
विचार संप्रेषण की अद्भुत शक्ति सामर्थ्य
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अप्रत्यक्ष होते हुए भी विचारों की सामर्थ्य एवं प्रभाव प्रत्यक्ष अन्य शक्तियों से कहीं अधिक है। जीवन से उनका घनिष्ठ सम्बन्ध है। विकास अथवा पतन में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। परा मनोवैज्ञानिकों के अनुसार भौतिक जगत की चुम्बकीय तरंगों से विचार तरंगों की गति एवं शक्ति असंख्यों गुनी है। जिस विज्ञान के अन्तर्गत विचार तरंगों का स्वरूप एवं प्रभाव ज्ञात होता है उसे योग दर्शन में विचार वैगिकी कहते हैं। तत्व दर्शियों का मत है कि संसार में शुभ एवं अशुभ विचार तरंगों का निरन्तर प्रसारण होता है जिनमें त्रिविधि गुण विकार मिश्रित होते हैं। जिस प्रकार प्रकाश तरंगों में तीव्रता, तरंग दैर्ध्य तथा आवृत्ति होती है उसी प्रकार विविध तरह की विचार तरंगों में विविध प्रकार की तीव्रता, तरंग दैर्ध्य एवं आवृत्ति होती है। वे सूक्ष्म अन्तरिक्ष में घूमती रहतीं तथा चैतन्य संसार को प्रभावित करती हैं।
शुभाशुभ विचार तरंगें मनुष्य के मानसिक स्तर में परिवर्तन करने में भी समर्थ हैं, पर यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनके साथ किस स्तर की प्राण शक्ति जुड़ी हुई है। समर्थ प्रभाव क्षमता, प्रबल प्राण शक्ति पर ही अवलम्बित है। प्राण, शक्ति का संयोग पाकर विचार तरंगें घनीभूत होतीं तथा विचार प्रवाह का रूप ग्रहण कर लेती हैं। प्रवाह बन जाने पर उनकी गति एवं सामर्थ्य असीम हो जाती है। प्राण सम्पन्न व्यक्तियों की प्रभाव क्षमता अन्यों की तुलना में कहीं अधिक होती है। अपनी ओर वे असंख्यों को आकर्षित करते तथा अपने साथ मनचाही दिशा में चलने को विवश कर देते हैं। वह दिशा सृजन और ध्वंस दोनों ही की हो सकती है। महापुरुष अपनी उस सामर्थ्य का उपयोग सृजन में करते हैं जबकि हिटलर, मुसोलिनी जैसे क्रूर अति मानव ध्वंस में उस शक्ति को गँवाते देखे गए हैं।
तत्वदर्शी ऋषियों का मत है कि त्रिगुणात्मक प्रभावों के अनुरूप मनुष्य के शरीर से अनेकों प्रकार की रश्मियाँ निकलती रहती हैं। धर्म ग्रन्थों में इन्हें आभा मण्डल कहा गया है। किर्लियन फोटोग्राफी के माध्यम से विचार तरंगों की फोटोग्राफी सम्भव हो गयी है। उससे पता चला है कि भावनात्मक संवेगों के अनुरूप प्रभा मण्डलों के रंग रूप में भी परिवर्तन होता रहता है। हर व्यक्ति का अपना अलग प्रभा मण्डल एवं स्तर होता है। प्रभा मण्डल में दूसरों को आकर्षित अथवा विकर्षित करने की विशेषता होती है। आन्तरिक संवेगों, विचारों एवं भावों के परिवर्तन से प्रभा मण्डल भी बदलता रहता है। विचार तरंगों में अगणित प्रकार के रंग रूप होते हैं वे अलौकिक और लौकिक स्तरों में विभक्त होती हैं। वासना, घृणा, द्वेष एवं प्रतिशोध की विचार तरंगें काली होती हैं जबकि भय एवं आतंक की विचार तरंगें भूरे रंग की होती हैं। चमकीले लाल रंग की विचार तरंगें क्रोध की होती हैं। प्रेम की विचार तरंगें गहरे लाल रंग की, वासना-जनित प्रेम की तरंगें भूरे लाल रंग की, अहंकार एवं महत्वाकाँक्षा की विचार तरंगें चमकीले नारंगी रंग की, बौद्धिक शक्ति तथा आन्तरिक पवित्रता का भाव दर्शाने वाली विचार तरंगें पीले रंग की, उच्च आध्यात्मिक भाव प्रकट करने वाली चमकीले हल्के नीले रंग की होती हैं। ऐसा विश्लेषण विभिन्न वैज्ञानिकों ने किया है। सूक्ष्म विचार तरंगों के स्वरूप का रहस्य समझना भी एक ऐसी विधा है जिसके विशेषज्ञ मनोविज्ञान के ज्ञाता नहीं, अतीन्द्रिय सामर्थ्य सम्पन्न योगी होते हैं।
समर्थ योगी, सिद्ध पुरुष, व्यक्ति की आकृति देखकर उसकी मनः स्थिति एवं मन में चल रहे विचारों को बिना बताये जान लेते हैं। वस्तुतः इसका परिचय उन्हें उस आभा मण्डल को देखकर मिल जाता है जो उस व्यक्ति के इर्द-गिर्द छाया रहता है जो सामान्यतया अन्य व्यक्तियों को नहीं दिखायी देता। पर योगियों की- सिद्ध पुरुषों की अन्तर्दृष्टि उस ह्यूमन औरा के आधार पर उसके मन में चल रहे भले बुरे विचारों को जानने में समर्थ हो जाती है। कितने ही उसे बता भी देते हैं। जिनका अन्तःकरण निर्मल है उनमें भी विचारों के पढ़ने की सामर्थ्य विकसित हो सकती है। कितनी ही बार तो मनुष्य की बदली आकृति उसकी मनःस्थिति का परिचय दे देती है। क्रोध, भय, आवेश, दुःख, निराशा के भाव मनुष्य के मुखमण्डल पर स्पष्ट तैरते रहते हैं जिसे कोई भी विचारशील थोड़े प्रयत्नों से पढ़ने में सफल हो सकता तथा आन्तरिक स्थिति का चल रहे विचार प्रवाह के स्वरूप का वर्णन करने में समर्थ हो सकता है। कितनी बार तो मानवी आकृति भी उसकी प्रकृति का संक्षिप्त परिचय दे देती है। मनःचिकित्सक भी इसी आधार पर अपना आरम्भिक निदान शुरू करते हैं।
विचार तरंगों का आदान-प्रदान अथवा प्रसारण जिस प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न होता है उसे मनोवेत्ता ‘टेलीपैथी’ कहते हैं। इस प्रक्रिया में बिना इन्द्रियों का सहारा लिए विचार तरंगों को एक मन से दूसरे मन तक प्रेषित किया जाता है। इस क्रिया में देश काल सम्बन्धी भौतिक सीमाएँ आड़े नहीं आ पातीं। टेलीपैथी के सफल सम्प्रेषण में मन की एकाग्रता का असाधारण महत्व है। उस एकाग्रता का सम्पादन ध्यान के विविध आध्यात्मिक प्रयोगों में अधिक सफलता से होता है। प्रायः भौतिक उपचार उस उपलब्धि में अधिक सफल नहीं हो पाते। कारण कि जिस गहरे स्तर की एकाग्रता विचार सम्प्रेषण के लिए चाहिए वह भौतिक प्रयत्नों से नहीं बन पाती। शरीर एवं बुद्धि से परे जाकर मन की विचार तरंगों को प्राण-शक्ति के माध्यम से घनीभूत कर पाना ध्यान साधना के माध्यम से ही सम्भव हो पाता है।
इन दिनों वैज्ञानिक क्षेत्र में भी विविध प्रकार के प्रयोग टेलीपैथी पर चल रहे हैं। सुप्रसिद्ध रूसी वैज्ञानिक त्सियोलको वोस्की ने 1930 में यह कहा था कि निकट भविष्य में सफल एवं सुरक्षित अन्तरिक्ष यात्रा के लिए विचार सम्प्रेषण का ज्ञान आवश्यक होगा। सन् 1959 में अमरीकी आणविक पनडुब्बी नाटिलस द्वारा टेलीपैथी पर एक सफल प्रयोग किया भी गया। उस प्रयोग से यह सम्भावना प्रबल हो गयी कि मानव मस्तिष्कों के बीच मानसिक विचारों का आदान-प्रदान रेडियो संचार व्यवस्था से कहीं अधिक निर्बाध गति से चल सकता है। क्योंकि समुद्र के अत्यन्त निचले तल में रेडियो संचार व्यवस्था भंग हो जाती है पर ऐसा कोई व्यवधान मानसिक सम्प्रेषण में नहीं आने पाता। कारण कि इस संचार व्यवस्था में देशकाल की सीमाओं का प्रभाव नहीं पड़ता।
अमरीकी वैज्ञानिक डगलस डीन ने 1960 में एक नयी खोज की थी जिसका विवरण 1964 में वैज्ञानिकों ने एक सम्मेलन में प्रस्तुत किया। डीन एक विशिष्ट यन्त्र से यह प्रदर्शित किया कि विचार सम्प्रेषण द्वारा जब विचार तरंगों का प्रसारण किया जाता है तो उससे कोश-क्रियाओं पर भी प्रभाव पड़ता है तथा रक्त प्रवाह की गति में भी अन्तर आता है। डीन का कहना था कि प्रयोग की महत्वपूर्ण बात यह है कि विचार संप्रेषण प्रक्रिया अधिक सफलता से उनके बीच सम्पन्न हो सकती है जो भावनात्मक सम्बन्धों से अधिक घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं।
विश्व के मूर्धन्य वैज्ञानिक यह स्वीकार करने लगे हैं कि मानव शरीर टेलीविजन प्रणाली से भी अधिक समर्थ एक अद्भुत इलेक्ट्रानिक यन्त्र है। शरीर से भी अधिक सामर्थ्यवान उसकी मन मस्तिष्क की सूक्ष्म परतें हैं जो सूक्ष्म सम्वेदनाओं तथा वैचारिक तरंगों को आकर्षित विकर्षित करते रहते हैं। इस प्रक्रिया का सम्बन्ध सूक्ष्म शरीर, कारण रूप सूक्ष्म जगत तथा कार्यरूप स्थूल जगत के परस्पर परोक्ष सम्बन्धों से है।
विचार जगत एवं उसकी सामर्थ्य के सम्बन्ध जितनी जानकारियाँ मिली हैं, उसकी तुलना में अविज्ञात का क्षेत्र कहीं अधिक है। जिस दिन उसकी सामर्थ्य व पूरा परिचय मनुष्य को मिलेगा, वह एक अद्भुत समय होगा। यह उपलब्धि परमाणु के नाभिकीय शक्ति के आविष्कार से भी बड़ी होगी।