• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • तुम उसे अवश्य पा लोगे
    • ‘विश्ववारा’ भारतीय संस्कृति
    • जिस मरने से जग डरें, मेरे मन आनन्द
    • Quotation
    • भाषा पर गर्व (Kahani)
    • अचेतन की ढलाई के चमत्कारी परिणाम
    • Quotation
    • जी तोड़ मेहनत का जादू (Kahani)
    • गुणसूत्र दर्पण हैं बहिरंग में विकृति के
    • आत्म परिशोधन (Kahani)
    • नाम -यश का मोह, कितना झूठा-कितना सच्चा
    • ज्योतिर्विज्ञान को समझें , इस विधा का लाभ लें
    • अतीत की वापसी
    • Quotation
    • देखें , सार्थक एवं सोद्देश्य सपने
    • सफाई और व्यवस्था से मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास की क्षमता बढ़ती है (Kahani)
    • सुपात्र बने तो दैवी अनुकम्पा बरसे
    • अहंकारी दुर्योधन (Kahani)
    • यो यच्छृद्धः स एव सः
    • कौरवो की आवभगत (Kahani)
    • यह दिवा-स्वप्न नहीं, ‘काल’ का लीला -सन्दोह है।
    • Quotation
    • सविता की स्वर्णिम प्रकाश-साधना सरल भी और निरापद भी
    • सन्त ज्ञानेश्वर (Kahani)
    • हारे को हरिनाम
    • तीन तस्वीरें (Kahani)
    • आनन्द की देवी
    • व्यवस्था बनाएगा, प्रकृति का अनुशासन
    • प्रकृति के साथ विवेकसम्मत व्यवहार करें
    • मेरी और टॉमस का दाम्पत्य जीवन (Kahani)
    • उद्धव स्वार्थपरता की पराकाष्ठा है यह
    • पारिवारिक सहकार (Kahani)
    • एक प्रतिभावान अभीष्ट है या कई अनगढ़
    • Quotation
    • मगध-सम्राट अजातशत्रु (Kahani)
    • आइए! इक्कीसवीं सदी का स्वागत हरीतिमा से करे।
    • गांधी जी (Kahani)
    • बुद्धिवान बने कि प्राज्ञवान
    • असामान्य समय हेतु असामान्य तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • किसी की उपेक्षा न करें(Kahani)
    • महर्षि ने जानी नारी की पार
    • लोकनायक ही नवसृजन कर पायेंगे
    • पाठकों का स्तम्भ- - जिज्ञासाएँ आपकी - समाधान हमारे
    • मेरा आत्मावलोकन
    • नेपोलियन (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात - अब आशा की एक ही किरण बाकी रह गयी है।
    • Quotation
    • ‘अखण्ड ज्योति’ का आलोक जन-जन तक पहुँचे
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • तुम उसे अवश्य पा लोगे
    • ‘विश्ववारा’ भारतीय संस्कृति
    • जिस मरने से जग डरें, मेरे मन आनन्द
    • Quotation
    • भाषा पर गर्व (Kahani)
    • अचेतन की ढलाई के चमत्कारी परिणाम
    • Quotation
    • जी तोड़ मेहनत का जादू (Kahani)
    • गुणसूत्र दर्पण हैं बहिरंग में विकृति के
    • आत्म परिशोधन (Kahani)
    • नाम -यश का मोह, कितना झूठा-कितना सच्चा
    • ज्योतिर्विज्ञान को समझें , इस विधा का लाभ लें
    • अतीत की वापसी
    • Quotation
    • देखें , सार्थक एवं सोद्देश्य सपने
    • सफाई और व्यवस्था से मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास की क्षमता बढ़ती है (Kahani)
    • सुपात्र बने तो दैवी अनुकम्पा बरसे
    • अहंकारी दुर्योधन (Kahani)
    • यो यच्छृद्धः स एव सः
    • कौरवो की आवभगत (Kahani)
    • यह दिवा-स्वप्न नहीं, ‘काल’ का लीला -सन्दोह है।
    • Quotation
    • सविता की स्वर्णिम प्रकाश-साधना सरल भी और निरापद भी
    • सन्त ज्ञानेश्वर (Kahani)
    • हारे को हरिनाम
    • तीन तस्वीरें (Kahani)
    • आनन्द की देवी
    • व्यवस्था बनाएगा, प्रकृति का अनुशासन
    • प्रकृति के साथ विवेकसम्मत व्यवहार करें
    • मेरी और टॉमस का दाम्पत्य जीवन (Kahani)
    • उद्धव स्वार्थपरता की पराकाष्ठा है यह
    • पारिवारिक सहकार (Kahani)
    • एक प्रतिभावान अभीष्ट है या कई अनगढ़
    • Quotation
    • मगध-सम्राट अजातशत्रु (Kahani)
    • आइए! इक्कीसवीं सदी का स्वागत हरीतिमा से करे।
    • गांधी जी (Kahani)
    • बुद्धिवान बने कि प्राज्ञवान
    • असामान्य समय हेतु असामान्य तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • किसी की उपेक्षा न करें(Kahani)
    • महर्षि ने जानी नारी की पार
    • लोकनायक ही नवसृजन कर पायेंगे
    • पाठकों का स्तम्भ- - जिज्ञासाएँ आपकी - समाधान हमारे
    • मेरा आत्मावलोकन
    • नेपोलियन (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात - अब आशा की एक ही किरण बाकी रह गयी है।
    • Quotation
    • ‘अखण्ड ज्योति’ का आलोक जन-जन तक पहुँचे
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


व्यवस्था बनाएगा, प्रकृति का अनुशासन

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 27 29 Last
मनुष्य जब प्रकृति की अवहेलना करना आरम्भ करता है तो प्रकृति भी उससे निपटने का अपना उपचार प्रारम्भ कर देती है आये दिन घटने वाली प्राकृतिक आपदाओं में इसकी अनुभूति की जा सकती है क्रिया होगी तो प्रतिक्रिया भी स्वाभाविक हैं अब यह प्रतिक्रिया मनुष्य के अन्दर उसके बन्ध्यत्व के रूप में घटित होने जा रही है।

सर्वविदित है कि विश्व जनसंख्या ‘-वृद्धि जितनी तीव्र गति से इन दिनों हुई है वैसा पहले कभी नहीं हुआ आंकड़ों पर दृष्टिपात करने से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है सन् 1800 में सम्पूर्ण विश्व की जनसंख्या -वृद्धि दर मात्र 0.47 प्रतिशत थी एक शताब्दी बाद इसमें विकसित और अविकसित एवं विकासशील जैसा एक विभाजन हो गया, परिणामस्वरूप उसमें दो प्रकार की वृद्धि आरम्भ हुई विकसित विश्व ने जहां 1.34 प्रतिशत वृद्धि 1101 में दिखलायी वहां अविकसित तथा विकासशील विश्व की वृद्धि -दर 4.75 प्रतिशत थी । सन् 1950 के आते-आते इसमें क्रमशः 1.50 और 3.02 प्रतिशत की और वृद्धि हो गई है। आज यह बढ़ोत्तरी दर इतनी है जिसे पूर्व की तुलना में विशाल ही कहना पड़ेगा।

आबादी को दृष्टि से विचार करे तो ‘विश्व जनसांख्यिकी रिपोर्ट ‘ के अनुसार दुनिया की कुल आबादी आज से 9 हजार साल पूर्व मात्र 75 लाख थी। सन् 1501 में बढ़कर यह 44 करोड़ हो गई 1630 में 52 करोड़ , 1855 में 18 करोड़, 1950 में 210 करोड़ 1975 में 400 करोड़ 1996 में 620 करोड़। इसी दर से यह बढ़ोत्तरी होती रही तो अनुमान है कि सन् 2025 तक विश्व की कुल जनसंख्या 870 करोड़ हो जाएगी।

जिस ग्रह पर हम रह रहे है उसके धरती ओर संसाधन सीमित है जबकि जनसंख्या-वृद्धि उपमित गति से ही रही है ऐसी स्थिति में प्रकृति और पर्यावरण पर दबाव पड़ना स्वाभाविक है आबादी बढ़ेगी , तो अन्न उत्पादन भी बढ़ना चाहिए और आवास के लिए भूमि भी। खाद्यान्न उत्पादन को तो कुछ सीमा तक वैज्ञानिक विधियों द्वारा बढ़ाया भी जा सकता है पर रहने के लिए भूमि की कमी की पूर्ति कैसे हो? जमीन का दो-तिहाई भाग जल से भरा है इसका एक तिहाई हिस्सा ही स्थल है इसमें भी रहने योग्य सपाट समतल भूमि से लेकर पर्वत , वन सभी सम्मिलित है यदि रहने योग्य वर्तमान खण्ड में ही बढ़ी हुई और बढ़ने वाली अतिरिक्त आबादी को किसी प्रकार रखा गया तो फिर यह तो एक छोटे बाड़े में अनेक पशु को रखने जैसा हो जाएगा। मनुष्य के लिए स्वस्थता भी जरूरी है उसे हवा और प्रकाश भी चाहिए ।उक्त घिच-पिच स्थिति में इन आवश्यकताओं की पूर्ति सम्भव नहीं। ऐसे में विकल्प एक ही रह जाता है वनों को काटा जाय और पहाड़ों को समतल बनाया जाय। यह प्रकृति से स्पष्ट छेड़छाड़ हुई। इससे प्रकृति और पर्यावरण दोनों प्रभावित होंगे। जंगल काटेंगे, तो वर्षा घटेगी । आबादी बढ़ेगी तो उद्योग बढ़ेंगे। उद्योगों के बढ़ने से प्रदूषण बढ़ेगा और पर्यावरण अस्वास्थ्यकर बनेगा। इन सभी विभीषिकाओं को एक शब्द में कहना हो तो इसे जनसंख्या वृद्धि ही कहना पड़ेगा। यही इनके मूल में समाहित है इसे यदि घटाया-मिटाया जा सके तो बहुत हद तक उपरोक्त समस्याओं से पिण्ड छुड़ाया जा सकता है पर न ऐसा होना था न हुआ। आगे भी इसकी कम ही सम्भावना दीखती हैं

ऐसे में प्रकृति को अपनी व्यवस्था आप संभालनी पड़ती है या समय-समय पर इन अदूरदर्शिताओं के परिणाम मनुष्य को बाढ़, भूकम्प, तूफान, चक्रवात, ज्वालामुखी विस्फोट और सूखे के रूप में भोगने पड़ते हैं। पर जब छोटे स्तर के दण्ड से अपराधी काबू में नहीं आते तो उनके लिए बड़े और विशिष्ट स्तर के दण्ड का प्रावधान करना पड़ता है।

मलेरिया में मच्छर आरम्भ में डी0 डी0 टी0 जैसे सामान्य कीटनाशक से मर जाते था पर बार-बार के प्रयोग से जब वे उसके अभ्यस्त बन गये, तो स्वास्थ्य विशेषज्ञों को उनके उन्मूलन के लिए अधिक जहरीली और अधिक कारगर दवा की ढूँढ़ -खोज करनी पड़ी इसी का परिणाम है कि मलेरिया लगभग समाप्तप्रायः हो गया किंतु बढ़ती गंदगी एवं घटती जीवनी - शक्ति के कारण वह फिर उभर आया है यही प्रकृति का नियम है।

निसर्ग को मनुष्य के संदर्भ में ऐसी ही रीति-नीति अपनानी पड़ती है उसने जब यह अनुभव किया कि इस छोटी मोटी दण्ड-अवस्था से अब काम चलने वाला नहीं ओर न प्रयोजन पूरा होना वाला है तो अपने तरकश का सर्वाधिक समर्थ आयुध का प्रयोग करते हुए आबादी को नियंत्रित करने सम्बन्धी एक बिल्कुल ही अभिनव शुरुआत की और मानवकृत प्रयास आरम्भ किया।

अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि विश्वभर में मनुष्य के शुक्राणुओं की संख्या घटती जा रही है इस आशंका की प्रथम जानकारी पी0डी0 जेम्स नामक प्रसिद्ध अंग्रेज विज्ञान कथा लेखिका की रचना से मिली थी। सन् 1992 में उनने विज्ञान कथा पर आधारित एक उपन्यास लिखा , नाम था- ‘दि चिल्ड्रेन ऑफ मन’ यों तो यह ग्रन्थ एक वैज्ञानिक कल्पना था पर इसकी नींव अध्ययनों पर आधारित थी, अतएव उसे एकदम काल्पनिक कहना भी उचित नहीं एक वैज्ञानिक होने के ताने जेम्स ने अपने अध्ययन को ही पुस्तक का कथानक बना डाला और इस प्रकार एक नवीन तथ्य से संसार अवगत हुआ।

उसी वर्ष एक डैनिश अंतःस्रावी ग्रन्थि विशेषज्ञ नील्स है0 स्कैविक ने अपनी एक शोध-रिपोर्ट ‘ब्रिटिश मेडिकल जर्नल ‘ प्रकाशित करवायी । आधारित थी। इसके अनुसार पिछले पचास वर्षों में स्वस्थ पुरुषों के शुक्राणुओं में 40 प्रतिशत की गिरावट आयी है। सन् 1940 में लग प्रािम बार स्वस्थ और प्रजनन क्षमता युक्त मनुष्यों के शुक्राणुओं का ‘अध्ययन ‘ किया गया , तो प्रति मिलीलीटर वीर्य में इसकी औसतन संख्या 1130 लाख थी। सन् 1992 में यह घटकर मात्र 660 लाख रह गई इनमें भी उसमें से अधिकाँश या तो गतिहीन थे या असामान्य। असामान्यों में ऐसे शुक्राणु बढ़ी संख्या में देखे गये, जिनके पूछे नहीं थी और सिर दो-दो थे। स्कैकबिक का कहना है कि शुक्राणुओं की संख्या में यह गिरावट अब भी जारी है और यह 0216म आगे यथावत् बना रहा तो जल्द ही मनुष्य प्रजनन के अयोग्य साबित होगे ऐसा उनका मानना है ।

प्रजनन में शुक्राणुओं की क्या भूमिका है - तनिक इस पर चर्चा कर लेना यहां अनुचित न होगा। शुक्राणु एक विशिष्ट आकार धारण किये होते हैं सिर का हिस्सा कुछ बड़ा और गोलाकार लिए होता है उसके एक पूछ जुड़ी होती है। अब इनकी विशाल जनसंख्या अपने लक्ष्य की ओर प्रस्थान करती है तो उनमें से मात्र एक लाख के करीब ही मन्तव्य तक पहुंच पाते हैं शेष की रास्ते में ही मृत्यु हो जाती है इस एक लाख में भी कोई एक दर्जन शुक्राणु डिम्बाणु से संयोग का प्रयास करते हैं इनमें भी किसी एक को ही सफलता मिल पाती है जो सफल होता है वही डिम्बाणु के बाह्य आवरण को भेदकर अन्दर प्रवेश करने में समर्थ हो पाता है विज्ञान की भाषा में इस पारस्परिक संयोग को ‘गर्भाधान‘ कहते हैं यही से भ्रूण का विकास आरम्भ होता है। बोलचाल की भाषा में यही गर्भधारण है।

,गर्भाधान की इस प्रक्रिया में शुक्राणुओं की विशाल संख्या अत्यन्त महत्वपूर्ण है? यह संख्या किसी भी प्रकार यदि इससे कम होती तो मनुष्य के लिए प्रजनन ओर गर्भधारण कितना कठिन होता इसका उपरोक्त विवेचन से सहज ही अन्दाज लगाया जा सकता है अतः इस विशाल परिमाण को न तो संयोग कहा जा सकता है न निरुद्देश्य । प्रकृति की यह सुनियोजित व्यवस्था है। इन दिनों यदि इसकी संख्या घटी है तो

यह अनायास नहीं है निश्चय ही इसके पीछे प्रकृति की प्रेरणा है ऐसा कई कारकों से प्रतीत होता है। । प्रथम तो यह कि यह इसी क्षेत्र विशेष अथवा समुदाय विशेष की स्थिति नहीं हैं विश्व के लगभग सभी हिस्सों और सभी समुदायों में न्यूनाधिक अन्तर के साथ एक ही निष्कर्ष सामने आया है कि सम्प्रति पूरी मनुष्य जाति की शुक्राणु संख्या में आश्चर्यजनक गिरावट आयी है ऐसी दशा में इसे परिस्थिति या पर्यावरण का परिणाम नहीं कहा जा सकता कारण कि तब इसे किसी क्षेत्र या वर्ग विशेष तक ही सीमित रहना चाहिए था पर ऐसा कहा है? यह तो विश्वव्यापी बना हुआ है दूसरे शरीर शास्त्रियों के अनुसार मद्यपान और एण्टीबायोटिक औषधियों के सेवन से भी शुक्राणु प्रभावित होते हैं और उनकी संख्या घटने लगती है किन्तु यह अस्थाई स्थिति है उनका प्रयोग बन्द होते हैं वह अपनी सामान्य और स्वाभाविक अवस्था प्राप्त कर लेते हैं इसके साथ ही उनकी तादाद पूर्ववत् हो जाती है पर अध्ययन बताते हैं कि उनकी औसत संख्या में लगातार घटोत्तरी हो रही है यह भी इस बात का प्रमाण है कि यह किसी भौतिक क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं वरन् अदृश्य की प्रेरणा है।

तेजी से जनसंख्या वृद्धि कर रहा भारत जैसा विशाल आबादी वाला देश भी उपरोक्त परिणाम की ही पुष्टि करता है मुम्बई के डॉ0 अनिरुद्व मालपानी और डॉ0 अंजली मामपानी ने अपनी रचना ‘गेटिंग प्रिगनेण्ट -ए गाइड फॉर दि इनफटइलि कपल’ में तत्सम्बन्धी तथ्यों की विस्तृत विवेचना की है उनका कहना है कि मुम्बई स्थिति उनके चिकित्सालय में बंध्यत्व के शिकार बड़ी संख्या में लोग इलाज करवाने आते हैं चूंकि महिलाओं की प्रजनन क्षमता संबंधी परीक्षण एक जटिल प्रक्रिया है अस्तु वहां सर्वप्रथम पुरुषों का शुक्राणु-परीक्षण किया जाता है इस जाख् में यही तथ्य उभरकर सामने आया है कि बंध्यापन का प्रमुख कारण कोई अन्य रोग नहीं वरन् अभीष्ट परिमाण से भी काफी कम तादाद में शुक्राणुओं की उपस्थिति है इसमें भी एक बड़ा हिस्सा ऐसे शुक्राणुओं की होता है जो विकृत स्तर के होते हैं और जिनमें गर्भाधान की क्षमता होती ही नहीं। ऐसी स्थिति में सारी भला गर्भधारण किस प्रकार कर सकेगी। वे कहते हैं कि कोलाबा स्थित उनके ‘स्पर्म बैंक’ में शुक्राणु दानदाताओं में से 70 से 90 प्रतिशत व्यक्ति ऐसे होते हैं जो स्वस्थ होने के बावजूद उनके वीर्य को कम शुक्राणु दिया जाता है दस में से मात्र एक व्यक्ति ही ऐसा होता है जिसका स्पर्म वांछित स्तर का होने के कारण स्वीकार किया जाता है।

मुम्बई के पैथोलोजिस्ट डॉ0 अविनाश फड़के का मानना है कि आज से चार दशक पूर्व दस सौ लाख या इससे अधिक शुक्राणु संख्या एकदम सामान्य बात थी पर अब यह एक विरल स्थिति है कारण स्पष्ट है चूंकि मनुष्य अपने प्रजनन को स्वयं नियमित नहीं कर सका अतः प्रकृति की ओर से ऐसी व्यवस्था की गई कि उसकी अवांछनीय वृद्धि पर अंकुश लगाया जा सके यदि ऐसा नहीं होता तो जल्द है और निरंकुश हो जाती जिसका कोई ठिकाना नहीं इसे रोकने के लिए अवास्तविक हस्तक्षेप आवश्यक था यही हुआ भी।

स्वीडन आफ मोर्य के बर्फीले भूभाग में लेमिग चूहे की एक विशेष प्रजाति पायी जाती है जब इनकी संख्या अप्रत्याशित से अधिक हो जाती और खाने तथा रहने की समस्या सताने लगती तो इन्हें एक अदृश्य प्रेरणा होती जिसमें सबके सब अटलांटिक महासागर में छलांग लगाकर सामूहिक आत्महत्या कर लेते हैं इस रोमांचकारी दृश्य को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग वहां मौजूद होते हैं हर पांच वर्ष में यह अद्भुत दृश्य उपस्थित होता है इसलिए इस वर्ष को ‘लोमिग ईयर’ कहते हैं ।

प्रकृति-व्यवस्था में जब और जहां भी व्यक्तिक्रम पैदा होगा वहां इसी प्रकार के दृश्य दिखलाई पड़ेंगे । मनुष्य इस संदर्भ में गम्भीर चिन्तन कर यह निर्णय करे कि उसे अपनी सत्ता इस धरती पर बनाये रखनी है अथवा बंध्यत्व का शिकार होकर वंशवृद्धि गंवानी है मर्जी उसकी है, निश्चय उसका है।

First 27 29 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • तुम उसे अवश्य पा लोगे
  • ‘विश्ववारा’ भारतीय संस्कृति
  • जिस मरने से जग डरें, मेरे मन आनन्द
  • Quotation
  • भाषा पर गर्व (Kahani)
  • अचेतन की ढलाई के चमत्कारी परिणाम
  • Quotation
  • जी तोड़ मेहनत का जादू (Kahani)
  • गुणसूत्र दर्पण हैं बहिरंग में विकृति के
  • आत्म परिशोधन (Kahani)
  • नाम -यश का मोह, कितना झूठा-कितना सच्चा
  • ज्योतिर्विज्ञान को समझें , इस विधा का लाभ लें
  • अतीत की वापसी
  • Quotation
  • देखें , सार्थक एवं सोद्देश्य सपने
  • सफाई और व्यवस्था से मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास की क्षमता बढ़ती है (Kahani)
  • सुपात्र बने तो दैवी अनुकम्पा बरसे
  • अहंकारी दुर्योधन (Kahani)
  • यो यच्छृद्धः स एव सः
  • कौरवो की आवभगत (Kahani)
  • यह दिवा-स्वप्न नहीं, ‘काल’ का लीला -सन्दोह है।
  • Quotation
  • सविता की स्वर्णिम प्रकाश-साधना सरल भी और निरापद भी
  • सन्त ज्ञानेश्वर (Kahani)
  • हारे को हरिनाम
  • तीन तस्वीरें (Kahani)
  • आनन्द की देवी
  • व्यवस्था बनाएगा, प्रकृति का अनुशासन
  • प्रकृति के साथ विवेकसम्मत व्यवहार करें
  • मेरी और टॉमस का दाम्पत्य जीवन (Kahani)
  • उद्धव स्वार्थपरता की पराकाष्ठा है यह
  • पारिवारिक सहकार (Kahani)
  • एक प्रतिभावान अभीष्ट है या कई अनगढ़
  • Quotation
  • मगध-सम्राट अजातशत्रु (Kahani)
  • आइए! इक्कीसवीं सदी का स्वागत हरीतिमा से करे।
  • गांधी जी (Kahani)
  • बुद्धिवान बने कि प्राज्ञवान
  • असामान्य समय हेतु असामान्य तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • किसी की उपेक्षा न करें(Kahani)
  • महर्षि ने जानी नारी की पार
  • लोकनायक ही नवसृजन कर पायेंगे
  • पाठकों का स्तम्भ- - जिज्ञासाएँ आपकी - समाधान हमारे
  • मेरा आत्मावलोकन
  • नेपोलियन (Kahani)
  • अपनों से अपनी बात - अब आशा की एक ही किरण बाकी रह गयी है।
  • Quotation
  • ‘अखण्ड ज्योति’ का आलोक जन-जन तक पहुँचे
  • Quotation
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj