Magazine - Year 1997 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
शब्दों वै ब्रह्मः
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
शब्दौतवाद के अनुसार शब्द ही ब्रह्म है। उसकी ही सत्ता है। सम्पूर्ण जगत शब्दमय है। शब्द की प्रेरणा से समस्त संसार गतिशील है। महती स्फोट की प्रक्रिया से जगत की उत्पत्ति हुई तथा उसका विनाश भी शब्दों के साथ हो गया। इन्द्रियों में सबसे अधिक चंचल तथा वेगवान मन को माना गया है। मन के तीन प्रमुख कार्य है-स्मृति कल्पना तथा चिन्तन। इन तीनों से ही मन की चंचलता बनती है, लेकिन यदि मन का शब्द का मध्यमान न मिले तो उसे चंचलता नहीं प्राप्त हो सकती। उसकी गति शब्द की बैसाखी पर निर्भर है। सारी स्मृतियाँ, कल्पनाएँ, तथा चिन्तन शब्द के माध्यम से चलते हैं।
दैनन्दिन जीवन के काम आने वाले शब्दों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-व्यक्त और अव्यक्त। जैनपन्थी इन्हें अपनी भाषा में जल्प और अर्न्तजल्प कहते हैं। जो बोला जाता है उसे जल्प कहते हो। जल्प का अर्थ है- व्यक्त स्पष्ट मन्तव्य है। जो स्पष्टतः बोला नहीं जाता, मन में सोचा अथवा जिसकी मात्र कल्पना की जाती है, वह है- अर्न्तजल्प। मुँह बन्द होने, होंठ के स्थिर पर भी मन के द्वारा बोला जा सकता है, जो कुछ भी सोचा सोचा जाता है, वह भी एक प्रकार से बोलने की प्रक्रिया है तथा उतनी ही प्रभावशाली होती है, जितनी की व्यक्त वाणी।
ध्वनि- विज्ञान ने ध्वनियों को दो रूपों में विभक्त किया है-श्रव्य और अश्रव्य। अश्रव्य-अर्थात् अल्ट्रासाउण्ड-सुपरसोनिक। हमारे कान मात्र २०००० कम्पन आवृत्ति को ही पकड़ सकते हैं। वे न्यूनतम २० कम्पन आवृत्ति प्रति सेकेण्ड तथा अधिकतम २० हजार कम्पन आवृत्ति प्रति सेकेण्ड पकड़ने में सक्षम हैं, पर उनसे कम तथा अधिक आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों का भी अस्तित्व है। श्रवणेन्द्रियों की मर्यादा अपनी सीमारेखा को चीन नहीं पाती। फलस्वरूप वे ध्वनियाँ सुनाई नहीं पड़ती। कान यदि सूक्ष्मातीत ध्वनि तरंगों को पकड़ने लगें तो मालूम होगा कि संसार में नीरवता की और कभी भी नहीं है। कमरे में बन्द आदमी अपने को कोलाहल से दूर पाता है। पर सच्चाई यह है कि उसके चारों ओर कोलाहल का साम्राज्य है।
जो कुछ भी बोला जाता है अथवा सोचा जाता है, वह तुरन्त समाप्त नहीं हो जाता, सूक्ष्म रूप में अन्तरिक्ष में विद्यमान रहता, तरंगित होता रहता है। सदियों पूर्व महा-मानवों ऋषि कल्प देवपुरुषों ने क्या की होगा, उसे प्रत्यक्ष सुना जा सके ऐसे अनुसन्धान प्रयोगाविधि में हैं। अभी सफलता तो नहीं मिल पायी है, पर वैज्ञानिक आश्वस्त हैं कि आज नहीं तो कल व विद्या हाथ लग जाएगी। निस्सन्देह यह उपलब्धि मानव जाति के लिए महत्वपूर्ण तथा अद्वितीय होगी, अब तक की वैज्ञानिक उपलब्धियों में वह सर्वोपरि होगी। सम्भवतः उसी आधार पर कृष्ण द्वारा कही गया गीता एवं राम-रावण संवादों का अपने ही कानों से सुनना सम्भव हो सकेगा।
रेडियो, टेलीविजन, राडार की भाँति प्राचीनकाल के आविष्कारों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण तथा चमत्कारी खोज थी-मन्त्र विद्या। मन्त्र ध्वनि विज्ञान का सूक्ष्मतम विज्ञान था। इसके अनुसार जो कार्य आधुनिक यन्त्रों के माध्यम से हो सकते हैं वे मन्त्र के प्रयोग से भी सम्भव है। पदार्थ की तरह अक्षरों तथा अक्षरों से युक्त शब्दों में अकूत शक्ति को भाण्डागार मौजूद है। मन्त्र कुछ शब्दों के गुच्छक मात्र होते हैं पर ध्वनि शास्त्र के आधार पर उनकी संरचना बताती है कि एक विशिष्ट ताल, क्रम एवं गति से उनके उच्चारण से विशिष्ट प्राचीनकाल में ऋषियों ने शब्दों की गहराई में जाकर उनकी कारण शक्ति की खोज-बीन के आधार पर मन्त्रों एवं छंदों की रचना की थी। पिछले दिनों ध्वनि विज्ञान पर अमेरिका, प. जर्मनी में कितनी ही महत्वपूर्ण खोजें हुई हैं। साउण्ड थैरेपी एक नयी उपचार पद्धति के रूप में विकसित हुई है। ध्वनि कम्पनों के आधार पर मारक शस्त्र भी बनने लगे हैं। ब्रेन वाशिंग के अगणित प्रयोगों में ध्वनि विद्या की प्रयोग होने लगा है। अन्तरिक्ष की यात्रा करने वाले राकेटों, स्पेस शटलों के नियंत्रण-संचालन में भी मौजूद है, पर वैज्ञानिक क्षेत्र में ध्वनि विद्या का अब तक जितना प्रयोग हुआ है, वह स्थूल है, सूक्ष्म और कारण स्वरूप अभी भी अविज्ञात अप्रयुक्त है जो स्थूल की तुलना में कई गुना अधिक सामर्थ्यवान है। मन्त्रों में शब्दों की स्थूल की अपेक्षा कारण-शक्ति का अधिक महत्व है। मानवी व्यक्तित्व की गहरी परतों, मन एवं अन्तःकरण को मन्त्र की सूक्ष्म एवं कारण शक्ति ही प्रभावित करती है। दर्शन का रूपान्तरण विचारों में परिवर्तन उसके प्रभाव से ही होता है।
यों तो वेदों के हर मन्त्र एवं छंद का अपना महत्व है। देखने में गायत्री महामन्त्र भी अन्य मन्त्रों की तरह सामान्य ही लगता है, जो नौ शब्दों तथा २४ अक्षरों से मिलकर बना है, पर जिन कारणों से उसकी विशिष्टता आँकी गया है, वे हैं-मन्त्र के विशिष्ट क्रम में अक्षरों एवं शब्दों को गुँथन प्रवाह, उनकी चक्र-उपत्यिकाओं पर प्रभाव, उसकी महान् प्रेरणाएँ। हर अक्षर एक विशिष्ट क्रम में जुड़कर शक्तिशाली बन जाता है। २४ रत्नों के रूप में अक्षरों के नवनीत का एक मणि-स्फुरण के रूप में गायत्री मन्त्र का प्रादुर्भाव हुआ तथा आदि मन्त्र कहलाया। सामर्थ्य की दृष्टि से इतना विलक्षण एवं चमत्कारी अन्य कोई भी मन्त्र नहीं है। दिव्य प्रेरणाओं की उसे गंगोत्री कहा जा सकता है। संसार के किसी भी धर्म में इतना संक्षिप्त, पर इतना अधिक सजीव एवं सर्वांगपूर्ण कोई भी प्रेरक दर्शन नहीं जो एक साथ उन सभी प्रेरणाओं को उभारे, जिनसे महानता की ओर बढ़ने तथा आत्मबल सम्पन्न बनने का पथ-प्रशस्त होता है।
ब्रह्म की अनुभूति शब्द-ब्रह्म नाद ब्रह्म के रूप में भी होती है, जिसकी सूक्ष्म स्फुरणा हर पल सूक्ष्म अन्तरिक्ष में हो रही है। गायत्री महामन्त्र नाद ब्रह्म तक पहुँचने का एक सशक्त माध्यम है। प्राचीनकाल की तर सामान्य व्यक्ति को भी अतिमानव-महामानव बना देने की सामर्थ्य उनमें मौजूद है। आवश्यकता इतनी भर है कि गायत्री मन्त्र की उपासना के विधि-विधानों तक ही सीमित न रहकर उसमें निहित दर्शन एवं प्रेरणाओं को भी हृदयंगम किया जाय और तद्नुरूप अपने व्यक्तित्व को ढाला जाय। पूरी श्रद्धा के साथ मन्त्र का अवलम्बन किया जा सके तो आज भी वह पुरातनकाल की ही तरह चमत्कारी सामर्थ्यदायी सिद्ध हो सकता है।