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Magazine - Year 1997 - Version 2

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चेतना की स्थिति के द्योतक होते हैं-रंग

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First 19 21 Last
रंगों की मोहक छटा का जादू मन को अनायास मोहित कर लेता है। अपने पसंदीदा रंग को देखते ही हम बरबस आकर्षित हो जाते हैं। लेकिन जिस रंग को हम पसंद करते हैं, कोई जरूरी नहीं उसे दूसरा भी पसन्द करे। रंगों की यह पसंदगी-नापसंदगी हर एक की अपनी मानसिक संरचना पर निर्भर है। यदि मन-पसंद रंगों की पसंदगी के आधार पर हम अपने और औरों के व्यक्तित्व के भेद को सही-सही जान सकते हैं। रंगों की पहचान प्रकाश तरंगों के छोटे-बड़े होने की वजह से होती है। तरंगों की आवृत्ति के आधार पर ही रंग का निर्माण होता है। मन से उत्पन्न विचारों की भी अपनी आवृत्ति होती है। यह आवृत्ति अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग होती है। अतः मन का भी अपना रंग होता है। जिसे जाँच-परखकर उसकी आदतों, व्यवहारों का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।

मूलतः रंग तीन प्रकार के होते हैं, लाल, नीला और हरा। लाल रंग से प्रभावित होने वाला मन वास्तविक तथ्यों पर टिका रहता है। नीला रंग वास्तविकता का निर्धारण करता है। हरे रंग से आकर्षित मन एक नई दिशा में अनुसंधान करने के लिए हमेशा लालायित रहता है। इन रंगों का आकर्षण भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में अलग प्रकार का होता है। मनोविज्ञानी इन्हीं रंगों का विश्लेषण करके व्यक्ति के चिन्तन, आचरण एवं आदतों के बारे में सटीक विवेचन कर देते हैं। इसकी अगर समुचित जानकारी हो सके तो जीवन के कई अदृश्य पहलुओं को जाना जा सकता है।

मनोविज्ञानी राबर्ट शूलर के ग्रन्थ ‘माइन्ड एण्ड इट्स नेचर’ के अनुसार एक समान मनोभाव वाले व्यक्तियों की रुचि समान होती है एवं इनके पसंद के रंगों में भी समानता होती है। मनोविज्ञानी शूलर की शोध के अनुसार-(1) हरा रंग नूतन मार्गदर्शन को व्यक्त करता है। (2) सही जानकारी एवं स्पष्ट तथ्य लाल रंग से प्रकट होता है। (3) निर्धारणों का टूटना नीले रंग से व्यक्त होता है।

मानव मन के विशेषज्ञ जेरी रोड्स एवं स्यूथेम ने इस विषय पर काफी प्रभावशाली विवेचन अपनी पुस्तक ‘द कलर्स ऑफ योर माइन्ड’ में किया है। उनके अनुसार इन रंगों के अलावा भी हार्ड एवं साफ्ट रंग की प्रवृत्ति बेहद संवेदनशील होती है। इसके अंतर्गत संगीतकार, पेन्टर, एक्टर, कवि आदि आते हैं।

हार्ड मन का लाल रंग तथ्यों की जानकारी देता है, नीला रंग विचारों को प्रभावित करता है तथा कई योजना में विश्वास दिलाने का कार्य रंग करता है। साफ्ट मन का नीला रंग अपने विचारों की अभिव्यक्ति में सक्षम होता है। हरे रंग में आन्तरिक कल्पना का अमोचन एवं लाल रंग तथ्य पूर्ण सत्य को प्रकाशित करता है। समाज में दोनों ही प्रकार के व्यक्तियों का सम्मिश्रण होता है।

मनीषी अन्यथोनी स्टोरर ‘कलर्स एण्ड इटस् मैसेज’ में कहते हैं कि हरे रंग में अन्वेषण-आविष्कार सम्बन्धी विचार प्रबल होता है। यह ताल-मेल भी बिठाता है। लाल व नीले रंग में प्रेरणा भी भरता है। कठिन से कठिन समस्या का निदान पल भर में निकाल लेता है। चुनौतियों को स्वीकारते हुए आशावादी दृष्टिकोण को बनाए रखता है। ऐसे व्यक्ति हाजिर-जवाबी होते हैं। हास्य रस के लेखक प्रायः इसी श्रेणी में आते हैं। बी. बी. सी. सेवा के प्रसिद्ध हास्यरस लेखक फ्रेंक माइनर तथा डेनिस नार्डन इसी कारण प्रख्यात हुए। उनका पसंदीदा रंग हरा ही था। इस प्रकार की प्रकृति को ईश्वरीय वरदान कहा जाता है। आध्यात्मिक जीवन का रहस्य इन्हीं रंगों से मिला-जुला माना जा सकता है। पश्चिम जगत इस रंग का आज तक सही विश्लेषण नहीं कर पाया है। तनाव एवं मनोरोग को दूर कर सदैव प्रसन्नता की आभा से चमकते रहने वाला यह रंग अनोखा एवं अद्भुत है।

हरे रंग को पसन्द करने वालों की प्रवृत्ति प्रायः अन्तर्मुखी होती है। यह लाल (तथ्य परक) तथा नीले (तर्क परक) रंग को बखूबी नियंत्रित करता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि कल्पनाओं की अभिव्यक्ति को यथार्थ के धरातल पर चित्रण कर लेता है। गहरे रंग को पसन्द करने वाले लोग प्रायः अति भावुक होते हैं। अतः इन्हें स्वनियन्त्रण रखना आवश्यक है। हल्के हरे रंग से आकर्षित व्यक्ति हमेशा अवसर चूकते रहते हैं। हरा रंग नयी योजना, दिशाओं का अन्वेषण करता रहता है, परन्तु इसमें हल्कापन यानि कि कमी आ जाने से सारे आसार धूमिल हो जाते हैं। लेकिन इन्हें अनावश्यक एवं अप्रिय घटनाओं से बचने के लिए लाल तथा नीले रंग से सामंजस्य बिठाए रहना चाहिए,

लाल रंग प्रकृति हरे रंग को नयी योजना का बोध कराता है तथा नीले रंग को यथार्थ का ज्ञान देकर निर्णय की सुविधा पहुँचाती है। लाल रंग हरे एवं नीले रंगों के बीच का सेतु है। प्रबल भावनाओं की स्थिति में सिर्फ लाल रंग ही सही निर्णय लेने की क्षमता रखता है। इसीलिए यह प्रामाणिक व वास्तविक तथ्य को सामने ला पाता है। गहरे लाल रंग वाले व्यक्तियों की पोशाक साफ-सुथरी, चमचमाते जूते, कपड़ों का चयन मौसम के अनुकूल होता है। बाहर से देखने पर इनका जीवन बड़ा नियमित व संयमित होता है। जबकि ये ऐसे होते नहीं हैं। हल्के लाल रंग वाले अन्दर बाहर से एक होते हैं। इन्हें संयमित कहा जा सकता है। ये संवेदनशील भी हो सकते हैं।

गहरे लाल रंग से प्रभावित व्यक्ति वास्तविक तथ्य तक पहुँचना चाहते हैं। परन्तु सदैव सच्चाई का पता नहीं लगा पाते। यही कारण है कि इनके जीवन में तनाव, कुण्ठा तथा असंतोष का भाव जन्म लेता है। ये पूर्वाग्रह से ग्रसित होते हैं। हल्के लाल रंग में याददाश्त की कमी होती है। स्वयं की कमी को ये स्वीकारते नहीं हैं पर यह रंग ज्यादा आक्रामक नहीं होता, क्योंकि इन्हें भूलने की आदत होती है।

यूँ देखें तो जीवन की सुव्यवस्था में लाल रंग का महत्वपूर्ण योगदान है। यह प्रशासनिक, व्यापारी, एकाडण्ट्स के साथ-साथ साहित्य, पत्रकारिता आदि की व्यवस्था भी जुटाता है। यह रंग जीवन में संवेगों के संचार का कार्य करता है, साथ ही शारीरिक तथा भौतिक संबा की अनुभूति भी कराता है। दृश्य, श्रवण, स्वाद, स्पर्श गंध, पीड़ा आदि बाह्य उद्दीपन इसी का परिणाम है। कभी-कभी ये इन्ट्रोस्पेक्शन के रूप में जज, वकील, पुलिस, डाक्टर आदि के पेचीदे प्रकरण में समाधान के सूत्र ले आता है। चूँकि यह भौतिक संबा का रंग है, इसलिए चेहरे पर उठने-गिरने वाले भावों को पढ़ पाने की क्षमता इसमें अंतर्निहित होती है।

इस प्रकार अनुभूति को और भी क्रियात्मक और ठोस रूप में जानने का प्रयास हल्के रंग द्वारा सम्भव बन पड़ता है। इसके अर्न्तत भविष्यवाणियाँ भी प्रकाशित होती हैं। एच. जी. वेल्स ने शताब्दी पूर्व अपने लेख में लन्दन के व्यापारियों के ऑफिसों के ध्वस्त होने का वर्णन किया था। अभी कुछ समय पहले यह घटना सत्य सिद्ध हुई। अनेकों उपन्यासों एवं काल्पनिक वैज्ञानिक कहानियों में इसी प्रकार कुछ मात्रा में अंतर्दर्शन का बोध प्राप्त होता है। गहरे रंग में भी इसी प्रकार का बोध होता है।

नीले रंग से प्रभावित मन समस्याओं का समाधान बुद्धिसंगत ढंग से करता है। किसी भी जटिल सवाल का युक्तिपूर्ण हल निकालना इनकी विशेषता है। गहरा नीला रंग स्पष्टतया तार्किकता का परिचायक है। इस प्रकार के लोग अपनी कही हुई बातों को कभी वापस नहीं लेते। व्यापारिक क्षेत्रों में यह नुकसानदायक है। इसके विपरीत हलके नीले रंग की वृत्ति कार्यों की चुनौती को स्वीकारती है। जिससे इन्हें सफलता भी मिलती है।

महर्षि अरविन्द के पत्रों के द्वितीय भाग में रंगों का विस्तार से वर्णन हुआ है। इनके अनुसार रंगों के आध्यात्मिक अर्थ का उल्लेख करना आसान नहीं है। रंग के स्थान, मिश्रण, गुण और मात्रा के अनुरूप इसका अर्थ बदल जाता है। सत्ता का रंग नहीं होता। मन का अपना लाक्षणिक रंग है पीला, चैत्य का गुलाबी तथा प्राण का बैंगनी। अन्य रंग भी इसी प्रकार अपनी-अपनी गतिविधियों का सृजन कर सकते हैं। प्राण में हरा और गहरे लाल तथा बैंगनी रंग का संचार हो सकता है।

गहरा नीला रंग उच्चतर आध्यात्मिक सम्पन्न मन का द्योतक है। हलका नीला प्रायः अलौकिक मन का प्रकाश है। हालाँकि श्री अरविन्द ने इन रंगों का उल्लेख पसंदगी-नापसंदगी के रूप में किया है। लेकिन इन रंगों का मूल्य एवं महत्व बाहरी पसंदीदा रंगों से कहीं ज्यादा है। क्योंकि ये हमारी मानसिक अवस्था का अपेक्षाकृत अधिक गहराई से विवेचन करते हैं। योगीराज अरविन्द के अनुसार चाँदनी जैसा सफेद नीला कृष्ण चेतना का आभास देता है। कृष्ण का रंग हीरे जैसा फीका नीला, लवेण्डर जैसा नीला तथा गहरा नीला होता है। सभी नीले रंग कृष्ण भगवान के द्योतक नहीं है।

लवेण्डर जैसा नीला सम्बोन्धि-मन में कृष्ण का प्रकाश है। बैंगनी भागवत कृपा, शुभेच्छा या प्रकाश है। इस रंग का अंतर्दर्शन आध्यात्मिक चेतना को शिखरों से पृथ्वी तक प्रवाहित होना दर्शाता है। बैंगनी कृष्ण की कृपा का भी रंग है। यह कृष्ण के संरक्षण की प्रभा है। नीला उसका अपना विशेष और महत्वपूर्ण रंग है।

लाल रंग भौतिक तत्व का रंग है। रक्त आभा वाला पुरुष भौतिक सत्ता की शक्ति सम्पन्न हो सकता है। गहरा लाल व्यि प्रेम है। सुनहरा उच्चतर सत्य को प्रकाशित करता है। सुनहरा रंग महाकाली की शक्ति का द्योतक है। जो शरीर में कार्य करने वाली सबसे सबल शक्ति है। सुनहरे लाल रंग में रूपांतर की प्रबल शक्ति भरी होती है। नारंगी रंग को अतिमानस का रंग होती है। नारंगी रंग को अतिमानस का रंग कहते हैं। यह भौतिक चेतना और सत्ता में प्रकट हुआ सच्चा प्रकाश है। इसे गुह्य ज्ञान या अनुभूति का रंग भी माना जाता है।

सूर्य का रंग सत्य का रंग है। वह जब प्राण में मिल जाता है तब मिश्रित रंग हो जाता है। यहाँ यह सुनहरा और हरा है। भौतिक स्तर पर आकर यह रंग सुनहरा लाल या मन में सुनहरा पीला बन जाता है। अतिमानस सूर्य से प्रकाशित होकर भिन्न-भिन्न स्तरों से गुजरते हुए परिवर्तित होता जाता है। पीला चिन्तनशील मन है। उसकी आभाएँ मानसिक प्रकाश की विभिन्न तीव्रताओं को सूचित करती है। चैत्य प्रकाश का रंग उसके द्वारा प्रकट होने वाली वस्तुओं के अनुरूप होता है। चैत्य प्रेम गुलाबी या पाटल होता है। चैत्य पवित्रता श्वेत होती है। लालिमा युक्त गुलाबी रंग का गुलाब चैत्य प्रेम या समर्पण तथा सफेद गुलाबी रंग शुद्ध आध्यात्मिक समर्पण को दर्शाता है। गुलाबी रंग ईश्वरीय प्रेम का रंग है।

अंतर्दर्शन में श्वेत रंग का प्रकाश उस विशुद्ध सचेतन शक्ति का रंग है जिससे सब वस्तुएँ उत्पन्न होती हैं। यह परिशोधन की शक्ति को निर्देश करता है और दिव्य चेतन के आगमन की सूचना देता है। बैंगनी सहानुभूति, एकता एवं वैश्व करुणा का प्रतीक है। हरे रंग में शोधन, सामंजस्य एवं रोग-निवारण की शक्ति होती है। हरा रंग प्रकरण के अनुसार विविध तथ्यों का प्रतीक हो सकता है। भाव प्रधान प्राण में यह भावमय उदारता के विशिष्ट रूप का रंग है। प्राणमय भौतिक स्तर में इसका अर्थ स्वस्थ शक्ति होता है। यह कर्म और क्रिया की प्राणिक ऊर्जा है। इसी तरह जामनी रंग प्राणिक शक्ति का रंग है और किरमिजी रंग साधारणतया भौतिक शक्ति का। इसे प्राण एवं शरीर में प्रेम का प्रकाश भी कह सकते हैं।

रंग बाहरी हो या भीतरी, हमारी बाहरी पसन्द हो या फिर अंतर्दर्शन में मिलने वाली झलक, स्पष्टतया हमारे मानसिक स्तर एवं चेतना की स्थिति का अहसास कराती है। इस आकलन के पश्चात् हम अपने व्यक्तित्व को और अधिक निखार सकते हैं। मन को और अधिक आभासम्पन्न बना सकते हैं। नजरों के बदलते ही नजारे बदलते देर नहीं। एक बार दृष्टिकोण सुधरा-तो सारी सृष्टि रंगमय एवं मनोरम आभाओं से युक्त दिखेगी। शान्ति, प्रेम एवं सद्भावना अपने आप ही इन्हीं रंगों में समाहित लगने लगेंगे।

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