• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • पवित्रता ही प्रभु-मिलन का द्वार
    • सौन्दर्य का दर्प
    • Quotation
    • प्रकृति की पाठशाला में लें हम प्रशिक्षण
    • Quotation
    • बालक का आत्मोत्सर्ग
    • उपासनाएँ सफल तब हों, जब उनका मर्म समझें
    • क्या चिन्तन विज्ञान की गुलामी करेगा ?
    • वैभव-सम्पदा अकूत, किंतु सुनियोजन फिर भी नहीं
    • मिल-बाँट कर खाने का चमत्कार (Kahani)
    • अपना भाग्य-विधाता मनुष्य स्वयं
    • समग्र क्रान्ति हेतु युवाओं का आह्वान
    • ज्ञान-दान की महिमा
    • गंगा की गोद-हिमालय की छाया
    • वर्चस् की प्राप्ति प्राणाग्नि के जागरण से
    • सम्राट् नेपोलियन (Kahani)
    • रहस्यों से भरे ये विचित्र संयोग
    • श्रमनिष्ठा (Kahani)
    • अंधकार का पर्याय बन जाता है ऐसा ज्योतिष
    • जो भी ग्रहण करें, वह पवित्र एवं परिष्कृत हो
    • सर्वप्रमाणित है उस स्रष्टा की सामर्थ्य
    • उसकी कृपा का एक कण हमें भी मिल जाए
    • तीन चमत्कारी हानिरहित योगसाधनाएँ
    • ब्रह्मकमल (Kahani)
    • क्या कहेंगे इन अजूबों को आप ?
    • परमार्थपरायण जीवन (Kahani)
    • योगनिद्रा से मनःशक्ति संवर्द्धन
    • स्वतंत्रता की स्वर्णजयंती, गिरते नैतिक मूल्य एवं प्रबुद्धों का दायित्व
    • राखी का मोल
    • शब्दों वै ब्रह्मः
    • स्वतन्त्रता स्वर्णजयंती लेखमाला-३ - श्री अरविन्द के स्वप्नों का भारत
    • नया इनसान बनाएँगे, नया संसार बसाएँगे - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • आत्मसाधना एवं लोकसेवा (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात- - इस वर्श के शान्तिकुञ्ज के ७ अ विस्मरणीय रजत जयंती समारोह
    • Quotation
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • पवित्रता ही प्रभु-मिलन का द्वार
    • सौन्दर्य का दर्प
    • Quotation
    • प्रकृति की पाठशाला में लें हम प्रशिक्षण
    • Quotation
    • बालक का आत्मोत्सर्ग
    • उपासनाएँ सफल तब हों, जब उनका मर्म समझें
    • क्या चिन्तन विज्ञान की गुलामी करेगा ?
    • वैभव-सम्पदा अकूत, किंतु सुनियोजन फिर भी नहीं
    • मिल-बाँट कर खाने का चमत्कार (Kahani)
    • अपना भाग्य-विधाता मनुष्य स्वयं
    • समग्र क्रान्ति हेतु युवाओं का आह्वान
    • ज्ञान-दान की महिमा
    • गंगा की गोद-हिमालय की छाया
    • वर्चस् की प्राप्ति प्राणाग्नि के जागरण से
    • सम्राट् नेपोलियन (Kahani)
    • रहस्यों से भरे ये विचित्र संयोग
    • श्रमनिष्ठा (Kahani)
    • अंधकार का पर्याय बन जाता है ऐसा ज्योतिष
    • जो भी ग्रहण करें, वह पवित्र एवं परिष्कृत हो
    • सर्वप्रमाणित है उस स्रष्टा की सामर्थ्य
    • उसकी कृपा का एक कण हमें भी मिल जाए
    • तीन चमत्कारी हानिरहित योगसाधनाएँ
    • ब्रह्मकमल (Kahani)
    • क्या कहेंगे इन अजूबों को आप ?
    • परमार्थपरायण जीवन (Kahani)
    • योगनिद्रा से मनःशक्ति संवर्द्धन
    • स्वतंत्रता की स्वर्णजयंती, गिरते नैतिक मूल्य एवं प्रबुद्धों का दायित्व
    • राखी का मोल
    • शब्दों वै ब्रह्मः
    • स्वतन्त्रता स्वर्णजयंती लेखमाला-३ - श्री अरविन्द के स्वप्नों का भारत
    • नया इनसान बनाएँगे, नया संसार बसाएँगे - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • आत्मसाधना एवं लोकसेवा (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात- - इस वर्श के शान्तिकुञ्ज के ७ अ विस्मरणीय रजत जयंती समारोह
    • Quotation
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1997 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


अपना भाग्य-विधाता मनुष्य स्वयं

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 10 12 Last
अपनी बड़ी बहिन सुरेखा के शरीर पर फटे हुए कपड़ा देखकर वसुन्धरा अपने संभाल न सकी। उसकी आँखों में क्षोभ-रोष और दुःख एक साथ छलक पड़ा । घर की हालत बता रही थी कि यहाँ के रहने वालों को कई-कई दिन खाना नहीं मिलता होगा। वसुन्धरा को अपनी बहिन और उसके घर की हालत देखकर जितना दुःख था उतनी ही हैरानी भी थी। उसे अभी भी अच्छी तरह याद था कि उसके पिता ने बहिन की शादी कराते समय घर की सम्पन्नता का खूब बखान किया था। उसे आश्चर्य हुआ, इतना सम्पन्न घर इतनी जल्दी विपन्न कैसे हो गया? सुरेखा अपनी छोटी बहिन वसुन्धरा के मन में चल रही ऊहापोह को भाँप गयी।

वह हताश स्वर में कहने लगी, “क्या बताऊँ वसु! जबसे मेरे ससुर जी का देहान्त हुआ है, तुम्हारे जीजाजी, मुझे कहते हुए शर्म आती है। वे एकदम आलसी हो गये हैं। कुछ भी काम नहीं करते। वे कहते हैं कि मेरे पिताजी ने मरते समय कहा था, हमारे खेतों में अपार धन है, इन्हें कभी मत बेचना। बेटा इन खेतों से ही तुम्हारा भाग्योदय होगा। बस वसु तब से वे भाग्योदय की प्रतीक्षा कर रहें हैं।”

वसुन्धरा सुरेखा से काफी छोटी थी। परन्तु वह काफी बुद्धिमान और चंचल थी। इन दिनों वह अपनी बड़ी बहिन से मिलने उसके घर आयी थी। उसकी विचारशक्ति की तीव्रता की सभी सराहना करते थे। एकाएक उसके मन में विद्युत गर्मी से कुछ स्फुरित हुआ। इस विचार के सहारे ही उसने सोचा कि उसे अपनी बहिन के घर को किसी तरह सँवारना चाहिए।

उसने अपने दिमाग में बन रही योजना में अपनी बहिन और उसके दोनों बच्चों को भी शामिल कर लिया। उसने बच्चों को समझाया कि वे अपने पिताजी से यह नहीं कहेंगे कि मौसी यहाँ आयीं हैं।

गाँव बहुत बड़ा नहीं था। गाँव में अधिकतर किसान रहते थे, जो खेती करके अपना जीवन यापन करते थे। सुरेखा का पति मोहन भी इसी गाँव का सीधा-सादा सरल स्वभाव का किसान था। लेकिन सीधा होने के साथ ही वह बहुत ही आलसी, सुस्त और कामचोर था। सुबह-सुबह वह गाँव में निकल जाता और सारा दिन बीड़ी पीने, तम्बाकू खाते, गपशप करने में गुजार देता। घर वह सिर्फ खाना खाने के लिए आता था। खाना खाकर सो जाता। यदि घर में कभी समय बचता तो वह भी दोस्तों के साथ ताश-चौपड़ में गुजर जाता।

गाँव वाले उसके इस आचरण को देखकर उसे मोहन के बजाय सुस्तराम कहने लगें थे। अब तो वह सुस्तराम के नाम से मशहूर भी हो गया था। लोग उसका मोहन नाम भूल भी चुके थे। सुस्तराम की इसी सुस्ती के कारण उसकी पत्नी बहुत दुःखी थी। वह पड़ोसी मोतीलाल के खेतों में मेहनत-मजदूरी करती थी। पड़ोसी उसे अनाज और मजदूरी के दो रुपये प्रतिमाह दे दिया करता था। उसके दोनों बच्चे स्कूल जाने के बजाय बैल और गाय चराने जंगल जाते थे।

सुस्तराम को भाग्य की देवी पर विश्वास था। वह इसी कल्पना में खोया रहता था कि एक दिन उसके भाग्य की देवी उसे जरूर दर्शन देंगी। उस पर अवश्य उनकी कृपा होगी और वह धन-धान्य से निहाल हो जायेगा। आज भी वह हमेशा की तरह सुस्तहाल में घर लौटा और खाना खाकर अपने पलंग पर लेट गया। फिर एक बीड़ी पी और सोने की कोशिश करने लगा। कमरे में एक नन्हा दीपक टिमटिमा रहा था।

सुस्तराम की पत्नी नीचे बिस्तर बिछा कर सोई हुई थी। बच्चे दूसरे कमरे में सोये हुए थे। आधी रात के समय किसी आहट की वजह से उसकी नींद खुल गयी। दीपक की मध्यम रोशनी में उसे अपने कमरे में लाल साड़ी में एक सुन्दर स्त्री नजर आयी। उसने घबड़ा कर अपनी पत्नी को जगाया और बोला-

“ देखो तो, ये कौन औरत हमारे घर में घुस आयी है ?” “कौन सी औरत ? मुझे तो कोई नजर नहीं आ रहा है। आपने स्वप्न देखा होगा। सो जाइये और मुझे भी सोने दीजिए।” सुरेखा इतना कहते हुए करवट बदल कर सो गयी।

सुस्तराम आश्चर्य में पड़ गया। वह स्त्री उसके सामने खड़ी थी और मन्द-मन्द मुस्कराए जा रही थी। सुस्तराम के आश्चर्य को तोड़ते हुए वह कहने लगी-मूर्ख उसे सोने दे, मैं तेरे भाग्य की देवी हूँ। मुझे तेरे सिवाय और कोई नहीं देख सकता और न ही कोई मेरी आवाज सुन सकता है। कुछ समझ में आया या फिर मैं जाऊँ ?”

सुस्तराम हड़बड़ा कर बोला-नहीं देवी माँ ! मैं समझ गया आप सिर्फ मेरे भाग्य की देवी हैं। मेरे अहोभाग्य, जो आपके दर्शन हुए। मैं न जाने कब से आपकी प्रतीक्षा कर रहा था।”

“वत्स ! अब तेरे भाग्योदय का समय आ गया है, लेकिन....।”

“लेकिन क्या देवी माँ ?” “तुम्हें मेरी दी शर्तें माननी होंगी। बोल वचन देता है।”

“हाँ माँ! मैं वचन देता हूँ। आपकी शर्त मानूँगा।”

“तो पहली शर्त सुन, मेरे दो दुश्मन हैं, एक है आलसपन और दूसरा समय की बर्बादी। पहले तुम इन दोनों को भगाओ।”

“माँ ! समझ लीजिए मैंने इन दोनों को भगा दिया।” यह कहकर उसने अपनी पत्नी की ओर देखा। वह अपने सिर पर चादर ओढ़े सो रही थी, लेकिन सुस्तराम को क्या मालूम कि वह सारा वार्तालाप सुनकर मुस्कुरा रही थी।

भाग्य की देवी ने बात आगे बढ़ायी, “अब मेरी बात ध्यान से सुन, तेरे पास बीस बीघा खेत और दो-दो बैल हैं या नहीं....?”

“जी हाँ, है देवी माँ।” “तो तू अपने खेतों की जुताई कर वह भी दो बार। बोल यह सब कर सकेगा ?”

“क्यूँ नहीं देवी माँ ? मैं हट्टा-कट्टा आदमी हूँ और धन मिले, मेरा भाग्योदय हो तो क्या नहीं कर सकता।”

बीड़ी, तम्बाकू, पान जैसी गन्दी आदतें नहीं छोड़ सकता ?” “वह भी छोड़ दूँगा।” “सच कह रहा है ?” “माँ ! तुम हमारे भाग्य की देवी हो। भला तुमसे झूठ बोलूँगा।”

“तो समझ ले वत्स ! तेरा भाग्योदय आरम्भ हो गया। तू खेत की जुताई कर..मैं तुम्हें फिर दर्शन दूँगी।” “अच्छा देवी माँ !” सुस्तराम ने आँखें बन्द कर माँ को प्रणाम किया। देवी अन्तर्ध्यान हो गयीं। उसने अपनी पत्नी को झकझोर कर जगाया और देवी के बारे में विस्तार से बताया। सुरेखा बोली-चलो अच्छा हुआ। लेकिन मुझे तो सोने दीजिए और अब आप भी सो जाइये।”

प्रातः मुर्गे ने बाँग दी। सदा देर से सो कर उठने वाला सुस्तराम आज सूर्योदय के पूर्व ही जाग गया। सुरेखा मन नहीं मन मुस्कुराई।

गाँव भर में सुस्तराम के नाम से मशहूर मोहन उठते ही सुरेखा से बोला- “सुरेखा ! मैं आज से ही देवी माँ की आज्ञा के अनुसार खेतों की जुताई कर काम आरम्भ कर रहा हूँ। तुम भी अब किसी और के खेतों में मजदूरी करने के बजाय अपने ही खेतों में मेरे साथ काम करो। अब हम अपने बच्चों को इधर-उधर भटकने के स्थान पर विद्यालय भेजेंगे।”

मोहन अपनी पत्नी सुरेखा और बैलों को साथ लेकर खेत की ओर चल पड़ा । उसके मन में भारी उत्साह था। धन की आस में मन की खुशी चेहरे पर छलकी पड़ रही थी। देवी माँ की आज्ञानुसार वह आलसपन और समय की बर्बादी दोनों को भगा चुका था। आज से उसने बीड़ी-तम्बाकू और पान की आदत भी छोड़ दी। इससे जो पैसे बचने लगें उनसे बच्चों के पढ़ने की किताबें ले आया।

गाँव वालों ने यह सब देखा तो अचम्भित रह गये। एक बुजुर्ग सज्जन अपने मन में बुदबुदाए- चलो अच्छा हुआ सुस्तराम को अकल आ गयी।

कुछ ही दिनों में रात-दिन परिश्रम करके मोहन ने अपने खेतों की साफ-सफाई करके जुताई कर दी। मोहन की पत्नी अपनी छोटी बहिन वसुन्धरा के पास बराबर समाचार भिजवाती रहती थी। खेत का काम पूरा होने की बात सुनकर वसुन्धरा फिर से अपनी बहिन के पास आ गयी और बच्चों के कमरे में छुप गयी।

दिनभर कड़ी मेहनत करने के बाद अब मोहन जल्दी समय पर सो जाया करता था। उसके सारे दुर्व्यसन व्यस्त रहने के कारण अपने आप छूट गये थे। चौपाल पर निठल्ले दोस्तों के साथ अड्डेबाजी, गप-शप कब की बन्द हो चुकी थी।

आज भी वह थककर सो रहा था। रात में देवी माँ पुनः प्रकट हुईं, मोहन को जगाया। उसने देवी माँ को प्रणाम किया। देवी माँ बोली “वत्स मोहन ! अब तुम सुस्तराम नहीं रहे, मैं तुमसे प्रसन्न हूँ अब मेरी दूसरी शर्त यह है कि अपने खेत में गेहूँ की बुवाई कर दो। ठीक समय पर सिंचाई कर देना। जब गेहूँ की फसल पक कर तैयार हो जायेगी तब मैं एक बार फिर तुम्हारे पास आऊँगी। मेरी बात मानोगे न वत्स?”

“अवश्य देवी माँ !” कहते हुए उसने सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम किया। सिर उठाने पर उसने देखा-देवी माँ जा चुकी थीं।

अगले दिन मोहन ने गेहूँ की बुवाई आरम्भ कर दी। बुवाई के बाद मोहन नियमानुसार सिंचाई भी करने लगा। इसी के साथ उसने खाद की सुचारु व्यवस्था की। समय-समय पर उसने निराई-गुड़ाई का क्रम भी जारी रखा। कुछ ही दिनों में गेहूँ की फसल खेत में लहलहाने लगी। मोहन खेत पर ही रहने लगा। वह फसल की रखवाली करता था और एक दिन फसल पककर तैयार हो गयी।

उस रात पुनः देवी माँ ने मोहन को दर्शन दिये।

“उन्होंने कहा-वत्स ! अब आखिरी काम रह गया है। इस फसल को काटकर अपने खलिहान पहुँचाओ। फिर उसमें से गेहूँ निकलवा कर बेच दो। तुम्हारे सामने धन का अपार ढेर लग जाएगा।”

“मैं ऐसा ही करूँगा देवी माँ।” आँखें मूँद कर मोहन ने भाग्य की देवी को प्रणाम किया। देवी माँ लौट गयीं।

देवी माँ की आज्ञा मानकर मोहन ने फसल कटवाकर अपने खलिहान में पहुँचाई। उसमें से गेहूँ निकलवाए। मोहन के सामने अनाज का ढेर लग गया। गाँव भर के लोग उसकी प्रशंसा करने लगें। आस-पास के गाँवों में भी मोहन की फसल की प्रशंसा हो रही थी। व्यापारी गेहूँ खरीदने के लिए उसके द्वार पर आने लगें।

गाँव में बड़े-बूढ़ों ने मोहन को गेहूँ बेचने की सलाह दी। देवी माँ ने भी तो यही कहा था। अपने घर के लिए गेहूँ रखकर उसने सारे गेहूँ व्यापारी को बेच दिये। व्यापारी ने जब उसे नोटों की गड्डियाँ थमानी आरम्भ की तो वह भौचक्का रह गया। सचमुच उसके सामने नोटों का ढेर लग गया। वह सोचने लगा- हे देवी माँ! इतना अपार, इतने धन की तो मैंने कभी कल्पना भी न की थी। इस धन से तो मैं अपने घर की मरम्मत करवा सकता हूँ। सुरेखा और बच्चों के लिए नये कपड़े ला सकता हूँ। अब तो मैं इन रुपयों से बहुत से काम कर सकता हूँ।

अभी वह अपनी सोच में डूबा था, तभी खलिहान में आवाज गूँजी, “वत्स ? क्या अपार धन पाकर हतप्रभ रह गये हो ?”

“देवी माँ !” यह कहकर मोहन ने पलट कर आवाज की दिशा में देखा तो हैरान रह गया, क्योंकि वहाँ लाल साड़ी पहने उसकी पत्नी की छोटी बहिन वसुन्धरा खड़ी थी। मोहन हक्का-बक्का उसे देखता रह गया।

वसुन्धरा कहने लगी-ऐसे आश्चर्य से क्या देख रहे हो, मनुष्य स्वयं ही अपने भाग्य का निर्माता है। आपने इस महावाक्य को अपने जीवन में सिद्ध कर दिया।”

“सच वसु, तुमने तो मेरी आँखें खोल दी। मैं तुम्हारा आभारी हूँ। मुझे आज एहसास हो रहा है कि यदि इंसान अपने श्रम, समय और मनोयोग का सही सुनियोजन कर सके तो उसे अपने भाग्यनिर्माता होने का गौरव प्राप्त हो सकता है। मैं आज संकल्प लेता हूँ कि अब सदैव ही परिश्रम करूँगा, समय की बर्बादी न होने दूँगा, अपने मन को अच्छे विचारों पर चिन्तन करने, अच्छी योजनाएँ बनाने में लगाऊँगा। हमारे पिताजी ठीक ही कहा करते थे। सचमुच मेरे खेतों में अपार धन है।

मोहन के इस कायाकल्प पर सुरेखा मुस्करा रही थी, बच्चे खिलखिला रहें थे और ग्रामवासी मन ही मन संकल्प कर रहें थे कि वे भी अपने भाग्यनिर्माता बनने का गौरव हासिल कर के रहेंगे।

First 10 12 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • पवित्रता ही प्रभु-मिलन का द्वार
  • सौन्दर्य का दर्प
  • Quotation
  • प्रकृति की पाठशाला में लें हम प्रशिक्षण
  • Quotation
  • बालक का आत्मोत्सर्ग
  • उपासनाएँ सफल तब हों, जब उनका मर्म समझें
  • क्या चिन्तन विज्ञान की गुलामी करेगा ?
  • वैभव-सम्पदा अकूत, किंतु सुनियोजन फिर भी नहीं
  • मिल-बाँट कर खाने का चमत्कार (Kahani)
  • अपना भाग्य-विधाता मनुष्य स्वयं
  • समग्र क्रान्ति हेतु युवाओं का आह्वान
  • ज्ञान-दान की महिमा
  • गंगा की गोद-हिमालय की छाया
  • वर्चस् की प्राप्ति प्राणाग्नि के जागरण से
  • सम्राट् नेपोलियन (Kahani)
  • रहस्यों से भरे ये विचित्र संयोग
  • श्रमनिष्ठा (Kahani)
  • अंधकार का पर्याय बन जाता है ऐसा ज्योतिष
  • जो भी ग्रहण करें, वह पवित्र एवं परिष्कृत हो
  • सर्वप्रमाणित है उस स्रष्टा की सामर्थ्य
  • उसकी कृपा का एक कण हमें भी मिल जाए
  • तीन चमत्कारी हानिरहित योगसाधनाएँ
  • ब्रह्मकमल (Kahani)
  • क्या कहेंगे इन अजूबों को आप ?
  • परमार्थपरायण जीवन (Kahani)
  • योगनिद्रा से मनःशक्ति संवर्द्धन
  • स्वतंत्रता की स्वर्णजयंती, गिरते नैतिक मूल्य एवं प्रबुद्धों का दायित्व
  • राखी का मोल
  • शब्दों वै ब्रह्मः
  • स्वतन्त्रता स्वर्णजयंती लेखमाला-३ - श्री अरविन्द के स्वप्नों का भारत
  • नया इनसान बनाएँगे, नया संसार बसाएँगे - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • आत्मसाधना एवं लोकसेवा (Kahani)
  • अपनों से अपनी बात- - इस वर्श के शान्तिकुञ्ज के ७ अ विस्मरणीय रजत जयंती समारोह
  • Quotation
  • VigyapanSuchana
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj