• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • ‘प्रज्ञा’ मानव को प्राप्त दैवी अनुदान
    • आत्मज्ञान की उपलब्धि- अमरत्व की सिद्धि
    • Quotation
    • ईश्वर विकास का चरम बिन्दु है।
    • परब्रह्म की सत्ता के कारण और प्रमाण
    • दैवी अनुदानों का सच्चा अधिकारी कौन?
    • परिवर्तन- सृष्टि की एक शाश्वत विधि व्यवस्था
    • सपनों का जमघट (kahani)
    • ऊर्जा का संचय एवं सुनियोजन
    • Quotation
    • मनोनिग्रह- सबसे बड़ा पुरुषार्थ
    • व्यामोहग्रस्त का उपदेश (kahani)
    • चिन्तन व्यवस्थित हो, विधेयात्मक हो
    • Quotation
    • सदाशयता की महत्वाकाँक्षा हर दृष्टि से हितकर
    • रोम की जेल (kahani)
    • विचार संप्रेषण की अद्भुत शक्ति सामर्थ्य
    • Quotation
    • आत्मबोध से ही जीवन सम्पदा की सार्थकता
    • विलक्षण सामर्थ्य का समुच्चय यह मानव शरीर
    • सिद्धान्त व्यवहार में उतरे तो ही सार्थक
    • ओजस्विता, तेजस्विता और मनस्विता का आन्तरिक भाण्डागार
    • गोताखोर (kahani)
    • मनुष्येत्तर प्राणियों में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय क्षमताएँ
    • मानवी पुरुषार्थ और कर्मफल के सिद्धान्त
    • परोक्ष से सम्पर्क स्थापित कर बहुत कुछ हस्तगत किया जा सकता है।
    • Quotation
    • मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है।
    • जीवेम् शरदः शतम्
    • सृजन शक्ति का प्रेरणा श्रोत- काम
    • Quotation
    • उद्विग्नता मनुष्य की प्राण घातक शत्रु
    • Quotation
    • स्मरण शक्ति की न्यूनता से चिन्तित न हों।
    • Quotation
    • आत्म-विश्वास जगायें- सफलता पायें
    • Quotation
    • आसार बताते हैं कि हिमयुग आने वाला है।
    • नजरें जो बदलीं तो नजारे बदल गये
    • शब्द ब्रह्म का साक्षात्कार एवं उसकी चमत्कृतियाँ
    • सूक्ष्मीकरण पर आधारित यज्ञोपचार पद्धति
    • रवीन्द्र बाबू की हत्या के लिए (kahani)
    • प्रलोभन की मृग मरीचिका एवं अपरिग्रह का नन्दन वन
    • अपनों से अपनी बात
    • यह धरती पावन बन जाये
    • यह धरती पावन बन जाये (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • ‘प्रज्ञा’ मानव को प्राप्त दैवी अनुदान
    • आत्मज्ञान की उपलब्धि- अमरत्व की सिद्धि
    • Quotation
    • ईश्वर विकास का चरम बिन्दु है।
    • परब्रह्म की सत्ता के कारण और प्रमाण
    • दैवी अनुदानों का सच्चा अधिकारी कौन?
    • परिवर्तन- सृष्टि की एक शाश्वत विधि व्यवस्था
    • सपनों का जमघट (kahani)
    • ऊर्जा का संचय एवं सुनियोजन
    • Quotation
    • मनोनिग्रह- सबसे बड़ा पुरुषार्थ
    • व्यामोहग्रस्त का उपदेश (kahani)
    • चिन्तन व्यवस्थित हो, विधेयात्मक हो
    • Quotation
    • सदाशयता की महत्वाकाँक्षा हर दृष्टि से हितकर
    • रोम की जेल (kahani)
    • विचार संप्रेषण की अद्भुत शक्ति सामर्थ्य
    • Quotation
    • आत्मबोध से ही जीवन सम्पदा की सार्थकता
    • विलक्षण सामर्थ्य का समुच्चय यह मानव शरीर
    • सिद्धान्त व्यवहार में उतरे तो ही सार्थक
    • ओजस्विता, तेजस्विता और मनस्विता का आन्तरिक भाण्डागार
    • गोताखोर (kahani)
    • मनुष्येत्तर प्राणियों में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय क्षमताएँ
    • मानवी पुरुषार्थ और कर्मफल के सिद्धान्त
    • परोक्ष से सम्पर्क स्थापित कर बहुत कुछ हस्तगत किया जा सकता है।
    • Quotation
    • मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है।
    • जीवेम् शरदः शतम्
    • सृजन शक्ति का प्रेरणा श्रोत- काम
    • Quotation
    • उद्विग्नता मनुष्य की प्राण घातक शत्रु
    • Quotation
    • स्मरण शक्ति की न्यूनता से चिन्तित न हों।
    • Quotation
    • आत्म-विश्वास जगायें- सफलता पायें
    • Quotation
    • आसार बताते हैं कि हिमयुग आने वाला है।
    • नजरें जो बदलीं तो नजारे बदल गये
    • शब्द ब्रह्म का साक्षात्कार एवं उसकी चमत्कृतियाँ
    • सूक्ष्मीकरण पर आधारित यज्ञोपचार पद्धति
    • रवीन्द्र बाबू की हत्या के लिए (kahani)
    • प्रलोभन की मृग मरीचिका एवं अपरिग्रह का नन्दन वन
    • अपनों से अपनी बात
    • यह धरती पावन बन जाये
    • यह धरती पावन बन जाये (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1984 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


सूक्ष्मीकरण पर आधारित यज्ञोपचार पद्धति

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 40 42 Last
स्थूल की तुलना में सूक्ष्म की सामर्थ्य कहीं अधिक होने की बात विज्ञान की कसौटी पर भी कसी जा चुकी है। मनुष्य का दृश्य शरीर पदार्थ निर्मित स्थूल होने के कारण सीमित अवधि तक सीमित काम ही कर पाता है। शक्ति चुक जाने पर थकान आती है और फिर कुछ करते धरते नहीं बनता। यह बात सूक्ष्म शरीर के सम्बन्ध में लागू नहीं होती। वह बिना ईंधन के ही काम करता और चिरकाल तक समान रूप से यथावत् क्रियाशील रहता है। उसकी गति भी बहुत है और सामर्थ्य भी। यही बात पदार्थ के सम्बन्ध में भी है दृश्यमान मिट्टी का ढेला अस्तित्व की दृष्टि से उपहासास्पद है। पर उसी का एक परमाणु अपनी सूक्ष्म शक्ति का जब परिचय देता है तो आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है। अणु विस्फोट की भयंकरता का जिन्हें पता है, उन्हें यह समझने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि औषधियों को यदि ऐसे ही मोटे रूप में कूटकर उनके प्राकृत स्वरूप में ग्रहण किया जाय तो उसकी तुलना में सूक्ष्म स्तर की औषधि का सेवन कितना अधिक लाभदायक हो सकता है।

होम्योपैथी और यज्ञोपचार में औषधि की सूक्ष्म शक्ति को समझने और उससे लाभान्वित होने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार सैद्धान्तिक दृष्टि से दोनों में असाधारण साम्य देखा जा सकता है। यज्ञ द्वारा शारीरिक एवं मानसिक रोगों के उपचार एवं होम्योपैथी में एक ही अन्तर है कि जहाँ यज्ञ में मुख्यतः पदार्थ के तीसरे रूप गैस का- पदार्थ के वायुभूत रूप का प्रयोग होता है वहाँ होम्योपैथी में ठोस या द्रव्य रूप में सूक्ष्मीकृत औषधियाँ खिलाई जाती हैं। पदार्थ विज्ञान के आरम्भिक छात्र भी जानते हैं कि पदार्थ का- रूपान्तरण सॉलिड, लिक्विड एवं गैस रूपों में होता रहता है। मूलभूत सत्ता यथावत् बनी रहती है लेकिन उनका रूपान्तर इन तीनों में होता रहता है एवं शक्ति सामर्थ्य भी उसी अनुपात में घटती-बढ़ती है।

यज्ञ चिकित्सा में यह आग्रह नहीं है कि उपचार वायुभूत भैषज से ही किया जाय। यज्ञ भस्म, चरु, औषधि क्वाथ, आचमन, मार्जन, मर्दन के माध्यम से ठोस एवं द्रव्य रूप दोनों के ही प्रयोगों का विधान है। इसी प्रकार होम्योपैथी में भी औषधि को सुधाकर, उच्च पोटेन्सी में नासिका, मुखद्वार एवं आँखों की श्लेष्मा झिल्ली से द्रव्य को स्पर्श मात्र कराकर भी शरीर के भीतर पहुँचाया जाता है। इस प्रकार दोनों ही उपचार पद्धतियों में तीनों स्तर के उपचारों की व्यवस्था है। यह बात अलग है कि जहाँ प्रचलन होम्योपैथी में ठोस और द्रव्य रूप का अधिक है, वहाँ यज्ञ में वायुभूत आधार अपनाने की प्रमुखता दी गयी है। आधारभूत सिद्धान्तों की पुष्टि इतने अन्तर के बाद भी हो जाती है एवं यह स्पष्ट पाया जा सकता है कि पदार्थ का सूक्ष्मीकृत रूप हर दृष्टि से अधिक प्रभावशाली होता है।

हैनिमेन के अनुसार सूक्ष्मीकरण से पदार्थ की शक्ति असंख्यों गुनी बढ़ जाती है एवं औषधि का वह शक्तिशाली अंश उभर आता है जिसे कारण तत्व कहते हैं। स्थूल औषधि की तुलना में सूक्ष्म की सामर्थ्य का अनुपात अत्यधिक बढ़ा-चढ़ा होता है। हैनिमेन ने जिन प्रयोगों को आज से लगभग सौ वर्ष पूर्व स्वयं पर करके इस उपचार पद्धति की प्रामाणिकता सिद्ध की थी, पिछले दिनों डॉ. डब्ल्यू. ई. बॉयड एवं अन्य कुछ वैज्ञानिकों ने पदार्थ के अन्दर की आणविक शक्तियों पर होने वाली प्रतिक्रिया पर प्रयोगशाला में परीक्षण कर पुनः प्रामाणित किया है। उन्होंने प. जर्मनी के डॉक्टर ओ. लीसर, के. जेनर एवं एच. शीलर आदि ने अपने कार्य द्वारा यह प्रमाणित किया है कि यदि किसी नमक की हैनिमेन द्वारा बताई गयी विधि के अनुसार लैक्टोरा चूर्ण में मिलाकर पोटेन्सीज बनाई जायें तो कुछ ही पोटेन्सीज बनने के बाद नमक एवं लैक्टोस दोनों ही यौगिकों के सामान्य गुण धर्म ढूँढ़ने पर नहीं मिलते। एक्स-रेडिफ्रेक्शन तकनीक द्वारा जब इन लवणों को ढूँढ़ा गया तो पता चला कि उनकी लैटिस-संरचना टूट चुकी थी। इसे समझाते हुए वे आगे लिखते हैं कि किसी भी पदार्थ के अणु-परमाणुओं का त्रिआयामीय ज्यामितीय सम्बन्ध टूट जाने का अर्थ है- ऊर्जा का परिमाण बढ़ जाना।

इन वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि ठोस पदार्थों की लैटीस संरचना टूटने के फलस्वरूप ऐसी विद्युतीय तरंगें निकलती हैं जिनकी दिशा निश्चित होती है, बेधक क्षमता तीव्र होती है तथा वे तन्त्रिका संस्थान, सिनेप्सों (मिलन-बिन्दु) एवं हारमोन स्राव केन्द्रों पर अपना सीधा प्रभाव डालती हैं। ये गुण, ठोस पदार्थ, चाहे वह काष्ठ रूप में हो अथवा धातु के टुकड़े के रूप में, में मूलतः नहीं पाई जातीं। इस प्रकार होम्योपैथी सिद्धान्त कहता है कि पदार्थ की शक्ति असंख्यों गुनी बढ़ाने के लिये, उसके सूक्ष्म पक्ष को उभारने के लिए उसे सूक्ष्मीकृत किया जाना चाहिये। इसे वे पोटेन्टाइजेशन कहते हैं।

यज्ञ चिकित्सा के शास्त्र प्रामाणित सिद्धान्तों पर दृष्टि दौड़ाने पर हम पाते हैं कि इसके प्रणेता पदार्थ के ठोस और द्रव रूप की तुलना में और भी अधिक सामर्थ्यवान वाष्प (गैस) पक्ष को महत्वपूर्ण मानते हैं। उनकी इस परिकल्पना को कुछ मोटे उदाहरणों से समझा जा सकता है। मिर्च अपने मूल रूप में छोटी परिधि में सीमित रहती है। उसे पीसकर पानी में घोल दिया जाय तो चटपटापन अधिक विस्तृत हो जाता है। यदि उसी मिर्च को जलाया जाय तो वायुभूत होने पर अपना दायरा एवं प्रभाव कहीं अधिक बढ़ा लेती है और प्रतिक्रिया तुरन्त आँखों से पानी आने, छींक व खाँसी उठने के रूप में देखी जा सकती है। तेल अपने पात्र में थोड़ा-सा स्थान घेरता है। हौज में फैला देने पर उसकी पतली परत पूरे विस्तार पर दीखने लगती है। उसी तेल को जलाने पर वह गन्ध दूर-दूर तक पहुँचती व यह परिचय देती है कि कौन-सा पदार्थ कहाँ जलाया गया है। ये साक्षियाँ यही बताती हैं कि ठोस और द्रव की तुलना में गैस की परिधि एवं समर्थता बढ़ती ही है, घटती नहीं। जल की तुलना में भाप अधिक सामर्थ्यवान एवं व्यापक है। एक और अपरिमित मात्रा में जलराशि समुद्र में फैली पड़ी है तो दूसरी ओर उसका एक अंश ठोस रूप में उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों तथा अन्यान्य स्नोबेल्ट्स में पाया जाता है। वाष्पीभूत बादलों की इन्हीं दोनों रूपों का परिष्कृत एवं व्यापक स्वरूप समझा जा सकता है जो मानसून, समुद्री तूफान, झंझावात रूप में आते व बरसते हैं- पृथ्वी को जलमग्न कर देते हैं। यह सूक्ष्म की शक्ति का चमत्कार है।

यज्ञोपचार में यही प्रयोग किया जाता है कि जिस रोग में दिये जाने का विधान है, उसे वायुभूत बनाकर रोगी के शरीर में विभिन्न मार्गों में पहुँचाया जाय। ये मार्ग नासिका रन्ध्रों से होकर फेफड़ों के माध्यम से रक्त तक, त्वचा के रोम-कूपों से रक्तवाही नलिकाओं तक एवं गन्ध के माध्यम से सीधे मानस तक- इन रूपों में हो सकते हैं। यज्ञाग्नि के माध्यम से औषधि की सूक्ष्म शक्ति को उभारा जाता है और रोगी को अधिक से अधिक लाभ पहुँचाने की प्रक्रिया को सम्भव बनाने का प्रयास किया जाता है। यही प्रयोग होम्योपैथी में पोटेन्सी बढ़ाकर औषधि दिये जाने के रूप में सम्पन्न होता है। खरल करके औषधि के कणों को सूक्ष्म बनाकर जहाँ तक सम्भव हो, उनकी प्रभाव क्षमता को उभारा जाता है।

“फिफ्टी रीजन्स फॉर मायबिइंग होम्योपैथ” नामक पुस्तक के लेखक डॉ. जे. सी. बर्नेट अपने समय में इंग्लैण्ड की ख्याति मूर्धन्य ऐलोपैथिक चिकित्सकों में से एक थे। इस पुस्तक में उन्होंने अनेकों ऐसे रोगियों का हवाला दिया है जो एलोपैथी से ठीक न हो पाये किन्तु होम्योपैथी से ठीक हो गए। डॉ. जेम्स टाइलर कैण्ट ने अपनी पुस्तक “लेसर राइटिंग्स एण्ड क्लीनिकल केसेज” में ऐसे अनेकों रोगियों का विवरण है जो विचित्र रोगों से पीड़ित थे या मरणासन्न थे लेकिन सूक्ष्मीकृत औषधियों के प्रयोग से ठीक हो गए।

डॉ. एन.एम. चौधरी से अपनी पुस्तक- “सिस्टेमेटिक मटेरिया मेडीका” में तथा डॉ. नैश ने भी ऐसे अनेकों रोग प्रकरणों का वर्णन किया है जिनमें सामान्यतया उपलब्ध काष्ट औषधियों के सूक्ष्मीकृत प्रयोगों से कई असाध्य रोग ठीक हो गए। “ब्रिटिश होम्योपैथी जरनल” एवं “अमेरीकन केमीकल सोसायटी जनरल” ने भी अपने शोध निष्कर्षों में ऐसे प्रमाण दिये हैं जिनसे सिद्ध होता है कि पदार्थ में छिपा अविज्ञात आयाम इस चिकित्सा प्रक्रिया में उभरकर आ जाता है।

रसायन शास्त्र एवं भौतिकी के ज्ञात नियमों के आधार पर इस सिद्धान्त को नहीं समझा जा सकता। सूक्ष्मीकरण की इस मान्यता को भारतीय दर्शन ने आदिकाल से ही महत्व दिया है एवं अग्निहोत्र-यजन प्रक्रिया के रूप में उसकी स्थूल स्थापना की है। आप्त मान्यता है कि प्रत्येक पदार्थ अपने भौतिक एवं रासायनिक गुणों के अतिरिक्त भी कुछ विशेषताएँ रखता है जो उसके स्थूल- दृश्यमान गुणों से कहीं अधिक समर्थ, सशक्त, बेधक सामर्थ्य वाली है। उन्हें पदार्थ का सूक्ष्म शरीर कहा गया है व इनको निखारने की प्रक्रिया का सूक्ष्मीकरण। अथर्व वेद में स्थान-स्थान पर ऐसे सन्दर्भ मिलते हैं जिनसे इस मान्यता की पुष्टि होती है कि पदार्थ की सभी विशेषताओं का समुच्चय उसका सूक्ष्म शरीर ही है।

होम्योपैथी ने प्रकारान्तर से इसी तथ्य को महत्व दिया है कि पदार्थ की सूक्ष्म शक्ति उसके रासायनिक गुणों पर आधारित नहीं है, अपितु उससे भिन्न व स्वतन्त्र है। सूक्ष्मीकृत करने पर जब दवा में अणुओं का अस्तित्व तक संदिग्ध हो जाता है, तब भी सूक्ष्म गुण उसमें विद्यमान रहते ही नहीं अपितु और भी अधिक प्रखर हो जाते हैं।

होम्योपैथी व यज्ञोपचार का यह अद्भुत मात्र यह प्रतिपादित करने के लिये दर्शाया गया कि पदार्थ अपने सूक्ष्म रूप में कितना प्रभावशाली होता है। स्थूल रोगों- मनोविकारों के उद्गम केन्द्र तक मात्र सूक्ष्म की ही पहुँच हो सकती है। उस दृष्टि से यज्ञोपचार पद्धति पूर्णतः निरापद, अत्यधिक प्रभावशाली है। प्रयोग परीक्षण तो इस दिशा में आधुनिक यन्त्रों की मदद से ब्रह्मवर्चस् में चल ही रहे हैं, इसकी चमत्कारी फलश्रुतियों से अगणित व्यक्ति लाभान्वित होते देखे जा सकते हैं। सूक्ष्मीकरण पर आधारित इस विधा को प्रतिष्ठित स्थान दिलाने के लिए अभी और भी सशक्त प्रयासों की आवश्यकता है ताकि भारतीय संस्कृति के इस महत्वपूर्ण अध्यात्म प्रयोग को वैज्ञानिक मान्यता दी जा सके- सर्वसाधारण के उपचार हेतु इसका प्रचलन सम्भव हो सके।

First 40 42 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • ‘प्रज्ञा’ मानव को प्राप्त दैवी अनुदान
  • आत्मज्ञान की उपलब्धि- अमरत्व की सिद्धि
  • Quotation
  • ईश्वर विकास का चरम बिन्दु है।
  • परब्रह्म की सत्ता के कारण और प्रमाण
  • दैवी अनुदानों का सच्चा अधिकारी कौन?
  • परिवर्तन- सृष्टि की एक शाश्वत विधि व्यवस्था
  • सपनों का जमघट (kahani)
  • ऊर्जा का संचय एवं सुनियोजन
  • Quotation
  • मनोनिग्रह- सबसे बड़ा पुरुषार्थ
  • व्यामोहग्रस्त का उपदेश (kahani)
  • चिन्तन व्यवस्थित हो, विधेयात्मक हो
  • Quotation
  • सदाशयता की महत्वाकाँक्षा हर दृष्टि से हितकर
  • रोम की जेल (kahani)
  • विचार संप्रेषण की अद्भुत शक्ति सामर्थ्य
  • Quotation
  • आत्मबोध से ही जीवन सम्पदा की सार्थकता
  • विलक्षण सामर्थ्य का समुच्चय यह मानव शरीर
  • सिद्धान्त व्यवहार में उतरे तो ही सार्थक
  • ओजस्विता, तेजस्विता और मनस्विता का आन्तरिक भाण्डागार
  • गोताखोर (kahani)
  • मनुष्येत्तर प्राणियों में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय क्षमताएँ
  • मानवी पुरुषार्थ और कर्मफल के सिद्धान्त
  • परोक्ष से सम्पर्क स्थापित कर बहुत कुछ हस्तगत किया जा सकता है।
  • Quotation
  • मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है।
  • जीवेम् शरदः शतम्
  • सृजन शक्ति का प्रेरणा श्रोत- काम
  • Quotation
  • उद्विग्नता मनुष्य की प्राण घातक शत्रु
  • Quotation
  • स्मरण शक्ति की न्यूनता से चिन्तित न हों।
  • Quotation
  • आत्म-विश्वास जगायें- सफलता पायें
  • Quotation
  • आसार बताते हैं कि हिमयुग आने वाला है।
  • नजरें जो बदलीं तो नजारे बदल गये
  • शब्द ब्रह्म का साक्षात्कार एवं उसकी चमत्कृतियाँ
  • सूक्ष्मीकरण पर आधारित यज्ञोपचार पद्धति
  • रवीन्द्र बाबू की हत्या के लिए (kahani)
  • प्रलोभन की मृग मरीचिका एवं अपरिग्रह का नन्दन वन
  • अपनों से अपनी बात
  • यह धरती पावन बन जाये
  • यह धरती पावन बन जाये (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj