• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • तुम उसे अवश्य पा लोगे
    • ‘विश्ववारा’ भारतीय संस्कृति
    • जिस मरने से जग डरें, मेरे मन आनन्द
    • Quotation
    • भाषा पर गर्व (Kahani)
    • अचेतन की ढलाई के चमत्कारी परिणाम
    • Quotation
    • जी तोड़ मेहनत का जादू (Kahani)
    • गुणसूत्र दर्पण हैं बहिरंग में विकृति के
    • आत्म परिशोधन (Kahani)
    • नाम -यश का मोह, कितना झूठा-कितना सच्चा
    • ज्योतिर्विज्ञान को समझें , इस विधा का लाभ लें
    • अतीत की वापसी
    • Quotation
    • देखें , सार्थक एवं सोद्देश्य सपने
    • सफाई और व्यवस्था से मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास की क्षमता बढ़ती है (Kahani)
    • सुपात्र बने तो दैवी अनुकम्पा बरसे
    • अहंकारी दुर्योधन (Kahani)
    • यो यच्छृद्धः स एव सः
    • कौरवो की आवभगत (Kahani)
    • यह दिवा-स्वप्न नहीं, ‘काल’ का लीला -सन्दोह है।
    • Quotation
    • सविता की स्वर्णिम प्रकाश-साधना सरल भी और निरापद भी
    • सन्त ज्ञानेश्वर (Kahani)
    • हारे को हरिनाम
    • तीन तस्वीरें (Kahani)
    • आनन्द की देवी
    • व्यवस्था बनाएगा, प्रकृति का अनुशासन
    • प्रकृति के साथ विवेकसम्मत व्यवहार करें
    • मेरी और टॉमस का दाम्पत्य जीवन (Kahani)
    • उद्धव स्वार्थपरता की पराकाष्ठा है यह
    • पारिवारिक सहकार (Kahani)
    • एक प्रतिभावान अभीष्ट है या कई अनगढ़
    • Quotation
    • मगध-सम्राट अजातशत्रु (Kahani)
    • आइए! इक्कीसवीं सदी का स्वागत हरीतिमा से करे।
    • गांधी जी (Kahani)
    • बुद्धिवान बने कि प्राज्ञवान
    • असामान्य समय हेतु असामान्य तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • किसी की उपेक्षा न करें(Kahani)
    • महर्षि ने जानी नारी की पार
    • लोकनायक ही नवसृजन कर पायेंगे
    • पाठकों का स्तम्भ- - जिज्ञासाएँ आपकी - समाधान हमारे
    • मेरा आत्मावलोकन
    • नेपोलियन (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात - अब आशा की एक ही किरण बाकी रह गयी है।
    • Quotation
    • ‘अखण्ड ज्योति’ का आलोक जन-जन तक पहुँचे
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • तुम उसे अवश्य पा लोगे
    • ‘विश्ववारा’ भारतीय संस्कृति
    • जिस मरने से जग डरें, मेरे मन आनन्द
    • Quotation
    • भाषा पर गर्व (Kahani)
    • अचेतन की ढलाई के चमत्कारी परिणाम
    • Quotation
    • जी तोड़ मेहनत का जादू (Kahani)
    • गुणसूत्र दर्पण हैं बहिरंग में विकृति के
    • आत्म परिशोधन (Kahani)
    • नाम -यश का मोह, कितना झूठा-कितना सच्चा
    • ज्योतिर्विज्ञान को समझें , इस विधा का लाभ लें
    • अतीत की वापसी
    • Quotation
    • देखें , सार्थक एवं सोद्देश्य सपने
    • सफाई और व्यवस्था से मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास की क्षमता बढ़ती है (Kahani)
    • सुपात्र बने तो दैवी अनुकम्पा बरसे
    • अहंकारी दुर्योधन (Kahani)
    • यो यच्छृद्धः स एव सः
    • कौरवो की आवभगत (Kahani)
    • यह दिवा-स्वप्न नहीं, ‘काल’ का लीला -सन्दोह है।
    • Quotation
    • सविता की स्वर्णिम प्रकाश-साधना सरल भी और निरापद भी
    • सन्त ज्ञानेश्वर (Kahani)
    • हारे को हरिनाम
    • तीन तस्वीरें (Kahani)
    • आनन्द की देवी
    • व्यवस्था बनाएगा, प्रकृति का अनुशासन
    • प्रकृति के साथ विवेकसम्मत व्यवहार करें
    • मेरी और टॉमस का दाम्पत्य जीवन (Kahani)
    • उद्धव स्वार्थपरता की पराकाष्ठा है यह
    • पारिवारिक सहकार (Kahani)
    • एक प्रतिभावान अभीष्ट है या कई अनगढ़
    • Quotation
    • मगध-सम्राट अजातशत्रु (Kahani)
    • आइए! इक्कीसवीं सदी का स्वागत हरीतिमा से करे।
    • गांधी जी (Kahani)
    • बुद्धिवान बने कि प्राज्ञवान
    • असामान्य समय हेतु असामान्य तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • किसी की उपेक्षा न करें(Kahani)
    • महर्षि ने जानी नारी की पार
    • लोकनायक ही नवसृजन कर पायेंगे
    • पाठकों का स्तम्भ- - जिज्ञासाएँ आपकी - समाधान हमारे
    • मेरा आत्मावलोकन
    • नेपोलियन (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात - अब आशा की एक ही किरण बाकी रह गयी है।
    • Quotation
    • ‘अखण्ड ज्योति’ का आलोक जन-जन तक पहुँचे
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


सविता की स्वर्णिम प्रकाश-साधना सरल भी और निरापद भी

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 22 24 Last
वृक्ष -वनस्पतियों की तरह मनुष्य जीवन की एक प्रमुख आवश्यकता प्रकाश की है प्रकाश के साथ गर्मी भी जुड़ी होती है दोनों के समन्वय से ही विस्तार और हलचल का लाभ मिलता है इसके अभाव में जड़ता छाने लगेगी और विकास -विस्तार का क्रम अवरुद्ध हो जाएगा। सौरमंडल को ही ले तो उसके सदस्य अधिक दूरवर्ती नेपच्यून, प्लूटो, यूरेनस गह और उनके उपग्रह सूर्य प्रकाश का वैसा लाभ नहीं पाते जैसा कि समीपवर्ती पृथ्वी आदि को मिलता है। यही कारण है कि उन दूरवर्ती ग्रहों में ठण्डक की चरम सीमा है वहां न जीवन है न वनस्पति । गति भी उनकी धीमी है दिन में अर्थात् प्रकाश में प्राणियों और वनस्पतियों को गतिशील रहते तथा विकसित होते देखा जाता है जबकि रात्रि के अंधेरे में सर्वत्र सन्नाटा छाया रहता है और प्रगति के हर क्षेत्र में विराम जैसा लग जाता है।

सूर्य को जीवन कहा गया है। प्रकाश का प्रमुख स्त्रोत यही है। वैदिक प्रतिपादन में इसे ही इस जगत की आत्मा माना गया है पुराणों में आदित्य को पति और पृथ्वी को पत्नी के रूप में वर्णित किया गया है और प्राणियों की उत्पत्ति इन्हीं दोनों के सुयोग से सम्भव हुई बतायी गयी है। इस तथ्य की पुष्टि अब आधुनिक अनुसंधानकर्ता विज्ञानवेत्ताओं ने भी कर दी है। उनका कहना है कि धरती पर जीवन का अवतरण स्थानीय रासायनिक सम्पदा के साथ सूर्य ऊर्जा है यदि यह सुयोग न बना होता तो फिर नेपच्यून प्लूटो आदि ग्रहों की तरह धरती भी शून्य तापमान से नीचे की स्थिति में रहकर निर्जीव स्थिति में दिन गुजार रही होती। यह सूर्य की प्रकाश ऊर्जा ही है जो धरती को शस्य-श्यामला बनाये रखने के साथ ही उसे जीवधारियों से भी आबाद रखे हुए हैं।

प्रकाश और ताप सूर्य की दो प्रमुख विशेषताएं है इन दोनों को अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। प्रकाश देखने में सामान्यतया सफेद चमक के रूप में दिखाई देता है पर विश्लेषण करने पर भौतिकशास्त्रियों ने पाया है कि उसके अंतराल में कुछ विशिष्ट शक्तिधाराओं का समुच्चय सन्निहित है जिन्हें कलर या रंग कहते हैं।सूर्य किरणों का विश्लेषण करने पर उन्हें सात विशेषताओं से युक्त सात रंगों के रूप में देखा गया है क्योंकि सूर्य किरणों में सात रंग है इसलिए गायत्री के देवता सविता को सात अश्वों के रथ पर सवार होकर परिभ्रमण करते हुए शास्त्रों में निरूपित किया गया है। सूर्य की यह प्रकाश रश्मियां सात रंगों के रूप में जब धरती पर उतरती हैं तो वे सब अपनी-अपनी विशेषता से युक्त होती है उन सबके पृथक-पृथक प्रभाव मानव मन एवं शरीर पर पड़ते हैं। पदार्थ भी जिन किरणों को अधिक मात्रा में अवशोषित करते हैं वह उसी रंग के दृष्टिगोचर होने लगते हैं वस्तुतः यह मनुष्य की आंखों की सीमित क्षमता ही है जिसके कारण प्रकारु केवल सफेद ही दीखता है। अन्यथा उसमें कई वर्णों का सम्मिश्रण हैं जिनमें सात प्रमुख रूप से उभरकर सप्तवर्णी इन्द्रधनुष के रूप में क्षितिज पर कभी-कभी दिखाई दे जाते हैं प्रिज़्म द्वारा बने स्पैकट्रम -वर्णक्रम में भी यह रंग प्रतिबिम्बित होते हैं।

सूर्य किरणों के माध्यम से धरती पर आने वाले सात रंगों को सप्त अश्व कहा गया है और उस रथ पर सवार होकर उनके परिभ्रमण का वर्णन किया गया है। सूर्योपनिषद्, सूर्यपुराण आदि आर्ष ग्रन्थों में इसका विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया गया हैं कूर्म पुराण में सूर्य की अमृतमयी रश्मियों का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए यह भी बताया गया है कि कौर से ग्रह किसी-किस रश्मि द्वारा तृप्त होते हैं। साम्बपुराण के अध्याय 8 में सूर्य रश्मियों का विस्तृत उल्लेख है। उसके अनुसार सूर्य के शुभ्र प्रकाश में हजारों रश्मियां हैं जिनमें से तीन सौ देवलोक पर प्रकाश फैलाती है तथा तीन सौ किरणें पृथ्वी पर एवं चार सौ किरणें चान्द्रमस नामक पितरलोक पर प्रकाश बिखेरती है इन्हीं में से चार सौ किरणें जल बरसाती है तीस किरणें शीत उत्पन्न करती है इन्हीं रश्मियों से औषधियां प्राणवान बनती हैं इसी में आगे कहा गया है कि यह प्रकाश किरणें सर्वव्यापक है इन्हीं के कारण दिन-रात, सर्दी-गर्मी, वर्षा आदि का वातावरण बनता है समस्त ग्रह तथा नक्षत्र मण्डल सूर्य किरणों से उत्पन्न होते और उसी में प्रतिष्ठित -अधिष्ठित रहते हैं।

सूर्य के सहस्रों रंगों वाली प्रकाश किरणों में सात रंग प्रमुख हैं सात वार सात रस, सप्त स्वर, सात रूप, सप्त धातु आदि सभी इन्हीं सप्तवर्णी किरणों के आधार पर प्रतिष्ठित है सूर्य चिकित्सा विज्ञानियों ने इन सप्तवर्णी किरणों का सम्बन्ध सात दिनों एवं उनसे सम्बन्धित ग्रह-मंडलों तथा उनके रंगों से बिठाया है इस प्रकार सूर्य का सम्बन्ध रविवार से है, जिसका रंग तप्त रक्त वर्ण का बताया गया है। सोमवार का चन्द्रमा से माना है, जिनकी प्रकाश किरणों का रंग शीतल-नारंगी है मंगलवार का’मास ‘ अर्थात् मंगल ग्रह से तथा उससे निस्मृत किरणों को पीले रंग की और बुधवार का ‘मर्करी’ अर्थात् बुध ग्रह से सम्बन्धित माना है जिससे निकलने वाली किरणों का रंग हरा होता है। गुरु या ‘ज्यूपिटर’ का सम्बन्ध बृहस्पतिवार से हैं जिससे आसमानी रंग की किरणें निकलती है ‘वेनस’ अर्थात् शुक्र ग्रह शुक्रवार से सम्बन्धित है और उससे निकले वाली किरणों का रंग नीला होता है शैटर्न अर्थात् शनिग्रह शनिवार से जुड़ा हुआ है और उससे निस्सृत होने वाली किरणें बैगनी रंग की होती है। राहु एवं केतु से क्रमशः गहरी बैगनी और इन्फ्रारेड किरणें निकलती है इन सबके अपने - अपने महत्व व प्रभाव है।

साम्बपुराण के अनुसार , सुर्य की हजारों रश्मियां है जिनमें सात प्रमुख है। यह सात प्रकाश रश्मियां ही समस्त ग्रह नक्षत्रों की संचालक एवं प्राणिमात्र का प्राण है इन प्रकाश किरणों के नाम क्रमशः (1) सुषुम्ना (2) सुरादना (3) उदन्वसु-संयद्वसु (4) विश्वकर्मा (5) उदावसु (6) विश्वव्यचा -अखराद् तथा (7) हरिकेश है। । इन्द्रधनुष में या त्रिपार्श्व काँच -’प्रिज़्म’ से वर्णक्रम नारंगी पीली हरी आसमानी नीली बैगनी रंग की दिखाई देती है इन्हें ही अंग्रेजी अक्षरों कढ्ढक्चत्रंघह्रक्र के रूप में अंकित किया जाता है उक्त प्रकाश किरणों के कार्य क्रमशः इस प्रकार बताये गये। है। ‘सुषुम्ना तथा सुरादना’ किरणें चन्द्रमा की कलाओं पर नियंत्रण करती है। कृष्णपक्ष में कलाओं को घटाने और शुक्लपक्ष में उनकी वृद्धि करने में इन्हीं किरणों की भूमिका होती है समुद्र में ज्वार -भाटे लाने एवं प्राणियों -विशेषकर मनुष्य को प्रभावित करने में यह किरणें अहम् भूमिका निभाती हैं चन्द्रमा कर अमृततुल्य शीतल किरणों का निर्माण इन्हीं दे प्रकार की सूर्य किरणों से होता है सूर्य की तीसरी रश्मि ‘उदन्वसु ‘ से लाल रंग के मंगल ग्रह का निर्माण हुआ है। यह किरणें मनुष्य सहित समस्त जीवधारियों के शरीर में रक्त संचालन की अधिष्ठात्री मानी गयी है। लाल रंग की सूर्य किरणें हमारे रक्त दोषों को दूर करती तथा आरोग्य एवं ओजस, तेजस प्रदान करती है।

‘विश्वकर्मा’ नामक चतुर्थ रश्मि सूह से बुध ग्रह का निर्माण हुआ हैं मनुष्य के लिए यह ग्रह शुभ कारक माना गया है। इस प्रकाश रश्मि का उपयोग करके मनुष्य मानसिक उद्विग्नता से छुटकारा पा सकता है इसी तरह उदावसु नामक किरणें बृहस्पति का निर्माण करती है। ज्योतिर्विदों के अनुसार यह गह प्राणिमात्र के लिए अभ्युदयकारक है। मनुष्य के उत्थान-पतन में इस ग्रह की अनुकूलता-प्रतिकूलता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ‘उदावसु’ किरणों का सेवन प्रतिकूलता का शमन करता और अनुकूल वातावरण का सृजन करता है। शुक्र एवं शनि-यह दोनों ही ग्रह सूर्य की ‘विश्वव्यचा ‘ नामक प्रकाश किरण से निर्मित हुए हैं शुक्र वीर्य के अधिष्ठाता गाने गये है। शनि को मृत्यु का देवता कहा जाता है इस प्रकार जीवन और मृत्यु का नियंत्रण ‘विश्वव्यचा’ किरणें द्वारा होता है इसका सेवन करने वाले व्यक्ति पूर्ण दीर्घायुष्य प्राप्त करते और स्वस्थ बने रहते हैं । ‘हरिकेश’ नामक सातवीं सूर्य किरण से समस्त नक्षत्रों की उत्पत्ति हुई है। मानव जीवन में आचरति शुभाशुभ कर्मों का प्रतिफल प्रदान करने में इसी किरण की प्रमुख भूमिका होती है।

सूर्योपनिषद् में समूचे जगत की उत्पत्ति एवं पालन में एकमात्र कारण सूर्य को ही बतलाया गया है। और उसे ही सम्पूर्ण जगत की आत्मा-’सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च’ कहा गया है। शाँकरभाष्य के अनुसार -” रश्मीना प्राणानाँ रसानाँ च स्वीकरणात् “ सूर्य - अर्थात् सूर्य रश्मि ही सम्पूर्ण प्राणियों की प्राण शक्ति है वह अपने दिव्य अमृत रस से जीवधारियों को जीवन प्रदान करती है। सातों ग्रहों - भूमि , चन्द्रमा, बुध आदि एवं भूः भुवः स्वः आदि सात भुवनों में प्रकाश पहुंचने और इन लोकों से रस आदि लेने वाली सूर्य किरणें ही हैं इन्हीं किरणों के तारतम्य से विश्व में सब परिवर्तन होते हैं। गायत्री, त्रिष्टुप, जगती, अनुष्टुप्, वृहती, पंक्ति एवं अष्णिक ये सात व्याहृतियां सूर्य के सात किरणों से उत्पन्न हुई है। व्याहृतियां किरणों के अवयव हैं जिनके द्वारा ज्ञान चेतना उपलब्ध होती है। प्राचीनकाल के ऋषि -मनीषी इन्हीं सूर्य रश्मियों का पान करके सप्त व्याहृतियों तथा संपूर्ण वेदों का साक्षात्कार करते थे। महर्षि याज्ञवल्क्य ने इन्हीं सूर्य किरणों का अवगाहन कर व्याहमत एवं वेद को अपने अर्न्तमानस में आविर्भूत किया था। सप्तर्षियों के आराध्य भी यही गायी के देवता सविता देवता थे। त्रिकाल संध्या में इन्हीं भूवन भास्कर की प्रकाश किरणों को गायत्री महामंत्र द्वारा आकर्षित - अवधरित किया जाता है सविता की अधिष्ठात्री शक्ति का ही नाम गायत्री व सावित्री है।

आध्यात्मिक साधनाओं में विशेष -कर गायत्री की उच्चस्तरीय साधना में स्वर्णित सविता अर्थात् प्रातःकालीन उदीयमान सूर्य की प्रकाश रश्मियों की ध्यान धारणा का विशेष महत्व हैं ओजस्, तेजस् एवं वर्चस अर्जित करने के लिए गायत्री उपासकों में से जिन्होंने भी इस दिशा में निष्ठापूर्वक ईमानदारी से कदम बढ़ाया है उनने बौद्धिक एवं आध्यात्मिक दोनों की क्षेत्रों में आशातीत सफलताएं अर्जित की है प्रकाश-साधना हर वर्ग एवं हर आयु के नर-नारी सुगमतापूर्वक कर सकते हैं। और मनोवांछित उपलब्धि हस्तगत कर सकते हैं सविता की स्वर्णिम प्रकाश-साधना सरल भी और निरायद भी।

First 22 24 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • तुम उसे अवश्य पा लोगे
  • ‘विश्ववारा’ भारतीय संस्कृति
  • जिस मरने से जग डरें, मेरे मन आनन्द
  • Quotation
  • भाषा पर गर्व (Kahani)
  • अचेतन की ढलाई के चमत्कारी परिणाम
  • Quotation
  • जी तोड़ मेहनत का जादू (Kahani)
  • गुणसूत्र दर्पण हैं बहिरंग में विकृति के
  • आत्म परिशोधन (Kahani)
  • नाम -यश का मोह, कितना झूठा-कितना सच्चा
  • ज्योतिर्विज्ञान को समझें , इस विधा का लाभ लें
  • अतीत की वापसी
  • Quotation
  • देखें , सार्थक एवं सोद्देश्य सपने
  • सफाई और व्यवस्था से मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास की क्षमता बढ़ती है (Kahani)
  • सुपात्र बने तो दैवी अनुकम्पा बरसे
  • अहंकारी दुर्योधन (Kahani)
  • यो यच्छृद्धः स एव सः
  • कौरवो की आवभगत (Kahani)
  • यह दिवा-स्वप्न नहीं, ‘काल’ का लीला -सन्दोह है।
  • Quotation
  • सविता की स्वर्णिम प्रकाश-साधना सरल भी और निरापद भी
  • सन्त ज्ञानेश्वर (Kahani)
  • हारे को हरिनाम
  • तीन तस्वीरें (Kahani)
  • आनन्द की देवी
  • व्यवस्था बनाएगा, प्रकृति का अनुशासन
  • प्रकृति के साथ विवेकसम्मत व्यवहार करें
  • मेरी और टॉमस का दाम्पत्य जीवन (Kahani)
  • उद्धव स्वार्थपरता की पराकाष्ठा है यह
  • पारिवारिक सहकार (Kahani)
  • एक प्रतिभावान अभीष्ट है या कई अनगढ़
  • Quotation
  • मगध-सम्राट अजातशत्रु (Kahani)
  • आइए! इक्कीसवीं सदी का स्वागत हरीतिमा से करे।
  • गांधी जी (Kahani)
  • बुद्धिवान बने कि प्राज्ञवान
  • असामान्य समय हेतु असामान्य तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • किसी की उपेक्षा न करें(Kahani)
  • महर्षि ने जानी नारी की पार
  • लोकनायक ही नवसृजन कर पायेंगे
  • पाठकों का स्तम्भ- - जिज्ञासाएँ आपकी - समाधान हमारे
  • मेरा आत्मावलोकन
  • नेपोलियन (Kahani)
  • अपनों से अपनी बात - अब आशा की एक ही किरण बाकी रह गयी है।
  • Quotation
  • ‘अखण्ड ज्योति’ का आलोक जन-जन तक पहुँचे
  • Quotation
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj