
क्षुद्र बन गया (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
“तब में क्षुद्र बन गया। जब मैंने लोगों की मिथ्या चापलूसी करके अपना लाभ कमाने की बात सोची- जबकि दुर्बलों के सामने दर्प दिखाता हुआ उनके साथ अपनी प्रतिस्पर्धा करते हुए अहंकार से इठलाया- जबकि मैंने कठिन कर्तव्य की तुलना में सस्ते सुखोपभोग की पगडंडी पर कदम रखा- जबकि अपराध करने के बाद पाप पक्ष समर्थन किया- जबकि कुरूपता से तो घृणा करता रहा, पर यह भूल गया कि घृणा की प्रतिच्छाया ही कुरूपता है- जबकि दूसरों के मुँह निकलने वाली प्रशंसा को सुनकर अपने कर्तृत्व को अच्छा मान बैठा।
मेरी क्षुद्रता को इन मान्यताओं ने चक्रवृद्धि ब्याज की तरह अत्यधिक बढ़ा दिया। तो भी मैं अनुभव करता रहा कि बड़ा बन रहा हूँ और आगे बढ़ रहा हूँ।’’ - खलील जिब्रान