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Magazine - Year 1996 - Version 2

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मानव जीवन : एक प्रवास ही तो है।

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जब पृथ्वी के यातायात के साधनों का उतना अधिक विकास नहीं हुआ था तब भी यात्राएँ मानव स्वभाव का एक आवश्यक अंग थी। न केवल आजीविका, रोजगार, अध्ययन अपितु प्राकृतिक सुषमा दर्शन सत्संग और ज्ञान प्राप्ति के लिए एकाकी और सामूहिक यात्राएँ आयोजित हुआ करती थी। साधना के विकास के साथ साथ इस प्रवृत्ति का विकास हुआ है। यात्राओं की सफलता के लिए प्रचुर भौगोलिक ज्ञान स्थान विषय के रीति रिवाज, रहन-सहन, योग्य विश्राम स्थलों की जानकारियाँ पूर्व में ही उपलब्ध हो जाने के कारण यह यात्राएँ अब सब तरह की आत्म देह हो गयी है।

दूसरी ओर पशु पक्षी है उनमें भी प्रवास की नैसर्गिक गुण आदिकाल से चला आया है। उनकी यात्राएँ पहले की अपेक्षा अब अधिक संकट पूर्ण हो गयी है। उन्हें कोई भी भौगोलिक ज्ञान भी नहीं मिला होता किंतु यह प्रकृति का एक चमत्कार ही है कि प्रतिवर्ष हजारों पक्षी, जंगली जीव न केवल पड़ोसी राज्यों की अपितु सुदूर देशों की भी यात्राएँ करते हैं। मनुष्य में भाषा वाद, जातिवाद, रहन-सहन की भिन्नता के कारण उनके हृदय परस्पर मिल नहीं पाते, पर इन जीवों का ऐसा कोई अंतर्द्वंद्व नहीं। विशेष अवसरों पर विशेष स्थानों पर अनेक देशों से आये भिन्न भिन्न जाति के पक्षी और जीव जन्तु परस्पर सहिष्णुता आदर भावना और भाईचारे की स्वस्थ परम्परा से जीवन निर्वाह कर नियत समय पर अपनी मातृभूमि लौट जाते हैं। मनुष्य जीवन भी एक सुनिश्चित और विराट प्रवाह का लघु संस्करण है। जीव जंतुओं के माध्यम से हम पता लगा सके कि इस नैसर्गिक क्षमता के कारण क्या है तो एक अनोखी जीवन दृष्टि का विकास नितान्त संभव है।

प्रवासी पक्षियों की व्हाइट स्टार्क, गोल्डन प्लावर, आर्कटिक टर्न, सेन् पाइपर, सारस मुख्य है। यह अधिकाँश समुद्र के ऊपर उड़ान भरते हैं। इसलिए उबाऊ दूरी लगातार उड़कर पार कर लेते हैं। गोल्डन प्लावर टुन्ड्रा के पम्पास तक की 1200 किमी. स्वेत स्टार्क को समूचा स्टार्क जिब्राइटल जल भ्रूमध्य आर्कटिक टर्न जब ये उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव लगभग 14 हजार किमी. दूरी तय कर यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं और कुछ समय विश्राम कर वे अपनी आगे की यात्रा प्रारम्भ करते हैं।

प्रवास मनुष्य जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। चाहे वह मनोरंजन के लिए हों या आजीविका, तीर्थयात्रा, प्रकृति दर्शन के लिए, उनमें मानव मन की जिज्ञासाओं को असीम परितृप्ति मिलती है। इससे अनेक सीमित दायरे के प्रति असंतोष और विराट के प्रति कौतूहल मिश्रित जिज्ञासा का पता चलता है। पशु - पक्षियों में भी यह गुण समान रूप से पाया जाता है, वे न केवल घाटियाँ, प्रदेश और प्रान्तर प्रवास में ही रुचि रखते हैं अपितु देशान्तर दूरियाँ पार कर ये भी दूसरे देशों को जाने का आनन्द लेते हैं। यह भी एक अपवाद है कि यह जीव जन्त् भारतवर्ष आना अधिक पसन्द करते हैं संभव है यहाँ की सम शीतोष्ण जलवायु उसका कारण है। प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में पक्षी भारत के विभिन्न प्रान्तों में आते और कई बार तो लगातार 2000 मील की लगातार उड़ान करके भी यहाँ आते हैं। योरोपीय देशों में सारस शरद ऋतु में अफ्रीका आ जाते हैं और वसन्त ऋतु में पुनः लौट जाते है एक बार पूर्ण प्रशा से अनभिज्ञ सारस के कुछ बच्चे ऐसेन नामक स्थान पर ले जाकर छोड़ दिये गये । उस समय तक वहाँ के अन्य प्रवासी सारस जा चुके थे । अत्यधिक चक्कर दार रास्ता होने पर भी किसी अंतः प्रेरणा से किसी निश्चित दिशा से प्रशा जा पहुँचे। इसी तरह कुछ कौवों को उत्तरी जर्मनी और वाल्टिक के पार उत्तर पूर्व की दिशा में ले जाकर छोड़ा गया, पर वे 400 मील करी वापसी यात्रा समान्तर मार्ग से सम्पन्न कर यथा पूर्व स्थान पर लौट आयें। आश्चर्य तो तब होता है जब इनके अण्डे भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँची दिये जाय तो उनसे निकलने वाले बच्चे भी अपने जन्म स्थान लौट आये। ऐसा पैतृक गुण सूत्रों की प्रेरणा से होता है। इससे संस्कारों की महत्ता प्रतिपादित होती है।

इंग्लैंड से अफ्रीका की दूरी 6000 मील है वहाँ की अवावीलों कष्ट उठाकर भी यह देशान्तर करती है। अमेरिका से दक्षिणी अफ्रीका जाने वाली स्वर्ण टिटहरी को 2000 मील यात्रा करनी पड़ती है । पेन्गुइन उड़ नहीं सकने पर वह समुद्र में तैर कर ही अंटार्टिका से दक्षिणी अफ्रीका की यात्रा करती है। वे जिस रास्ते जाती है उसी रास्ते आती है विशेष ध्वनि से गाते हुए चलने वाली इनकी टोलियाँ दर्शकों का मन उसी तरह मोहती है, जैसे मेले-ठेले जाने वाली स्त्रियों की गीत गाती टोलियाँ।

अपने जन्म स्थान की कुत्तों को भी विलक्षण पहचान होती है। वे गंध के सहारे सैकड़ों मील दूर से भी अपने घर वापस लौट आते हैं । न्यूयार्क का कुत्ता एल्वनी विश्व भ्रमण की ख्याति प्राप्त कर चुका है। इसने अकेले रेल और समुद्री जहाजों से जापान, चीन, यूरोपी देशों की यात्रा की और अंततः सकुशल न्यूयार्क वापस लौट आया।

मनुष्य कहाँ से आया उसका यथार्थ क्या है, यह न तो समझने का प्रयास करता है और न लक्ष्य प्राप्ति का प्रयत्न, पर यह पक्षी है जो दूर दूर तक जाकर भी समय पर प्रयत्न पूर्वक खुशी खुशी लौट आता है। शरद ऋतु में उत्तरी पश्चिमी ध्रुव प्रदेशों के पक्षी भारत, दक्षिणी अफ्रीका, श्री लेका तक फैल जाते हैं, पर ग्रीष्म ऋतु आते ही अपनी जन्मभूमि लौट आते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के समय जीव वैज्ञानिक जर्मनी के विम्रेन नगर में एक प्रयोग किया। उन्होंने सात अवाविलयाँ पकड़ी और उन्हें लाल रंग सं रंग दिया। फिर उन्हें विमान में बैठाकर लन्दन लाकर हवाई अड्डे के पास छोड़ दिया गया। पीछे पाया गया कि उनमें से पाँच सुरक्षित अपने घोसलों में पहुँच गयी।

हममें से अनेक मनुष्यों को परमात्मा कुछ विशेष बौद्धिक आत्मिक गुणों से सम्पन्न कर पृथ्वी पर भेजता है और आशा करता है कि सृष्टि को सुन्दर बनाने की, उसकी कल्पना को साकार बनायेंगे, पर वह ऐसा करना तो दूर उसकी बुद्धि कौशल को अपने ही स्वार्थ साधनों में उलझाकर यह कामना करता है कि उसे संसार से जाना नहीं पड़ेगा। अपनी हठ बुद्धि के कारण वह न केवल संसार को कुरूप बनाता है, अपितु पश्चाताप भरी जिन्दगी लेकर लौटने को विवश होता है।

नवीनता के प्रति आकर्षण जीवन की नैसर्गिक गुण है । यह गुण भी जीवन की पृथक पृथक इकाइयों में सामंजस्य प्रकट करता है। और मनुष्य को उसके चिंतन के लिए भावभरी विराट सामग्री प्रदान करता है। जीवों की भाँति मनुष्यों में भी यह गुण पाया जाता है। किन्तु सांसारिकता के भार इस तरह के आवाहन प्रदान करने वाले गुणों को भी नष्ट कर देते हैं। तब उनकी पाशविकता उभर कर सामने आ जाती है। अच्छे और नये के स्वागत की दृष्टि से भारतीय मनीषा को अनासक्त कर्म योग का दर्शन दिया है। इन परम्पराओँ को बनाये रखने में न केवल प्रसन्नता अपितु पवित्रता भी निहित है।

भावनाओं के अलौकिक जगत के सत्य से हमें कभी इन्कार नहीं करना चाहिए। यह सत्य दृष्टि में निरन्तर बना रहे तो अनायास ही दुष्कर्मों और छोटे कृत्यों से छुटकारा मिल जाता है, पर उसी के साथ ही व्यवहारिकता का आधार भी नष्ट हो तो संतुलन बना रह सकता है। नवीन के प्रति अन्येन जिज्ञासा और पलायनवाद नहीं होना चाहिए। अपनी इसी त्रुटि के कारण भारतीय जीवन में धक्का खाया और शिरोमणि जीवन में तत्वदर्शन की धरती पर धूल चाटनी पड़ी। आकाश की कल्पना करते समय धरती के यथार्थ का मोह न मोड़े, जन्म स्थान बार बार लौटने में जीव की प्रकृति यही संदेश संकेत हो सकता है।

प्रकाश चिरकाल से ही मानवीय प्रेरणा का स्रोत है । प्रकाश जितना दिव्य और स्निग्ध होता है उतना ही मोहक लगता है। चैत्र की नव रात्रियों के समय आकाश में आने वाले प्रकाश में कुछ ऐसी दिव्यता होती है कि उनका अनुभव कर आंखें चमकने लगती है। ब्याह शादियों के समय छूटने वाली फुलझड़ियाँ देखकर न केवल बच्चे अपितु प्रसन्न होते हैं । प्रकाश का मानवीय चेतना से सीधा संबंध है, तभी हम अन्धकार बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। परमात्मा से अंधकार से प्रकाश की और ले चलने की प्रार्थना करते हैं । प्रकाश ही जीवन और अंधकार अविद्या है- यह बात प्राण चेतना में समान रूप से लागू होती है चाहे वह मनुष्य या मनुष्येत्तर जीव।

पक्षियों के प्रकाश संबंधी वैज्ञानिक अनुसंधानों ने यह सिद्ध कर दिया है कि पक्षियों का प्रयास जिन कारणों से प्रेरित होता है उनमें ऋतु परिवर्तन को अनुकूल बनाये रखना, भोजन प्राप्त करना गौण है। जिन देशों में चौबीसों घण्टे या अधिक से अधिक सूर्य का प्रकाश रहता है वहाँ पक्षी अधिक रहना पसन्द करते हैं । ध्रुवों के समीपवर्ती प्रदेश इसी तरह के है आर्कटिक टर्न और गोल्डन प्लोवर ऐसे ही पक्षी है जो ध्रुव की यात्रा गर्मियों में करते हैं। क्योंकि उन दिनों वहाँ सूर्य चौबीसों घण्टे दिखाई पड़ता है। केवल मौसम की ही बात होती तो उसमें आये दिन उतार चढ़ाव आते रहते किंतु वे ऐसा नहीं करते हैं । अमेरिका के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि वहाँ सैन जुआन से आने वाले स्वालों पक्षी प्रति वर्ष एक ही निर्धारित तिथि को पहुंचते हैं।

न्यूयार्क में एक पक्षी पाया जाता है ब्राँज कक्कू इनके बच्चे पैदा होते ही आत्म निर्भर जीवन बिताते हैं। माता- पिता इन्हें अपने साथ यात्राओं पर भी नहीं ले जाते हैं कि जब वे प्रति वर्ष सोलोद्वीप की यात्रा समूहों में करते हैं। तो न जाने कौन सी सूक्ष्म अंतः प्रेरणा है कि बच्चे अपने आप ही अपने पूर्वजों की तरह यात्राएँ करने और उस स्थान पर स्वतः पहुँच जाते हैं, जहाँ उनके पितामह आते जाते रहते थे । वैज्ञानिक अनुसंधान है कि प्रकाश किरणों की दिशा वुत चुम्बकीय क्षेत्र तथा पृथ्वी के घूमने की स्थिति का पक्षी भली भाँति अनुभव करते हैं। इसी कारण वे इतनी लम्बी यात्राएँ बिना किसी जान पहचान और यंत्र के सम्पन्न करते हैं। नक्षत्रों की स्थिति और सूर्य का परिभ्रमण के आधार पर भी वे अपनी यात्रायें सम्पन्न करते हैं किंतु जितना उनका यह सूक्ष्म बोध आश्चर्य जनक है उसी तरह यह तथ्य भी कि रात में बिना पूर्व ज्ञान और मार्ग दर्शन से उन्हें इन सभी परिस्थितियों की जानकारी किस स्रोत से उपलब्ध होती है ?

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