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Magazine - Year 1988 - Version 2

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Language: HINDI
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परोक्ष जगत के अस्तित्व को स्वीकारना ही पड़ेगा!

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बुद्धिवाद कहता है कि जो दृश्यमान नहीं है, काल्पनिक है परम्परावादी मान्यताओं पर आधारित है उस पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। प्रत्यक्षवाद हर उस धारण को तर्क तथ्य प्रमाणों की कसौटी पर कसना चाहता है जो किसी समुदाय में फैली या प्रचलन में मान्यता प्राप्त कर चुकी है। यह सब सही होने पर भी परोक्ष जगत का एक क्षेत्र ऐसा है जिसके प्रत्यक्ष प्रमाण न मिलने पर भी विज्ञान जगत को दबी जबान से यह मानने पर पर विवश होना पड़ा है कि मरणोत्तर जीवन एक अकाट्य सत्य है। परामनोविज्ञानी रहस्यवादी या एक ही शब्द में आँक्ल्टिस्ट्स की यही मान्यता है कि मृत्यु ही जीवन का अंतिम पड़ाव नहीं है। वरन् इसके बाद भी जीवन अनन्तता सतत् चलायमान यात्रा आरंभ रहती है। मरण तो इस प्रत्यक्ष नजर आने वाली काया का होता है जीवात्मा का नहीं चेतना अमर अमर है। गीताकार नैनंछिन्दन्ति शस्त्राणि के प्रतिपादन का सत्यापन करते हुए वे वैज्ञानिकों को बताते हैं कि इस जगत से परे एक अदृश्य परोक्ष जगत का भी अस्तित्व है। इसी जगत में ऐसे सूक्ष्म जीवी विचरण करते रहते हैं जिनका यदाकदा प्रकट होते अथवा जिनके द्वारा सम्पन्न क्रिया कलापों को देखा गया है। जिनने उन्हें प्रत्यक्ष देखा है संपर्क साधा है उन्होंने दिवास्वप्न नहीं देखा अपितु एक सच्चाई का सत्यापन किया है।

गुह्यविज्ञानी कहते हैं कि प्रत्यक्ष दिखाई न देने पर भी ऐसी सूक्ष्म आत्माओं के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। कई आत्माएं स्वतः ही बिना किसी प्रयास के अनिपेक्षित तरीके से लोगों दिखाई देने लगती है। उच्च श्रेणी की सदाशयी पितर आत्माएं तो संस्कारवान शरीरधारियों से संपर्क स्थापित कर उनकी सहायता उनका मार्ग दर्शन करती पायी गयी हैं। ये घटनाक्रम जिनके साथ भी घट है उन व्यक्ति की प्रामाणिकता पर संदेह नहीं व्यक्त किया जा सकता।

बहुधा ऐसी चर्चा करने वालों अथवा इनका प्रतिपादन करने वालों पर रूढ़िवादी होने का आरोप लगाया जाता रहा है। पर अब जब विज्ञान की साक्षियाँ भी समानान्तर परोक्ष जगत के अस्तित्व के पक्ष में प्रस्तुत होने लगी हैं, आरोपों का सिलसिला टूट-सा गया है।

इंग्लैण्ड के प्रख्यात परामनोविज्ञानी एण्ड्रयूगीन के अनुसार समय-समय पर ऐसी अनेक प्रामाणिक घटनाएं सामने आती रहती है जिनसे प्रेतात्माओं के अस्तित्व की पुष्टि होती है। उनका कहना है कि उद्विग्न अशांत आतुर विक्षुब्ध क्रुद्ध कामनाग्रस्त अतृप्त लोगों को ही प्रायः प्रेत बनना पड़ता है। शाँत चित्त सौम्य एवं सज्जन प्रकृति के लोग सीधी सादी जन्म मरण की प्रक्रिया पूरी करते व मुक्ति से पूर्व पितर बनकर सहायता करते रहते है।

विश्व के मूर्धन्य परामनोविज्ञानियों द्वारा किये गये प्रयोग परीक्षणों से अब यह सिद्ध हो गया है कि ऐसी आत्माओं का अस्तित्व प्रेत योनि में काफी लम्बे समय तक बना रहता है जिन्हें बरबस प्रतिबंधित कर के बहुत दिनों तक बंदी बना कर रखा और प्रताड़ित किया गया हो। ऐथेन्स की एक ऐसी ही प्रख्यात घटना है जो मरणोत्तर जीवन की सच्चाई को प्रकट करती है। ईसा से एक शताब्दी पूर्व की बात है कि इसी नगर के महल में एक वृद्ध पुरुष को देखा जाता था जिसके दोनों हाथ और पैर लोहे की जंजीरों से जकड़े रहते थे। समय समय पर उस जंजीर के खड़खड़ाहट की ध्वनि भी आसपास के वातावरण में प्रतिध्वनित होती रहती थी। उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार उस व्यक्ति को उक्त भवन में कैद करके रखा गया था तथा भयाक्रान्त स्थिति में ही उसकी वहाँ हत्या कर दी गई थी। तब से उसने उस महल को अपना निवास स्थान बना लिया। बिना किराये के भी तब से उसमें कोई भी रहना पसंद नहीं करता था।

प्रसिद्ध दार्शनिक ऐथनोडोरस ने उक्त घटना के रहस्य को समझने के लिए शोधकार्य आरम्भ किया। जैसे ही उनने उस भवन में प्रवेश किया तो उस प्रेतात्मा का उन्हें भी सामना करना पड़ा एक बार तो वे बुरी तरह भयभीत भी हो गये पर धैर्य नहीं खोया आखिर में भूत ने महल के आँगन में गड्ढा खोदा और उसी में विलुप्त हो गया। जब इस घटना की जानकारी जिलाधिकारी को दी गई तो उन्होंने उस स्थान की खुदाई के आदेश दिये। खोदने पर उस स्थान से जंजीर के जीवाश्म निकले जिन्हें समीपवर्ती संग्रहालय में सुरक्षित रख उस विक्षुब्ध आत्मा का धर्माचार्यों द्वारा यथाविधि अंतिम संस्कार कर दिया गया। तब से वह भवन रहने योग्य हो गया अब पर्यटक वहाँ यह देखने जाते हैं कि कैसे कोई स्थान भवन किसी विक्षुब्ध आत्मा के रहने से अभिशप्त हो जाता? हमारे देश की बात छोड़ दें इंग्लैंड व अमेरिका में ही ऐसे कितने भवन हैं जिन्हें अभिशप्त अभी भी माना जाता है जिनमें प्रेतात्माओं का निवास है यह वहीं समीप रहने वाले शपथ पूर्वक कहते हैं तथा जहाँ रहस्यवादियों ने भी जाँच पड़ताल कर यही निष्कर्ष निकाला है। यूरोप में सामंतों व राजाओं के ऐसे अनेकों किले निर्जन पड़े हुए हैं जिनमें कभी क्रूर शासक निवास किया करते थे, इतिहास जिनका साक्षी है। यह उन देशों का प्रसंग है जिन्हें विकसित प्रगतिशील कहा जाता है तथा जो विज्ञान व साधनों की दृष्टि से भी प्रगति के चरम शिखर पर है। फिर वे कैसे गुह्य विद्या को अप्रामाणिक ठहराते है। वस्तुतः वे चेतना के अस्तित्व को उसकी जानबूझकर स्वीकार नहीं करना चाहते क्योंकि इससे उनकी भोगवादी जीवन पद्धति पर चार्वाकवादी दर्शन शैली पर सीधा प्रहार पहुंचता है।

पर आँखें बन्द कर लेने से यह तो प्रमाणित नहीं होना हो जाता कि सूर्य का अस्तित्व ही नहीं है।

ऐरिक मैपल भूत-प्रेत विद्या का विशेषज्ञ समझा जाता है। अपनी इन विशेषताओं के कारण उन्होंने इंग्लैण्ड में विशेष ख्याति अर्जित की है। ऐसैक्स के समीपवर्ती रैकयुल्वर गाँव में घटी एक घटना के संबंध में जब उन्होंने वहां की जनता से पूछताछ की तो लोगों ने बताया है कि एक पेड़ के नीचे कुछ नवजात शिशुओं के रोने की आवाज सुनाई देती है। उनकी करुण चिल्लाहट ऐसी होती है कि गाँव वालों को रात्रि के समय ठीक तरह से सोने नहीं देती। मैपल ने इस दुखद संवेदना भरी ध्वनि को कई बार सुना तो सन् 1960 में भू गर्भ विज्ञानियों की सहायता से उस स्थान की खुदाई करवायी। खुदाई में अनेक मासूमों बच्चों की खोपड़ियां तथा शरीर के अन्य अंगों के अस्थि पंजर भी पाये गये। वैज्ञानिकों ने परीक्षण करने पर पाया है कि बच्चों के ये अस्थि पंजर कम से कम 1500 वर्ष पुराने है। एक बच्चे का कंकाल तो बिना किसी क्षति के भी उपलब्ध हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन बच्चों की हत्या तत्कालीन सैनिकों द्वारा धार्मिक प्रयोजनों की पूर्ति के लिए की गयी थी। देवताओं की प्रसन्नता हेतु नरबलि की घिनौनी परम्परा का प्रचलन यूरोप में ईसा से पूर्व बहुत अधिक था।

इसी तरह इंग्लैण्ड के नौरफाक नगर की एक आश्चर्यजनक घटना लोगों के कौतूहल का विषय बनी हुई है। प्रतिवर्ष 31 मई को अर्धरात्रि के समय रथ सवार एक व्यक्ति की छाया बैस्टविक गाँव से गुजरती है। उसमें प्रज्वलित अग्नि वहाँ के दर्शकों को स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। लोगों का कहना है कि सन् 1741 में सर गाँडफ्रे हैजलिट नामक व्यक्ति का विवाह बैस्टविक में ही बड़ी धूमधाम से संपन्न होने जा रहा था कि विद्वेषियों ने उन्हें रास्ते में ही रथ समेत जला डाला। बाद उन्हें बैस्टविक हाल में दफना दिया गया। तभी से उनकी मृतात्मा प्रतिवर्ष रात्रि में उसी निश्चित समय पर उस रास्ते पर इस तरह दिखाई देती है।

परामनोविज्ञानी एण्ड्रयूवन ने भूत-प्रेतों के 97 किस्मों को वैज्ञानिक विश्लेषण किया है उनका कहना है कि दो प्रतिशत भूत−प्रेत ऐसे हैं जिनकी अद्भुत अलौकिकता का रहस्य अभी तक नहीं समझा जा सकता है। दी रोमियो एरर नामक प्रसिद्ध पुस्तक में लायल वाट्सन द्वारा वर्णित न्यूयार्क की एक घटना ऐसी ही है जिसे सबसे अधिक प्रामाणिक एवं अद्भुत समझा जाता है सन् 1764 में न्यूयार्क के एक अस्पताल में चिकित्सक ने एक ऐसे व्यक्ति का शव-परीक्षण किया, जिसकी असामयिक मृत्यु हो गयी थी। विच्छेदन के समय कई चिकित्सकों द्वारा मृत्यु हुई प्रमाणित उस शव ने उछलना-फुदकना आरम्भ कर दिया और सहयोगियों के देखते देखते सर्जन का गला घोंट डाला। सर्जन की मृत्यु में देर नहीं लगी विक्षुब्ध मनः स्थिति की मृतात्मा द्वारा अपने स्थूल शरीर के माध्यम से किया यह कृत्य बड़ा ही आश्चर्यजनक उदाहरण है। बाद में पाया गया कि सर्जन की मृत्यु बाद शब भी ठण्डा हो गया दोनों का अंतिम संस्कार साथ साथ किया गया।

अकाल मृत्यु के सिद्धान्तों का व्यावहारिक प्रयोग परीक्षण करने वालों एडगर एलनपों का नाम सब से अग्रणी है उन्होंने ऐसी अनेकों घटनाओं का वर्णन किया है जिनसे मरणोत्तर जीवन एवं भूत-प्रेतों के अस्तित्व की सच्चाई प्रकट होती है दी फाल ऑफ हाउस ऑफ यूश रनाम पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि गृह स्वामी रौड्रिक यूशर को अपनी मृत बहन लेडी मैडेलीन की छाया बहुत ही डरावने आकार में दिखाई देती थी जिसके वस्त्रों पर रक्त के धब्बे थे। उसकी मृत्यु अपहरण के बाद बड़े ही नृशंस तरीके से किसी गुम्बज में दम घोंट कर की गई थी। इस दृश्य को उपस्थित जन समुदाय ने भी नजदीक से देखा था।

एडगर एलन के अनुसार सामान्यता जो महिला अथवा पुरुष हत्या या आत्महत्या का शिकार बनते हैं अथवा प्रतिशोध की भावना से कुँठित होकर शरीर त्याग कर बैठते हैं, वे ही विचित्र तरह की स्थिति में अपना स्वरूप प्रकट करते है।

पश्चिम जर्मनी में गुप्तचर विभाग के भूतपूर्व संचालक फ्रेडरिक हर्जेनरिथ ने प्रेतात्माओं की स्मृतियां को 1930 के अपने प्रकाशन में सचित्र वर्णन किया है। उनका कहना है कि कुछ मृतात्माएं व्यक्ति के मार्गदर्शन में पूरी तरह सहायक होती हैं तो कुछ स्थूल सहायताएं भी पहुँचाती है।

घटना लगभग 70 वर्ष पुरानी है। राजस्थान के मेवाड़ कस्बे में मंडेरा गाँव के दर्जी परिवार के एक महिला की मृत्यु प्रसव के तुरन्त बाद हो गई थी। पर अतृप्त अभिलाषाओं के कारण उसकी मृतात्मा रात्रि के समय अपने नवजात शिशु के पास आती और उसकी देखभाल करती। प्रातःकाल होते उसे स्नानादि कराकर वापस अदृश्य हो जाती। इसी अवधि में वह सास ससुर की एवं अपने पति की भी सेवा सुश्रूषा करती रहीं।

पिछले दिनों राजस्थान के ही चित्तौड़ जिले के अकोला गाँव में इसी तरह की एक घटना प्रकाश में आई है। एक जमींदार की पत्नी की प्रेतात्मा अपने बच्चे की परवरिश पूर्व की ही भाँति करती रहीं लोगों द्वारा जब उसे भागने को विवश किया गया तो अदृश्य होने से पूर्व उसने अपने पति को एक गुप्त खजाने का रहस्य बताया और साथ ही यह भी कहा की इसका सदुपयोग मात्र बच्चे के विकास में ही करें अन्यथा वे अपने स्वयं के धन से भी हाथ धो बैठेंगे।

ह्यूमन पर्सनालिटी एण्ड इट्स सरवाइवल ऑफ बाडिली डेथ नामक प्रसिद्ध पुस्तक के के मूर्धन्य लेख एफ॰ डब्ल्यू0 एच॰ मायर्स का अभिमत है कि मृतात्माएं मनुष्य की उस शक्ति की परछाई है जिनका सतत्-प्रवाह मरणोपरांत भी बना रहता है। इनसे संपर्क स्थापित करके मनुष्य लाभान्वित भी हो सकता है। प्रेतात्माओं की मुक्ति हेतु श्राद्धतर्पण का विधान इसी कारण भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग रहा है।

परोक्ष जगत का अस्तित्व मानने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि व्यक्ति की उत्कृष्ट उदात्त जीवन जीने के प्रति आस्थाएं मजबूत होती है वह आस्तिक बनता है ईश्वर के प्रति विश्वास दृढ़ होते चलने से सहज ही आचरण भी आदर्श बन पड़ता है। गुह्य विज्ञान डराता नहीं एक अविज्ञात किंतु यथार्थ लोक की यात्रा कराता है एवं व्यक्ति को श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

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