
संसार के कुशल समाचार (Kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
संसार के कुशल समाचार जानने के लिए एक दिन भगवान ने नारद को पृथ्वी पर भेजा। उन्हें सबसे पहले एक दीन दरिद्र पुरुष मिला, जो अन्न वस्त्र के लिए तरस रहा था। नारद जी को उसने पहचाना तो अपनी कष्ट कथा रो रोकर सुनाने लगा और कहा, जब आप भगवान से मिले तो, मेरे गुजारे का प्रबंध उन से करा दें । नारद उदास मन आगे बढ़े, तो एक धनी से उनकी भेंट हो गयी। उसने नारद को पहचाना तो खिन्न होकर कहा, मुझे भगवान ने किस जंजाल में फँसा दिया । थोड़ा मिलता तो मैं शाँति से रह पाता और थोड़ा भजन -पूजन कर पाता, पर इतनी दौलत सँभाले नहीं सँभलती।, ईश्वर से प्रार्थना करें कि मुझे इस जंजाल से घटा दें। यह विषमता देवर्षि को अखरी। वे आगे चले ही थे कि साधुओं के एक जमघट से भेट हो गयी। जमात वाले उन्हें चारों ओर से घेर कर खड़े हो गये और बोले स्वर्ग में तुम अकेले ही मौज करते रहते हो, हम सब के लिए वैसे ही राजसी ठाठ, जुटाओ, नहीं तो नारद बाबा चिमटे मार मार कर तुम्हारा भूसा बना देंगे। घबराए नारद ने उनकी माँगी वस्तुएँ मँगा दी और जान छुड़ाकर भगवान के पास वापस लौट गये। जो कुछ देखा वही उनके लिए बहुत था और देखने की उन्होंने इच्छा तक नहीं रही।
भगवान ने नारद से उस यात्रा का वृत्तांत पूछा, तो देवर्षि ने तीनों घटनायें कह सुनाई । नारायण हँसे और बोले देवर्षि, मैं कर्म के अनुसार ही किसी को कुछ दें सकने में विवश हूँ। जिसकी कर्मठता समाप्त हो चुकी है, उसे मैं कहाँ से दूँ। तुम अगली बार जाओ तो उस दीन हीन से कहना, दरिद्रता के विरुद्ध लड़े और सुविधा के साधन जुटाने का प्रयत्न करे, तभी उसे दैवीय सहायता मिल सकेगी। इसी प्रकार उस धनी से कहना कि दौलत उसे दूसरों की सहायता के लिए दी गई है। यदि वह संग्रही बना रहा,तो जंजाल ही नहीं आगे चलकर विपत्ति भी बन जायेगी। नारद जी ने पूछा- और उस साधु मण्डली को क्या कहूँ ? भगवान के नेत्र चढ़ गये और बोले - उन दुष्टों को कहना कि त्यागी और परमार्थी का वेध बनाकर आलस्य और स्वार्थपरता की प्रवंचना इतनी आह्म है कि उन्हें नरक के निकृष्टतम स्थान में अनंत काल तक सहना पड़ेगा।