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अनेक परिजनों ने इस स्तम्भ का स्वागत करते हुए अनेक प्रकार के सुझाव दिए हैं। कइयों ने लम्बे-लम्बे लेख लिख भेजे हैं, आग्रहपूर्वक प्रकाशन करने के दबाव के साथ तो कइयों ने राष्ट्र की, अंतर्राष्ट्रीय स्तर की समस्याएँ सुलझा पाने में अखण्ड-ज्योति की असमर्थता, अशक्यता की चर्चा कर उस पर भी अपनी टिप्पणियाँ दी हैं। कइयों को उज्ज्वल भविष्य की भवितव्यता पर संदेह है, तो कइयों को लगता है कि एक प्रश्न के समाधान से उनकी अनेक जिज्ञासाओं का उत्तर मिल जाता है। इसी ऊहापोह में विगत माह यह स्तम्भ छपने में जाने से रह गया। यह शृंखला अब पुनः आरंभ करते हैं-इस आश्वासन के साथ कि महाकाल की प्रज्वलित यह ज्योति जो अखण्ड दीपक के प्रकाश से अनुप्राणित है, सत्परामर्श द्वारा लोगों को सत्पथ दिखाने का कार्य अनवरत करती रहेगी। प्राण ऊर्जा सूक्ष्म संरक्षण दे रही गुरुसत्ता की ही मूल में है। उसी की शक्ति से यह ज्योति प्रज्वलित है एवं अगणित निराशा के अंधकार में भटकने वालों के लिए एक प्रकाश-स्तम्भ की तरह है। हमें हमारे लेखन, संपादन क्रम में आप सभी के सुझावों-परामर्शों से बड़ी मदद मिलती है। अतः पुनः आपका इस स्तम्भ में स्वागत है। एक क्षमा निवेदन। किसी भी प्रश्नकर्ता का नाम दे पाना इसमें संभव नहीं है। इसके कुछ विशेष कारण हैं, जो समझदार हैं, समझ जाएंगे।
प्रश्न- गायत्री मंत्र तो हमारे पास युगों से रहा है। इसके होते हुए भी हमारा पतन हुआ। हमने हजारों वर्षों की दासता भोगी। अतएव अब यह कैसे कारगर सिद्ध होगा?
उत्तर- गायत्री मंत्र एक विलक्षण थाती है भारतवर्ष के पास। यह सद्बुद्धि की प्रार्थना मात्र ही नहीं हैं, इससे भी कुछ अधिक शब्द विज्ञान पर आधारित एक ऐसी ऋचा है जिसका उच्चारण सूक्ष्मजगत में परिवर्तन लाता रहता है। हम दो हजार वर्षों की गुलामी भोग इसीलिए रहे हैं कि हमने इसकी उपेक्षा की। स्मृतियों में मिलावट करके-मध्यकाल के ग्रंथकारों ने इसे नारी शक्ति के लिए व ब्राह्मण जाति को छोड़कर अन्यों के लिए जपने योग्य नहीं है, ऐसा कह दिया। पारस पत्थर तिजोरी में रखा रहे, किसी को हितकारी नहीं, करोड़ों टन सोना राष्ट्रीय कोष में हो एवं राष्ट्र सबसे भीख माँग रहा हो इसे विडम्बना नहीं तो क्या कहा जाएगा। गायत्री मंत्र को स्वार्थान्धों ने नारी शक्ति से भी छीन लिया एवं मानव मात्र से भी। परमपूज्य गुरुदेव ने अनेकानेक विरोध सहकर इस गायत्री मंत्र को जिसे शापित-कीलित घोषित कर दिया था, लाखों गृहस्थियों को, नवयुवकों को जीवन जीने की सच्ची राह की ओर मोड़ दिया। जैसे-जैसे गायत्री परिवार बढ़ता जा रहा है सतयुग की वापसी की संभावना सुनिश्चित होती जा रही है, क्या यह नहीं बताता कि यह मंत्र कितना प्रभावशाली-चमत्कारी, सामर्थ्यपूर्ण है। जो गायत्री जपता है-भाव-विह्वल होकर नित्य सविता देवता का ध्यान करते हुए इसे अंतःकरण में धारण करता है-वह ब्राह्मण स्वतः बन जाता है। आज के जातिवाद से ग्रसित युग में मात्र गायत्री मंत्र ही एकता के सूत्र में सबको बाँध सकता है।
सुझाव- एक सुझाव इसी प्रश्न के अतिरिक्त अन्य सज्जन का आया है कि “जहाँ गायत्री मंत्र संस्कृत में प्रथम पृष्ठ पर दिया जाता है, वहाँ उसी का हिंदी अर्थ भी साथ में दिया जाय तो ध्यान करते समय जप के साथ भावार्थ के ध्यान का भाव बराबर सबके मन में रहेगा। सब संस्कृत के ज्ञाता नहीं हैं, अतः साधारण व्यक्ति भी हिंदी में समझ सके, ऐसा भावार्थ लिखें।” यह सुझाव अत्यन्त उत्तम है। ऐसा हम अगले अंक से ही करेंगे एवं प्रयास करेंगे कि गायत्री मंत्र के गेय पक्ष की ओर भी सब का ध्यान जाय। उच्चारण कैसा हो-नियमादि क्या हों-यह समय-समय पर छपता रहता है किंतु एक लेख गायत्री उपासना के व्यावहारिक पहलुओं पर नियमित आता रहे, इसका ध्यान रखेंगे।
प्रश्न- पत्रिका में लेख बड़े परिश्रम के साथ एवं बड़ी शोध के बाद लिखे जाते हैं, फिर उनमें कभी-कभी तथ्यों की गलतियाँ कैसे रह जाती हैं?
उत्तर- जागरुक पाठक समय समय पर कमियों को बताते रहते हैं इससे ज्ञात होता है कि अखण्ड-ज्योति कितने ध्यान से पढ़ी जाती है। प्रयास यही रहता है कि प्रेस में जाने से पूर्व पत्रिका के एक-एक लेख की एक-एक लाइन का एक-एक अक्षर प्रामाणिकता की कसौटी पर कसकर ही दिया जाय। कभी-कभी भूलवश एक-दो गलतियाँ ऐसी रह गयी है जिनके बारे में परिजनों ने पत्र भी लिखे हैं एवं आगे यही प्रयास है कि इन्हें और कड़ाई से परखकर ही छपने में जाने दिया जाय। पत्रिका शांतिकुंज, ब्रह्मवर्चस में लिखी जाती है एवं प्रकाशित होती है मथुरा से। कभी-कभी हाथ से लिखे को गलत पढ़ लिया जाने पर भी तथ्य त्रुटि में बदल जाता है। डी.टी.पी. से एवं कम्प्यूटर से यह गलती अब रोकी जा सकती है एवं सारा प्रूफ यहीं पढ़ा जाकर मुद्रण हेतु भेजा जाय, ऐसी व्यवस्था बनायी जा रही है।
प्रश्न- सारे भारत व विश्व में क्या परिवर्तन हो रहा है, क्या-क्या गतिविधियाँ संस्था की चल रही हैं, इस पर ‘शांतिकुंज समाचार प्रधान’ 2 पृष्ठ नियमित आते रहें तो लाखों पाठक लाभान्वित होंगे। ‘पाक्षिक’ के माध्यम से कुछ कार्यकर्त्ताओं तक ही संदेश जाता है। अखण्ड-ज्योति द्वारा यह संदेश अनेकों तक जाएगा।
उत्तर- इस विषय में हम विचार कर रहे हैं। सीमित पृष्ठों में सभी जानकारियों से भरे लेख, साधना-मार्गदर्शन के साथ, कैसे इन पृष्ठों का आवंटन किया जाय, यह चिंतन चल रहा है। संभव हुआ तो अगले अंक से ही यह स्तंभ आरम्भ करेंगे। इसमें महापूर्णाहुति की तैयारी के विभिन्न चरण भी होंगे।
क्रमशः