
दुर्गति का शिकार (Kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
एक लकड़हारा जंगल में लकड़ी काटने जाया करता था। एक निर्मल छाया वाले पेड़ के नीचे विश्राम करता। वहाँ बैठ कर भोजन भी करता। उसी पेड़ पर अदृश्य रूप से रहने वाले यक्ष से लकड़हारे की घनिष्ठता बढ़ गई। यक्ष विभिन्न रूप से उस बालक के साथ मनोरंजन करता रहता।
एक दिन प्रत्यक्ष प्रकट होकर यक्ष ने लकड़हारे से कहा मैं यक्ष हूँ। तुम्हें जो वरदान चाहिए माँग लो।
लकड़हारा लालची था। मेरे चार हाथ हो जायँ तो दुगनी लकड़ियाँ काट सकूँगा। दो सिर हो जाय तो उन दुगनी कटी लकड़ियों को दोनों सिर पर लाद भी ले जाया करूंगा। यह सोचकर उसने अपने चार हाथ और दो सिर हो जाने की वर याचना की। यक्ष ने उसका मनोरथ पूरा कर दिया। लकड़हारे को बहुत प्रसन्नता हुयी कि आज से ही आमदनी दुगनी बढ़ जायेगी और लोगों को अपने से दुगना दृष्टिगोचर होने की सम्पन्न प्राप्त कर सकूँगा।
शाम को लकड़हारा घर पहुँचा तो सभी लोग आश्चर्यचकित हो गये। उसकी इस अद्भुत आकृति को देखकर कुछ डरने लगे, कुछ ईर्ष्या करने लगे और कुछ उसे भूत प्रेत समझ कर डंडों से पीटने लगे।
इस दुर्गति से घिर जाने पर उसका लकड़ी काटने का स्वाभाविक काम भी छूट गया। लोग पीछा ही नहीं छोड़ते थे। अन्ततः उसी हैरानी से उसकी मृत्यु हो गई।
सामान्य जनों के बीच समरूप बनकर ही रहना चाहिए। जो अपने को असाधारण प्रकट करना चाहते हैं, वे दुर्गति का शिकार होते हैं।