• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • नैतिष्ठक साधक इतना तो करें ही
    • हम ईश्वर के होकर रहें
    • लोभ हमें अंधा करता है।
    • धारावाहिक लेखमाला- - सावधान! मनुष्य के हमशक्ल तैयार होने जा रहे हैं।
    • श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख (Kahani)
    • नियति की चुनौती स्वीकार कीजिए
    • जीवन की राह ऐसे बदली
    • Quotation
    • वेदों का प्राकट्य-कालः एक अनुसंधान
    • सत्य की आँच (Kahani)
    • विवेक का वरदान
    • प्रेतात्माओं को मित्र बनाकर तो देखिए
    • सज्जनता (Kahani)
    • ‘हिन्दू’ शब्द का मर्म
    • बड़ी विलक्षण है स्रष्टा की अनुशासित विधि-व्यवस्था
    • भावभरी पुकार को सुनता है भगवान
    • झुकाव बढ़ रहा है आध्यात्मिक साम्यवाद की ओर
    • संवेदना का निर्मल सरोवर है कलाकार का अंतःकरण
    • पश्चिम का विकासवाद : एक थोथी कल्पना
    • सच्चे सेवाव्रती दम्पत्ति (Kahani)
    • चेतना की स्थिति के द्योतक होते हैं-रंग
    • एक नर्तकी का बलिदान
    • Quotation
    • अपनाएँ विधेयात्मक जीवन-शैली को
    • धर्म का सही स्वरूप समझें, उसकी रक्षा करें
    • समाज को तोड़ दिया है बुद्धिमानों की मूर्खता ने
    • Quotation
    • श्रम-साधना का सम्मान
    • ब्रह्मवर्चस् की प्रयोगशाला की विशेषता : सर्वांगपूर्ण मनोविज्ञान
    • आज की समस्याओं का हल यज्ञीय दर्शन - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • Quotation
    • आस्था-क्षेत्र के दो प्रधान संकट
    • प्रतिभा पाई नहीं कमायी जाती है।
    • आत्मसंतुष्टि (Kahani)
    • प्रज्ञापराध के कारण ही बढ़ रहे हैं रोग एवं शोक
    • इतिहास पुरुष बनने का समय आ रहा है।
    • इक्कीसवीं सदी अपनी-अपनी
    • जिज्ञासाएँ आपकी-समाधान हमारे
    • अपनों से अपनी बात- - युगान्तरीय चेतना का आलोक विस्तार
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • नैतिष्ठक साधक इतना तो करें ही
    • हम ईश्वर के होकर रहें
    • लोभ हमें अंधा करता है।
    • धारावाहिक लेखमाला- - सावधान! मनुष्य के हमशक्ल तैयार होने जा रहे हैं।
    • श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख (Kahani)
    • नियति की चुनौती स्वीकार कीजिए
    • जीवन की राह ऐसे बदली
    • Quotation
    • वेदों का प्राकट्य-कालः एक अनुसंधान
    • सत्य की आँच (Kahani)
    • विवेक का वरदान
    • प्रेतात्माओं को मित्र बनाकर तो देखिए
    • सज्जनता (Kahani)
    • ‘हिन्दू’ शब्द का मर्म
    • बड़ी विलक्षण है स्रष्टा की अनुशासित विधि-व्यवस्था
    • भावभरी पुकार को सुनता है भगवान
    • झुकाव बढ़ रहा है आध्यात्मिक साम्यवाद की ओर
    • संवेदना का निर्मल सरोवर है कलाकार का अंतःकरण
    • पश्चिम का विकासवाद : एक थोथी कल्पना
    • सच्चे सेवाव्रती दम्पत्ति (Kahani)
    • चेतना की स्थिति के द्योतक होते हैं-रंग
    • एक नर्तकी का बलिदान
    • Quotation
    • अपनाएँ विधेयात्मक जीवन-शैली को
    • धर्म का सही स्वरूप समझें, उसकी रक्षा करें
    • समाज को तोड़ दिया है बुद्धिमानों की मूर्खता ने
    • Quotation
    • श्रम-साधना का सम्मान
    • ब्रह्मवर्चस् की प्रयोगशाला की विशेषता : सर्वांगपूर्ण मनोविज्ञान
    • आज की समस्याओं का हल यज्ञीय दर्शन - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • Quotation
    • आस्था-क्षेत्र के दो प्रधान संकट
    • प्रतिभा पाई नहीं कमायी जाती है।
    • आत्मसंतुष्टि (Kahani)
    • प्रज्ञापराध के कारण ही बढ़ रहे हैं रोग एवं शोक
    • इतिहास पुरुष बनने का समय आ रहा है।
    • इक्कीसवीं सदी अपनी-अपनी
    • जिज्ञासाएँ आपकी-समाधान हमारे
    • अपनों से अपनी बात- - युगान्तरीय चेतना का आलोक विस्तार
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1997 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


अपनाएँ विधेयात्मक जीवन-शैली को

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 22 24 Last
खोज-तनाव-उद्विग्नता हमारे वर्तमान जीवन की परिभाषा बन गयी है। रोजमर्रा की जिन्दगी में हैरान, परेशान होते हुए हम सारा दोष दूसरों के मत्थे होते हुए हम सारा दोष दूसरों के मत्थे मढ़ते रहते हैं और यह पूरी तरह से बिसरा देते हैं कि इसके लिए कहीं हम खुद भी जिम्मेदार हो सकते हैं। जीवन के प्रति हमारा अपना नजरिया-आस-पास के लोगों के प्रति अपना स्वयं का दृष्टिकोण भी जिम्मेदार हो सकता है। मनोवैज्ञानिकों की सलाह मानें तो सबसे पहले हमें अपनी खीज-तनाव के कारण खुद में खोजने चाहिए। आस-पास के लोगों, परिस्थितियों के प्रति अपने नजरिए की छान-बीन करनी चाहिए। ऐसा कर सके तो पता चलेगा कि सारी उद्विग्नता का कारण हमारी मानसिकता का बाहरी वातावरण से संगीत न बैठना है और इसके लिए वातावरण की अपेक्षा हम खुद जिम्मेदार हैं।

एलन वाट्स ‘प्रेग्रासिंग आँफ द माइन्ड’ में कहते हैं कि वातावरण जड़ है, सोच-विचार रहित है, जबकि हम स्वयं सचेतन हैं। अपने सोचने-विचारने के तौर-तरीकों में फेर-बदल करना हमारे लिए एक आसान बात है। थोड़े से प्रयास के साथ ही हम वातावरण से समस्वरता स्थापित कर सकते हैं। इसी तरह आस-पास के लोगों के व्यवहार पर टीका-टिप्पणी करना, उन्हें अनर्गल बकते-झकते रहना, रह-रहकर उन पर दोषारोपण करना, समस्या का कोई सार्थक समाधान नहीं है। क्योंकि सभी-अपनी प्रवृत्तियों एवं संस्कारों के वशीभूत हैं, फिर औरों पर अपना क्या वश? ऐसे में उन पर खीजने, झल्लाने से हमारा तनाव कम होने की बजाय बढ़ेगा ही, तब क्यों न हम समस्याओं के समाधान अपने अन्दर खोजें।

एक सत्य और है-बाहरी माहौल को प्रभावित करने वाले घटकों की संख्या भी काफी है। चाह कर भी सब पर एक साथ काबू पा सकना हमारे वश में नहीं है। बहुत कोशिशों के बावजूद हम कुछ हद तक ही परिस्थितियों को बदल सकते हैं। हाँ! अपने आन्तरिक दृष्टिकोण में परिवर्तन करना अपना बिल्कुल निजी मामला है। इसके फेर-बदल में हम पूरी तरह स्वतन्त्र ही नहीं सक्षम भी हैं। स्वस्थ एवं सुखी जीवन का यह एकमात्र कारगर उपाय है। जब हम अपने परिकर के साथ सहअस्तित्व की अनुभूति के साथ रहते हैं तो तनाव अपने आप दूर हो जाता है। लेकिन निषेधात्मक चिन्तन और मन में संचित घृणा, द्वेष, ईर्ष्या और भय के संस्कारों के कारण वातावरण से तालमेल बिठाना थोड़ा मुश्किल जरूर है।

इसके लिए आवश्यक है कि मन से बुरे विचारों का कूड़ा-कचरा निकाल फेंका जाय। लेकिन होता इसका उल्टा है। हममें से प्रायः प्रत्येक व्यक्ति सफलता पाने की तीव्र तृष्णा से ग्रसित है। हर वक्त उसे यह भय सताता रहता है कि कहीं वह असफल न हो जाय। जिससे उसे अपने परिवार तथा परिचितों के बीच शर्मिन्दा न होना पड़े। उसके इस भय को अभिभावक और शिक्षक मिलकर बढ़ा देते हैं। अपनी अस्मिता से जुड़ा यह सवाल इस कदर उसके मन पर छा जाता है कि वह लगातार भर और चिन्ता से ग्रसित रहने लगता है। जीवन का हर कृत्य उसके लिए आपातकालीन कार्य बन जाता है और वह लगातार तनाव में रहने लगता है।

ऐसा नहीं हैं कि सफलता के लिए प्रयास कना कोई बुरी बात है। लेकिन यदि अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन किया जा सके तो इसे कर्तव्य भावना से तनाव रहित होकर भी किया जा सकता है। तनाव मुक्त होकर किए गए प्रयास में सफल होने की उम्मीदें भी अधिक होंगी। यदि इसके साथ देशहित और लोकहित की उदात्त भावनाएँ जोड़ी सकें तो मन हर-हमेशा उत्साह एवं प्रफुल्लता से भरा रहेगा। हमारे किए गए काम के सौंदर्य में भी भारी निखर आ जाएगा। इस प्रकार हमारी पूर्व मान्यताएँ जिन्हें साइकोलॉजिस्ट मेण्टल प्रोग्रामिंग कहते हैं, हमारे जीवन का निर्धारण करती है। गलत एवं निषेधात्मक मेण्टल प्रोग्रामिंग हमारे गलत चिन्तन एवं गलत शिक्षा का परिणाम है।

अब न्यूरोलॉजिस्ट भी मानने लगे हैं कि बचपन से आज तक हमने जो भी कुछ अनुभव किया हैं, माता-पिता, गुरुजनों, दोस्तों, परिचितों से सुना है सबका सब हमारे मस्तिष्क रूपी कम्प्यूटर की स्मृति में मौजूद है। वास्तव में हमारे समस्त क्रिया-कलापों और व्यवहार का निर्धारण इन्हीं के द्वारा होता है। प्रत्येक क्षण हमारा मस्तिष्क बाहर व भीतर से कुछ सन्देश ग्रहण करता रहता है। मस्तिष्क का लिम्बिक सिस्टम इन संदेशों की तुलना संरिब्रल कार्टेक्स की यादों में संचित पूर्व अनुभवों से करता है। यदि ये संदेश उनमें मेल खाते हैं तो स्पाइनलकार्ड के शीर्ष पर स्थित रेटिक्यूलर सिस्टम उसे चेतन स्तर पर प्रतिक्रिया के लिए भेज देता है। निश्चित ही हम इन पूर्व संचित संस्कारों के प्रकाश में एक निश्चित तरीके से बाह्य संदेशों की प्रतिक्रिया करते हैं। अर्थात् जीवन की किसी भी परिस्थिति के लिए हमारा रवैया हमारी पूर्व निर्धारित मनः स्थिति या मेन्टल प्रोग्रामिंग पर निर्भर है। यदि परिस्थिति हमारी मनः स्थिति के अनुकूलन होती है, तो हमें किसी प्रकार का मानसिक तनाव नहीं होता। जबकि वातावरण से प्राप्त संदेश यदि हमारी पूर्व मान्यताओं से मेल नहीं खाते, तब हमारा लिम्बिक सिस्टम तनावपूर्ण प्रतिक्रिया करता है।

सही पूछो तो प्रकृति ने तनाव की प्रक्रिया हमारे संरक्षण के लिए बनायी है। भले ही हम उसका गलत उपयोग करते रहे। सामान्य क्रम में लिम्बिक सिस्टम इसलिए तनाव पैदा करता है ताकि हमारा समस्त शरीर व मन खतरे के प्रति सजग हो जाए और हम कठिन परिस्थिति का सामना कर सके। जैसे कि किसी अंधे मोड़ पर से गुजरते समय अचानक से कोई कार हमारे सामने आ जाए। तब ये लिम्बिक सिस्टम हमारी माँसपेशियों व शरीर के सभी तन्त्रों को ओवर एक्टीपेट कर देता है, ताकि हम तेजी से प्रतिक्रिया व्यक्त कर अपनी रक्षा कर सकें।

ये अति संवेदनशील प्रतिक्रिया जीवन की हर परिस्थिति के लिए हर समय जरूरी नहीं है। केवल आपात स्थिति के लिए है। किन्तु हम अपनी मनोदशा को इतनी भयातुर बना लेते हैं कि हर परिस्थिति को एक खतरे व चुनौती के रूप में देखते हैं और हमेशा घृणा, भय, क्रोध जैसे मनोद्वेगों से ग्रसित रहते हैं। संकुचित, असमंजसपूर्ण और निषेधात्मक मेण्टल प्रोग्रामिंग के कारण हमेशा परिस्थिति से अनावश्यक संघर्ष करते रहते हैं। फलस्वरूप जीवन दुखद और तनावपूर्ण हो जाता है। इसके विपरीत यदि हम अपने नजरिए को विस्तृत, सकारात्मक तथा यथार्थवादी रखें और परिस्थितियों के साथ ताल-मेल बिठाने की कोशिश करें, तो आसानी से सन्तुलन और सामंजस्य बैठ जाता है। प्रसन्नता और सफलता भी हासिल होती हैं। जीवन भी अपेक्षाकृत आसान और खुशहाल बन जाता है। इसीलिए महान दार्शनिक ‘मारकुम ओरेलियस’ ने कहा है हमारा जीवन वैसा ही होता है, जैसा हमारे विचार उसे बनाते हैं।

नैपोलियन को गौरव, शक्ति तथा ऐश्वर्य जैसी सभी चीजें प्राप्त थीं। फिर भी उसने सेण्ट हेलना में कहा, मैंने अपने जीवन के छह दिन भी कभी सुखपूर्वक नहीं बिताए। इसके ठीक विपरीत अन्धी, गूँगी तथा बहरी हेलन केलर का कहना था, कि मेरे लिए जीवन अत्यन्त मोहक वस्तु है।

स्पष्ट है कि शान्तिपूर्ण जीवन जीने के लिए अपनी मनः स्थिति में परिवर्तन आवश्यक है। जिसकी पर्याप्त क्षमता ईश्वर ने मनुष्य को प्रदान की है। महाकवि मिल्टन के शब्दों में हमारा मस्तिष्क अपने में ही स्वर्ग को नरक और नरक को स्वर्ग बना सकता है। बस सवाल निषेधात्मक एवं विधेयात्मक चिन्तन का है। यह पूरी तरह हम पर कि हम क्या अपनाते हैं।

मनीषी डेल कार्नेगी ने काफी मेहनत के बाद एक पुस्तक लिखी है। इसका नाम उन्होंने रखा है, हाऊ टु स्टाप वरीइंग एण्ड स्टार्ट लिविंग’। इस किताब में उन्होंने अपने पैंतीस वर्ष के अनुभवों को समेटा, संजोया है। इसी में एक जगह लिखा है कि मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि मनुष्य अपने विचार परिवर्तन द्वारा चिन्ता, भय तथा विभिन्न प्रकार के रोगों का निवारण कर सकता है। यही नहीं वह अपने जीवन को आमूल-चूल बदल सकता है। मैंने हजारों बार ऐसे विलक्षण परिवर्तन अपनी आँखों से देखे हैं।

यूँ भी आज हम और हमारा जीवन जो कुछ भी है, जैसा भी है, अपने बचपन से गढ़े हमारे मानस का अपने बचपन से गढ़े हमारे मानस का प्रतिबिम्ब ही है। जीवन में अब तक जैसा वातावरण व परिस्थिति आयी उसी के अनुरूप हमारी धारणाएँ, विचार व मान्यताएँ बनी है। चूँकि वातावरण एवं परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, इसलिए हमारे मेण्टल प्रोग्रामिंग में भी परिवर्तन होता रहता है अतः यदि हम चाहें तो अपने विवेक, सही दृष्टिकोण, सही विचारों द्वारा इस परिवर्तन को सचेतन बना सकते हैं। अपने मुताबिक दिशा दे सकते हैं। आत्मनिरीक्षण, आत्मविश्लेषण द्वारा अपनी वर्तमान अनुचित धारणाओं को जानकर उन्हें श्रेष्ठ विचारों द्वारा बदल सकते हैं।

इस बारे में जरुरत है तो बस मन में जीवन को बदलने की इच्छा व लगन की। फिर स्वाध्याय, मनन, चिन्तन द्वारा श्रेष्ठ विचारों को जानकर, समझकर उन्हें आत्मसात कर सकते हैं। इसके लिए हर रोज अपनी दिनचर्या शुरू करने से पहले कतिपय श्रेष्ठ वैचारिक सूत्रों का मनन करना चाहिए। यह प्रक्रिया हर कार्य अथवा किसी विशेष कार्य को करने से पहले की जाय तो ओर भी अच्छा। इस क्रम में धीरे-धीरे हमारा दृष्टिकोण उनके अनुरूप ढल जाएगा और वे विचार हमें अन्दर से सहायता करते रहेंगे। प्रसिद्ध मनोचिकित्सक एमिल कू ने इसे ही ‘काँशियस आटोसजेशन’ का नाम दिया है।

यह वह तरीका है, जिसकी शिक्षा सदियों से हमें महापुरुषों द्वारा दी जारी रही है। जब बुद्ध, विवेकानन्द जैसे महामानव हमें दूसरों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलने को कहते हैं, तब वास्तव में इसके पीछे शान्त, सुखी समुन्नत जीवन जी सकने की ही दृष्टि निहित है, ताकि हमारी चेतना उच्च आयामों की ओर बढ़ सके। विधेयात्मक चिन्तन हमारा व्यक्तित्व टूटने और बिखरने से बचता है।

जब हम किसी व्यक्ति विशेष, समूह विशेष अथवा परिस्थिति विशेष के प्रति द्वेषपूर्ण भारत रखते हैं, तो ऐसी भावनाओं के अंकुरित होते ही, इनका एक व्यापक सिलसिला चल पड़ता है। ऐसे समय में हमारी चेतना विचारों के निचले, ओछे एवं छिछले, उथले आयामों से अपना संपर्क साधती है। यह प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार है जैसे हम अपने रेडियो ट्रांजिस्टर को किसी विशेष प्रसारण केन्द्र से ट्यून करते हैं और परिणाम में वहाँ की स्वर-लहरियाँ हमारे यन्त्र पर बजना शुरू हो जाती है। बस कुछ इसी तरह मानसिक चेतना जब विचारों की घटिया सतह से अपना सामंजस्य स्थापित करती है, तो दुर्विचारों का पूरा प्रवाह हमारी मनोभूमि पर बाढ़ की तरह आ धमकता है।

ये विचार हमारी मनोभूमि की सारी वैचारिक उर्वरता सोख लेते हैं। यहीं घृणा और द्वेष की ऐसी सफल तैयार होती है, जो हमारे व्यक्तित्व को आतंकवादियों की तरह छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटने के लिए प्राण-पण से जुट जाती है। व्यक्तित्व का यह बिखराव हमें निर्वीर्य-निस्तेज एवं शक्तिहीन बना देता है। इसके विपरीत विधेयात्मक चिन्तन के लिए प्रयास करते ही हमारी चेतना विचारों के उच्चस्तरीय आयामों से जुड़ने लगती है। उच्चस्तरीय आयामों से जुड़ने लगती है। अनायास ही हम हम देव-चेतना, ऋषि चेतना के संपर्क में आ जाते हैं। हमारी मनोभूमि में जैसे अलौकिक प्रकाश की बाढ़ आ जाती है। जीवन के अँधेरे कोने में भी उजाले से भर जाते हैं।

व्यक्तित्व की टूट-फूट मरम्मत का सिलसिला अपने आप चल पड़ता है। टूटन-बिखराव, अखण्डता एवं समर्थता में बदलने लगती है। यही चेतना के उच्चस्तरीय आयामों से संपर्क हमें अलौकिक शक्तियों से भर देता है। विभूतियों एवं उपलब्धियों की तो जैसे बाढ़ आ जाती है। घृणा और द्वेष के स्थान पर सबके प्रति प्यार पनपता है। ऐसी अनूठी उपलब्धियों से हम वंचित क्यों है? आज ही इसके बारे में सोचें और निषेधात्मक भावों को झटक कर फेंक दें और अपना लें विधेयात्मक चिन्तन के उस रास्ते को, जो हमारी जिन्दगी को शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों से भर दे।

First 22 24 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • नैतिष्ठक साधक इतना तो करें ही
  • हम ईश्वर के होकर रहें
  • लोभ हमें अंधा करता है।
  • धारावाहिक लेखमाला- - सावधान! मनुष्य के हमशक्ल तैयार होने जा रहे हैं।
  • श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख (Kahani)
  • नियति की चुनौती स्वीकार कीजिए
  • जीवन की राह ऐसे बदली
  • Quotation
  • वेदों का प्राकट्य-कालः एक अनुसंधान
  • सत्य की आँच (Kahani)
  • विवेक का वरदान
  • प्रेतात्माओं को मित्र बनाकर तो देखिए
  • सज्जनता (Kahani)
  • ‘हिन्दू’ शब्द का मर्म
  • बड़ी विलक्षण है स्रष्टा की अनुशासित विधि-व्यवस्था
  • भावभरी पुकार को सुनता है भगवान
  • झुकाव बढ़ रहा है आध्यात्मिक साम्यवाद की ओर
  • संवेदना का निर्मल सरोवर है कलाकार का अंतःकरण
  • पश्चिम का विकासवाद : एक थोथी कल्पना
  • सच्चे सेवाव्रती दम्पत्ति (Kahani)
  • चेतना की स्थिति के द्योतक होते हैं-रंग
  • एक नर्तकी का बलिदान
  • Quotation
  • अपनाएँ विधेयात्मक जीवन-शैली को
  • धर्म का सही स्वरूप समझें, उसकी रक्षा करें
  • समाज को तोड़ दिया है बुद्धिमानों की मूर्खता ने
  • Quotation
  • श्रम-साधना का सम्मान
  • ब्रह्मवर्चस् की प्रयोगशाला की विशेषता : सर्वांगपूर्ण मनोविज्ञान
  • आज की समस्याओं का हल यज्ञीय दर्शन - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • Quotation
  • आस्था-क्षेत्र के दो प्रधान संकट
  • प्रतिभा पाई नहीं कमायी जाती है।
  • आत्मसंतुष्टि (Kahani)
  • प्रज्ञापराध के कारण ही बढ़ रहे हैं रोग एवं शोक
  • इतिहास पुरुष बनने का समय आ रहा है।
  • इक्कीसवीं सदी अपनी-अपनी
  • जिज्ञासाएँ आपकी-समाधान हमारे
  • अपनों से अपनी बात- - युगान्तरीय चेतना का आलोक विस्तार
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj