
रोम की जेल (kahani)
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रोम की जेल में कभी कैदियों को अन्धेरी कोठरी में रखा जाता था। बहुत दिन बाद वे छूटते और प्रकाश उन्हें असह्य लगता और अन्धेरे में ही रहना पसन्द करते थे।
गाड़ियाँ लुहारों को अनेक बार जमीन और घर देकर कहीं बस जाने के लिए कहा गया है पर उन्हें वह रुचा ही नहीं। लोहे पीटते हुए गाँव-गाँव फिरते रहना ही उनकी आदत का अंग बन गया है।
वनवासी जातियाँ अभी भी अलग झोंपड़े बनाकर रहती है। मिल-जुलकर साथ बसने में उन्हें उत्साह ही नहीं। विवाह होते ही लड़का अलग झोंपड़ी बनाता और अलग रहता है। नशेबाजों की भी यही बात है। आदत अपना लेने पर बुरी बातें रुचिकर लगती हैं और छोड़ने को मन नहीं करता।