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Magazine - Year 1984 - Version 2

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परोक्ष से सम्पर्क स्थापित कर बहुत कुछ हस्तगत किया जा सकता है।

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दृश्य जगत में सज्जनता और सहायता की सद्भावनाएँ भी अनेक स्थानों पर अनेक व्यक्तियों द्वारा चरितार्थ की जाती हैं। दुर्घटनाग्रस्त लोगों की सहायता के लिए कितने ही उदार चेता दौड़ पड़ते हैं और पीड़ितों की सहायता करने को सामर्थ्य भर प्रयत्न करते हैं। भूकम्प, बाढ़, दुर्भिक्ष, महामारी जैसी विपत्तियाँ आती हैं। उनमें जहाँ एक ओर धन-जन की अपार हानि होती है वहाँ दूसरे प्रकार की सेवाभावी गतिविधियाँ भी दृष्टिगोचर होती हैं। मनुष्य के स्वभाव में भी कम नहीं किन्तु उदारता एवं सद्भावना से भी उस क्षेत्र को रिक्त नहीं कहा जा सकता।

आपत्ति काल न सही सामान्य अवसरों पर भी सद्भाव सम्पन्न व्यक्ति दूसरे की सेवा सहायता करने का प्रयास करते हैं। इसमें उन्हें आत्म-सन्तोष मिलता है। दूसरों को आगे बढ़ाने, ऊँचा उठाने का लाभ मिलता है। सुकृत्यों की प्रशंसा होती है और वैसा अनुकरण करने का अनेकों में उत्साह उत्पन्न होता है। प्याऊ, धर्मशाला, सदावर्त, तालाब, उद्यान, छात्रवृत्ति, अस्पताल, विद्यालयों आदि के सत्कृत्यों में कितने ही व्यक्ति अपना श्रम, समय और धन लगाते देखे गये हैं।

यह उदारता अदृश्य जगत में निवास करने वाली दिव्य आत्माओं में होती है, वे अपनी अहैतुकी कृपा बरसा कर अनेकों को कष्टों से छुड़ाती, सुखी बनाती तथा परामर्श सहयोग देकर समुन्नत बनाने का पुण्य परमार्थ करती रहती हैं। ऐसे अनुग्रह किस प्रकार प्राप्त किये जा सकते हैं, किन्हें मिलते हैं, कहाँ से मिलते हैं, क्यों मिलते हैं, इसका सुनिश्चित कारण तो अभी भी रहस्य के गर्भ में छिपा पड़ा है किन्तु ऐसी घटनाओं का घटित होते रहता सुनिश्चित है। उन्हें सुयोग, संयोग, वरदान आदि कुछ भी कहा जाय पर ऐसा घटित अवश्य होता रहता है। उसे किन्हीं अदृश्य आत्माओं की अहैतुकी कृपा अनुकम्पा का नाम दिया जा सके।

सोने की खान से सम्बन्धित एक स्वप्न 4 जुलाई 1891 की रात्रि नो दक्षिण अफ्रीकी विनफील्ड स्कॉट स्ट्राटन नामक व्यक्ति को दिखाई पड़ा। पिनफील्ड स्कॉट अपना व्यापार का धन्धा करता था, किन्तु दुर्भाग्यवश उसे व्यापार में इतना घाटा हुआ कि वह एक कौड़ी का भी आदमी नहीं रहा। दुःखी और उद्विग्न मन से इधर-उधर भटकने लगा। एक दिन इसी प्रकार भटकते हुए वह कोलेरेडो क्षेत्र के एक मैदान में जा पहुँचा और रात्रि वहीं बिताने का निश्चय किया। रात्रि को जब वह सो रहा था तो उसे एक स्वप्न दिखाई पड़ा। सपने में उसने देखा कि एक फरिश्ता आया है और उसे वैटिल पहाड़ पर जाने का रास्ता बता रहा है। एक जगह पर निशान लगाकर बता रहा है कि यहाँ सोने की खदान है, तुम इसे पाकर मालदार बन सकते हो।

स्ट्राटन के पास पैसा बिल्कुल ही नहीं था। अतः उसने इस अद्भुत स्वप्न की चर्चा अपने सम्पन्न मित्रों से की और उसे जमीन को खरीद लेने का आग्रह किया, किन्तु सभी ने उसका उपहास उड़ाया और मदद करने से इन्कार किया। इससे स्ट्राटन निराश नहीं हुआ। वह अकेला ही वहाँ पहुँचा। हाथ से खोदने पर ही उसे सोने का डला मिल गया। इसके बाद उसने किसी प्रकार धन जुटाया, वह क्षेत्र खरीदा और खुदाई शुरू कर दी। वहाँ पर विपुल सोने का भण्डार था। इससे स्ट्राटन अरबपति बन गया।

स्वप्न में पूर्वाभास की एक सशक्त घटना 4 जुलाई 1891 में संसार का प्रख्यात धनपति और सोने की खान के स्वामी विनफील्ड स्ट्राटन के साथ घटी। उन्होंने स्वप्न में स्पष्ट देखा कि वह सोये हुए स्थान से बैटल पहाड़ की ओर चला है और एक स्थान पर थोड़ा ही खोदा कि सोने की खान मिल गयी। स्वप्न में देखे गये उस स्थान तक विनफील्ड तत्काल चल दिया और निश्चित स्थान पर पहुँचकर वहाँ थोड़ा ही खुरचा था कि सोने की झलक मिल गयी। इस प्रकार जो सोने की खदान की पट्टिका स्ट्राटन के हाथ लगी, वह संसार में दूसरे नम्बर की खदान है।

हालैण्ड की ‘डच सोसाइटी फार साइकिक रिसर्च’ ने स्वप्नों की सत्यता पर काफी शोध की है। इनकी फाइलों में एक सामान्य व्यक्ति की घटना यों उल्लिखित है- 1947 के नवम्बर मास में उक्त डच नागरिक ने 3784 का अंक स्वप्न में कई बार देखा। इसका कुछ रहस्य न समझ में आने से वह बड़ा परेशान रहा। एक दिन वही नम्बर उसने एक लाटरी के टिकट पर देखा और वह टिकट खरीद लिया। मार्च 1948 में उसी टिकट पर लाटरी का प्रथम पुरस्कार मिला। तब उसे स्वप्न का रहस्य समझ में आया। वस्तुतः दमित वासनाओं की अभिव्यक्ति ही नहीं इसके आगे कुछ और है वह है चेतना का पूर्वाभास।

पुरातत्व वेत्ता प्रो. ह्विल प्रिक्ट एक प्राचीन शिलालेख का अर्थ समझने का जी तोड़ कोशिश करते किन्तु विफल रहते। स्वप्न में उन्होंने देखा कि बेबीलोन का पुरोहित उस शिलालेख का अर्थ समझा रहा है। नींद से उठकर वह अर्थ नोट कर लिया और संगति बैठ गयी।

वाणभट्ट की प्रसिद्ध पुस्तक “कादम्बरी” की रूप रेखा तथा रवीन्द्रनाथ ठाकुर को गीतांजली की कविताओं का आभास स्वप्न में ही मिला था।

सन् 1509 में आस्ट्रिया का शासक था वान मैकाऊ। रोम के दौरे पर जाते समय उसकी मृत्यु हो गई। शव प्रजाजनों के दर्शनार्थ रखा गया। इसी बीच पहरेदारों में से एक ने सपना देखा कि मृतक अपने साथ बहुत-सी सम्पत्ति लिये जा रहा है। डरते-डरते उसके यह सपना राज्य के उत्तराधिकारी को सुना दिया। जगह-जगह तलाशी होने के साथ-साथ मृतक के पहने हुए कपड़ों की भी जाँच पड़ताल हुई। आस्तीन के कफ में सिली हुई एक रसीद मिली। उससे पता चलता था कि उसने जर्मनी के एक बैंक में तीन लाख सोने के सिक्के गुप्त रूप से जमाकर रखे हैं। वह राशि उन दिन के हिसाब से 20 लाख डालर की थी। रसीद के आधार पर वह राशि उत्तराधिकारी को मिली। स्वप्न बहुत मूल्यवान् साबित हुआ।

सन् 1883 में इटली के सैन बुर्ज क्षेत्र में एक विचित्र भूकम्प युक्त विस्फोट हुआ। इससे अगणित इमारतें टूटीं ओर धन-जन की क्षति हुई। आश्चर्य की बात यह है कि नगर के प्रधान प्रार्थना कक्ष को चाक पर चड़े बर्तन की तरह घुमाया और बिना किसी क्षति पहुँचाये दूसरी जगह ज्यों का त्यों खड़ा कर दिया। जबकि मठ का अन्य भाग टूटकर विस्मार हो गया।

ट्यूविन नामक एक जर्मनी नागरिक सन् 1657 में पैदा हुआ और 1724 में मरा। इन 67 वर्षों में उसे अनेक बार प्राण घातक दुर्घटनाओं को सामना करना पड़ा पर वह हर बार सकुशल बच गया।

एक बार जंगली सुअर की मुठभेड़ में वह चारों खाने चित्त गिरा और खड्ड में गिर जाने पर किसी प्रकार बचा। एक बार बाढ़ क्षेत्र में दौरा करते समय उसका घोड़ा कीचड़ में फँसने पर गिरा। घोड़ा ऊपर, सवार नीचे। मुश्किल से प्राण बचे। एक बार डाकुओं ने उस पर दस गोलियाँ चलाईं पर लगी एक भी नहीं। एक बार बर्फीले पहाड़ के नीचे से गुजरते समय एक भारी हिमखण्ड ऊपर गिरा और तब तक दबा रहा जब तक कि बर्फ पिघल कर वह नहीं गयी। एक बार वह अन्धड़ में फँसा और राइन नदी में डूबने उतारने लगा। एक बार एक भारी पेड़ उस पर गिरा, पता चलने पर जब लकड़ी उठायी गयी तब वह नीचे से निकला। एक बार एक नाव से नदी में गिर पड़ा। ऐसी-ऐसी और भी अनेक दुर्घटनायें उस पर से गुजरीं पर हर बार मौत को चुनौती देते हुए वह जीवित बच गया।

वियना के प्रख्यात चित्रकार जोसेफ आयनागर के पीछे-पीछे मौत का साया फिरता था जाने अनजाने उसे कई बार मौत ने घेरा पर उसका अदृश्य एवं अपरिचित सहचर उसे हर बार बचाता रहा। सन् 1880 में वुडापेस्ट में उसने फाँसी लगाकर आत्म-हत्या की। बचाने के लिए वह अदृश्य सहचर पहुँचा और रस्से से नीचे उतार लिया। सन् 1848 में क्रान्तिकारियों के रूप में शासन ने उसे मृत्यु दण्ड दिया। तब भी उस अपरिचित कैमूनियन भिक्षु ने राजा से मिलकर रद्द कराया। अन्ततः उसने 68 वर्ष की आयु में अपने सीने में आप गोली मार कर आत्महत्या कर ली। अन्तिम संस्कार कराने के लिए भी वहीं भिक्षु उपस्थित रहा।

सन् 1953 की बात है फ्राँसीसी डयूक डिगाइज की हत्या के अपराध में जान पाल ट्रोट नामक एक व्यक्ति को मृत्यु दण्ड दिया गया। मारने का तरीका यह निश्चित किया गया कि उसके दोनों हाथ दोनों पैर चार अलग-अलग मजबूत घोड़ों से बाँध दिये जायें। घोड़े एक साथ दौड़ाये जायें ताकि अपराधी के चार टुकड़े हो जायें। नियत व्यवस्था के अनुसार सेना के बलिष्ठ घोड़ों को घुड़सवारों द्वारा दौड़ाया गया पर आश्चर्य यह है कि घोड़े आगे न बढ़ सके। कैदी इतना मजबूत था कि उसका कोई अवयव न तो उखड़ता था न ढीला पड़ता था। घोड़े तीन बार बदले गये। बारहों घोड़े जब असफल रहे तो उसे रिहा कर दिया गया।

मैसूर के राजा ने नई तोप के उद्घाटन के अवसर पर उस क्षेत्र के एक प्रख्यात साधु से आशीर्वाद माँगा। इनकार किये जाने पर राजा बहुत क्रुद्ध हुआ और साधु को उसी तोप की नली से बाँधकर उड़ा देने का हुक्म दिया। वैसा ही किया भी गया। पर साधु मरा नहीं। पहली बार जब उसे बारूद भरी नली ने उड़ाया तो 800 फुट ऊँचाई पर उछलकर वह दूर खड़े हाथी की अम्बी पर जा गिरा। पकड़कर लाया गया और दुबारा फिर उसे उसी प्रकार तोप से कसा और उड़ाया गया। इस बार वह एक दूरस्थ झोंपड़ी के छप्पर पर जा गिरा और साधु बच गया। तीसरी बार उसे फिर नहीं बाँधा गया।

फ्रांस के प्लोइरसैल नगर का निवासी कैसिमीर पालेमस नामक व्यक्ति अपने जीवन में तीन बार जलपोत की दुर्घटना में फँसा और तीनों बार अकेला बच गया। वह साधारण व्यापारी था और काम चलाऊ तैरना जानता था। 11 जुलाई 1875 में ‘जीएन्ने कैथेरिम’ नामक जहाज के जल समाधि लेने पर वह अकेला ही बच पाया। इसी प्रकार 4 सितम्बर 1880 में ट्रीयज फ्रेरीज और 1 जनवरी 1882 के एल. ओडियन जहाज डूबे। उनके भी सारे यात्री डूब गये किन्तु अकेला वही व्यक्ति किसी प्रकार अपनी जान बचा सकने में सफल हुआ।

लिली ने हर्बर्ट को लाख समझाया कि उसे बहुत बड़े संकट की आशंका है वह यात्रा न करे। किन्तु हर्बर्ट जलपोत रवाना होने वाला था। वह किसी का नौकर था अतः उसे जाना ही था। अतः कप्तान हर्बर्ट लिली से विदा लेकर आफिस पहुँचा आवश्यक कागजात लेकर जहाज पर गया और जहाज दमिश्क के लिए चल पड़ा आधी रात की नीरवता, अचानक तूफानी हवाओं ने जहाज को आ घेरा, तूफान की तेज रफ्तार ने जहाज चरमरा कर रख दिया था। अब जान बचाने का एक ही रास्ता था कि किसी तरह जहाज के पाल खोल दिये जायँ तो विपरीत दिशा में जहाज चला जायेगा जिससे तूफान का आघात नहीं लगेगा और जहाज डूबने से बच जायेगा किन्तु जो भी पाल खोलने जायेगा उसी को मौत के मुँह में गया समझो। हर्बर्ट ने सोचा कि मरना यों भी है अतः साहस बटोरकर डेक पर गया और पाल की तरफ बढ़ा ही था कि एक छाया रास्ता रोककर खड़ी हो गई ठहरो हर्बर्ट ऊपर गये तो प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा और देखते देखते उस छाया ने पाल खोल दिये जहाज की दिशा बदल गयी वह विपरीत दिशा में चलने लगा। आकृति हर्बर्ट के पास गुजरी और कहती निकल गयी कि “मैं तुम्हारी लिली हूँ” और अदृश्य हो गयी। जहाज का अफसर और साथी सभी हैरान थे कि इतनी आसानी व शीघ्रता से पाल इस भयंकर तूफान में कैसे खुल गये और हर्बर्ट भीगा भी नहीं किन्तु हर्बर्ट ने यह रहस्य किसी को नहीं बताया। दमिश्क से लौटने पर हर्बर्ट ने लिली को बताया कि तुम्हारे रोकने पर मैं नहीं रुका तूफान में तुमने हमारी सबकी जान बचा ली। लिली ने कहा कि तुम्हारे जाने के बाद मेरा अन्तःकरण व मन तुम्हारे साथ ही लगा रहा था।

सन् 1919 में लिवरपूल में जेम्स नामक एक व्यक्ति के साथ जो पहले कभी फौज में रह चुका था- एक घटना घटित हुई। लड़ाई के दौरान तोपों की भयंकर गर्जना के कारण उसके कान के पर्दे फट गए और वह बहरा हो गया था। पेंशन पर आ जाने के बाद एक रात उसने स्वप्न में देखा कि वह लिवरपूल के पवित्र सेंट विनिफ्रेड कुएँ के पास खड़ा होकर उसमें से जल निकालकर स्नान कर रहा है। जैसे ही पानी शरीर पर पड़ा कि शीत की सी कँपकँपी लगी और उसी क्षण उसकी नींद टूट गयी। वह हड़बड़ाकर उठ बैठा। पास में सो रहें उसके घर वालों ने पूछा- कौन? यह शब्द सुनते ही उसके जीवन में नया प्रकाश आ गया। उसने आश्चर्यपूर्वक बताया- मैं जैम्स, पर यह क्या हुआ, कैसे हुआ- जिस बहरेपन को डॉक्टर नहीं ठीक कर पाये वह एक स्वप्न ने ठीक कर दिया।

रेवरेण्ड फ्रीमैन विल्स की लंगड़ी टाँगें भी इस तरह स्वप्न में ठीक हुई थी। स्वप्न में विल्स ने देखा कि कोई एक फरिश्ता ने आकर उनकी टूटी हुई टाँगों पर प्रकाश की किरण इस तरह फेंकी जैसी कोई प्लाज्मा लाइट बेल्डिंग करते समय किसी धातु पर फेंकी जाती है। स्वप्न टूटते ही उसने अपनी टाँगों को पूर्ण स्वस्थ पाया। यह घटना भी स्वप्न सत्ता की सर्व समर्थता का बोध कराती है।

एक बार प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता रोमान नोवारों एक होटल में ठहरे हुए थे। उस होटल का स्वामी मर चुका था। उसकी सम्पत्ति की वसीयत न होने के कारण बड़ा लड़का सब हड़प जाना चाहता था, जिससे उसका छोटा लड़का बहुत दुखी था। उसने अपना दुख-दर्द नोवारो को सुनाया पर वह कुछ भी मदद करने में असमर्थ था। एक दिन रात को स्वप्न में उसने देखा कि एक आदमी होटल के उसी कमरे के एक आले की ओर इशारा कर लकड़ी से उस स्थान पर ठक्क-ठक्क कर रहा है। नोवारो की नींद टूटने पर उसने समझा कि चूहे गड़बड़ कर रहे होंगे। पर पुनः सोने पर वही दृश्य दिखाई दिया। नींद खुलने पर इस बार उसने आले के कागज हटाकर देखे तो एक कागज में वसीयत लिपटी रखी मिली। उसने वह वसीयत होटल के मालिक के छोटे लड़के को दे दी और तद्नुसार वह भी आधी जायदाद का स्वामी बन गया और बड़े लड़के की मनसा अपूर्ण ही रह गयी।

कुछ दिन पूर्व शिकागो के एक वकील का आश्चर्यजनक समाचार छपा कि जब वह अपने बिस्तर के पास जाता है तो उसे अजीब तरह की संगीत की आवाजें सुनाई देती हैं। अभी इसी आश्चर्य का विश्लेषण नहीं हो पाया था कि एक ऐसे व्यक्ति का पता चला, जिसे चलते-फिरते सर्वत्र संगीत ध्वनियाँ सुनाई दिया करती थीं। एक मनोवैज्ञानिक ने उसकी विस्तृत खोज की। उसने बताया कि यह युवक एक ऐसे कारखाने में काम करता है, जहाँ वस्तुओं में निकिल की पॉलिश की जाती है। निकिल के कुछ कण साँस द्वारा शरीर में चले जाते हैं और आपस में इस तरह सम्बन्ध स्थापित करते हैं, जिससे विद्युत तरंगें पैदा होने लगी हैं। यह तरंगें किसी निकटवर्ती रेडियो स्टेशन के प्रसारणों को पकड़ने लगती हैं। शरीर में मात्र पकड़ने वाली विशेषता ही बढ़ी इसलिए पकड़ में वैसे ही प्रवाह आये। हो सकता है कि किसी अन्य व्यक्ति में किसी अन्य प्रकार की पकड़ जागृत हो और उसे तद्नुरूप शब्द अनन्त आकाश में से सुनाई पड़ने लगें।

‘स्काटलैंड’ के ‘इनवर्नेस’ स्थान पर 5 फरवरी 1866 को एक लड़का पैदा हुआ। जिसका नाम रखा गया विलियम मैकफर्सन। वह जन्मान्ध होने के साथ ही हस्तहीन भी था फिर भी वह मून टाइप के उभरे हुए अक्षरों को जीभ की नोक से पढ़ लेता था।

फ्रांस की एक लड़की एनेट फ्रेलन की विचित्रता अपने समय में बहुचर्चित रही। अविज्ञात प्रश्नों के उत्तर उसकी त्वचा पर इस प्रकार उभर आये थे जैसे स्याही से लिखे गये हों। बारह वर्ष की अवस्था में ही उसके शरीर में इस प्रकार की अद्भुतता प्रकट होने लगी। अक्षर स्वयं ही उभरते जब उससे कोई गूढ़ प्रश्न पूछा जाता और कुछ ही मिनटों में अदृश्य हो जाते थे।

इस प्रकार की घटनायें न मनुष्य के अपने पुरुषार्थ का प्रतिफल है और न उसकी शरीर संरचना में उस प्रकार की सम्भावनायें हैं। इससे आगे बढ़कर एक अदृश्य लोक भी ऐसा है जहाँ से समय समय पर मनुष्य को आकस्मिक अप्रत्याशित सहायतायें उपलब्ध होती रहती हैं।

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