• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • पर्यटक शान्ति-कुँज न ठहर सकेंगे
    • कठिनाइयाँ आवश्यक भी हैं, लाभदायक भी
    • हृदय में बसते हैं भगवान
    • आत्म विस्मृति की विडम्बना
    • निन्दा से विचलित न हों उसे महत्त्व न दें
    • अपनी सामर्थ्य पहचाने सुदृढ़ बनें।
    • काशी नरेश (kahani)
    • मरणं बिन्दु पातेन जीवनं बिन्दु धारणात्
    • मानसिक दक्षता सहज ही बढ़ सकती है।
    • Quotation
    • मनुष्य को अभी बहुत कुछ जानना शेष है।
    • हमारा संपर्क क्षेत्र अगले दिनों अधिक विस्तृत होगा
    • सौर मण्डल हमारा बड़ा परिवार
    • महाकाल की व्यूह रचना और जागृतों का युग धर्म
    • आदिम युग की और लौटता विश्व समुदाय
    • महामरण की एक व्यापक तैयारी
    • अब पर्जन्य नहीं, अम्ल बरसेगा
    • Quotation
    • बढ़ते रोग मानवता के लिये नया संकट
    • विनाश लीला टाली जा सकती है।
    • महाकाल का युगान्तरीय चेतन प्रवाह
    • व्याहृतियों में विराट का दर्शन
    • यज्ञ ऊर्जा एवं मंत्र विद्या का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध
    • Quotation
    • मेध यज्ञों का दर्शन एवं स्वरूप
    • तुलसी आरोपण इस वर्ष का विशिष्ट प्रयास
    • अंकुरित हो गया (kahani)
    • आद्यशक्ति की सार्वभौम उपासना एक मनीषी का अभिमत
    • अपनों से अपनी बात - युग समस्याओं का निराकरण अब जनता के सुप्रीम कोर्ट में होगा।
    • VigyapanSuchana
    • सन्त वाणी
    • सन्त की वाणी (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • पर्यटक शान्ति-कुँज न ठहर सकेंगे
    • कठिनाइयाँ आवश्यक भी हैं, लाभदायक भी
    • हृदय में बसते हैं भगवान
    • आत्म विस्मृति की विडम्बना
    • निन्दा से विचलित न हों उसे महत्त्व न दें
    • अपनी सामर्थ्य पहचाने सुदृढ़ बनें।
    • काशी नरेश (kahani)
    • मरणं बिन्दु पातेन जीवनं बिन्दु धारणात्
    • मानसिक दक्षता सहज ही बढ़ सकती है।
    • Quotation
    • मनुष्य को अभी बहुत कुछ जानना शेष है।
    • हमारा संपर्क क्षेत्र अगले दिनों अधिक विस्तृत होगा
    • सौर मण्डल हमारा बड़ा परिवार
    • महाकाल की व्यूह रचना और जागृतों का युग धर्म
    • आदिम युग की और लौटता विश्व समुदाय
    • महामरण की एक व्यापक तैयारी
    • अब पर्जन्य नहीं, अम्ल बरसेगा
    • Quotation
    • बढ़ते रोग मानवता के लिये नया संकट
    • विनाश लीला टाली जा सकती है।
    • महाकाल का युगान्तरीय चेतन प्रवाह
    • व्याहृतियों में विराट का दर्शन
    • यज्ञ ऊर्जा एवं मंत्र विद्या का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध
    • Quotation
    • मेध यज्ञों का दर्शन एवं स्वरूप
    • तुलसी आरोपण इस वर्ष का विशिष्ट प्रयास
    • अंकुरित हो गया (kahani)
    • आद्यशक्ति की सार्वभौम उपासना एक मनीषी का अभिमत
    • अपनों से अपनी बात - युग समस्याओं का निराकरण अब जनता के सुप्रीम कोर्ट में होगा।
    • VigyapanSuchana
    • सन्त वाणी
    • सन्त की वाणी (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1983 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


बढ़ते रोग मानवता के लिये नया संकट

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 18 20 Last
आधुनिक युग में सुविधाएँ अपरिमित परिमाण में बढ़ी है। जैसे-जैसे विज्ञान के नये आविष्कार हाथ आते गए, व्यक्ति उतना ही श्रम की दृष्टि से परावलंबी तथा रहन-सहन की दृष्टि से विलासी बनता चला गया है। यह एक निर्विवाद तथ्य है कि जब भी व्यक्ति एकाकी प्रगति करता है उसे कहीं न कहीं तो घाटा उठाना ही पड़ता है। इस घाटे को हम आधुनिक सभ्यता का अभिशाप भी कह सकते हैं। आज दृश्यमान अस्वस्थ मानव समुदाय इसकी जीती-जागती तस्वीर है। शरीर एवं मन दोनों ही दृष्टि से रुग्ण, दुर्बल व्यक्ति उपलब्ध सुविधाओं का उपभोग तक नहीं कर पा रहा। यह एक ऐसी विडम्बना है जिसे देखकर हँसी भी आती है और रोना भी। हँसी इस कारण कि यह स्थिति उसकी स्वयं आमन्त्रित की हुई है। रोना इसका कि स्थिति से भली भाँति अवगत होते हुए भी वह कोई प्रयास इस दिशा में कर नहीं रहा।

अध्यात्म मान्यता यह है कि नीरोग काया एवं तनाव रहित मन ऐसे अनुदान हैं जिन्हें प्रकृति के साहचर्य में रहकर मनुष्य सहज ही प्राप्त कर सकता है। संयम रूपी अनुशासन का पालन कर, आहार-बिहार की मर्यादा निभाते हुए वह निश्चित ही भौतिक एवं आत्मिक दोनों की दृष्टि से प्रगति की दिशा में अग्रसर हो सकता है। जब-जब भी यह अनुशासन तोड़ा जाता है, प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की जाती है। उसे आधि-व्याधि के रूप में दण्ड भुगतना पड़ता है। आधि अर्थात् मानसिक संताप, व्याधि, अर्थात् शारीरिक कष्ट। बहुधा ये दोनों साथ-साथ ही होते हैं। यह प्रगति की अंधाधुँध दौड़ का ही दुष्परिणाम है, इसके समर्थन में अनेकानेक प्रमाण तथ्य रूप से ढूंढ़े जा सकते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रतिवर्ष अपनी प्रगति समीक्षा छापता है। बढ़ते चिकित्सक, निदान चिकित्सा की सुविधाओं को देखते हुए लगता है कि रोग क्रमशः घट रहे होंगे एवं स्वस्थ व्यक्तियों का अनुपात बढ़ा होगा। लेकिन तथ्य कुछ और ही हैं। सद्यः प्रकाशित रिपोर्ट नवजात शिशुओं से सम्बन्धित है। गत तीन वर्षों में विश्व में कुल तीस अरब शिशु जन्मे, जिसमें से एक अरब शिशु जन्मजात विकलाँग लिए हुए थे। मृत्यु दर इनमें और जोड़ जी जाय तो यही आँकड़ा और भी भयावह हो जाता है। विकसित सुविधा सम्पन्न राष्ट्रों में यह औसत प्रति व्यक्ति अधिक है जबकि उनके यहाँ जन्मदर कम है।

जन्मजात शरीर सम्बन्धी ये विकृतियाँ हैं - बड़ा सिर, हाथ पाँवों में अनुपात का व्यतिक्रम, अविकसित यौनांग, आँखों का बाहर की ओर होना, पलकों का परस्पर जुड़ा होना, गालों पर जन्म से ही झुर्री तथा जरा के चिह्न तथा जन्मजात अर्धांग या अल्प मन्दता (सेरिब्रल पाल्सी)। ये कुछ ऐसे शारीरिक प्रकोप हैं जो जन्म के तुरन्त बाद स्पष्ट ही दिखाई पड़ते हैं। रक्ताल्पता, रस स्रावों में असामान्यता, प्रोजेरिया (जल्दी से आने वाला बुढ़ापा) कुछ ऐसी व्याधियाँ हैं जो कालान्तर में ज्ञात होती है। जन्म से स्वस्थ प्रतीत हो रहा बालक किशोरावस्था आने के पूर्व ही असाध्य रोगी घोषित कर दिया जाता है।

यह स्थिति क्या है व कैसे उत्पन्न हुई, इसके मूल में चिकित्सक-मनीषीगण गए तो उन्होंने रोंगटे खड़े कर देने वाले तथ्य पाये। उन्होंने पाया कि जहाँ ये बच्चे पैदा हुए- उस स्थान के वातावरण में रेडियोधर्मिता का अंश अत्यधिक था। ये सभी नव विकसित औद्योगिक परिसर में जन्म जबकि प्रकृति की सुषमा में रहने वाले व्यक्तियों में से एक भी अल्प मन्दता या शरीर विकृति के चिह्न वाला रोगी नहीं मिला। जहाँ चिकित्सक गण एवं परिचर्या की सुविधाएँ सर्वाधिक है वहाँ शिशु मृत्यु दर (निओनेटल डेथरेट) अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा दस गुनी है। जहाँ चिकित्सक, नर्स, दाई तक उपलब्ध नहीं, वहाँ न कोई असामान्यता है। नहीं मृत्युदर का औसत अधिक।

शिशु रोग चिकित्सकों, एम्ब्रियोलॉजिस्ट तथा पर्यावरण विशेषज्ञों ने मिलजुलकर यह निष्कर्ष निकाला है कि वातावरण में संव्याप्त प्रदूषण जो कि नगरों व कस्बों में अधिक है, सम्भवतः शिशु की गर्भस्थ स्थिति में प्रगति को अवरुद्ध कर देता है। वायु में घुले ये विषाक्त कण कोशिकाओं के सामान्य विकास को रोक देते हैं। यही नहीं जीन्स में भी ऐसी असामान्यता ला देते हैं कि आगे चलकर कभी भी अवसर पाने पर कोशिकाओं के बागी होकर कैंसर रूप ले लेने के अवसर बढ़ जाते हैं।

पोषण विज्ञानियों का कथन है कि गर्भिणी के आहार में मिलावट युक्त खाद्य पहले ली गयी गर्भ निरोधक औषधियाँ तथा गर्भावस्था में ली गयी एलोपैथीक संश्लेषित दवाएँ चयापचय प्रक्रिया पर गलत प्रभाव डालती हैं। इस प्रकार का कुपोषण विकलाँग बच्चों को जन्म देता है। यह स्थिति सब जगह एक जैसी है। चाहे वह इंग्लैंड की उद्योग नगरी मैन्चेस्टर हो, अमेरिका का मैनहटन अथवा भारत की सर्वाधिक आबादी वाला नगर कलकत्ता। दिनोंदिन बढ़ते जा रहे इस संकट से सभी चिन्तित हैं। गर्भ निरोधक पिल्स के दुरुपयोग अविवेकपूर्ण प्रचलन ने ऐसी आबादी बढ़ाने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जो शरीर व मन दोनों ही दृष्टि से रुग्ण परिवार व समाज पर लदा एक जबर्दस्त भार है। अविवाहित स्थिति में इन औषधियों को लिये जाने के दूरगामी प्रभाव होते है। चरित्र की दृष्टि से गिरावट का सूचक तो यह है ही- अष्टावक्रों की बढ़ती संख्या भी कोई शुभ चिह्न नहीं- भावी विनाश का सूचक है।

जीवन विज्ञानी हर्बर्ट वेन्सन का मत है कि “आधुनिक प्रगति के फलितार्थ जन साधारण के अव्यवस्थित जीवन चक्र के रूप में ऐसे प्रकट हो रहे हैं जिन्हें देख कर भावी सम्भावनाओं की कल्पना मात्र से जी दहल जाता है। असंतुलित हारमोन्स-जीन्स चक्र वाले माता या पिता जिस सन्तति को जन्म देंगे- वह मानवता के लिए एक अभिशाप ही सिद्ध होगी।

भारत में विकृत-अपंग सन्तानों या विचित्र आकृति लेकर जन्मने व तुरन्त मरने वालों की सम्बन्धी समस्या तो और भी अधिक जटिल है। अज्ञान अन्धविश्वास गाँव कस्बों से लेकर शहर तक इस तरह हावी है कि इन असामान्य शिशुओं को ‘अवतार” की उपमा दे दी जाती है। खूब चढ़ावा होता है- दर्शनों की पंक्ति लग जाती है। मूर्खता एवं धूर्तता का यह विचित्र संयोग है जो प्रचार साधनों के इस सीमा तक विस्तार के बावजूद हटने का नाम ही नहीं लेता। क्या हमारा ईश्वर इतना बेतुका, ऐसा बेढंगा है जो हर कहीं नरपामरों के बीच अवतरित होता रहे और शीघ्र ही फिर इहलोक गमन कर दे ?

विश्वव्यापी परिस्थितियों पर जब विचार करते हैं तो पाते हैं कि इस जटिल समस्या के मूल में कई कारण हैं जो पर्यावरण प्रदूषण के अतिरिक्त हैं। कृत्रिम संश्लेषित आहार, डिब्बा बन्द भोजन, सैकेरीन युक्त सर्वसुलभ मिठाइयां, शारीरिक श्रम की कमी व बढ़ता तनाव मानसिक थकान कुछ ऐसी मानव कृत परिस्थितियाँ हैं जो मिटने का नाम नहीं लेतीं। फलतः समाज पर भारभूत बनी यह जनसंख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। चिन्तक भविष्य विज्ञानी एल्विन टॉफलर अपनी पुस्तक “फ्यूचर शॉक” में लिखते हैं कि “इसका एक मात्र कारण आधुनिक विकास क्रम की अन्धाधुन्ध गति। विकास की धारा में सामान्य क्रम की अन्धाधुन्ध गति। विकास की धारा में सामान्य क्रम की अन्धाधुन्ध गति। विकास की धारा में सामान्य क्रम से न चलने, प्रकृतिगत जीवन व्यवस्था से अलग हटने का ही यह दुष्परिणाम है कि मनुष्य को इस अभिशाप से जूझना पड़ रहा है।”

गत दिनों समाचार पत्रों में एक खबर छपी कि अमेरिका में एक विचित्र प्रकार का रोग प्रकट हुआ है जिसकी जकड़ में असंख्यों व्यक्ति मृत्यु की गोद में शनैः-शनैः जा रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इसे नाम दिया है। ए.आय.डी.एस. (“एक्यूट इम्यूनोलॉजीकल डेफीशिएन्सी सिन्ड्रोम”) इसका अर्थ है- जीवन शक्ति का सहसा कम होते चले जाना एवं धीरे-धीरे रोगी का अनेकानेक घातक संक्रमणों से ग्रस्त होकर मौत की गोद में चले जाना। यह क्यों व कैसे होता है इसका कारण चिकित्सक अभी तक नहीं जान पाए, नहीं कोई चिकित्सा पद्धति ही ढूँढ़ सके हैं। न्यूयार्क, वाशिंगटन, कैलीफोर्निया जैसे नगरों में तो स्थिति यह है कि इसे ब्लैक प्लेग (जैसा कि विश्व युद्ध प्रथम व द्वितीय के समय फैला था) की संज्ञा देकर रोगग्रस्त व्यक्ति के वातावरण से लोग दूर भागने लगे हैं। यूरोप में भी अब यह रोग प्रकट होने लगा है।

अमेरिकन ऐसोसिएशन फार एडवान्समेण्ट ऑफ साइन्स के अनुसार विकसित राष्ट्र कैंसर व अन्य एन्जाइम सम्बन्धी रोगों का जल्दी निदान कर चिकित्सा व्यवस्था जुटा सकने में समक्ष हुए तो उन्हें लगा कि उन्होंने कोई तीर मार लिया। लेकिन जीवनी शक्ति का ह्रास करने वाले इस रोग ने तो समस्या को और भी उलझा दिया है। उनका कथन है कि भूगर्भीय आणविक विस्फोटक अन्तरिक्ष में छायी विकिरण की धूल, द्रुतगामी वाहन कृत्रिम रसायनों के अधिकाधिक प्रचलन ने ऐसा रोग मानवता के मत्थे मढ़ दिया है, जिससे छुटकारा पाने के लिए जितना समय लगेगा, उतने में सम्भवतः मानव ही इस धरती पर न बचे।

आधुनिकता का एक अन्य अनुदान है - बढ़ते मनोरोग। ऐसे अनुमान है कि मात्र भारत में ही डेढ़ करोड़ व्यक्ति ऐसे हैं जो किसी न किसी रूप में मानसिक रोग हैं, मनोचिकित्सकों से उपचार करा रहे हैं। जो चिन्ता, तनाव बेचैनी, आतुरता जैसे मनोविकारों से ग्रस्त हैं व जिनका किसी चिकित्सालय में कोई रिकार्ड दर्ज नहीं, उन्हें तो इस संख्या में शुमार ही नहीं किया जाता। पारस्परिक विग्रह, एकाकीपन, मादक द्रव्यों का प्रचलन एवं सतत् बढ़ता मानसिक दबाव ऐसे कारणों में प्रमुख माने गये हैं। अहमदाबाद के मनोचिकित्सक डा. अनिल शाह लिखते हैं कि “मानसिक अस्पताल मात्र “डस्टबिन” (कूड़े की टोकरी) बन कर रह गये हैं जहाँ रिश्तेदार अवाँछित सम्बन्धी को पटक देते हैं। और वहाँ का असहानुभूति पूर्ण व्यवहार ऐसे व्यक्ति को स्थायी रोगी बनाकर छोड़ता है।”

भारत से परे चलें तो विश्व भर के मनोरोगियों के आंकड़े देखकर लगता है, कहीं हम गत तीस वर्षों में किसी अन्य ग्रह पर तो नहीं आ बसे। आँकड़े तो मात्र उन रोगियों के हैं जिनके नाम चिकित्सा शॉक थैरेपी हेतु दर्ज हैं फिर भी इनसे एक अनुमान लगता है कि यह संख्या कितनी है। साठ से पैंसठ करोड़ व्यक्ति परे विश्व में ऐसे हैं जो असाध्य मनोरोगों से ग्रस्त हैं। समाज में उनका कोई योगदान नहीं, उल्टे उन पर की जा रही चिकित्सा का व्यय भार और लदा हुआ है। विभिन्न मनोविकारों हेतु ली जा रही तनाव शामक औषधियों की मात्रा प्रतिदिन हजारों टन में हैं पाश्चात्य देशों में प्रति 20 लिखे गये पर्चों में से 15 में ट्रैक्वेलाइजर्स होती हैं।

ब्रिटेन के एक प्रख्यात मनश्चिकित्सक डा. स्टेनले के अनुसार पिछले बीस वर्षों में वहाँ आत्महत्या करने वालों की संख्या तीस गुनी बढ़ी है। यूरोप व अमेरिका जैसे धन सम्पन्न राष्ट्रों के तीन चौथाई व्यक्ति ऐसे हैं जो अपने जीवन में एक न एक बार आत्महत्या की चेष्टा करते हैं।

आधुनिक प्रगति का पथ छोड़कर वापस अतीत में लौटा जाय, यह कोई विकल्प नहीं लेकिन इस पर तो पुनर्विचार हो सकता है कि कहीं कोई गलती तो नहीं हो रही। द्रुतगामी वाहन, ध्वनि प्रदूषण, बढ़ता विकिरण, पारस्परिक प्रतिस्पर्द्धा, आरामतलबी, कृत्रिमता का जीवन के हर क्षण में अवलम्बन, पर्यावरण की विषाक्तता, उन्मुक्त स्वेच्छाचार को प्रश्रय इत्यादि कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कारण ऊपर बतायी गयी परिस्थितियों के मूल में मनीषियों ने बताए हैं। अच्छा हो, मनुष्य समय रहते अपनी चाल बदले और प्रकृतिगत अनुशासन में बंधना सीखे। सृष्टि का यह एक शाश्वत नियम है कि जब भी मर्यादा का उल्लंघन होगा प्रकृति तुरन्त पलटकर दण्ड देगी। महाविनाश को आमन्त्रण आज की परिस्थितियों में मात्र युद्धोन्माद, बढ़ती आबादी, पर्यावरण प्रदूषण ही नहीं दे रहे, मानवी चिन्तन की यह विकृति भी दे रही है, जो उसे परावलंबन, अन्धाधुन्ध औषधि सेवन तथा उन्मुक्त आचरण की ओर प्रेरित करती है। बढ़ती व्याधियों की इस विभीषिका से भी मानवता को त्राण पाना ही होगा।

First 18 20 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • पर्यटक शान्ति-कुँज न ठहर सकेंगे
  • कठिनाइयाँ आवश्यक भी हैं, लाभदायक भी
  • हृदय में बसते हैं भगवान
  • आत्म विस्मृति की विडम्बना
  • निन्दा से विचलित न हों उसे महत्त्व न दें
  • अपनी सामर्थ्य पहचाने सुदृढ़ बनें।
  • काशी नरेश (kahani)
  • मरणं बिन्दु पातेन जीवनं बिन्दु धारणात्
  • मानसिक दक्षता सहज ही बढ़ सकती है।
  • Quotation
  • मनुष्य को अभी बहुत कुछ जानना शेष है।
  • हमारा संपर्क क्षेत्र अगले दिनों अधिक विस्तृत होगा
  • सौर मण्डल हमारा बड़ा परिवार
  • महाकाल की व्यूह रचना और जागृतों का युग धर्म
  • आदिम युग की और लौटता विश्व समुदाय
  • महामरण की एक व्यापक तैयारी
  • अब पर्जन्य नहीं, अम्ल बरसेगा
  • Quotation
  • बढ़ते रोग मानवता के लिये नया संकट
  • विनाश लीला टाली जा सकती है।
  • महाकाल का युगान्तरीय चेतन प्रवाह
  • व्याहृतियों में विराट का दर्शन
  • यज्ञ ऊर्जा एवं मंत्र विद्या का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध
  • Quotation
  • मेध यज्ञों का दर्शन एवं स्वरूप
  • तुलसी आरोपण इस वर्ष का विशिष्ट प्रयास
  • अंकुरित हो गया (kahani)
  • आद्यशक्ति की सार्वभौम उपासना एक मनीषी का अभिमत
  • अपनों से अपनी बात - युग समस्याओं का निराकरण अब जनता के सुप्रीम कोर्ट में होगा।
  • VigyapanSuchana
  • सन्त वाणी
  • सन्त की वाणी (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj