
विग्रह की सहयोग और सहकार में परिणति
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वह समय अब पीछे छूटता जा रहा है जब विज्ञान के द्वारा सच्चाई खोज निकालने की जोर-शोर से घोषणा की जाती थी और साथ ही यह भी कहा जाता था कि अध्यात्म की मान्यताएं काल्पनिक एवं निरर्थक हैं। पर अब स्थिति वैसी नहीं रही। विज्ञान और बुद्धिवाद को अब अपने पूर्व प्रतिपादनों पर नये सिरे से विचार करना पड़ रहा है। अब बुद्धिवाद पर नीतिमत्ता और उत्कृष्टता का अनुशासन आवश्यक प्रतीत हो रहा है। तथ्य अब इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि संसार में सब कुछ जड़ ही नहीं है। पदार्थ पर अंकुश रखने वाली चेतन सत्ता का भी स्वतंत्र अस्तित्व है और उसका विश्व-व्यवस्था एवं प्राणि जगत पर सुनिश्चित अनुशासन है।
विज्ञान का जैसे-जैसे बचपन दूर हो रहा है और प्रौढ़ता, परिपक्वता की स्थिति आ रही है, वैसे-वैसे विज्ञजनों ने अध्यात्म सत्ता, शैली एवं उपयोगिता के संबंध में अपनी पुरानी मान्यताएं बदली हैं। साथ ही अध्यात्म ने भी हठधर्मी छोड़ी है।
परिवर्तित विचार-धारा का परिचय विश्व के मूर्धन्य महा-मनीषियों द्वारा इन्हीं दिनों व्यक्त किए गए उद्गारों से मिलता है। -प्रसिद्ध वैज्ञानिक ऑलिवर लॉज का कथन है कि ‘‘मुझे विश्वास है, अब वह समय निकट आ गया है जबकि विज्ञान को नये क्षेत्रों में प्रवेश करना होगा। विज्ञान अब भौतिक जगत तक ही सीमित नहीं रहेगा। चेतन जगत भी अब वैज्ञानिक प्रयोग परीक्षण का महत्वपूर्ण विषय बन गया है।’’
प्रसिद्ध वैज्ञानिक जेम्स जीन्स ने लिखा है- ‘‘पहले यह मान्यता थी कि जड़-जगत ही चेतना की उत्पत्ति का आधार है। भौतिक तत्वों के समन्वय से ही मन की उत्पत्ति होती है। लेकिन अब यह माना जाने लगा है कि जड़ जगत के पीछे एक विराट चेतना काम कर रही है।’’ अपनी पुस्तक ‘दि न्यू साउण्ड बैक ऑफ साइंस’ में वे लिखते हैं- ‘‘उन्नीसवीं सदी में विज्ञान का मूल विषय भौतिक जगत था लेकिन अब प्रतीत हो रहा है कि विज्ञान जड़ पदार्थों से अधिकाधिक दूर होता जा रहा है।’’
प्रो. ए. एस. एडिंग्टन ने कहा है- ‘‘अब विज्ञान इस निर्णय पर पहुंचा है कि समस्त सृष्टि में एक अज्ञात शक्ति गतिमान है। अब विज्ञान का जड़ पदार्थों से लगाव समाप्त हो गया। चेतना, मन, आत्मा का अस्तित्व माना जाने लगा है। चेतन सत्ता की जड़ जगत की उत्पत्ति का मूल कारण है।’’
प्रसिद्ध वैज्ञानिक हरवर्ट स्पेंसर ने कहा है- ‘‘जिस शक्ति को मैं बुद्धि से परे मानता हूं वह धर्म का खंडन नहीं करती अपितु उसे और अधिक बल पहुंचाती है।’’
सुविख्यात वैज्ञानिक अल्फ्रेड रसेल वैलेस ने अपनी पुस्तक ‘‘सोशल एन्वाइसमेंट एण्ड मॉरल प्रोगेस’’ में स्पष्ट लिखा है- ‘‘मुझे विश्वास हैं, चेतना ही जड़ पदार्थों को गति प्रदान करती है।’’
बीसवीं सदी के महान विज्ञान वेत्ता अलबर्ट आइन्स्टीन ने कहा है- ‘‘मैं ईश्वर को मानता हूं। इस अविज्ञात सृष्टि के अद्भुत रहस्यों में ईश्वरीय शक्ति ही परिलक्षित होती है। अब विज्ञान भी इस बात का समर्थन कर रहा है कि संपूर्ण सृष्टि का नियमन का अदृश्य चेतन सत्ता कर रही है।’’
जे. बी. एस. हैल्डेन ने लिखा है- ‘‘अविज्ञात सृष्टि के कुछ ही रहस्यों को हम जान पाये हैं। सृष्टि को हम एक निर्जीव मशीन मात्र समझ रहे थे, यह हमारी भूल थी। वास्तव में यह सृष्टि चेतन शक्ति से संबद्ध है। जड़ पदार्थों का संचालन यह चेतन शक्ति ही कर रही है।’’
आर्थर एच. कैम्पटन ने कहा है- ‘‘हमारे चिंतन मनन को न केवल मस्तिष्क ही प्रभावित करता है वरन् इससे भी अलग एक शक्ति है जो विचारणाओं को प्रेरित करती है। उस चेतन शक्ति की संपूर्ण जानकारी तो नहीं मिल पाई है लेकिन यह निश्चित है कि मृत्यु के बाद भी उस चेतना का अस्तित्व बना रहता है।’’