Magazine - Year 1996 - Version 2
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Language: HINDI
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असामान्य समय हेतु असामान्य तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
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(अक्टूबर 1989 में शान्तिकुँज में दिया गया उद्बोधन)
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्
देवियों , भाइयों ! कभी साधनाएं समयानुकूल ओर पात्रता के अनुकूल हुआ करती थी। एक -सी साधनाएं कभी नहीं रही । बहुत पुराने जमाने की साधनाओं को जब हम देखते हैं तो एक मुख्य तपस्विनी पार्वतीजी तप करती रहती है। कितने ही वर्ष वे हवा पर रही, पत्ते खाकर रही, पानी पीकर रही। कभी तपस्वियों की ऐसी साधनाएं होती थी कभी ज्ञान की साधनाएं होती रही। सूत ओर शौनक से ऋषि नैमिषारण्य क्षेत्रों में जाकर कथा-प्रसंग करते थे वहां अनेकानेक भक्तजन आते थे और कथा श्रवण करते थे, सत्संग की बाते करते थे। कभी शिक्षण का सिलसिला तो ब्राह्मणो के आरण्यक स्थापित हुए और उनके जाकर के लोग ज्ञानर्जित करने लगें साधनाएं उस समय की अजीबिी। हजारों तरह की साधनाएं प्रचलित थी जिनमें ताँत्रिक साधनाओं से लेकर सकाम साधनाएं तक होती थी लेकिन शागिर्द के हिसाब से साधना का चयन करना गुरुजनों और ऋषियोँ का काम था । ऋषि समय की जानकारी प्राप्त करने वाले द्रष्टा होते थे वे जो साधनाएं बताते थे लोग उन्हें अपनाना अपना सौभाग्य मानते थे और सफलता भी प्राप्त करते थे।
आज का समय सामान्य समय नहीं हैं यदि संधि का समय है इस संधि के समय को आप आपातकालीन समय भी कह सकते हैं कभी-कभी आपत्तिकाल भी आते हैं जैसे-भूकम्प आ जाय तो लोग भाग खड़े होंगे कुछ जमीन के नीचे दब जाएंगे , हाहाकार मच जाएगा, बिजली चली जाएगी जल पानी देना बन्द कर देंगे, ऐसे समय को आपातकाल कहेंगे जल खाना नहीं मिलता, अनाज पैदा होना बन्द को जाता है कुंए का पानी सूख जाता है, तो आदमी जान बचाने के लिए या तो भाग खड़े होते हैं। या वही प्राण त्याग देते हैं उसे ही कही अग्निकाण्ड हो जाय और किसी का छप्पर जलने लगे, उस आपत्तिकाल में आप अपना व्यक्तिगत काम बन्द कर दीजिए, अग्नि बुझाने के लिए दौड़िए । नहाना, कपड़े धोना, खाना खाना बन्द कीजिए, पहले पड़ौस में लगी आग बुझाने जाइए। आप दुकान जाने को थे आरे किसी बस का ऐक्सीडेंट हो गया, कितने आदमियों की टांग टूटी कितने की घायल हो गये कितने ही मर गये। आज आप दुकान मत जाइये क्योंकि पहले इन घायलों को पानी पिलाइये, उन्हें मरहमपट्टी के लिए अस्पताल पहुंचने में मदद कीजिए इस आपात स्थिति में आप इनकी सहायता कीजिए। क्योंकि असामान्य कार्यों में प्रवृत्त होना पड़ता है महामारियां फैल जाती है बाढ़ आ जाती है कोई बड़ी दुर्घटनाएं हो जाती है। तो भावनाशील व्यक्ति अपना सामान्य क्रम बदल देते हैं और दूसरों की सहायता करने के लिए दौड़ पड़ते हैं इसकी आपत्तिजन्य स्थित कहेंगे।
आज के इस समय में हम सबको आपत्ति धर्म निबाहने के लिए तैयार रहना चाहिए इस संधि के समय में एक आरे कौरवों की सेना खड़ी है ओर एक ओर पाण्डवों की एक ओर असुरता एवं विनाश मुहबाये खड़े हैं सर्वनाश की चुनौतियां एक पार्टी में खड़ी हुई है तो दूसरी पार्टी में नवनिर्माण करने के लिए युगशिल्पी पूरी तैयारी के साथ कमर बांधकर खड़े हुए हैं ये कौरवों -पाण्डवों की लड़ाई -महाभारत का समय है इस आपत्तिकाल में आपको विशेष धर्म की ओर ध्यान करने का पेशा थोड़े ही करते थे। गीता में लिखा है कि जब भगवान ने अर्जुन से लड़ने कोकहा तजो वे आना-कानी करते रहें। बेकार में लड़ने से क्या फायदा? लेकिन वह तो आपत्तिकाल था अगर वहां लड़ाई नहीं लड़ी गयी होती तब तब कर्ण दुर्योधन, दुशासन ओर शिशुपाल मिलकर के न जाने केस हाहाकार मचा देते अपनी ललक-लिप्सा से न जाने कितनों को तहस-नहस कर देते और सारे जिसमें आदमियों का जिन्दा रहना मुश्किल ळज्ञै ज्ज्ञत्ज्ञ टस्भ्थ्ल्ए भगवान ने महाभारत की तैयारी की और अर्जुन से कहा की इस समय सामान्य बाते को छोड़ दो
अर्जुन बोले -” श्रेयों भोक्तू भेक्ष्यमपीह लोके। मैं तो भिक्षा मांग करके भी खा सकता हूं कुछ और काम करके भी पेट भर सकता हूं फिर मैं क्यों लड़ूंगा भगवान ने कहा यह आपत्तिकाल है इसके धर्म विशेष होते हैं।” उन्होंने आपत्ति धर्म निबाहने के लिए अर्जुन को तैयार किया और वह भगवान का कहना मानकर अपनी मर्जी भी कि नहीं थी, बात अलग है लेकिन अर्जुन ने भगवान की मर्जी मिला दी। मर्जी मिलाने के बाद वे लड़ाई के मैदान में गये और गाण्डीव द्वारा तीर चलाने लगे और सारे के सारे विरोधियों को मार गिराया। वे अपने साम्राज्य के स्वामी हुए ओर भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के भी अधिकारी बने। ये आपत्ति धर्म बना रहा हूं। पूजा , उपासना की थी अर्जुन ने, आप ही बताइये। कोई अनुष्ठान , जप, तप, ध्यान, धारणा , समाधि, दैनिक पूजा भी नहीं की थी बस भगवान की आज्ञा मानी थी उन्होंने कहा की इस समय सबसे बड़ी साधना महाभारत की है और अर्जुन उसी में लग गये ।तब भगवान की बनायी साधना मनुष्यों द्वारा की गयी साधना की अपेक्षा लाखों गुनी श्रेयस्कर सिद्ध हुई ऐसी ही दूसरों की बात है ।
अच्छा बताइये , हनुमानजी ने कौन सी साधना की? कोई अनुष्ठान , जप, तप , किये होंगे या ध्यान-धारणा की थी। कुछ भी नहीं किया था, सुग्रीव के साथ एक गुफा में छिपे बैठे थे। जब भगवान राम से मुलाकात हो गयी, मिलता-जुलना हुआ तो कहने लगे-मैं आपकी शरण में आ गया हूँ, मुझे आज्ञा बताइये आज्ञा बता दी कि सीताजी को खोज कर लाइये कोई अनुष्ठान, जन, तप अथवा रामायण, गीता, नारायण मंत्र का पाठ नहीं बताया। भगवान राम ने कहा- इस समय आपके साथी आपत्ति में है, सीताजी आपत्ति में है, अधर्म के बादल छाये है, उन्हें दूर करना पड़ेगा। आज की यही साधना है। हनुमानजी ने स्वीकार कर लिया कोई आग्रह नहीं किया कि कोई जप, तप, ध्यान बताइये। यह आग्रह तो उन लोगों का रहता है जो कुछ पुरुषार्थ नहीं कर सकते, जिन्हें मेहनत से काई लगाव नहीं है,
सेवा के प्रति जिनके अन्तःकरण में कोर्ठ उत्साह, कोर्ठ उमंग नहीं होती। ऐसे आदमी खाली बैठे रहें तो कुछ बकता नहीं पड़ेगा- कि लकड़ी की माला ही घुमाते रहे। अरे बाबा, खाली पड़े रहने की अपेक्षा माला घुमाना और राम का नाम लेना क्या बुरा है लेकिन उपासना का मतलब राम नाम लेना, माला घुमाना ही नहीं होता। हर जगह माला काम नहीं आती है, ऐसी बात नहीं।
उपासना की दृष्टि से सामयिक कर्तव्यों, सामयिक जिम्मेदारियों का परिपालन करना बहुत जरूरी है। हनुमान जी ने ही किया और जिस दिन से भगवान की शरण में आये, उनकी अनुसार जीवनभर साधना करते रहे। अपनी मर्जी की साधना की? नहीं, अपनी मर्जी की साधना नहीं की । भगवान ने हुकुम दिया-सीता को ढूंढ़ लाइये और वे सीताजी को ढूंढ़ लाइये और वे सीताजी को ढूँढ़ लाये, अंगूठी दे आये और माँ की निशानी लाकर दी ओर कहा देखिये हम पता लगा लाये। बस काम नम्बर एक पूरा हो गया। दूसरा अध्याय साधना का शुरू-अब चलें राक्षसों से लड़ने के लिए, युद्ध की तैयारी करें-साधन जुटाएँ हनुमानजी अपने मोहल्ले में गये और सारे रीछ-बन्दरों से बोल चलिए, हम तो भगवान के काम के लिए जा ही रहे है, आप सब भी चलिए। हनुमान जी ने ऐसा उत्साह भरा कि सब के बस उनके साथ चल दिये, उनमें नल-नील जैसे अच्छे-खासे इंजीनियर भी थे, जो बड़ी इमारत भी बना सकते थे। ये सब अपने आप आये थे? कोई अपने लगा, हनुमानजी लाये थे सबको। हनुमान जी ने लड़ाई के सारे साधन जुटाये और राक्षसों को तबाह करने के लिए पेड़ तक उखाड़े जब लक्ष्मणजी मूर्छित हो गये और सुषेण वैद्य ने बूटी बतायी तो पूरा पहाड़ ही उखाड़ ले आये। जप-जप-जप, एक ही बात सीखी है आपने, दूसरी बात नहीं सीखी। सबसे सुगम वाला काम बैठे-बैठे लकड़ी हिलाने, का। इतनी सस्ती उपासना समझा ली है। आपने? उपासना इतनी सस्ती होती है कहीं? जिसमें कष्ट न उठाना पड़ता हो, पुरुषार्थ न करना पड़ता हो, इतनी सस्ती साधना भी कहीं होती है। क्या ? इतनी कीमती चीजें आप इतनी सस्ती कीमत पर खरीदने की कोशिश करेंगे? ऐसा मत कीजिए। वास्तविकता के नजदीक आइये।
भगवान को प्राप्त करना चाहते हो तो भगवान का कहना भी मानिये! शरणागति इसी का नाम है, समर्पण इसी का नाम है। समर्पण और शरणागति यह कि हम भगवान का कहना मानें, न कि भगवान आप हमारी मनोकामना पूरी कीजिए। आप अपनी मर्जी पर भगवान को चलायेंगे? आपकी मर्जी पर चलेंगे वे? आप है कौन जो आपको यह जुर्रत, यह हिम्मत हो गयी कि आप भगवान के ऊपर यह हुकुम चलायें कि हमारी मनोकामना अभी पूरी कीजिए। आप अपनी मर्जी पर चलेंगे वे? आप कौन है? अपना नाम तो बताइये? आप हैं कौन जो आपको यह जुर्रत, यह हिम्मत होती है कि आप भगवान के ऊपर यह हुकुम चलायें कि हमारी मनोकामना अभी पूरी कर दीजिए? शरीर और मन आपको मिल गया, कुटुम्ब आपको मिल गया, कला आपको मिल गयी, साधन आपको मिल गये, फिर भी आपकी यह जुर्रत और यह हिम्मत कि आप भगवान से कहे कि हमारी दैनिक जरूरतें पूरी कीजिए। इन चीजों की पूर्ति आप स्वयं आसानी से कर सकते हैं, अन्यथा एक दिन आप कहेंगे भगवानजी हमारी गन्दगी साफ कीजिए, हमारे कपड़े धोइये। मनोकामना में ये बात भी शामिल है। आप क्यों पुरुषार्थ करने लगे? क्यों योग्यता सम्पादन करने लगे? आप तो अपने सब काम भगवान के करा लीजिए। खाना चबाने के लिए भी भगवान जी से कहिए कि आप खाना चबाकर हमारे मुँह में डाल दिया कीजिए। मित्रों, आपको ये बाते शोभा नहीं देती आपको अपना पुरुषार्थ जाग्रत करना पड़ेगा और भगवान का कहना मानना पड़ेगा।
ग्वाल-बालो की बात सुनी है न आपने? ग्वाल-बाल भगवान के परमप्रिय मित्र थे, लेकिन ग्वाल-बाले को उन्होंने रामायण पाठ कराने की बजाय, अखण्ड आओ दोस्तों! गोवर्धन पहाड़ को उठायेंगे। ग्वाल-बालो ने उनका ही कहना उठायेंगे। ग्वाल-वालो ने उनका ही कहना माना किसी ने भी यह नहीं, कहा कि साहब रामायण का अखण्ड पाठ कराइये हमको तो सत्संग कराइये, हमको भण्डारा कराइये। भगवान तो भगवान हैं, यदि उनके प्रति समर्पण है तो उनकी आज्ञा-उनकी आज्ञा है। हुकुम दिया की पहाड़ उठाना है तो उन्होंने पहाड़ को टेका लगाना और पत्थरों को जमा करना ऐसा की कृत्य समझा-मानो कोई बड़ा भारी पुण्य कर रहे हो, दान कर रहे हों।
पहले हम इस बात का फैसला कर सकें कि हमको क्या क्या करना चाहिए? कुछ करने के लिए किसी महती शक्ति के साथ में अपना सम्बन्ध जोड़िए और कठपुतली के तरीके से उसका कहना मानकर उसके पीछे-पीछे चलिए? यही सही और मुनासिब तरीका है, लाभदायक भी यही है इसलिए इस संधि के समय में हम सबको बड़ा महत्वपूर्ण काम करना है। आज जन-जन के मन को परिष्कृत करने की आवश्यकता है। आदमी का मन, आदमी का चिन्तन ऐसा भ्रष्ट हो गया है।
कि अपने आवरण को दुष्ट बनाने में उसे कोई हया-शर्म नहीं आती। चार आदमी के है ही नहीं विचार सब अस्त-व्यस्त हो गये हैं। आज की सबके बड़ी आवश्यकता विचार-क्रान्ति की है , जन-मानस के परिष्कार की है, लोकमंगल के लिए जन-जागरण की है। आप यदि इस काम को करते हैं तो सही माने में युग संधि की साधना करते हैं।
आप जिस परिवार के मेम्बर हैं, यह परिवार बड़ी मुसीबत से, बड़ी मुश्किल से और बड़ी देखभाल से बनाया गया है। इसमें हमने ढूँढ़-ढूँढ़ करके ऋषि-महर्षियों को, कितनी डुबकी लगाकर के एक-एक मोती कहाँ-कहाँ से इकट्ठा किया है आपको किसने इकट्ठा किया ओर किसलिए साधना में लगाया है? इसलिए, ताकि आप भगवान के ऊपर अहसान करने में सर्ता हो सकें कि आपका अहसान भगवान कभी नहीं भूलें। भगवान अहसान लेते नहीं, हनुमान को उन्होंने अपने राज कुटुम्ब का सदस्य बना लिया। आपने राम पंचायतन के चित्र देखे हैं न ? उसमें पांच तो वे चार भार्ठ ओर सीताजी हैं, पाँच तो वे चार भार्ठ ओर सीताजी हैं, पाँच नाम से पंचायतन हो जाता है, लेकिन आपने हर चित्र में हनुमानजी को शामिल देखा होगा। छठवें हनुमानजी क्यों थे, क्या वजह थी? सिर्फ एक ही वजह थी कि ‘राम काज कीन्हें बिना मोहि कहाँ विश्राम। ‘ उन्होंने ये नी सोचा कि अपनी इच्छा से, अपने मन से बैकुण्ठ को जाएँगे। अपनी मुक्ति कराएँगे, अपना फायदा कराएँगे, अपना चमत्कार-अपनी सिद्धि देखेंगे। क्योंकि जब अपना पतन मिटा दिया तो अपनी मर्जी कहाँ रही? भगवान की जो कुछ मर्जी थी, वही उन्होंने पुरी की ओर रामचन्द्रजी के वही उन्होंने पूरी की ओर ओर रामचन्द्रजी के कुटुम्बियों में शामिल हो गये। आप भी अपनी मर्जी छोड़कर ऐसा ही कीजिए।
कभी इस बाबाजी के पास, कभी उस पंडाजी के पास, कभी गुरुजी के पास कही झक मत मारिये। आपके भीतर बैठा हुआ, अन्तःकरण में बैठा हुआ भगवान मार्गदर्शन कर सकता है ओर वह ऐसा विलक्षण मार्गदर्शन होगा जैसा कि अर्जुन के घोड़ों को चलाने के लिए कृष्णा भगवान ने किया था। गाण्डीव चला रहे थे, अर्जुन, ने किया था। गाण्डीव चला रहे थे अर्जुन, लेकिन घोड़ों को चलाने का, सही रास्ता बताने का, मोर्चे की जानकारी कराने का काम भगवान कृष्ण का था। अप भी ऐसा ही कर सकते हैं। ज्यादा बहस में पड़ने की बजाय कि हमको ये करना है, यह स्कीम, वह स्कीम। ये नौ सौ निन्यानवे की स्कीम मत बनाइये। आप एक ही स्कीम बनाइये, क्योंकि किसी महती सत्ता की छाया में बैठेंगे तभी तो कहना मानेंगे। बच्चे बड़ों का कहना माने, इसी में लाभ है। बन्दर का एक बच्चा उछल-कूद कर रहा था। बन्दर मना कर रहा था कि ये बड़ी-बड़ी चीजें हैं, इनसे दूर रह, पर वह मानता ही नहीं। एक दिन दो लकड़ियों को चीरने के लिए मशीन के बीच में खाँचा लगा हुआ था। बन्दर का बच्चा उससे दब गया और चीं-चीं करता रहा उसके घरवालों ने बड़ी मेहनत से हाथ निकला। यदि बन्दर की बात मानी होती तो तो शायद हाथ घायल न होता।
आप भी इसी तरीके अपनी मर्जी कहाँ तक करेंगे कि हमको ये साधना बताइये, हमको बीजमंत्र बताइये। तत पूछिये, हमने तो ऐसा नहीं पूछा है। अपने जीवन की साधनाओं के बारे में हमने हमें ये बता54 दीजिए,ख् इसका मंत्र बताइये, उसका तंत्र बताइये। हमने अपनी मर्जी खतम कर दी ओर उनसे कहा-हुकुम कीजिए। उन्होंने जो कुछ भी कहा हम बिना सोचे-समझे, आँखें मूँदकर उस रास्ते पर चलते रहे। हमें विश्वास था कि हमको रास्ता दिखाने वाली सत्ता हमसे सही और समर्थ है। आज हम कहाँ से आपके लिए भी यही रास्ता है। आपके सामने समय की माँग इस तरीके की है, जिसे आपको पूरा करना चाहिए।
रामचन्द्रजी ने जब जन्म लिया था तो उनके साथ में देवतागण भी आये थे। देवताओं ने भगवान से कहा कि मनुष्य तो बड़े चालाक होते हैं। उनमें त्याग परोपकार और सेवा का भाव कहाँ? मनुष्य तो केवल अपने स्वार्थ की बात सोचते रहते हैं आप जो काम करने जा रहे हैं उसके लिए स्वार्थियों से थोड़े ही काम चलेगा, परमार्थियों के दल चाहिए। परमार्थियों के दल चाहिए। परमार्थियों के दल कहाँ से आएँगे? आजकल संसार में तो हैं, भी नहीं, चलिए हम आपके साथ चलते हैं। बस, शंकरजी हनुमानजी के रूप में और अन्य देवताओं ने अपनी भूमिका निभायी। आप को भी प्रज्ञा अवतार के साथ में उन्हीं देवताओं के तरीके से भगवान के काम में हाथ बँटाना, हिस्सा बँटाना है। ऐसा करने के लिए जरूरी है कि बँटाना है। ऐसा करने के लिए जरूरी है कि आप उसकी कीमत चुकायें और भगवान की मर्जी पर इस समय चलना स्वीकार कर लें।
समाज के नये निर्माण के लिए समाज को नये ढाँचे में ढाला जाना है। पुराना ढाँचा इतना जीर्ण-शीर्ण हो गया है। कि अब उसे गलाने और नया ढालने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। इस गलाई-ढलाई में आप हिस्सा बंटाइए। आप अपने समय, अपनी शक्ति, अपने मन, अपनी भावना, अपने विचारों को लेकर आइये और इस काम में जुट जाइये। आज के इस युग का भगवान जिनको हम प्रज्ञावतार कहते हैं।उस प्रज्ञावतार की मर्जी क्या है ये आँख खोलकर देखिये और कान खोलकर सुनिये कुछ ऐसी जानकारियाँ आपको प्रज्ञा अभियान के अंतर्गत बार-बार बतायी जा रही हैं जो भगवान की प्रेरणा, भगवान की दिशाधारा है। देवताओं ने भगवान ने सोचा कि धरती पर उनका सहयोग कौन करेगा, अगले कैसे क्या कर पायेंगे? देवताओं ने कहा-प्रभु, हमें भी चलने की आज्ञा दीजिए, हम भी आपके साथ-साथ चलेंगे और आपके काम में हाथ बंटाएंगे। भगवान ने जन्म लेकर उनका सहयोग किया।
पाण्डव कौन थे, आपको मालूम है, कथा पढ़ी है? शायद नहीं पढ़ी है। पाण्डव पाँच देवताओं के बेटे थे। कर्ण भी देवता का बेटा था। कुन्ती के गर्भ से देवता सिर्फ इसलिए पैदा हुए थे कि भगवान श्रीकृष्ण के काम आयें। धर्मराज ने क्या किया? अर्जुन ने कौन-सा बड़ा काम किया? भीम ने किसका क्या किया? नकुल-सहदेव किस काम में लगे रहे? इन सबने मिल-जुलकर सिर्फ एक काम किया कि भगवान की आज्ञा मानी, भगवान के काम आये। ये कैसे सम्भव हुआ? क्योंकि वे देवता थे। देवताओं की भावनाएँ को पाप इज्जत मिलनी चाहिएं। उनकी औलाद साधन संपन्न होनी चाहिए। बस, भावनाएँ बड़ी होती है। वे समझते हैं कि हमको परोपकार करना चाहिए। भगवान की आवश्यकताओं को समझकर योगदान करना चाहिए। भगवान की आवश्यकताओं का समझकर योगदान करना चाहिए। पांडवों ने सारी जिन्दगी यही किया। आप भी ठीक उसी तरह के है। आप अपने आप को देवता माने तो कोई हर्ज नहीं है।
आज प्रज्ञावतार का युग है। भगवान की नयी शक्तियों ने जन्म लिया है। ज्ञान की गंगा भी बहा दी है। इस समय जिन शक्तियों का जन्म हुआ है वे बराबर ये कोशिश कर रही है। कि लोग अपने खयालात बदल दे ओर नय विचारों की स्थापना हों। प्रज्ञा अभियान की है ओर भगवान वास्तव में इसका संचालनकर्त्ता है। तो फिर अवतार से इसका क्या मतलब है? हवाई जहाज पेट्रोल से उड़ता है ठीक है पायलट उड़ाता थोड़े ही है, वह तो मशीन घुमा देता है ठीक इसी तरह हम हैं और दूसरे लोग है। ये तो अपनी मशीन घुमा देते हैं पर ताकत कहाँ से आती है? वह ताकत कहाँ से आती है? वह ताकत भगवान की है, महाकाल की है। हवाई जहाज तो करोड़ों रुपये का आता है, लेकिन करोड़ों रुपये के इस हवाई जहाज को पैदा करने की शक्ति पैदा करने की शक्ति पैदा कीजिए। आप इस समय अपनी सारी इच्छाओं और आकाँक्षाओं को सिर्फ इस काम में लगा दीजिए कि हमें समय की माँग पूरी करनी है, युगस्रष्टा की भूमिका निभानी है। युगस्रष्टा की भूमिका निभाने के लिए आप आगे आगे बढ़ेंगे तो आपको पूरा-पूरा सहयोग मिलेगा। आप जाग्रत देवदूतों की रीति नीति अपनाएँ और आगे बढ़ें।
देवदूतों ने इन्तजार नहीं किया ओर न ही यह देखा कि दूसरे करेंगे तो हम करेंगे। हिमालय के ऊँचे शिखर पर सबसे पहले होती है। उसका दर्शन करके लोग अपने को धन्य समझते हैं। आप भी अपनी धूप चमकाइये, सबसे पहले। झंडा आगे आगे चलता है तो दूर से से दिखायी पड़ता है आप आगे-आगे चलिए और दूसरों को रास्ता बताइये। लड़ाई में बैण्ड-बाजे, बिगुल बाजे आगे-आगे चलिए और दूसरों को रास्ता बताइये। लड़ाई में बैण्ड-बाजे, बिगुल बाजे आगे-आगे चलते हैं। आप भी ताकि सारी सेना में हिम्मत पैदा हो सके। आप जिस युग प्रहरी की भूमिका निभाने वालों की पीढ़ियाँ सदैव याद रखेंगी और श्रद्धावनत हो उन्हें नमन करेगी। आप सब देवात्मा है।, युग प्रहरी है। ओर आप की इच्छा क्या है? अरे बाबा, हम कहते हैं कि युग कि जरूरतें क्या है। ओर आप की इच्छा क्या है।? अरे बाबा, हम कहते हैं। कि अपनी इच्छा को एक कोने में रखिए। भगवान की इच्छा को एक कोने में रखिए। भगवान की इच्छा क्या है। समय की माँग क्या है। ? प्रज्ञावतार की माँग क्या है। आप कान खोलकर सुनिये उसे और सुनने के बाद पूरी हिम्मत के साथ, पूरी वफादारी और जिम्मेदारी के साथ उसे निभाने में जुट जाइये। जिस तरह भगवान राम और भगवान कृष्ण की आवाज सुनने और उनके रामराज्य तथा महाभारत की स्थापना के उद्देश्य को पूरा करने में सहयोग देने वाले रीछ-वानर एवं ग्वाल-बाल धन्य हो गये। उसी तरह बुद्ध के धर्मचक्र प्रवर्तन में सहयोगी चीवरधारी भिक्षु एवं गाँधी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने वालों की लोग अपनी श्रेणी में गणना करते और उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। महाकाल के युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया में भारत लेने वालों को हमारा यह आश्वासन है कि वे भी मनुष्य में देवत्व के उदय एवं धरती पर स्वर्ग के अवतरण के लक्ष्य को पूरा करने में सफल होंगे और धन्य बनेंगे। आने वाली पीढ़ियाँ उनसे इस कृत्य की न केवल सराहना करेगी, वरन् उनसे प्रेरणा प्राप्त कर अपने जीवन का सही लक्ष्य निर्धारित करेगी। आज की बात समाप्त ॐ शांति ।।