
संगीत मात्र मनोरंजन के लिये ही नहीं
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संगीत विद्या संगीत विद्या का मुख्य उपयोग आजकल गाजे-बजाने और मनोरंजन करने में ही किया जाता है। लेकिन इसका उपयोग इतना मात्र ही नहीं है संगीत को नादब्रह्म कहा गया है, उसकी साधना कर मनीषियों ने ब्रह्मा प्राप्ति ईश्वर साक्षात्कार का मार्ग भी सुझाया है। योगविद्या के ग्रन्थों में उल्लेख आता है। कि जिन मन्त्रों का प्रयोग कर साधक साधना की सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ लक्ष्य तक पहुँचता हैं उनमें मन्त्रों का उच्चारण तो गौण है। मुख्य तो इस उच्चारण में लय को साधना है। मन्त्रों के प्रत्येक अक्षर का एक लक्ष्य नियत किया गया है। उसका सफल अभ्यास करने के बाद ही मन्त्र सिद्धि की कक्षा उत्तीर्ण की जाती है।
गुरुमुख होकर मन्त्र साधना करने का विधान भी इसी उद्देश्य से किया गया है। गुरुमुख से मन्त्र लेने का अर्थ है उसकी लय को अधिकारी सिद्ध पुरुष से सुनना व समझना ताकि उसे लक्ष्य बना कर अपना साधन अभ्यास आरम्भ किया जाय। बेद मन्त्रों का प्रभाव तभी दृष्टिगोचर होता है; जब उन्हें निर्धारित क्रम से-लयबद्ध रूप में गाया जाय। वस्तुतः मन्त्र साधनाओं में संगीत की सूक्ष्म शक्ति का महत् प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है। इस तथ्य को अन्यान्य रहस्यों की भाँति भले ही हम लोगों ने भुला दिया हो परन्तु विज्ञान पुनः इस दिशा में बढ़ रहा है। अब यह तो सिद्ध हो ही गया है कि संगीत का मनुष्य के मन मस्तिष्क पर अद्भुत प्रभाव पड़ता है। यह भी सिद्ध हो गय है कि न केवल मन मस्तिष्क पर वरन् मनुष्य के स्वास्थ्य पर संगी का अद्भुत प्रभाव पड़ता है।
ऐलोपैथी, नैचरोपैथी, होम्योपैथी, बायोकेमिकल चिकित्सा पद्धति आदि चिकित्सा प्रणालियों की तरह पश्चिमी देखो में संगीत से भी रोगों के उपचार विधि खोज ली गयी है और इसका सफलतापूर्वक उपयोग किया जाने लगा है। पश्चिम जर्मनी के कुछ अस्पतालों में इस चिकित्सा पद्धति का सफलतापूर्वक उपयोग किया जाने लगा है। वहाँ के एक मानसिक चिकित्सालय में जो बर्लिन में स्थित है दो असाध्य मानसिक रोगी लड़कियों का संगीत से पहली बार 1962 में इलाज किया गया। ये दोनों लड़कियाँ जुड़वा बहनें थी और दोनों ही जटिल रोगों से ग्रस्त थीं।
डॉक्टर उन सभी चिकित्सा प्रयोग आजमा चुके थे। दोनों ही शारीरिक रोगों के अतिरिक्त मानसिक रोगों से भी ग्रस्त थी। कहना चाहिए उनके रोग शारीरिक कम मानसिक अधिक थे। किसी भी प्रकार के रोग में जब कोई फायदा नहीं हुआ तो एक लड़की पर डा. कुर्त्त ने सर्वथा नय प्रयोग किया। उस लड़की को एक ऐसे ग्रुप में शामिल किया गया जिसमें रहने वाले सभी रोगी असाध्य मान लिये गये थे और काफी शोरगुल करते थे। वह लड़की भी इस ग्रुप में शामिल हो गयी। ग्रुप के सभी मरीज काफी शोरगुल करते थे। इस लड़की को शोरगुल पसन्द नहीं आया और वह अस्पताल में पड़ा हुआ ड्रम बजाने लगी। जब भी रोगी चीखते, चिल्लाते, शोरगुल मचाते तभी वह लड़की ड्रम बजाने लगती।
डा. कुर्त्त का लड़की की इस हरकत पर ध्यान गया उन्होंने रोगिणी लड़की को कुछ ठप्पे दिये। अब उसने ड्रम बजाना छोड़ दिया और और उन लड़की के ठप्पों की ही धीरे-धीरे किसी वाद्य यन्त्र की तरह बजाता इससे डॉक्टर को संगीत द्वारा उसका उपचार करने की सूझी तथा कुछ ही समय बाद उसे वाद्ययन्त्र खेलने के लिए दिये जाने लगे। धीरे-धीरे वह वाद्ययन्त्रों को बजाने लगी। उसका आत्मविश्वास लौटने लगा था। शीघ्र ही उसमें इतना आत्मविश्वास पैदा हो गया कि वह उप ध्वनियों का संगीत के माध्यम से उत्तर देने लगी।
इस प्रगति से डा. कुर्त्त को सन्तोष हुआ और उनका उत्साह भी बढ़ा उन्होंने निश्चय किया कि संगीत द्वारा ही उसे रोग मुक्त करने का प्रयास किया जाय। यह प्रयास प्रयोग के तौर पर ही किये गये थे, पर उनमें आश्चर्यजनक सफलता मिली। धीरे-धीरे लड़की की बीमारी दूर होती गयी और वह अपनी परिधि से निकलकर स्वस्थ लोगों के संपर्क में आती गयी। संगीत द्वारा मनोरोगों के उपचार का बर्लिन में यह पहला प्रयोग था। अन्य देखो में तो इससे पूर्व भी संगीत द्वारा मनोरोगों को चिकित्सा के सुफल प्रयोग किये जा चुके थे। लेकिन ये प्रयोग सामान्य रोगियों पर ही किये गये थे। जटिल तथा असाध्य समझे जाने वाले मानसिक रोगों के उपचार का यह पहला प्रयोग था।
अब तो संगीत को मानसिक रोगों से मुक्ति दिलाने वाली अचूक औषध समझा जाने लगा है। पश्चिमी देखो में संगी त चिकित्सा दिनोंदिन लोकप्रिय होती जा रही हैं। इस चिकित्सा पद्धति के अंतर्गत रोगियों को एक-दूसरे के साजों से निकलने वाली ध्वनियों का उत्तर धुनों के माध्यम से ही देने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। पागल और विक्षिप्त समझे जाने वाले व्यक्तियों की मस्तिष्कीय क्षमता पहले ही प्रयास में इस योग्य तो नहीं बन पाती कि वे बतायी गयी विधि का अक्षरशः पालन कर लें। लेकिन धीरे-धीरे वे एक-दूसरे के साजों ने निकलने वाली धुनों को पहचानने लगते हैं तथा उन धुनों द्वारा ही उत्तर देने लगते हैं। धुनों के माध्यम से उत्तर देने का यह क्रम धीरे-धीरे शब्दों तक भी पहुँच जाता है और परिणामतः रोगी के रोगमुक्त होने में दिनोंदिन सफलता प्राप्त होने लगती है।
गत वर्ष बर्लिन में ही सम्पन्न हुई ‘अन्तर्राष्ट्रीय संगीत चिकित्सा परिषद् में कहा गया कि-जिन व्यक्तियों को विक्षिप्त मान लिया जाता है और पागल समझ कर समाज से अलग कर दिया जाता है ऐसे व्यक्ति का दिमाग वास्तव में बेकार नहीं हो जाता है। वस्तुतः लोग भावनाओं पर अत्यधिक ठेस लगने के कारण मस्तिष्कीय सन्तुलन खो बैठते है। कभी-कभी यह असर इतना गहरा हो जाता है कि वह व्यक्ति समाज की धारा से पूरी तरह कट-पिट कर अपने आप में सिमट जाता है।
संगीत में भावनाओं को जागृत करने और सम्बल देने की ही नहीं उनके परिष्कृत बनाने तथा उनका सन्तुलन साधने की भी प्रभावशाली क्षमता है। शरीर शास्त्रियों की मान्यता है कि मस्तिष्क के कुछ भाग भावनाओं को उत्तेजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संगीत का उन अंगों पर बहुत अच्छा और अनुकूल प्रभाव पड़ता है। संगीत द्वारा मस्तिष्क की उन सिकुड़ी हुई माँस-पेशियों को शक्ति मिलती है फलतः व्यक्ति को भावनात्मक बल और आनन्द मिलता है। वे पेशियाँ जो कारणवश निष्क्रिय हो जाती है पुनः सक्रिय हो उठती है। संगीत की स्वर लहरियों से तनाव हल्का होने की बात तो आम है। लोग संगीत का यह प्रयोग तो आमतौर पर करते हैं इसी नियम को एक विधि व्यवस्था के साथ रोग चिकित्सा के लिए अपनाया जाता है और अब तो जटिल से जटिल रोगों का उपचार भी संगीत द्वारा किये जाने की विधियाँ खोज ली गयी है।
वाद्ययंत्रों के माध्यम से रोगोपचार की यह पद्धति तो कुछ वर्षों पूर्व ही आविष्कृत की गयी है। अब चिकित्साशास्त्रियों का ध्यान इस दिशा में भी गया है कि वाद्ययन्त्रों के अलावा गायन का शरीर व स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। बाहरी उपकरण इतना प्रभाव उत्पन्न कर सकते है तो स्वयं अपनी ही वाणी, शब्द और स्वर तो और अधिक प्रभाव उत्पन्न करते होंगे। इस विषय पर चिकित्सा शास्त्रियों का ध्यान भले ही अभी गया हो परन्तु यह तो पिछले काफी समय से जान समझ लिया है कि प्रेरक गीतों का स्वर उच्चारण मनुष्य को न केवल हल्का-फुल्का व प्रफुल्लित कर देता है वरन् उसकी कई चिन्ताओं, दबाव और तनावों तथा समस्याओं के बोझ को भी बड़ी सीमा तक समाप्त कर देता है।
भारतीय मनीषियों ने संगीत की इस शक्ति को हजारों वर्ष पूर्व पहचान कर उसका उच्च उद्देश्यों के लिए प्रयोग करना आरम्भ कर दिया था। मंत्र साधना का अपना एक स्वतन्त्र विज्ञान तो है ही पर उसमें लय और गति का तालमेल बहुत कुछ संगीत की इस जीवन दात्री क्षमता के प्रयोग का उदाहरण है। कोई आश्चर्य नहीं कि संगीत का स्वास्थ्य प्रयोजन के लिए उपयोग करते-करते विज्ञान इस तथ्य को भी बहुत जल्दी स्वीकार करने की स्थिति में आ जाय।