Magazine - Year 1996 - Version 2
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Language: HINDI
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गांधी जी (Kahani)
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गांधी जी छोटे थे बड़े भाई ने उन्हें मार दिया वे रोते हुए मा के पास शिकायत करते गये। मा ने कहा-” तू भी उसे मार।”,
गांधी मा पर बिगड़े और कहा-” जो गलती करता है, उसे तो रोकती नहीं। उल्टे मुझे भी वही गलती करना सिखाती है।
मा ने कहा-” बेटा ! मैं तो तेरी परीक्षा ले रही थी। यदि परिवार के सदस्यों के प्रति तेरी भावना का इसी तरह विकास होता रहा तो आगे चलकर तेरे मन में समग्र विश्व समुदाय के प्रति यही भावना पनपेगी। यह शिक्षण इसी पाठशाला में तो मिल सकता है।
गांधी जी इसी कारण महान् बने एवं विश्व के बापू कहलाए।
एक बूढ़ा तीर्थयात्रा पर तीन वर्ष के लिए निकला। चारों बेटों को बुलाकर अपनी जमा पूंजी उनके हाथों सौंप दी । कहा -लौटने पर ले लूंगा। न लौटूं तो तुम्हारी। चारों को सौ-सौ रुपये सौंपे गये।
एक ने उन्हें सुरक्षित रख दिया दूसरे ने उसे ब्याज पर उठा दिया। तीसरे ने रुपयों को शौक-मौज में उड़ाया । चौथे ने उनसे व्यवसाय करना आरम्भ कर दिया। तीन साल बाद बूढ़ा लौटा और धरोहर वापिस मांगी। एक ने ज्यों की त्यों लौटा दी। दूसरे ने थोड़ी सी ब्याज भी सम्मिलित कर दी। तीसरे ने खर्च कर देने की कथा सुनाई और मजबूरी बताई । चौथे ने व्यवसाय किया, मूलधन चौगुना करके लौटाया। बाप ने चौथे की सबसे अधिक प्रशंसा की और उसे अपना उत्तराधिकारी बनाया। इसके बाद उसकी बुद्धिमानी सराही गई , जिसने कम-से-कम ब्याज तो कमाया।
वृद्ध ने सबको समझाते हुए कहा-” परन्तु उसके लिए प्रयास-पुरुषार्थ वही करता है जो अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर पारिवारिक उत्तरदायित्वों का पालन सीखता है परिवार में रहकर भी यह भाव विकसित न कर सकने से बुद्धि के उपयोग की उमंग भी नहीं उभरती । तुम्हारी यह परीक्षा लेने के लिए मेरी तीर्थयात्रा नियोजित थी।