• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • युग धर्म की अवहेलना महँगी पड़ेगी
    • सर्वाधिक महत्वपूर्ण-वर्तमान
    • समस्त जड़-चेतन पर उच्चस्तरीय सत्ता का अनुशासन
    • दृश्य संसार के भीतर अदृश्य संसार
    • दीपक का स्नेह (kahani)
    • परिष्कृत अंतरंग चेतना की उपलब्धियाँ
    • क्षुद्र बन गया (kahani)
    • सफलता और प्रगति की मूल शर्त
    • नियति द्वारा प्रस्तुत मानवीय सत्ता की विलक्षणताओं का परिचय
    • विराट् जगत में मनुष्य की हस्ती ही क्या है?
    • आदर्शों की पराकाष्ठा भारतीय संस्कृति का गौरव
    • बुद्धि की प्रखरता ही नहीं, भावनाओं की उदात्तता भी
    • इच्छित नींद अपने निजी प्रयत्न से
    • पुस्तकों की उपेक्षा मत कीजिए
    • योगाभ्यास मानसिक प्रगति का बहुमूल्य माध्यम
    • गायत्री मंत्र की प्रचण्ड सामर्थ्य
    • गहरी श्वास से चिर यौवन दीर्घ जीवन
    • आहार और उसकी पोषक शक्ति
    • सफलता का आयु से क्या सम्बन्ध?
    • निर्बलता एक अक्षम्य अपराध
    • मानसिक असन्तुलन, स्वास्थ्य संकट का मूल कारण
    • श्रेष्ठ आदतों में सर्वप्रमुख- नियमितता
    • हंसोड़ स्वभाव -एक दैवी वरदान
    • स्वास्थ्य साधन के लिए, उपवास का उपयोग
    • महान् परिवर्तन की वेला, अति सन्निकट
    • Quotation
    • पिरामिडों में अंकित सन् 2000 की दुनिया
    • शान्ति और प्रगति के लिए साधन शुद्धि आवश्यक
    • संवेदित मानव
    • संवेदित मानव (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • युग धर्म की अवहेलना महँगी पड़ेगी
    • सर्वाधिक महत्वपूर्ण-वर्तमान
    • समस्त जड़-चेतन पर उच्चस्तरीय सत्ता का अनुशासन
    • दृश्य संसार के भीतर अदृश्य संसार
    • दीपक का स्नेह (kahani)
    • परिष्कृत अंतरंग चेतना की उपलब्धियाँ
    • क्षुद्र बन गया (kahani)
    • सफलता और प्रगति की मूल शर्त
    • नियति द्वारा प्रस्तुत मानवीय सत्ता की विलक्षणताओं का परिचय
    • विराट् जगत में मनुष्य की हस्ती ही क्या है?
    • आदर्शों की पराकाष्ठा भारतीय संस्कृति का गौरव
    • बुद्धि की प्रखरता ही नहीं, भावनाओं की उदात्तता भी
    • इच्छित नींद अपने निजी प्रयत्न से
    • पुस्तकों की उपेक्षा मत कीजिए
    • योगाभ्यास मानसिक प्रगति का बहुमूल्य माध्यम
    • गायत्री मंत्र की प्रचण्ड सामर्थ्य
    • गहरी श्वास से चिर यौवन दीर्घ जीवन
    • आहार और उसकी पोषक शक्ति
    • सफलता का आयु से क्या सम्बन्ध?
    • निर्बलता एक अक्षम्य अपराध
    • मानसिक असन्तुलन, स्वास्थ्य संकट का मूल कारण
    • श्रेष्ठ आदतों में सर्वप्रमुख- नियमितता
    • हंसोड़ स्वभाव -एक दैवी वरदान
    • स्वास्थ्य साधन के लिए, उपवास का उपयोग
    • महान् परिवर्तन की वेला, अति सन्निकट
    • Quotation
    • पिरामिडों में अंकित सन् 2000 की दुनिया
    • शान्ति और प्रगति के लिए साधन शुद्धि आवश्यक
    • संवेदित मानव
    • संवेदित मानव (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1981 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


आहार और उसकी पोषक शक्ति

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 17 19 Last
कहा जाता है कि महर्षि चरक अपनी संरचना और शिक्षा का समुचित विस्तार कर चुके तो उन्हें यह जानने की सूझी कि उनके प्रतिपादन का रहस्य कितनों ने समझा इसका पता लगाया जाय।

उपरोक्त प्रयोजन के लिए महर्षि ने एक कपोत का रूप बनाया और उस क्षेत्र में पहुँचे, जहाँ चिकित्सकों की भरमार थी।

पक्षी रूपधारी चरक ने अपनी भाषा में चिकित्सकों से एक मार्मिक प्रश्न पूछा- ‘को रुक्’ अर्थात् कौन रोगी होता है? यह पूछने से उनका मन्तव्य यह था कि जो मूल कारण को जानता होगा वही उसकी रोकथाम के उपाय सोचेगा। चिकित्सा उपचार भी उसी का सफल होगा। अन्यथा औषधि मात्र से अस्वस्थता का स्थायी निराकरण कहाँ सम्भव है?

कपोत चरक ने बारी-बारी सभी से चिकित्सकों के सम्मुख वही प्रश्न दुहराया ‘कोऽरुक्’ अर्थात् रोगी कौन बनता है? निरोग कैसे होता है?

प्रश्न के उत्तर में सभी ने अपनी मान्यता व्यक्त की। रोग मुक्त होने के निमित्त सभी उपचार बताते चले गये किसी ने भी यह न बताया कि रोगी पड़ने का अवसर ही न आवे, अथवा जो रुग्ण हो गया है, उसे सहज ही उससे छुटकारा पाने का अवसर मिल जाय।

उत्तर सभी के शास्त्र सम्मत थे, पर उनमें सार सिद्धान्त का समावेश न रहने से उन्हें संतोष नहीं हुआ। और वे खिन्न मन से उदास होकर एक कोने में जा बैठे। सोचने लगे या तो मुझे पक्षी समझकर उपेक्षित किया गया है। अथवा इन लोगों का अनुभव गंभीर नहीं है।

उधर से महर्षि वागभट्ट निकले। उनसे भी कपोत ने वही प्रश्न पूछा। उसने कपोत रूपी चरक को पहचान लिया और नत-मस्तक होकर उन्हीं की भाषा में प्रत्युत्तर देते हुए तीन प्रतिपादन प्रस्तुत किये।

“मित भुक्”- अर्थात् भूख से कम खाना।

“हित भुक्”- अर्थात् सात्विक खाना।

“ऋत भुक्”- अर्थात् न्यायोपार्जित खाना।

जो इन तीन बातों का ध्यान रखेंगे, उन्हें बीमार पड़ने का अवसर ही न आवेगा। ऐसी दशा में बिना चिकित्सा के ही स्वास्थ्य ठीक बना रहेगा।

इन दिनों स्वास्थ्यकर आहार के संदर्भ में अमुक रसायनों के बाहुल्य को संतुलित आहार कहा जाता है और अमुक की कमी रहने पर कुपोषण की शिकायत होने की बात कही जाती है। इन दिनों कुपोषण दूर करने के लिए खाद्य संतुलन पर बहुत महत्व दिया जा रहा है और यह सोचा जा रहा है कि किस प्रकार आहार का रासायनिक स्तर बढ़ाया जाय। यह प्रयत्न सामान्यतया ही है। रासायनिक उत्कृष्टता की बात का महत्व मिलना ही चाहिए, पर साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि पकाने की प्रक्रिया एवं खाने की पद्धति में तो कहीं कोई त्रुटि नहीं रह रही है। इस संदर्भ में बरती गई लापरवाही ऐसी है जिसके कारण बहुमूल्य पौष्टिक पदार्थ भी तथाकथित कुपोषण वाले आहार से भी गये बीते बन जाते हैं।

कुपोषण वाले पदार्थों के कारण शारीरिक विकास में जो कमी रह जाती है तथा मानसिक विकास में अवरोध उत्पन्न होता है, उसकी जानकारी सर्वविदित है। अब इस क्षेत्र में चल रहे अनुसंधानों ने एक नया मोड़ लिया है कि जिनको पर्याप्त मात्रा में पुष्टाई मिलती है वे कुपोषण ग्रस्तों से भी गई गुजरी स्थिति में क्यों पड़े रहते हैं? उन्हें वे लाभ क्यों नहीं मिलते जो खाद्य रसायनों का गुणगान करते हुए आमतौर से बताये जाते हैं।

इस असमंजस का समाधान ढूँढ़ने के लिए स्वास्थ्य विज्ञान में संलग्न कितने ही शोध संस्थान अपने-अपने ढंग से काम कर रहे हैं। इंडियन कौंसिल आफ मेडीकल रिसर्च- इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मेडीकल साइन्स- नेशनल इंस्टीट्यूट आफ न्यूड्रीसन- पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल एजुकेशन एण्ड रिसर्च जैसी भारत की शोध संस्थाएं न केवल देश की आर्थिक परिस्थितियाँ अधिक उपयोगी खाद्यान्नों की सिफारिशें कर रही हैं वरन् यह भी सोच रही हैं कि उपयोगी स्तर का आहार ग्रहण करने पर भी असंख्यों को क्यों उसका लाभ नहीं मिलता है? यह समस्या उन सभी लोगों की है जो आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न और बौद्धिक दृष्टि से सुशिक्षित होते हुए शारीरिक दृष्टि से दुर्बल और रुग्ण बने रहते हैं। इससे प्रतीत होता है कि आहार का संतुलित होना ही पर्याप्त नहीं, वरन् उसके पकाये और खाये जाने का तरीका भी अपना विशिष्ट महत्व रखता है। इस संदर्भ में बरती गई असावधानी भी आहार का स्तर मूल्यवान होते हुए भी उसके प्रभाव परिणाम से वंचित रहना पड़ता है।

तेज आग पर देर तक पकाने से भी सभी खाद्य पदार्थ अपनी मौलिक विशेषताओं का अधिकाँश भाग गंवा बैठते हैं। चिकनाई में तलने-भूनने से रही बची उपयोगिता भी नष्ट हो जाती है। मसाले की भरमार से वह आहार न रहकर नशा रहित मादक द्रव्य बन जाता है और उत्तेजना ही नहीं विषाक्तता भी उत्पन्न करता है।

खाने के संबंध में बरती जाने वाली भूलें और भी दुर्भाग्यपूर्ण हैं। कम चबाये जल्दी-जल्दी में निगलते जाना, आहार को मुख में सम्मिलित होने वाले पाचक रसों से वंचित रखना है। जायकेदार चीजें स्वभावतः भूख से अधिक मात्रा में उदरस्थ होती रहती हैं। एक बार का किया हुआ आहार पचने से पहले ही उस पर नई खेप की बात लद जाती है। यही है अपच का प्रधान कारण। पेट में बिना पचा आहार सड़ता है। सड़न से उत्पन्न विषैली गैसें शरीर के विभिन्न अवयवों में पहुँच कर वहाँ चित्र-विचित्र की बीमारियों का सृजन करती हैं। इन गलतियों के रहते पौष्टिक भोजन भी कुपोषण के कारण अखाद्य ठहराये जाने वाले आहार से भी गया बीता बन जाता है।

आवश्यक नहीं कि गरीब लोगों को कीमती खाद्य सामग्री खरीदने के लिए दबाया और उनकी परिस्थिति का उपहास उड़ाया जाय। अच्छा यह है कि हरे शाक-भाजी बिना पकाये या कम पकाये खाने की आदत डाली जाय और उनमें पाये जाने वाले बहुमूल्य क्षार एवं खनिजों को पोषण में सम्मिलित होने का अवसर दिया जाय। सूखे अन्नों को अंकुरित करके तथा धीमी आग पर उबाल कर खाने का तरीका भी ऐसा है, जिससे मोटे अनाज मेवे जैसा गुण देने लगते हैं।

प्राकृतिक खाद्य-पदार्थों में अंकुरित आहार सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। अंकुरित होते समय बीजों में पायी जाने वाली प्रोटीन, विटामिन, एन्जाइम एवं मिनरल (खनिज लवण) की वृद्धि असाधारण रूप से होती है। अंकुरण के समय अन्न की जीवनी शक्ति विकासोन्मुख एवं अधिक सक्रिय होती है। उस स्थिति में एन्जाइम की मात्रा बीजों में अत्यधिक बढ़ जाती है जो शरीरगत चयापचय क्रिया को अधिक अच्छी तरह सम्पन्न कर रक्त-संचार व पाचन तंत्र को विशेष शक्ति प्रदान करते हैं।

तेज आग पर उबाल देने या भून देने से बीजों की अंकुरण क्षमता नष्ट प्रायः हो जाती है और जीवनी शक्ति भी बहुत मात्रा में कम हो जाती है। अंकुरित आहार कम मात्रा में ग्रहण किए जाने पर भी पोषण की आवश्यकता पूरी हो जाती है। अंकुरित करने के लिए कोई भी अनाज या बीज प्रयोग किया जा सकता है। उनमें परिवर्तन भी करते रहना चाहिए। सामान्यतया अंकुरण के लिए गेहूँ, चना, मूँग, मूँगफली, मटर, सोयाबीन आदि प्रयुक्त किये जाते हैं।

अंकुरित किए गये अन्न एवं बीजों में प्रोटीन की प्रचुरता हो जाती है। साथ ही जटिल एवं गरिष्ठ प्रोटीन का रूपांतरण सरल प्रोटीन अमीनो एसिड में हो जाता है। बीजों का अंकुरण के पश्चात् श्लेष्मा कारक एवं गैस उत्पन्न करने का दोष बहुत ही न्यून रह जाता है। अंकुरण के तीन-चार दिन बाद गेहूँ में विटामिन ‘सी’ की मात्रा तो 300 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसी प्रकार विटामिन बी काम्प्लेक्स की मात्रा भी अंकुरण की प्रक्रिया में कई गुना बढ़ जाती है।

अंकुरण की सरल विधि से सस्ता व सहज ही पौष्टिक भोजन हर किसी को उपलब्ध हो सकता है। इससे प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन एवं तत्व मिल जाते हैं, कुपोषण की समस्या का सहज समाधान इससे हो सकता है। यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अंकुरित आहार सस्ता, संतुलित व पूर्ण आहार है।

आहार के निर्धारण में अब एक और तत्व सामने आया है जिसे खाद्य की जीवनी शक्ति एवं प्राण ऊर्जा कहा गया है। यह रासायनिक संरचना से भिन्न है। अब तक प्रोटीन, स्टार्च, लवण, खनिज आदि रसायनों का संतुलन ही खाद्य का स्तर गिना जाता रहा है, अब उन पदार्थों में पाई जाने वाली प्राण चेतना का अन्वेषण वर्गीकरण भी चल पड़ा है और उस सूक्ष्म प्रभाव के आधार पर उपयोगिता एवं समर्थता का प्रतिपादन होने लगा है। भारतीय अध्यात्म विज्ञान की सूक्ष्मदर्शी सदा से पदार्थों की सात्विक, राजस, तामस प्रभृति की चर्चा करते रहते हैं। यह सब क्या है? उसकी व्याख्या पिछले दिनों तो नहीं हो सकी थी, पर अब इस नई खोज से पता लगता है कि पाये जाने वाले रसायनों से भी अधिक महत्वपूर्ण पदार्थों की प्राण ऊर्जा होती है।

प्राण शक्ति या सूक्ष्म शक्ति जिसे विज्ञान की भाषा में ‘वायोप्लाज्मा’ कहते हैं, सृष्टि के प्रत्येक कण-कण में विद्यमान है, परंतु चेतन तत्वों विशेषतः जीव-जन्तु मनुष्य एवं पेड़-पौधों से अधिक सक्रिय रहती है। सन् 1968 में रूस के कुछ प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के एक संगठन ने अपने अनुसंधान कार्य का प्रकाशन कराया जिसमें उन्होंने लिखा था कि ‘‘समस्त चेतन प्राणियों, पौधों, मनुष्यों एवं जानवरों में एक स्थूल शरीर होता है, और एक सूक्ष्म शरीर। सूक्ष्म शरीर में ही प्राणशक्ति रहती है।’’

अमेरिका के येल यूनीवर्सिटी के डा. वर्र एवं नार्थाप ने दो वृक्षों के बीच एक सेन्सिटिव वोल्टमीटर जोड़कर निःसृत होने वाली प्राण शक्ति का मापन व अंकन का सफल प्रयोग किया। इस शोध कार्य में उन्हें कई वर्ष तक अथक परिश्रम करना पड़ा।

पौधों में प्राणशक्ति के निरंतर प्रवाह के संबंध में ‘क्रिस्टोफर बर्ड’ एवं ‘पीटर टॉम्किन्स’ ने अपनी ‘‘दी सीक्रेट लाइफ ऑफ प्लांट’’ पुस्तक में लिखा है कि पौधे भी अन्य जीवों एवं मनुष्य की तरह प्राण शक्ति के स्तर से प्रभावित होते हैं। पौधों की प्राणशक्ति मनुष्यों और जीव-जन्तुओं को प्रभावित करती है। जैव रसायन विशेषज्ञ ‘डा. एरन फ्रीड फेफर’ ने पशु, मनुष्य व पौधों की सूक्ष्म प्राणिक शक्ति का परीक्षण किया। उन्होंने अपने प्रयोगों से सिद्ध किया है कि प्राकृतिक भोज्य-पदार्थों में प्राण शक्ति का स्पंदन अधिक सशक्त होता है। शारीरिक आवश्यकताओं के लिए प्राकृतिक भोजन में पाये जाने वाले विटामिन, खनिज, लवण उपयुक्त वह पर्याप्त हैं। कृत्रिम खाद्य-पदार्थों में प्राण शक्ति की मात्रा न्यून होने से उनका जैविक महत्व बहुत कम होता है।

फांस के इंजीनियर ‘आंद्रेसिमेन्टन’ ने खाद्य-पदार्थों में निहित प्राण शक्ति को मापने का कार्य एक प्रकार का दोलन-यंत्र बनाकर किया। उनकी शोध से पता चला है कि अन्न, ताजे फल, हरी साग-सब्जियों आदि में प्राण शक्ति की अधिकता होती है। मांस में पाई जाने वाली प्राण-शक्ति न्यून एवं घटिया होती है, पकाने पर तो लगभग प्राण-शक्ति से रहित ही हो जाता है। सिमेन्टन महोदय के अनुसार भोजन पकाने की रासायनिक विधियों एवं सुरक्षित रखने की रासायनिक प्रक्रियायें हानिकारक हैं। उन्होंने अपने शोध प्रयोगों के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि स्वास्थ्य को अक्षुण्ण बनाये रखने, जीवनी शक्ति से भरपूर रखने के लिए अनाज, फल, साग-सब्जी जैसे उच्च शक्ति सम्पन्न खाद्य-पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए।

सात्विक आहार की विशेषता को अभी तक अनुभव नहीं किया जा रहा था। अब उस रहस्य की परतें खुल रही हैं और मांस जैसे तामस तथा स्निग्धता की भरमार वाले राजस पदार्थों की तुलना वह खाद्य कहीं अधिक लाभदायक हैं जिन्हें सतोगुण माना गया है। वे शरीर ही नहीं मन का भी परिपोषण और अभ्युदय करते हैं।

महर्षि वागभट्ट का वह उत्तर जो उन्होंने कपोत चरक को दिया था। अब विज्ञान की कसौटी पर अक्षरशः खरा उतरता जा रहा है। आरोग्य रक्षा और समर्थ शरीर बनाये रहने का यही उपयुक्त मार्ग भी है।

First 17 19 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • युग धर्म की अवहेलना महँगी पड़ेगी
  • सर्वाधिक महत्वपूर्ण-वर्तमान
  • समस्त जड़-चेतन पर उच्चस्तरीय सत्ता का अनुशासन
  • दृश्य संसार के भीतर अदृश्य संसार
  • दीपक का स्नेह (kahani)
  • परिष्कृत अंतरंग चेतना की उपलब्धियाँ
  • क्षुद्र बन गया (kahani)
  • सफलता और प्रगति की मूल शर्त
  • नियति द्वारा प्रस्तुत मानवीय सत्ता की विलक्षणताओं का परिचय
  • विराट् जगत में मनुष्य की हस्ती ही क्या है?
  • आदर्शों की पराकाष्ठा भारतीय संस्कृति का गौरव
  • बुद्धि की प्रखरता ही नहीं, भावनाओं की उदात्तता भी
  • इच्छित नींद अपने निजी प्रयत्न से
  • पुस्तकों की उपेक्षा मत कीजिए
  • योगाभ्यास मानसिक प्रगति का बहुमूल्य माध्यम
  • गायत्री मंत्र की प्रचण्ड सामर्थ्य
  • गहरी श्वास से चिर यौवन दीर्घ जीवन
  • आहार और उसकी पोषक शक्ति
  • सफलता का आयु से क्या सम्बन्ध?
  • निर्बलता एक अक्षम्य अपराध
  • मानसिक असन्तुलन, स्वास्थ्य संकट का मूल कारण
  • श्रेष्ठ आदतों में सर्वप्रमुख- नियमितता
  • हंसोड़ स्वभाव -एक दैवी वरदान
  • स्वास्थ्य साधन के लिए, उपवास का उपयोग
  • महान् परिवर्तन की वेला, अति सन्निकट
  • Quotation
  • पिरामिडों में अंकित सन् 2000 की दुनिया
  • शान्ति और प्रगति के लिए साधन शुद्धि आवश्यक
  • संवेदित मानव
  • संवेदित मानव (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj