• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • शांतिकुंज में दो महत्वपूर्ण सत्रों की श्रृंखला
    • आवरण बन्धनों का विस्फोट
    • ज्ञान शक्ति की गौरव गरिमा
    • स्रोत अंदर है, बाहर नहीं
    • आत्म-ज्ञान मानव जीवन की सर्वोपरि उपलब्धि
    • संयम बरतें-स्वस्थ रहें
    • अनन्त ईश्वर की समीपता से अनन्त सामर्थ्य की प्राप्ति
    • तद् धनं ह्यति दुःखार्थम्
    • ईश्वरीय अनुग्रह सबके लिए सहज सुगम
    • गतिशील-जीवन प्रवाह
    • चलो! मरण त्यौहार मनायें
    • कल्पना और सत्य मात्र संयोग या तथ्य
    • कृतज्ञता का पाठ न भूलें
    • प्रकृति के विचित्र नियम अबूझ पहेलियां
    • भूत व भविष्य दोनों को वर्तमान में देखा जाना जा सकता है!
    • एक सूत्र में पिरोदिया (kahani)
    • पशु-पक्षी भी संवेदना शून्य नहीं
    • विनाश की विभीषिकाएँ और सृजन की सम्भावनाएँ
    • मृत्यु को सामने रख कर चलें
    • स्काईलैब तो मर गया पर प्रेत शान्ति अभी भी शेष है
    • अभ्यास ही आवश्यक (kahani)
    • स्वाध्याय करें भी, करायें भी
    • कोई नहीं भी जानते (kahani)
    • संगीत मात्र मनोरंजन के लिये ही नहीं
    • धनोपार्जन की कला भी धर्मनिष्ठ बने
    • सतत शिक्षा का सिद्धान्त लागू किया जाय
    • रईस का सामान वापस मिल गया (kahani)
    • यह विष थोड़ा कम करें
    • अपनों से अपनी बात - युग परिवर्तन, प्रज्ञावतार, गायत्री शक्ति पीठ की श्रृंखला
    • शान्ति का अर्थात (kahani)
    • समर्पित फूल
    • समर्पित फूल (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • शांतिकुंज में दो महत्वपूर्ण सत्रों की श्रृंखला
    • आवरण बन्धनों का विस्फोट
    • ज्ञान शक्ति की गौरव गरिमा
    • स्रोत अंदर है, बाहर नहीं
    • आत्म-ज्ञान मानव जीवन की सर्वोपरि उपलब्धि
    • संयम बरतें-स्वस्थ रहें
    • अनन्त ईश्वर की समीपता से अनन्त सामर्थ्य की प्राप्ति
    • तद् धनं ह्यति दुःखार्थम्
    • ईश्वरीय अनुग्रह सबके लिए सहज सुगम
    • गतिशील-जीवन प्रवाह
    • चलो! मरण त्यौहार मनायें
    • कल्पना और सत्य मात्र संयोग या तथ्य
    • कृतज्ञता का पाठ न भूलें
    • प्रकृति के विचित्र नियम अबूझ पहेलियां
    • भूत व भविष्य दोनों को वर्तमान में देखा जाना जा सकता है!
    • एक सूत्र में पिरोदिया (kahani)
    • पशु-पक्षी भी संवेदना शून्य नहीं
    • विनाश की विभीषिकाएँ और सृजन की सम्भावनाएँ
    • मृत्यु को सामने रख कर चलें
    • स्काईलैब तो मर गया पर प्रेत शान्ति अभी भी शेष है
    • अभ्यास ही आवश्यक (kahani)
    • स्वाध्याय करें भी, करायें भी
    • कोई नहीं भी जानते (kahani)
    • संगीत मात्र मनोरंजन के लिये ही नहीं
    • धनोपार्जन की कला भी धर्मनिष्ठ बने
    • सतत शिक्षा का सिद्धान्त लागू किया जाय
    • रईस का सामान वापस मिल गया (kahani)
    • यह विष थोड़ा कम करें
    • अपनों से अपनी बात - युग परिवर्तन, प्रज्ञावतार, गायत्री शक्ति पीठ की श्रृंखला
    • शान्ति का अर्थात (kahani)
    • समर्पित फूल
    • समर्पित फूल (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1979 - September 1979

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


विनाश की विभीषिकाएँ और सृजन की सम्भावनाएँ

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 17 19 Last
फरवरी 1676 की अखण्ड ज्योति में “एक बहुत बुरी खबर” शीर्षक से सुप्रसिद्ध अदृश्यदर्शी क्रुग हेलर की भविष्य वाणियाँ छपी हैं जिनसे आने वाले समय में संकट पूर्ण परिस्थितियों का आभास मिलता है। यह पहला अवसर नहीं है जब कि इस तरह के सम्भावित अशुभ की आशंका व्यक्त की गयी हो। इससे पूर्व भी जीन डिक्सन, एण्डरसन, चार्ल्स, क्लार्क प्रोफेसर कीरो ने भी अपने उपोद्धात् प्रकाशित कर सन् 80 के आस पास मानवीय अस्तित्व पर घिरने वाले संकटों का वर्णन किया है। दूर की बात पीछे की है जिन क्षणों यह पंक्तियाँ लिखी जा रही हैं गुजरात का मोरवी नगर भयंकर बाढ़ के संकट से जूझ रहा है। 14 अगस्त के हिन्दुस्तान दैनिक ने इस जल प्रलय में मरने वालों की संख्या 25000 बताई है वास्तविक आँकड़े इससे भी भयानक हो सकते हैं।

इन्हीं क्षणों में उत्तर प्रदेश के 12 जिले एक-एक बूँद के लिए तड़प रहे हैं तो दूसरे 12 जिले बाढ़ की चपटे में आ चुके हैं। बिहार और गुजरात की दूसरी नदियाँ बाढ़ से उबल रही हैं और धान का ताल कटोरा छत्तीसगढ़ अकाल की दाढ़ में फँसा है। आन्ध्र में पहले ही समुद्री तूफान विनाश लीला दिखा चुका है, उड़ीसा और तमिलनाडु भी उसकी चपेट में पहले ही आ चुके हैं।

यह दशा अकेले भारत की नहीं है। कंपूचिया का युद्ध जब तक समाप्त होता है, तब तक तंजानिया और उगांडा में युद्ध भड़क उठता ह। ईरान में एक ओर गृह युद्ध की विभीषिका तो दूसरी ओर भूकम्प की त्राहि त्राहि, तुर्की पहले से ही इस प्राकृतिक विपदा से कराह रहा है विश्व के हर भाग में तनाव और युद्धोन्माद की काली घटायें छाई हुई हैं इन सब को देखते हुए सऐम्स विश्व विद्यालय के डाक्टर जान ग्रिविन की ज्योति विज्ञान की इस धारण का समर्थन चिन्ताजनक ही नहीं विचारणीय भी है जिस में सन् 1682 के आस-पास भीषण विश्व विपत्ति की आशंका व्यक्त की गई है। न्यूयार्क में प्रकाशित एक समाचार के हवाले से 5 जुलाई के पंजाब केसरी दैनिक ने जान ग्रिविन के विश्वास को व्यक्त करते हुए लिखा है-”यह तो किसी उबल रही वस्तु के फट जाने से उत्पन्न विभीषिका की तरह है जिस के दुष्परिणामों से धरती में रह रहे कितने प्राणी बच पायेंगे यह कहना कठिन है।”

बरेली से प्रकाशित दैनिक विश्व मानव के 17 मई 1676 अंक में 1680 से 1660 तक विश्व युद्ध की सम्भावना और जन संख्या अप्रत्याशित मात्रा में घटने की भविष्य वाणी की गई है। 10 जुलाई के दैनिक पंजाब केसरी में सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक और लंदन प्लेनेटोरियम के डायरेक्टर जीन एडन की चेतावनी छपी है जिसमें सन् 1682 में पृथ्वी में 176 वर्ष पूर्व की परिस्थितियाँ आ धमकने की चिन्ता व्यक्त की गयी है उस समय हमारी भूमि पर महादुर्भिक्ष, बाढ़ें तथा भूकम्प आने और पृथ्वी में भीषण जन विनाश की आशंका व्यक्त की गई है।

10 अप्रैल 1676 के संस्करण में दैनिक अमृत प्रभात में 1682 के जून और जुलाई मास वीभत्स संकट से ओत-प्रोत बताये गये हैं और कहा गया है कि इन दिनों अमरीका, चीन, जापान, ईरान, तुर्की, फिलीपाइन, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन, स्पेन, कनाडा, रुमानियाँ, अफ्रीका रूस, जर्मनी तथा श्रीलंका के पूर्वोत्तरीय भाग नेपाल, तिब्बत, भूटान पाकिस्तान और भारत में ऐसे प्राकृतिक प्रकोप बहुत बड़ी संख्या में होंगे। यामल तंत्र के हवाले से इस अवधि में विश्व की बहुत बड़ी संख्या घट जाने की चेतावनी भी दी गई है।

सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने एक ऐसी कालातीत अवस्था का वर्णन अपने महान सिद्धान्त थ्योरी आफ रिलेविटी, में किया है जहाँ पहुँच कर समय, दिशायें और ब्रह्माण्ड शून्य हो जाते हैं अर्थात् उनका अस्तित्व नहीं रहता। उस समय ज्ञान ही एक मात्र सक्रिय और सर्वव्यापी .... तत्व शेष रहता है उस अवस्था में पहुँची हुई उच्च आत्मायें तथा योगीजन भविष्य को देखते हों और सम्भावित संकटों की चेतावनी देते हों तो उसे अत्युक्ति नहीं समझा जाना चाहिये। महाभारत, सूर सागर के रचयिताओं ने जो भविष्य वाणियाँ दी वे सत्य होती दिखाई दे रही हैं। कुरान शरीफ की चौदहवीं सदी का यही समय है। बाइबिल के “इपीस्टल नामक प्रथम अध्याय के आठवें सूक्त में महाप्रभु ईसामसीह ने ऐसी ही अनुभूति का वर्णन करते हुए लिख है “धरती पर पत्थरों की आग्नेय वर्षा होने लगी उस समय पृथ्वी पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा।” यह भविष्य वाणी पैथुअल के पुत्र जोल के मुख से कहलवाई गई है जो साई धर्म के महान् साधक संत माने जाते हैं। स्मरण रहे पृथ्वी पर स्काई लैब जैसे अन्तरिक्ष यानों के मलबों के टुकड़े पृथ्वी पर गिरने का क्रम अभी अभी प्रारम्भ हुआ है। लोग मन में भले हो मान ले कि यान संकट टल गया किन्तु विवेक कहता है कि यह तो बड़े संकट का श्री गणेश भर है अन्त नहीं।

जान ग्रिविन ने जिन भीषण परिवर्तनों की चर्चा की है उनका कारण बताते हुए लिखा है। कि अगले तीन वर्षों में हमारी पृथ्वी पर बृहस्पति ग्रह का बुरी तरह प्रकोप होगा। वह अन्य ग्रहों के जीवन रक्षक प्रभाव को नष्ट कर देगा। बृहस्पति का प्रभाव अभी भी पृथ्वी पर पड़ता है किन्तु वह समुद्री ज्वार भाटे को अनियंत्रित करने में सफल नहीं होता किन्तु अगले तीन वर्षों में पृथ्वी के आयनोस्फियर में आक्सीजन की मात्रा इतनी घट जायेगी कि अन्य ग्रह अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर भी बृहस्पति की सर्जना रश्मियों को प्रभावहीन नहीं कर पायेंगे फलस्वरूप समुद्र बुरी तरह उबलने लगेगा अति वृष्टि, समुद्री तूफान इस परिस्थिति की ही परिणति होंगे। इसी असन्तुलन के कारण पृथ्वी के अन्दर भीषण ताप उत्पन्न होगा जो भूकम्पों और ज्वालामुखियों को जला देगा। विनाश का प्रारम्भ पर्यावरण प्रदूषण से होता है, अब सर्वनाश में यदि यह चाहते हैं कि सर्वनाश की स्थिति न आये तो क्यों ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करें जिससे वातावरण असंतुलित हो। .... अभी छूटने वाला है पूरी तरह छूटा नहीं यदि उसका कोण बदल जाये तो प्राकृतिक प्रकोप के शिकार से बच सकना उतना ही संभव हो सकता है। जितनी सत्य सम्भावना भावी संकटों की है।”

अच्छे बुरे वातावरण से अच्छी बुरी परिस्थितियाँ जन्म लेती हैं। और वातावरण का निर्माण पूरी तरह मनुष्य के हाथ में है वह चाहे उसे स्वच्छ, स्वस्थ और सुन्दर बना कर स्वर्गीय परिस्थितियों का आनन्द ले अथवा उसे विषाक्त बनाकर स्वयं अपना दम घोंटे।

प्राकृतिक असन्तुलन से उत्पन्न विभीषिका का एक स्वस्थ उदाहरण 20 मार्च 1676 के नव भारत टाइम्स में छपा है। मध्य प्रदेश में नर्मदा “नदी के प्रति लोगों में असीम श्रद्धा भावना है लोगों का विश्वास है जिस समय नर्मदा सूखने लगेगी उस समय प्रलय की स्थिति आ जायेगी। इसे भले ही तथाकथित बुद्धिवादी अंध श्रद्धा कहें किन्तु उस मान्यता के पीछे पूर्ववर्ती विवेक दृष्टि ही कार्य करती हैं। रीवाँ सम्भाग के इंजीनियरों और विशेषज्ञों ने भी यह आशंका प्रकट की है कि नर्मदा विन्ध्याचल में अमरकटक की पहाड़ियों के एक कुँड से निकलती है पिछले 10 वर्षों में कुँड का जलस्तर का 61 से.मी. नीचे चला गया है। इस स्थिति में नर्मदा 15 वर्ष में पूरी तरह सूख सकती है। जलस्तर घटना, वृक्षों के तेजी से कटाव और बाक्साइट के लिए होने वाली खुदाई के कारण पैदा हुआ पर्यावरण सम्बन्धी असन्तुलन ही एक मात्र उत्तरदायी है यदि पृथ्वी के एक छोटे से क्षेत्र का असन्तुलन इतनी गड़बड़ी पैदा कर सकता है तो जब सारा संसार ही अपने दूषित आचरण से प्रकृति के सन्तुलन को बिगाड़ रहा हो तो विनाश की सम्भावना को ईश्वरीय विधान की अनिवार्यता क्यों कहा जायें?

सोवियत संघ के जल मौसम विज्ञान केन्द्र के निर्देशक प्रो. मिरबाइल पेत्रोत्यात्स ने भी इस तथ्य को स्वीकार करते हुए लिख है पिछले कुछ वर्षों से पृथ्वी के तापमान में निरन्तर वृद्धि हो रही है। वायुमंडल, में धूल के कणों की घट बढ़ के कारण तापमान में उथल-पुथल पैदा होती है उस समय उष्ण प्रदेश से गरम हवायें आर्कटिक प्रदेश की ओर बढ़ने लगती हैं और आर्कटिक प्रदेश की बर्फीली हवायें उनका स्थान लेने लगती हैं। इस असाधारण प्रकृति परिवर्तन से असाधारण संकटों को उठ खड़ा होना सम्भव हैं।

सुरसा के मुँह की तरह बढ़ी हुई कामनाओं के कारण खड़े हुए कल कारखानों से उगलता हुआ धुँआ, मोटर गाड़ियों द्वारा छोड़ी विषैली गैसें” एटम बमों के विकिरण का विष जल, थल, नभ, सभी को विषाक्त बना रहा है। नदियों का जल पीने योग्य नहीं रहा। अंधाधुँध प्रदूषण के कारण बढ़ती हुई शहरों की संख्या, वातावरण में बढ़ रहे शोर तथा भयानक गति से बढ़ रही अपराधी प्रवृत्तियों के आँकड़े इस बात के प्रतीक हैं कि मानवीय बुद्धि में अनास्था का असुर बुरी तरह अपना साम्राज्य जमा चुका है नैतिक अवमूल्यन, बौद्धिक दुश्चिन्तन एवं विकृत वातावरण का समन्वय यदि भयंकर संकट खड़े करे तो इस में दोष न तो प्रकृति का है न परमात्मा का।

युग-निर्माण योजना के वर्तमान क्रियाकलाप मानवता के इसी मर्म का स्पर्श करते हैं। पर्यावरण प्रदूषण के परिष्कार के लिए यज्ञायोजनों का व्यापक विस्तार सामूहिक अभियान साधना द्वारा प्रकृति में घुस पड़े विजातीय तत्वों का प्रचलन और भविष्य के लिए प्रकाश पूर्ण प्रेरणाओं के अविरल प्रवाह के लिए गायत्री शक्ति पीठों की स्थापना, तीनों सामयिक कार्यक्रम ऐसे हैं जिन पर पूरी जन शक्ति लगाई जा सके तो विद्यमान संकट पूर्ण परिस्थितियों से बहुत अधिक बचाव हो सकता है।

जान ग्रिविन ने सन् 1682 में बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, वरुण तथा प्लूटो के एक पंक्ति में आ जाने और पृथ्वी के सूर्य के विपरीत दिशा में पड़ जाने के कारण उत्पन्न उत्पात और प्राकृतिक असन्तुलन की जो चर्चा की है उसका समाधान भारतीय ज्योति ग्रन्थि तमिल तंत्र में किया गया है और बताया गया है कि पंक्तिबद्ध ग्रहों के वक्र प्रभाव को क्षीण करने के लिए एक मात्र मंत्र विज्ञान ही सक्षम है।

ध्वनि को ब्रह्म शक्ति बताते हुई तंत्र-मनीषियों ने यही प्रतिपादित करते कहा हैं कि मंत्रों, तन्मात्राओं और मयलाओं द्वारा ध्वनित तथा लय तथा एकभाव-प्रवाह को यदि क्रमबद्ध रूप से ब्रह्माण्ड में पहुँचाया जाए तो न केवल वातावरण में व्याप्त असन्तुलन को कम किया जा सकता है अपितु आपत्तियों को भी बहुत बड़ी मात्रा में निरस्त किया जा सकता है।

सामूहिक अनुष्ठानों के साथ यज्ञायोजनों का अनुसंधान इसी तथ्य को ध्यान में रख कर किया गया है प्राचीन काल में ऐसे वाजपेय यज्ञों के संचालक केन्द्र और आरण्यक स्थान-स्थान पर हुआ करते थे। इन दिनों इसी तथ्य की पुनरावृत्ति होने जा रही है।

दिल्ली से प्रकाशित दैनिक नव भारत टाइम्स के सम्पादक और विद्वान सम्पादक श्री अक्षय कुमार जैन ने अपने जीवन का एक मार्मिक संस्मरण मासिक ‘प्रकाशित मन’ के मई 1676 अंक में दिया है। सुप्रसिद्ध भारतीय तंत्र विद्या विशारद कविराज श्री गोपीनाथ से हुई भेंट को अपनी अलौकिक अनुभूति बताते हुए उन्होंने लिखा है कि “कविराज की सूक्ष्म दृष्टि ने यह देख लिया है कि देश में समर्थ सत्तायें अस्तित्व में है उनके क्रिया कलाप अलौकिक हैं और उनके प्रयत्नों से सन् 1671 के वाद से सतयुगीन परिस्थितियों का आविर्भाव चल पड़ेगा। भविष्य में भारत के गौरव की असाधारण रूप से वृद्धि होगी, यहाँ की प्रगति अप्रतिम होगी और यहाँ भी धर्म संस्कृति का प्रभाव सारे विश्व में होगा।”

एक ओर विनाश की विभीषिकाएँ अपना गर्जन-तर्जन करती हैं। दूसरी ओर सृजन की शक्तियाँ सुरक्षा एवं सृजन के प्रयत्नों में निरस्त हैं। इन परिस्थितियों में प्रत्येक जागरूक का कर्त्तव्य है कि वह पेट प्रजनन के पशु प्रयोजनों में निरस्त न रहे वरन् यह सोचे कि क्या युग समस्याओं के समाधान में उसका कुछ योगदान हो सकता है? ध्वंस को निरस्त और सृजन को समर्थ बनाने के लिए इस विश्व संकट की घड़ी में अपना विशिष्ट कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व समझना ही दूरदर्शियों के लिए उपयुक्त है। युग चुनौती इसी के लिए झकझोरती है और युग साधकों को अग्रिम पंक्ति में खड़े होने की प्रेरणा उन सभी को देती हैं जिनमें अदृश्य को देखने और तथ्य को समझने की क्षमता विद्यमान हैं।

First 17 19 Last


Other Version of this book



September 1979
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • शांतिकुंज में दो महत्वपूर्ण सत्रों की श्रृंखला
  • आवरण बन्धनों का विस्फोट
  • ज्ञान शक्ति की गौरव गरिमा
  • स्रोत अंदर है, बाहर नहीं
  • आत्म-ज्ञान मानव जीवन की सर्वोपरि उपलब्धि
  • संयम बरतें-स्वस्थ रहें
  • अनन्त ईश्वर की समीपता से अनन्त सामर्थ्य की प्राप्ति
  • तद् धनं ह्यति दुःखार्थम्
  • ईश्वरीय अनुग्रह सबके लिए सहज सुगम
  • गतिशील-जीवन प्रवाह
  • चलो! मरण त्यौहार मनायें
  • कल्पना और सत्य मात्र संयोग या तथ्य
  • कृतज्ञता का पाठ न भूलें
  • प्रकृति के विचित्र नियम अबूझ पहेलियां
  • भूत व भविष्य दोनों को वर्तमान में देखा जाना जा सकता है!
  • एक सूत्र में पिरोदिया (kahani)
  • पशु-पक्षी भी संवेदना शून्य नहीं
  • विनाश की विभीषिकाएँ और सृजन की सम्भावनाएँ
  • मृत्यु को सामने रख कर चलें
  • स्काईलैब तो मर गया पर प्रेत शान्ति अभी भी शेष है
  • अभ्यास ही आवश्यक (kahani)
  • स्वाध्याय करें भी, करायें भी
  • कोई नहीं भी जानते (kahani)
  • संगीत मात्र मनोरंजन के लिये ही नहीं
  • धनोपार्जन की कला भी धर्मनिष्ठ बने
  • सतत शिक्षा का सिद्धान्त लागू किया जाय
  • रईस का सामान वापस मिल गया (kahani)
  • यह विष थोड़ा कम करें
  • अपनों से अपनी बात - युग परिवर्तन, प्रज्ञावतार, गायत्री शक्ति पीठ की श्रृंखला
  • शान्ति का अर्थात (kahani)
  • समर्पित फूल
  • समर्पित फूल (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj