ मधुर हो हलके-फुलके संगीत द्वारा लोकशिक्षण का कार्य सरलता पूर्वक सम्पन्न कर सकते हैं। लोकरंजन और लोकमंगल का यह समन्वय अपने देश की वर्तमान स्थिति में जन-जागरण का कार्य जितने अच्छे ढंग से सम्पन्न कर सकता है उतना सरल और प्रभावी तरीका कुछ भी नहीं है। भजनोपदेशकों के लिए भविष्य में तीन-तीन माह के सत्र 1 नवम्बर से शान्ति कुंज में चलेंगे। प्रथम सत्र नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी का - दूसरा फरवरी, मार्च, अप्रैल का चलेगा। मई, जून में एक-एक सप्ताह के जीवन साधना सत्र चलेंगे इसलिए उन दो महीनों तक संगीत सत्र बन्द रहेंगे। इसके उपरान्त तीसरा सत्र जुलाई, अगस्त, सितम्बर का और चौथा अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर का चलेगा। इन चारों में से जिन्हें जिसमें प्रवेश पाना हो, वे अपना स्थान सुरक्षित करा लें।

इस शिविर के लिए विशेष रूप से ध्यान देने योग्य बात है कि प्रत्येक व्यक्ति संगीत गायन के लिए फिट नहीं होता। गले की मिठास और स्वर पहचानने की क्षमता यह दो विशेषताएँ जिनमें हो, वहीं व्यक्ति इस शिक्षण के उपयुक्त बैठते और सफलता प्राप्त करते हैं। हर किसी को सफलता नहीं मिल सकती हैं इन सत्रों में प्रवेश पाने से पूर्व अपने घर पर ही जानकारों की सहायता से थोड़ा अभ्यास करना चाहिए। यदि गला ठीक लगे और बुद्धि में पकड़ की क्षमता दिखे तो उस विशेषता को निखारने के लिए हरिद्वार आना चाहिए प्रवेश प्राप्त करने से पूर्व प्रत्येक शिविरार्थी को यह बताना होगा कि उनका कण्ठ और स्वर ज्ञान इसके लिए उपयुक्त है अथवा नहीं। सर्वथा अनजानों को प्रवेश देना सम्भव नहीं हो सकेगा।

(3) ब्रह्मवर्चस साधना शिविर

सवा लक्ष गायत्री महापुरश्चरण, गंगा की गोद और हिमालय की छाया में चलने वाले ब्रह्मवर्चस सत्र नियमित रूप से चलते रहेंगे। साधक को स्थिति और आवश्यकता के अनुरूप इन सत्रों में विशेष साधनाएँ भी बताई और चलाई जायेगी। पंचकोशों का अनावरण और कुण्डलिनी जागरण का उतना शिक्षण हर साधक को मिलेगा जितना उसकी स्थिति को देखते हुए पचने की सम्भावना प्रतीत होती है। जो कर सकेंगे उन्हें उनसे कायाकल्प जैसी तपश्चर्या चान्द्रायण साधना भी कराई जायगी पूर्ण चान्द्रायण करना है अथवा सौम्य यह निर्णय साधक की सहन शक्ति के अनुसार किया जायगा ये सभी साधनाएँ गंगा तट पर बने ब्रह्मवर्चस आरण्यक में सम्पन्न कराई जायेगी। साथ ही साधनात्मक मार्गदर्शन की कक्षाएं भी चलेंगी।

ब्रह्मवर्चस् साधना सत्र भारतीय महीनों के हिसाब से चलेंगे। चान्द्रायण व्रत का क्रम इसी प्रकार बनता है। प्रथम सत्र मार्गशीर्ष मास में 4 नवम्बर से 3 दिसम्बर तक का, दूसरा पोष का 3 दिसम्बर से 2 जनवरी तक का, तीसरा माघ शिविर 2 जनवरी से 1 फरवरी तक का चौथा फाल्गुन का 1 फरवरी से 3 मार्च तक का तथा पांचवां 3 मार्च से 2 अप्रैल तक का होगा। अभी इन पाँच शिविरों में ही स्थान सुरक्षित कराये जायेंगे।

(4) शोध संस्थान सत्र

ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में दार्शनिक अनुसंधान एवं वैज्ञानिक प्रयोग परीक्षण का क्रम आरम्भ हो गया है। इनमें सहायता करने तथा स्वयं उस संदर्भ में अपनी योग्यता निखारने के लिए दो-दो महीने के सत्र चलेंगे, फिलहाल अभी (1) नवम्बर-दिसम्बर, (2) जनवरी-फरवरी (3) मार्च-अप्रैल यह तीन सत्र ही घोषित किये गये हैं। कुछ व्यक्ति जो लम्बे समय तक हरिद्वार नहीं रह सकते, वे अपने-अपने स्थान पर रहकर इन शोधकार्यों में थोड़ा-बहुत हाथ बटा सकते है। इस विचार विमर्श के लिए दिसम्बर 79 में एक सत्र 23 से 30 दिसम्बर तक रखा गया है। जिन्हें इनमें रुचि हो वे पत्र व्यवहार कर लें। उपरोक्त सभी शिविरों में ग्रेजुएट रूप के व्यक्ति ही स्थान प्राप्त कर सकेंगे। यह सत्र लगते तो आगे भी रहेंगे, पर अभी दो माह वाले तीन शिविरों में ही स्थान सुरक्षित किये जा रहे है।

(5) एक और तीन माह के महिला सत्र

गत सात वर्षों से महिला जागृति अभियान चल रहा है। अब उसे और भी सुनिश्चित करके परिवार निर्माण अभियान स्तर का बना दिया गया है और उसमें कितनी ही नई गतिविधियाँ सम्मिलित की गई हैं। महिला जागृति पत्रिका में इसका सुविस्तृत विवेचन छप रहा है। अक्टूबर अंक में और भी विस्तृत जानकारी स्पष्ट रूप से प्रकाशित की जा रही है। प्रत्येक सृजन शिल्पी को चाहिए कि वह इस अभियान को अपने-अपने घरों में स्थान दें और यथा सम्भव समीपवर्ती पड़ौस और मुहल्लों में भी इस प्रक्रिया का प्रचलन करें।

परिवार निर्माण में नारी की ही भूमिका अग्रणी रहती है अतः इस अभियान का नेतृत्व जागृत नारी ही कर सकती है। कुशल महिलाएँ अपने परिवार का सुनियोजित निर्माण करने के लिए तथा निकटवर्ती क्षेत्र में इस चेतना को सुविस्तृत करने के लिए किस प्रकार क्या कर सकती है? इसकी व्यावहारिक शिक्षा एक-एक महीने के सत्रों में दी जाया करेगी।

तीन माह के सत्रों में एक माह वाले पाठ्यक्रम के अतिरिक्त संगीत-भजनोपदेश आदि का अभ्यास भी कराया जायगा। जो महिलाएँ तीन माह का समय निकाल सकती हैं वे इन सत्रों के लिए आवेदन भेज सकती हैं। यह तीन माह के सत्र एक माह वाले सत्रों से सर्वथा भिन्न चलेंगे। इन दोनों में स्थान केवल ऐसी महिलाओं को ही दिया जायगा जो सुशिक्षित होने के साथ-साथ प्रभावशाली भी हों। क्योंकि उनका उद्देश्य आत्म-निर्माण तक सीमित नहीं है, परिवार निर्माण का प्रयोजन पूरा हो सके इसके लिए प्रतिभाशाली महिलाओं को ही उनमें आमन्त्रित किया गया है। सामान्य महिलाएँ यह लाभ अप्रैल, मई-जून में होने वाले एक सप्ताह के शिविरों में प्राप्त कर सकेंगी। अभी नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी में प्राप्त कर सकेंगी। अभी नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी, फरवरी के चार माह इन सत्रों के लिए रखे जा रहे हैं। ये सत्र एक-एक महीने के होंगे। परिवार निर्माण में रुचि रखने वालों को अपने घरों की प्रतिभावान महिलाओं को इन सत्रों में भेजने के लिए विशेष रूप से कहा गया है। इनमें बच्चों सहित प्रवेश नहीं मिलेगा।

तीन-तीन माह के सत्र अगले वर्ष 80 में प्रारम्भ होंगे। (1) जुलाई, अगस्त, सितम्बर (2) अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर तथा (3) सन् 81 जनवरी, फरवरी, मार्च में। इनमें कर्मकाण्ड स्लाइड प्रोजेक्टर के माध्यम से प्रवचन तथा जिनके गले मीठे होंगे उन्हें संगीत शिक्षण भी दिया जायेगा। यह स्थान भी अभी से सुरक्षित करा लेना चाहिये। अभी स्थान सीमित रखा गया है अतएव अपना स्थान अभी से सुरक्षित करा लेने में सुविधा होगी। बच्चे साथ न लाने का प्रतिबन्ध इनमें भी रहेगा।

(6) सप्ताह भर के तीर्थ सेवन सत्र

अप्रैल, मई एवं जून में तीर्थ यात्रा और सद्ज्ञान सम्पादन करने के इच्छुक परिजनों के लिए एक-एक सप्ताह के तीर्थ सेवन सत्र होंगे। तीनों महीनों में 1 से 7, 8 से 15, 16 से 21 और 22 से 28 तक यह सत्र चलेंगे। इनमें बच्चों सहित भी आया जा सकता है। उनके मुण्डन, अन्न प्राशन, यज्ञोपवीत आदि संस्कार भी कराये जा सकेंगे। जीवन को साधना स्तर पर बिताने का प्रशिक्षण भी इन शिविरों में मिलेगा। साथ ही ऋषिकेश, लक्ष्मण झूला, हरिद्वार, कनखल क्षेत्र तीर्थ स्थानों दर्शनीय स्थलों को दिखाने की भी सम्मिलित व्यवस्था बस द्वारा की जा रही है।

(7) अनुष्ठान साधना सत्र

नौ दिन में 24 हजार गायत्री अनुष्ठान श्रेष्ठ वातावरण में सम्पन्न करने के लिए विशेष पर्वों पर व्यवस्था की गई है। (1) आश्विन नवरात्रि (2) चैत्र नवरात्रि तथा (3) बसन्त पर्व इसके लिए उपयुक्त समझे गये है। यों गायत्री जयन्ती और गुरुपूर्णिमा भी इसके लिए उपयुक्त होती है, पर चूँकि शान्ति-कुंज में उन दिनों एक-एक सप्ताह के तीर्थ सत्र चलते है, इसलिए स्थान खाली नहीं रहता। अतएव उपरोक्त तीन सत्र ही इसके लिए उपयुक्त समझे गये है। वसन्त पर्व पर 15 जनवरी से 23 फरवरी, चैत्र नवरात्रि 15 से 23 मार्च तक नौ-नौ दिन के अनुष्ठान साधना सत्र शान्ति-कुंज में चलेंगे। इसके बाद छह महीने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।

स्थान की सुविधा हो जाने से शान्ति-कुंज में एक साथ कई-कई सत्र चलते रह सकेंगे और युग निर्माण और युग निर्माण परिवार के हजारों-लाखों साधकों को उपयुक्त प्रशिक्षण, सान्निध्य, परामर्श एवं अनुदान प्राप्त करने का अवसर मिलता रहेगा। इन सभी सत्रों में सम्मिलित होने वालों के लिए आवेदन-पत्र छपवाये गये हैं जिन्हें मँगाना चाहिए और भरकर भेजना चाहिए। इससे शिक्षार्थी के स्तर एवं उद्देश्य का पता रहेगा साथ ही उस आधार पर अनुकूल परामर्श की व्यवस्था बनाई जा सकेगी। आवेदन पत्रों के माध्यम से अनुपयुक्त और अनावश्यक भीड़ न बढ़ने देने की व्यवस्था हो सकेगी क्योंकि इन आवेदन पत्रों के आधार पर ही आवश्यक जानकारी प्राप्त करके स्वीकृति दी जाएगी।

इन आवेदन पत्रों में शिक्षार्थी के लिए आवश्यक निर्देश छपे रहते हैं, जो व्यवस्था अनुशासन सम्बन्धी भी होते हैं। इनका पालन करने की शर्त पर ही किसी को स्वीकृति मिलेगी, अव्यवस्था फैलाने पर यह स्वीकृति निरस्त की जा सकेगी और शिविर के बीच में से ही चले जाने के लिए कहा जा सकेगा। अगले प्रशिक्षण सत्रों में व्यवस्थित और उच्चस्तरीय आवेदन पत्र भर भेजने तथा सशर्त स्वीकृति देने का अनुबन्ध लगाया गया है। शिविरार्थियों को भोजन व्यय स्वयं ही वहन करना होता है। यह अस्सी रुपया मासिक पड़ता है। यह राशि आते ही जमा करनी होती है। सातों सत्रों में से जिन्हें जिस सत्र में सम्मिलित होने की इच्छा हो वे समय रहते शान्ति कुँज हरिद्वार पिन 249401 (उ.प्र.) से पत्र व्यवहार कर आवेदन पत्र मँगा लें तथा उन्हें भरकर भेजकर स्वीकृति प्राप्त कल लें।

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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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October 1979
Type: TEXT
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