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Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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महाकाल के घोंसले का परिजनों को भावभरा संदेश

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रजत जयन्ती जब आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में मनायी जाती है तो उसका स्वरूप ही दूसरा होता है। विशेष रूप से तब जब एक प्रचण्ड ऊर्जा केन्द्र के कार्यकर्त्ताओं को गढ़ने की, टकसाल की, महाकाल की कार्य स्थली की जयन्ती मनायी जा रही हो। स्वयं पूज्यवर ने अपने प्रवचनों में कहा है कि “शाँतिकुँज” धर्मशाला नहीं है। यह एक विश्व विद्यालय है। कायाकल्प के लिए बनी एक अकादमी है। हमारे सतयुगी सपनों का महल है। आप में से जिन्हें आदमी बनना हो, बनाना हो, इस विद्यालय में संजीवनी विद्या सीखने के लिए उसे आमंत्रण है, दावत है।”जिस स्थान को घनीभूत ऊर्जा का का केन्द्र बनाया हो उसे उनने अकारण ही “छावनी” अथवा कायाकल्प के लिए बनी अकादमी नाम नहीं दिया था। स्वयं जब वे बाद में शाँतिकुँज का विस्तार कर ब्रह्मवर्चस आरण्यक एवं गायत्री नगर की स्थापना कर रहे थे तब उनने मार्च 1978 की अखण्ड ज्योति में था-” उत्तराखण्ड की साधना के सर्वथा उपयुक्त संस्कारवान देव भूमि समझ लेने के उपरान्त ही इसे सृजन सैनिकों के प्रशिक्षण के लिए उपयुक्त समझा गया है और उसे एक छावनी के रूप में विकसित करने का निश्चय किया गया है। अन्यत्र स्थानों में व्यापक परिश्रम से भी जो सत्परिणाम उपलब्ध होने असंभव थे, वे यहाँ अल्प प्रयास में संभव होंगे क्योंकि यहाँ के वातावरण में चिरकाल के आच्छादित ऋषियों के विचारों के संकल्प का लाभ साधकों को मिलेगा। यह बात जग जाहिर है कि शाँतिकुँज आज यहाँ स्थित है उसके नीचे गंगा की सात धाराओं में से एक बहती थी पर अभी भी उसके चिन्ह थोड़ा खुदाई करके देखे जा सकते हैं। यही स्थान कभी ब्रह्मर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि था, जहाँ उनने विश्वामित्र पद प्राप्त करने के बाद कठोर गायत्री साधना कर नूतन सृष्टि के निर्माण का कार्य सम्पन्न किया था। इन सब से उस शाँतिकुँज का महत्व जन जन को बताने का मन है, जिसकी रजत जयन्ती इस वर्ष के वसंत पर्व से 1997 के वसंत पर्व तक बड़े धूम धाम उल्लास व नये संकल्पों के साथ मनाने का एवं अधिकाधिक व्यक्तियों को इस गंगोत्री के साथ जोड़ने का संकल्प इस वर्ष लिया जा रहा है।

इस ऊर्जा केन्द्र की - टकसाल को किस भाव संवेदना के खाद पानी से विनिर्मित किया गया है।उसे परम पूज्य गुरुदेव के मार्च 1978 की अखण्ड ज्योति पत्रिका में लिखी गयी इस पंक्तियों को पढ़कर समझा जा सकता है जिसमें उनने भावभरे हृदय से उन सबका आमंत्रण किया था जिन्हें वे अपने देव परिवार में सम्मिलित करना चाहते थे। उनने इसी अंक के पृष्ठ 62 पर लिखा था- “ जीवन के इस अंतिम अध्याय के मिशन के सूत्र संचालकों का मन है कि परिवार को जागृत आत्माओं के साथ रखने और रहने का अवसर मिल सके तो कितनी प्रसन्नता रहे। यह सान्निध्य मोहवश नहीं, वरन् उद्देश्य की पूर्ति के लिए अभीष्ट है। साथ रहने और काम करने से प्राण ऊर्जा का आदान प्रदान होता है।” जिन्हें आगे बढ़ना हो वे समय की प्रतीक्षा न करे परिस्थितियों की आड़ न लें। आदर्शों को अपनाने का शुभ मुहूर्त आज ही होता है। ................ शाँतिकुँज का आवाहन और वातावरण उनके लिए भाव भरे हाथ और दुलार भरा आँचल पसारता जो नव युग की अवतरण बेला में जो अपनी गरिमा को जीवंत करने और प्रखरता का परिचय देने में समर्थ है। चरित्रवान भावनाशील और कर्मनिष्ठ परिजनों को वसंत पर्व पर अपने भीतर प्रखर आदर्शवादिता उगाने का युग आमंत्रण प्रस्तुत है। “ उनके द्वारा आवाहन के बाद ही देव परिवार बसने लगा एवं कार्यकर्त्ताओं जो विविध विशिष्टताओं से सम्पन्न थे, यह शाँतिकुँज वह रूप लेने लगा जिसको पुष्पित पल्लवित रूप में देखा जा सकता है।

क्या होगा अब इस रजत जयन्ती वर्ष में ? अनेकानेक प्रश्न इस वसंत की वेला में अनेकों के मन में उठ रहे होंगे। एक विराट भव्य प्रथम पूर्णाहुति आयोजन करने के बाद जब एक वर्ष का पुनर्गठन -अनुयाज वर्ष घोषित किया गया था, तब सभी को लगा कि यह क्या किस प्रकार के हतोत्साह का चिन्ह है जो एकदम बड़े कार्यक्रमों से मुँह मोड़ लिया गया। नहीं ! वस्तुतः यह बात नहीं है। जो भी ऊर्जा सत्ताईस बड़े अश्वमेधिक प्रयोगों से निस्तृत हुई यदि इसका नियोजन हीरक मण्डलों का गठन, सुनियोजित ग्रामीण विकास योजना से लेकर राष्ट्र एवं विश्वव्यापी आध्यात्मिक पुनर्जागरण में नहीं किया गया एवं इसके लिए कार्यकर्त्ताओं को एक सुनिश्चित क्रिया पद्धति देकर स्पष्ट पैकेज नहीं दिये गये, वह यह साधनारत दृष्टि से हर कार्यकर्त्ता को इतना सम्पन्न बना देना कि वे आने वाले 5 वर्षों में होने वाले अप्रत्याशित विश्वव्यापी परिवर्तनों के लिए स्वयं। को तैयार कर सके । इसके लिए महाकाल का घोंसला शाँतिकुँज जहाँ परम पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी की शक्ति घनीभूत रूप से विद्यमान है । साधनात्मक आधार सशक्त रहा तो प्रचारात्मक स्तर पर किये गये विगत पाँच वर्षों के सफल पुरुषार्थ को एक नयी गति मिलेगी एवं सुव्यवस्थित सुस्पष्ट आंकड़ों में सिमट जाने वाला यह युग निर्माण मिशन अपनी उन छह महाक्राँतियों को सम्पन्न कर सकेगा, जिनकी घोषणा आँवलखेड़ा कार्यक्रम में की गयी थी। आश्वमेधिक प्रयोगों ने सारे देश व विश्व में एक विलक्षण ऊर्जा भरा आभा मण्डल युक्त वातावरण विनिर्मित किया है। किंतु यह अपूर्ण है, यदि इस रजत जयन्ती वर्ष में अनुयाज का कार्य सक्रिय रूप से सम्पन्न न हुआ तो सही प्रामाणिक कार्यकर्त्ता एवं खोटे मात्र महत्वाकांक्षा प्रदर्शन की दृष्टि से जुड़े व्यक्तियों के परख हो कर छँटाई न हो पाई, प्रत्येक स्थान पर व्यक्ति व्यक्ति में मन मिलाकर एकता स्थापित न हो पाई एवं हमारी श्रद्धा समर्पण को एक रचनात्मक मोड़ न मिल पाया।

इतना समझ लेने पर मात्र संगठनात्मक एवं रचनात्मक पुरुषार्थ हेतु खाली रखे गये अनुयाज वर्ष के सभी निर्धारणों एवं आगामी 6 वर्षों की योजनाबद्ध क्रियापद्धति को समझा जा सकेगा। इस वर्ष जो किया जाना है, वह संक्षेप में यहाँ दिया जा रहा है। विस्तार से परिजन अगले अंक में पढ़ सकेंगे।

(अ ) रजत जयन्ती वर्ष में परम पूज्य गुरुदेव के जीवन के अंतिम अध्याय के रूप में सक्रिय कर्मभूमि शाँतिकुँज जिसे उनने 21 वीं सदी की गंगोत्री कहा था, से पूरे देश भर में जन जागरण का अभियान पूरी तीव्र गति से चलाया जायेगा। प्रायः दस लाख समय दानी कार्यकर्त्ताओं की शक्ति से सम्पन्न यह मिशन जिस सत्ता ने अपनी भावी संवेदना को खाद पानी देकर सींचा है, उसे सशक्त आधार देने के लिए मात्र कार्यकर्त्ताओं की दृष्टि से यह वर्ष भर आयोजित किया जायेगा। सभी से कहा जायेगा कि अपने अपने स्तर पर क्षेत्र में शाँतिकुँज का इतिहास उनकी रचनात्मक उपलब्धियों - सृजन की दिशा में उनके योगदानों को नये व्यक्तियों तक प्रचारित कर न्यूनतम दस व्यक्ति नये तो गंगोत्री के प्राण प्रवाह में जोड़े ही।

स्थान स्थान पर विगत 25 वर्षों की उपलब्धि व भावी योजनाओं पर भाव भरा आमंत्रण दिया जायेगा। इस संबंध में जन सामान्य के लिए गायत्री जयन्ती से गुरुपूर्णिमा तक शाँतिकुँज, जो कि अब एक विराट रूप ले चुका है, में इन्हीं वर्ग के अधिकारी, व्यापारी, शिक्षक, प्रवासी परिजन तथा नये व्यक्तियों के सुनियोजित शिविर सम्पन्न होते रहेंगे।

शाँतिकुँज की उपलब्धियाँ एवं भावी योजनाओं पर आकर्षक प्रदर्शनी बनाने का भी संकल्प है ताकि जन जन तक यह संदेश पहुँच सके।

(ब ) क्षेत्रीय स्तर पर परिजनों के मण्डलों में गठित करने हेतु विरल स्तर पर 5-6 जिलों के एवं सघन स्तर पर 1-2 जिलों के सम्मेलन गहन मंथन के बाद आयोजित होते रहेंगे। ये विशुद्ध उनके लिए होंगे जो कुछ विशेष समय युग देवता के निमित्त आगामी 6 वर्षों में निकालने हेतु कटिबद्ध होने जा रहे है। संधिकाल में इस वेला में खरे प्रमाणिक ही एक स्तर के कार्यकर्त्ताओं की तलाश हेतु उनसे चर्चा कर राष्ट्रव्यापी जागरण के निमित्त उनकी क्या भूमिका हो, इसी केन्द्र बिन्दु पर ये सम्मेलन होंगे। परम पूज्य गुरुदेव जी कहते रहे है कि हमारे संगठन के विकेन्द्रीय करण का प्रान्तों के विभाजन से कोई संबंध नहीं है। विभिन्न प्रांतों के समीपवर्ती जिले मिलकर कार्यकर्त्ता सम्मेलन आयोजन कर समय दान की सुनिश्चित प्रक्रिया का निर्धारण कर सकते हैं जिसकी परिधि वह क्षेत्र विशेष या उसका विस्तार हो सकता है। अभी पिछले दिनों ऐसे तीन प्रयोग क्षेत्रीय स्तर पर भीलवाड़ा, दक्षिण गुजरात के बलसाड़ तथा लखनऊ राजधानी परिसर के आस पास में आयोजित कार्यकर्त्ता सम्मेलन के रूप में हो चुके है।ये बड़े सफल रहें इनसे मिशन का संगठनात्मक आधार सशक्त बना है। इसी स्तर के कार्यक्रम पूरे देश के सभी परिजनों को कार्यकर्त्ताओं की सघनता के आधार पर बाँटते हुए शाँतिकुँज के समान्तर क्षेत्रीय सम्मेलन के रूप में होंगे। लक्ष्य एक ही होगा कि जवाबदार जिम्मेदार हीरे की चमक वाले कार्यकर्त्ता उसमें उभर कर आगे आये। व आगामी 6 वर्षों के लिए स्वयं को तैयार करें। इसके लिए प्रारम्भिक पर्यवेक्षण हेतु दो दो केन्द्रीय कार्य कर्त्ताओं के दल वसंत के तुरन्त बाद पूरे भारत में रवाना कर दिये गये है जो सर्वेक्षण करके केन्द्र को रिर्पोट देंगे व तदनुसार ही शिवरात्रि के बाद का आयोजन परक प्रारूप बनेगा।

(स ) आध्यात्मिक पुनर्जागरण के रूप में 6 महाक्राँतियों में से पहला कार्यक्रम इस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि इस विषम वेला में, जब चारों ओर पीड़ा, पतन, और पराभव दृष्टिगोचर हो रहा है, नैतिक मूल्यों का हास तेजी से होता दीख पड़ रहा है, पारिवारिक मर्यादायें टूटती जा रही है, समाज संस्कार विहीन होता जा रहा है, इसके लिए अधिकाधिक व्यक्ति युग संधि महापुरश्चरण के इस द्वितीय चरण में भागीदार बने, इस संबंध में प्यास गतिशील होना चाहिए । क्योंकि अपनी परिधि सारा विश्व है, इस लिए सभी की भागीदारी जोड़ी जा सके उतना ही सूक्ष्म जगत का संशोधन होगा एवं उतना ही नव युग के अवतरण के योग्य वातावरण विनिर्मित होगा।

शब्द शक्ति से वातावरण संशोधन की बात चिरपुरातन है एवं इसी लक्ष्य को लेकर 2400 करोड़ के गायत्री जप रूपी युग संधि महापुरश्चरण रूपी ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान पूज्यवर ने 12 वर्षों के लिए 1989 की वसंत में आरम्भ कराया था। जप इससे कही अधिक हुआ एवं उसी ऊर्जा को अनुप्राणित आँवल खेड़ा का प्रथम पूर्णाहुति समारोह सम्पन्न होता सबने देखा। अब लक्ष्य आगामी 6 वर्षों के लिए निर्धारित होना है । इसमें 24000 करोड़ गायत्री महा मंत्र भगवान्नाम का जप पूरे विश्व भर में होना सुनिश्चित करना है।यह कोई बड़ा लक्ष्य नहीं । यदि 15 -20 लाख व्यक्ति प्रतिदिन एक माला आत्मकल्याण के प्रति 6 वर्ष तक करें तो सभी बीच के अवकाश आदि के दिनों को निकालकर यह जप संभव है। जो गायत्री मंत्र जप नहीं कर सकते वे ॐ भूर्भुवः स्वः अथवा ॐ ॐ ॐ, अथवा राम राम राम अथवा नमः शिवाय अथवा संप्रदायगत निर्धारित मंत्र का जप प्रतिदिन 10 मिनट करे एवं समष्टिगत कल्याण की भावना मन में रखते हुए स्वाध्याय मनन के साथ इसका समापन करे। यदि यह क्रम नियमित चल गया तो 15 लाख नये व्यक्ति अन्यान्य सम्प्रदायों के या अल्पशिक्षित वर्ग के इस मिशन के साथ जुड़ेंगे ।

आध्यात्मिक पुनर्जागरण के इस क्रम में घर परिवार के सुसंस्कारों की स्थापना अखण्ड ज्योति के मिशन पत्रिकाओं को पढ़कर, गायत्री चालीसा पाठ, देवस्थापना करने वालो की संख्या में अभिवृद्धि, 24000 करोड़ गायत्री मंत्र लेखन या भगवान्नाम रूपी एक सुनियोजित कार्यक्रम पाठकगण आगामी माह की अखण्ड ज्योति एवं प्रज्ञा अभियान पाक्षिक युग निर्माण योजना मासिक में पढ़ सकेंगे। इस प्रक्रिया से देश का कोई भी कोना अछूता नहीं रहेगा और सूक्ष्म स्तर पर यह विराट धर्मानुष्ठान व सम्पन्न हो सकेगा जो भावी आयोजनों के आधारशिला रखेगा, नवयुग की पृष्ठभूमि बनायेगा।

6 महाक्रांतियां जो इस पुनर्गठन वर्ष में घोषित है- (1 ) आध्यात्मिक पुनर्जागरण (2) नारी शक्ति का जागरण (3 ) घर घर में वेद स्थापना(4 ) पर्यावरण संतुलन हेतु जनजाग्रति-हरीतिमा विस्तार शाकाहार, जीव दया आन्दोलन (5 ) चल ग्राम्य चिकित्सा सेवा एवं ग्रामीण पुनरुत्थान (6 ) लोक रंजन से लोक मंगल कला मंच के माध्यम से लोक मानस का परिष्कार अगले दिनों एक एक करके हाथ में ली जाती रहेगी व इनसे सारे देश व विश्व की एक एक व्यापक हलचल मचा दी जायेगी।

रजत जयन्ती वर्ष जो उल्लास के इस वासंती माहौल में आया है, हम सबके साधनात्मक पुनर्गठन व परिवार के पारस्परिक एकीकरण एवं शाँतिकुँज की चेतना के घर घर विस्तार के निमित्त नियोजन होना है। आइए, हम आप सभी इसे उत्साह, उमंग के साथ मनाये एवं महाकाल के श्रीचरणों में ऐसा कुछ अर्पित करने का संकल्प ले जिससे जो होने जा रहा है, वह भवितव्यता है, उसमें हमारा महत्वपूर्ण योगदान हो, हम श्रेयार्थी बन सके।

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