• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • धारा को चीरकर चल पड़ने जैसा पराक्रम
    • शाश्वत को तलाशो
    • अद्भुत और विलक्षण है यह सृष्टि
    • वे हमारी धरती का द्वार खटखटा रहे हैं।
    • अध्यात्म दर्शन का मर्म
    • पिशाच रूपी क्रोध (Kahani)
    • आत्मा पथिक काया सराय
    • कुछ अनसुलझी गुत्थियाँ
    • जिन प्रेम कियो तिनहिं प्रभु पायो
    • मंत्र साधना : आधार और चमत्कार
    • श्रम की सुगन्ध
    • ब्रह्माण्डीय चेतन प्रवाह के अंशधर हम सब
    • स्वेदना की टीस बदल रही है प्रचलन
    • ओजस्, तेजस्, ब्रह्मवर्चस्
    • सर्वश्रेष्ठ औषधि
    • गुरु गोविन्द सिंह और रघु (Kahani)
    • सूर्य किरणों में विलक्षण सामर्थ्य
    • जीवन जीने की कला सिखाए, वह है अध्यात्म
    • भजन, मनन और चिंतन की त्रिवेणी
    • आइए, मिल जुलकर जीना प्रकृति से सीखें
    • दिव्य औषधियों से होता है आध्यात्मिक कायाकल्प
    • संसार के कुशल समाचार (Kahani)
    • कटु वचनों का घाव (Kahani)
    • कुमारिल भट्ट और उनका प्रायश्चित
    • तेज पुँज ज्योति अवतरण की साधना
    • सामगान, सामवेद का ज्ञान क्यों है अनिवार्य ?
    • मानव जीवन : एक प्रवास ही तो है।
    • लोकसेवी का दृष्टिकोण और जीवन नीति
    • आगत का स्वागत
    • आगत का स्वागत (Kavita)
    • एक ही रास्ता
    • एक ही रास्ता (Kavita)
    • वसंत की वेला में गुरुवर का वासंती संदेश
    • विदाई की घड़ियाँ और गुरुदेव की व्यथा वेदना ?
    • रजत जयन्ती वर्ष में अनुयाज महाक्राँति का शंखनाद
    • महाकाल के घोंसले का परिजनों को भावभरा संदेश
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • धारा को चीरकर चल पड़ने जैसा पराक्रम
    • शाश्वत को तलाशो
    • अद्भुत और विलक्षण है यह सृष्टि
    • वे हमारी धरती का द्वार खटखटा रहे हैं।
    • अध्यात्म दर्शन का मर्म
    • पिशाच रूपी क्रोध (Kahani)
    • आत्मा पथिक काया सराय
    • कुछ अनसुलझी गुत्थियाँ
    • जिन प्रेम कियो तिनहिं प्रभु पायो
    • मंत्र साधना : आधार और चमत्कार
    • श्रम की सुगन्ध
    • ब्रह्माण्डीय चेतन प्रवाह के अंशधर हम सब
    • स्वेदना की टीस बदल रही है प्रचलन
    • ओजस्, तेजस्, ब्रह्मवर्चस्
    • सर्वश्रेष्ठ औषधि
    • गुरु गोविन्द सिंह और रघु (Kahani)
    • सूर्य किरणों में विलक्षण सामर्थ्य
    • जीवन जीने की कला सिखाए, वह है अध्यात्म
    • भजन, मनन और चिंतन की त्रिवेणी
    • आइए, मिल जुलकर जीना प्रकृति से सीखें
    • दिव्य औषधियों से होता है आध्यात्मिक कायाकल्प
    • संसार के कुशल समाचार (Kahani)
    • कटु वचनों का घाव (Kahani)
    • कुमारिल भट्ट और उनका प्रायश्चित
    • तेज पुँज ज्योति अवतरण की साधना
    • सामगान, सामवेद का ज्ञान क्यों है अनिवार्य ?
    • मानव जीवन : एक प्रवास ही तो है।
    • लोकसेवी का दृष्टिकोण और जीवन नीति
    • आगत का स्वागत
    • आगत का स्वागत (Kavita)
    • एक ही रास्ता
    • एक ही रास्ता (Kavita)
    • वसंत की वेला में गुरुवर का वासंती संदेश
    • विदाई की घड़ियाँ और गुरुदेव की व्यथा वेदना ?
    • रजत जयन्ती वर्ष में अनुयाज महाक्राँति का शंखनाद
    • महाकाल के घोंसले का परिजनों को भावभरा संदेश
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


जीवन जीने की कला सिखाए, वह है अध्यात्म

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 17 19 Last
इस संसार में मानव जीवन से अधिक श्रेष्ठ अन्य कोई उपलब्धि नहीं मानी गई है। एक मात्र मानव जीवन ही वक अवसर है जिसमें मनुष्य जो भी चाहे प्राप्त कर सकता है। इसका सदुपयोग उसके कल्पवृक्ष की भांति फलीभूत हो रहा है।

जो मनुष्य इस सुरदुर्लभ मानव जीवन को पाकर उसे सुचारु रूप से संचालित करने की कला नहीं जानता है अथवा उसे जानने का प्रमाद करता है, तो उसका बड़ा दुर्भाग्य ही होता है। मानव जीवन वह पवित्र क्षेत्र है, जिसमें परमात्मा ने सारी विभूतियां बीज रूप में रख दी है जिनका विकास नर को नारायण बना देता है। किंतु इन विभूतियों का विकास होता तभी है, जब जीवन का व्यवस्थित रूप से संचालन किया जाय। अन्यथा अव्यवस्थित के आधार पर दरिद्रता की वृद्धि कर देता है।

जीवन को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए एक वैज्ञानिक पद्धति है उसे अपना कर चलने पर इसमें वाँछित फलों की उपलब्धि की जा सकती है। अन्यथा इसकी भी वही गति होती हैं, जो अन्य पशु प्राणियों की होती है। जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए वैज्ञानिक पद्धति एक मात्र अध्यात्म है। जिसे जीवन जीने की कला भी कहा जाता है। इस सर्वश्रेष्ठ कला को जाने बिना जो मनुष्य अस्त व्यस्त ढंग से बिताता रहता है। उसे उनमें से कोई भी ऐश्वर्य उपलब्ध नहीं हो सकता, जो लोक से लेकर परलोक तक फैले है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष जिनके अंतर्गत आदि से लेकर अंत तक सारी सफलताएँ सन्निहित है, इसी जीवन कला के आधार पर ही तो मिलते हैं। सामान्य लोगों के बीच प्रायः या भ्रम फैला हुआ है कि अध्यात्मवाद का लौकिक जीवन से कोई संबंध नहीं है। वह योगी तप स्थितियों का क्षेत्र है जो जीवन में दैवीय वरदान प्राप्त करना चाहतें है, जो सांसारिक जीवन यापन करना चाहते हैं, घर- वार बसाकर रहना चाहते हैं। उनसे अध्यात्म का संबंध नहीं है।इसी भ्रम के कारण बहुत से गृहस्थ भी जो दैवीय वरदान की लालसा के फेर में पड़ जाते हैं अध्यात्म मार्ग पर चलने का प्रयत्न करते हैं किंतु अध्यात्म का सही अर्थ न जानने के कारण थोड़ा सा पूजा पाठ कर लेने से ही अध्यात्म मान लेते हैं।

यह बात सही है कि अध्यात्म मार्ग पर चलने से उसकी साधना करने से देवीय वरदान भी मिलते हैं और ऋषि सिद्ध की भी प्राप्ति होती है किंतु वह उच्चस्तरीय सूक्ष्म साधना का फल है कुछ दिनों पूजा पाठ करने अथवा जीवन भर यों ही कार्यक्रम के अंतर्गत पूजा करते रहने पर भी ऋषियों वाला ऐश्वर्य प्राप्त नहीं हो सकता। उस स्तर की साधना कुछ भिन्न प्रकार की होती हैं वह सर्व समान लोगों के लिए संभव नहीं उन्हें ताप संध्या आत्म अध्ययन में न पड़कर अपने आवश्यक कर्तव्यों में ही आध्यात्मिक निष्ठा रखकर जीवन को आगे बढ़ाते रहना चाहिए। उनके साधारण पूजा पाठ का जो कि जीवन का एक अनिवार्य अंग होना ही चाहिए। अपनी तरह लाभ मिलता रहेगा। थोड़ी सी साधारण पूजा उपासना करके जो जीवन में अलौकिक ऋषि सिद्ध पाने की लालसा रखते हैं वे किसी जुआरी की तरह नगण्य सा धन लाकर बहुत अधिक लाभ उठाना जानते हैं। बिना श्रम के मालामाल होना जानते हैं। ऐसे लोभी उपासकों की यह अनिश्चित आशा कभी भी पूरी नहीं हो सकती और हो यह भी हो सकता है कि इस लोभ के कारण अपनी उस समान उपासना का भी कोई फल न मिले । देवताओं का वरदान वस्तुतः इतना सस्ता नहीं होता जितना कि लोगों ने समझ रखा है।वे मंदिर में जाकर हाथ जोड़े जान या अक्षत पुष्प जैसी तुच्छ वस्तुएं चढ़ा देन से प्रसन्न हो जायेगी और अपने वरदान लूटने लगेंगे । ऐसा सोच कर अज्ञान के सिवाय और कुछ नहीं । सामान्य पूजा पाठ का अपना जो पुरस्कार है मिलेगा। वही उससे अधिक कुछ नहीं वरदानी अथवा आलौकिक ऐश्वर्य का आधार आत्म सम्मान उपासना मात्र नहीं है। उसका क्षेत्र आत्मा के सूक्ष्म संस्थाओं की साधना, उन शक्तियों के प्रबोधन की प्रक्रिया है जो मनुष्य के अंतःकरण में बीच रूप में सन्निहित आत्मिक अध्ययन के उस क्षेत्र में एक से एक बढ़कर सिद्धियाँ एवं स्मृतियाँ भारी पड़ जाती है किंतु उनकी प्राप्ति तभी संभव है जब मन में वृद्धि, चित्त, अहंकार, से निर्मित अंतःकरण पाँचों कोशों 6 चक्रों मस्तिष्कीय ब्रह्म रन्ध्र में अव्यवस्थित, कमल हृदय स्थिति सूर्य चक्र नाभि की ब्रह्म ग्रंथि और मूलाधार वासनीय कुंडलिनी आदि के शक्ति संस्थान और कोश केन्द्रों के प्रबुद्ध प्रयुक्त ओर अनुकूलता पूर्वक निर्धारित दिशा में सक्रिय बनाया जा सकता है यह बड़ी गहन सूक्ष्म और साध्य तपस्या है।जन्म जन्म से तैयारी किये हुए किये हुए कोई बिरले ही वह साधना कर पाते हैं और आलौकिक शक्तियों को प्राप्त करते हैं यह साधना न सामान्य है और न कोई सर्वसाधारण के वश की। तथापि असंभव भी नहीं हैं एक समय था, जब भारत वर्ष में अध्यात्म की इस साधना पद्धति का पर्याप्त प्रचलन रहा।देश का ऋषि वर्ग उस वर्ग की देन है। जो पुरुषार्थी इस साधना को पूरा करते गये, वे ऋषियों की श्रेणी में आते गये। यद्यपि आज इस साधना के सर्वथा उपयुक्त न तो साधन है और न समय, तथापि यह परम्परा पूरी तरह से उठ नहीं गयी है।अब भी यदा कदा यत्र तत्र इस साधना के सिद्ध पुरुष देखे सूने जाते हैं। किन्तु इनकी संख्या बहुत विरल है । वैसे योग का स्वाँग दिखाकर और सिद्धों का वेश बनाकर पैसा कमाने वाले रंगे सियार तो बहुत देखे है। किन्तु उच्चस्तरीय अध्यात्म विद्या की पूर्वोक्त वैज्ञानिक पद्धति से सिद्धि की दिशा में अग्रसर होने वाले सच्चे योगी के बराबर ही नहीं है। जिन्होंने साहसिक तपस्या के बल पर आत्मा की सूक्ष्म शक्तियों को जागृत कर प्रयोग योग्य बना लिया है, वे संसार के मोह जाल से दूर प्रायः अप्रत्यक्ष ही रहा करते हैं।शीघ्र किसी को प्राप्त नहीं होते और पुण्य अथवा सौभाग्य से जिसको मिल जाते हैं, उनकी जीवन उनके दर्शन मात्र से धन्य हो जाता है।

इतनी बड़ी तपस्या की छोटी मोटी साधना अथवा थोड़े से कर्म काण्ड द्वारा पूरी कर लेने की आशा करने वाले बाल बुद्धि के व्यक्ति ही माने जायेंगे। यह उच्चस्तरीय आध्यात्मिक साधना शीघ्र पूरी नहीं की जा सकती है। स्तर के अनुरूप ही पर्याप्त समय, धैर्य, पुरुषार्थ एवं शक्ति की आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता की पूर्ति धीरे धीरे अपने वाह्य जीवन के परिष्कार से प्रारम्भ होती है।

आज के समाज में हम सब जिसे स्थिति में चल रहे है, उसमें जीवन निर्माण की सरल आध्यात्मिक साधना ही संभव है। इस सत्र से शुरू किये बिना काम भी नहीं चल सकता। वाह्य जीवन की यथा स्थिति में छोड़कर आत्मिक स्तर पर पहुँचा सकना भी तो संभव नहीं है। अस्तु हमें उस अध्यात्म को लेकर ही चलना होगा, जिसे जीवन जीने की कला कहा जाता है।

जीवन विषयक अध्यात्म हमारे गुण, कर्म, स्वभाव से संबंधित है। हमें चाहिए कि हम अपने गुणों की वृद्धि करते रहे। ब्रह्मचर्य, सच्चरित्रता, सदाचार, मर्यादा-पालन और अपनी सीमा में अनुशासित रहना आदि ऐसे गुण है, जो जीवन जीने की कला के नियम माने गये हैं। व्यसन, अव्यवस्था, अस्तव्यस्तता व आलस्य अथवा प्रमाद जीवन कला के विरोधी दुर्गुण है। इनका त्याग करने से जीवन कला को बल प्राप्त होता है। हमारे कर्म भी गुणों के अनुसार ही होने चाहिए। गुण और कर्मों में परस्पर विरोध रहने से जीवन में न शाँति का आगमन होता है और न प्रगतिशीलता का समावेश। हममें सत्यनिष्ठा का गुण तो हो पर उसे कर्मों में मूर्तिमान होने का साहस न हो तो कर्म तो जीवन कला में प्रतिकूल होते ही है, वह गुण भी मिथ्या हो जाता है। सत्कर्मों में हमारी आस्था तो हो पर पुण्य परमार्थ की सक्रियता से दूर ही रहे तो जीवन कला के क्षेत्र में यह एक आत्म प्रवंचना होगी। इस प्रकार हमारा स्वभाव भी इन दोनों के अनुरूप ही होना चाहिए। हममें दानशीलता का गुण भी हो और अवसरानुसार सक्रिय भी होता हो, किन्तु यदि उसके साथ अहंकार भी जुड़ा है तो यह गुण कर्म का स्वाभाविक विरोध ही होगा, जो जीवन कला के अनुरूप ही नहीं है। हम सदाशयी परमार्थी और सेवा भावी तो है और कर्मों में अपनी इन भावनाओं को मूर्तिमान भी करते हैं, किन्तु यदि स्वभाव से क्रोधी, कठोर अथवा निर्बल है तो इन सद्गुणों और सत्कर्मों का कोई मूल्य नहीं रह जाता है। किसी को यदि परोपकार द्वारा सुखी करते हैं और किसी को अपने क्रोध का लक्ष्य बनाते हैं तो एक प्रकार का पुण्य दूसरे आरे के पाप से ऋण होकर शून्य रह जायेगा। गुण, कर्म, स्वभाव तीनों के सामंजस्य एवं अनुरूपता ही विशेषता है, जो जीवन जीने की कला में सहायक होती है।

जीवन यापन की वह विधि ही जीवन जीने की कला है, जिसके द्वारा हम स्वयँ अधिकाधिक सुखी, शान्त और संतुष्ट रह सके, साथ ही दूसरों को भी उसी प्रकार रहने में सहयोगी बना सके और यही वह प्रारम्भिक अध्यात्म है, जिसके द्वारा जीवन निर्माण होता है और आत्मा की सूक्ष्म आत्म साधना पथ प्रशस्त होता है। हम सब को इसी सरल और साध्य अध्यात्म को को लेकर क्रम क्रम से आगे बढ़ना चाहिए। सहसा आदि से अंत पर कूद जाने का प्रयत्न करना एक ऐसी असफलता को आमंत्रित करता है, जिससे न तो ठीक से जीवन जिया जा सकता है और न उच्चस्तरीय साधना को सामान्य बनाया जा सकता है।

पुराकालीन ऋषि मुनियों ने भी उच्चस्तरीय आध्यात्म में सहसा ही छलाँग नहीं लगाई। उन्होंने ने भी अभ्यास द्वारा पहले अपने वाह्य जीवन को ही परिष्कृत किया और तब क्रम क्रम से आत्मिक जीवन में उच्च साधना के लिए पहुँचे । इस नियम का - कि पहले वाह्य जीवन में व्यवहारिक अध्यात्म का समावेश करके उसे सुख शाँतिमय बनाया जाय। इस प्रसंग में जो भी पुण्य परमार्थ अथवा पूजा उपासना उपेक्षित हो उसे करते रहा जाय । लौकिक जीवन में सुविकसित एवं सुसंस्कृति बना देने के बाद ही आत्मिक अथवा आलौकिक जीवन में प्रवेश किया जाय।

अध्यात्म मानव जीवन के चरमोत्कर्ष की आधार शिला है, मानवता का मेरुदण्ड है । इसके अभाव में असुख, अशाँति एवं असंतोष की ज्वालाएँ मनुष्य को घेरे रहती है। मनुष्य जाति की अगणित समस्याओं को हल करने और सफल जीवन जीने के लिए अध्यात्म से बढ़कर कोई उपाय नहीं है।

First 17 19 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • धारा को चीरकर चल पड़ने जैसा पराक्रम
  • शाश्वत को तलाशो
  • अद्भुत और विलक्षण है यह सृष्टि
  • वे हमारी धरती का द्वार खटखटा रहे हैं।
  • अध्यात्म दर्शन का मर्म
  • पिशाच रूपी क्रोध (Kahani)
  • आत्मा पथिक काया सराय
  • कुछ अनसुलझी गुत्थियाँ
  • जिन प्रेम कियो तिनहिं प्रभु पायो
  • मंत्र साधना : आधार और चमत्कार
  • श्रम की सुगन्ध
  • ब्रह्माण्डीय चेतन प्रवाह के अंशधर हम सब
  • स्वेदना की टीस बदल रही है प्रचलन
  • ओजस्, तेजस्, ब्रह्मवर्चस्
  • सर्वश्रेष्ठ औषधि
  • गुरु गोविन्द सिंह और रघु (Kahani)
  • सूर्य किरणों में विलक्षण सामर्थ्य
  • जीवन जीने की कला सिखाए, वह है अध्यात्म
  • भजन, मनन और चिंतन की त्रिवेणी
  • आइए, मिल जुलकर जीना प्रकृति से सीखें
  • दिव्य औषधियों से होता है आध्यात्मिक कायाकल्प
  • संसार के कुशल समाचार (Kahani)
  • कटु वचनों का घाव (Kahani)
  • कुमारिल भट्ट और उनका प्रायश्चित
  • तेज पुँज ज्योति अवतरण की साधना
  • सामगान, सामवेद का ज्ञान क्यों है अनिवार्य ?
  • मानव जीवन : एक प्रवास ही तो है।
  • लोकसेवी का दृष्टिकोण और जीवन नीति
  • आगत का स्वागत
  • आगत का स्वागत (Kavita)
  • एक ही रास्ता
  • एक ही रास्ता (Kavita)
  • वसंत की वेला में गुरुवर का वासंती संदेश
  • विदाई की घड़ियाँ और गुरुदेव की व्यथा वेदना ?
  • रजत जयन्ती वर्ष में अनुयाज महाक्राँति का शंखनाद
  • महाकाल के घोंसले का परिजनों को भावभरा संदेश
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj