
व्यक्ति को माध्यम बनाती है समष्टि सत्ता
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
विज्ञान जगत में जिन खोजियों और आविष्कारों को श्रेय-सम्मान मिला, उन्हें सौभाग्यशाली कहा जाता है। गहन परिश्रम, मनोयोग और लगन के सत्परिणाम क्या हो सकते है, इसका उदाहरण देने के लिए भी उनके नामों का उत्साहवर्धक ढंग से उल्लेख किया जा सकता है। विषय वस्तुतः की गहराई में उतरने और ढूँढ़-खोज करने की प्रेरणा भी उस चर्चा से कितनों को ही मिलती है, इतने पर भी इस तथ्य को भुला न दिया जाना चाहिए कि उन आविष्कारों के प्रारंभिक रहस्य प्रकृति ही अपना अन्तराल खोल कर प्रकट करती और मूर्धन्यों को बनाती है। हाँ, यह अवश्य है कि इस प्रकार के प्रकटीकरण हर किसी के समक्ष उपस्थित नहीं होते। प्रकृति को भी पात्रता की परख करनी पड़ती है।
आविष्कारों-अनुसंधानों का उल्लेख पुस्तकों में जिस प्रकार वर्णित होता है वह तो बहुत बाद की स्थिति है, पर यदि उनका आरंभ जानना हो, तो यह तलाशना पड़ेगा कि इसके लिए मूर्धन्यों को आवश्यक प्रकाश प्रेरणा कहाँ से, किस प्रकार मिला? मूल में जाने पर यह ज्ञात होगा कि इसके लिए उनके मस्तिष्क में किसी प्रकार की पूर्व योजना या तैयारी नहीं थी। विचार अनायास ही उठे और उसके अनुसार जब क्रिया चल पड़ी, तो नूतन आविष्कार हो गये।
पिछले दिनों के महत्वपूर्ण आविष्कारों का इतिहास देखने से यह तथ्य और स्पष्ट हो जाता है। सन् 1619 की बात है। 23 वर्षीय वैज्ञानिक रेने डेस्कार्टिस मानसिक तनाव से गुजर रहे थे। कारण शोध सम्बन्धी समस्या थी। वे जिस गणित विज्ञान को एकीकृत करने की कल्पना सँजोये हुए थे, उसमें सफल नहीं हो पा रहे थे। गलती कहाँ हो रही थी, इसका पता चल नहीं पा रहा था। उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। इसी क्रम में एक दिन ब्राह्म मुहूर्त में एकाएक उन्हें एक नवीन प्रेरणा मिली। इस आधार पर नये सिरे से जब कार्यारंभ किया, तो वे सफल हुए। उनका गणित-विज्ञान संभव हुआ। इस घटना के बाद से उनके जीवन की दिशाधारा ही बदल गई। अधिकाँश समय वे सत्य की खोज में बिताने लगे। उत्तरार्ध जीवन में उनने एक नये दर्शन का विकास किया, जिसका प्रभाव लम्बे समय तक पश्मी विज्ञान जगत में बना रहा।
विज्ञान जगत में मूर्धन्य समझे जाने वाले वैज्ञानिक आइन्स्टीन का भी कहना था कि इस विश्व-ब्रह्मांड में आवश्यक ही कोई दिव्य चेतना काम करती है, जो समय-समय पर मानवी मन में प्रेरणा उभारती और उस दिशा में आवश्यक मार्गदर्शन देती है। इस संबंध में ये एक आप बीती घटना का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि एक बार उन्हें एक वैज्ञानिक गोष्ठी में किसी जटिल समीकरण का हल प्रस्तुत करना था। कई दिनों से वे इस सवाल में उलझे हुए थे पर कोई हल निकल नहीं पा रहा था। गोष्ठी से एक दिन पूर्व वे विचार मन स्थिति में बैठे थे और उसी पर चिन्तन कर रहे थे। अचानक उनके मन में विचार उठा कि जिस रीति से वे हल कर रहे हैं, वह वस्तुतः गलत है। उन्हें प्रेरणा के बाद व कागज कलम लेकर बैठ गये और सचमुच उस ढंग से समस्या सुलझ गई।
ब्रिटेन के भौतिकशास्त्री एवं प्रसिद्ध गणितज्ञ एड्रियन डाँब्स ने विभिन्न परीक्षणों एवं अनुसंधानों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि इस ब्रह्माण्ड में ऐसी सूक्ष्मशक्ति धाराएँ हैं जो उपयुक्त माध्यमों को समय-समय पर महत्वपूर्ण प्रेरणाएँ दिया करती है। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया है कि अधिकाँश वैज्ञानिक आविष्कारों के मूल में ऐसी सूक्ष्म सत्ताओं की प्रेरणाएँ ही कारणभूत रही है।