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Magazine - Year 1997 - Version 2

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प्रकृति की पाठशाला में लें हम प्रशिक्षण

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विज्ञान एवं विज्ञानवेत्ताओं का दावा है कि वे प्रकृति के मर्मज्ञ हैं। लेकिन यदा-कदा कतिपय ऐसे दृश्य दिखाई पड़ते हैं, जब उन्हें भी दाँतों तले उंगली दबाने को विवश होना पड़ता है। स्वीकार करना पड़ता है कि प्रकृति रहस्यमय है। प्राचीन शास्त्रकारों ने इसके बारे में ‘ अप्राप्य- मनः सह ‘ ठीक ही कहा है। वेदों में आदि माता के रूप में परिभाषित प्रकृति अपने सौंदर्य एवं गौरव के साथ ऐसी अनगिनत विलक्षणताओं को संजोए है, जो सहज ही मानवीय मन को रोमांचित करती है। साथ ही मानवीय बुद्धि को बरबस ही उस अदृश्य सत्ता के प्रति श्रद्धावनत करती है।

अमेरिका के नेवरास्का क्षेत्र में शीतल एवं मीठे जल की एक बहुत बड़ी नदी है। इसका जल शहद से भी अधिक मीठा है। इसे एक गिलास से अधिक पिया नहीं जा सकता। इस अद्भुत नदी की खोज सन् १९३० में हुई थी। इसका क्षेत्रफल पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ता जा रहा है। वैज्ञानिक अभी तक इस नदी के जल की असाधारण मिठास का रहस्य नहीं समझ पाये हैं।

अपने सामान्य क्रम में नदियाँ पर्वत से लेकर मैदानी क्षेत्रों तक सूखी धरती को हरियाली का वरदान देती है। मानवीय सभ्यता इन्हीं के जल से जीवन एवं प्राण पाती है। ये नदियाँ कहीं झूमती, गाती, इठलाती, शरमाती, कल-कल की आवाज करती व कहीं शाँत-सौम्य भाव से आगे बढ़ती हुई हृदय को पुलकित करती हैं, किंतु प्रकृति ने अपनी इन सन्तानों को अचरज भरी विशेषताएँ भी प्रदान की है। यह जानकर विज्ञानवेत्ता हतप्रभ हैं।

मीठे पानी की अचरज भरी नदी की ही भांति एक नदी है- ‘ रायओद विनाग्रे ‘। यह चिली तथा अर्जेन्टीना देशों के बीच रेखा की तरह बहती है। इसके जल का स्वाद ताजे नींबू पानी जैसा खट्टा है। इसमें इच्छानुसार चीनी या नमक मिला कर शर्बत व शीतल पेय का आनंद लिया जा सकता है। विचित्रताओं के क्रम में पूर्वी अफ्रीका में भूरे रंग के जल की ‘एगारीन्यर्की’ नामक नदी का पानी बीयर जैसा स्वाद लिये है। हालाँकि इसमें अल्कोहल का कोई अंश नहीं पाया जाता। इसका पानी पीने वालों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं पड़ता । बस इसका स्वाद भर शराब जैसा है। वहाँ आस-पास के लोग इसके पानी को उबाल कर पीते हैं।

इसी तरह अल्जीरिया में एक नदी ऐसी है जिसका जल स्याही सरीखा गहरा नीला है। इससे बखूबी लिखा जा सकता है। इस नदी की खोज लगभग आठ दशक पूर्व फ्राँसीसी वैज्ञानिकों ने की थी। वैज्ञानिकों के अनुसार इसके रंग का कारण है लोहा व लेड आक्साइड, जिनका रासायनिक मिश्रण अच्छी स्याही को जन्म देता है। यहाँ की भूमि में इन तत्वों का बाहुल्य होने के कारण ही इस नदी का अस्तित्व है।

विश्व में काली, पीली, संदली, सफेद आदि कई रंगों की नदियाँ हैं, जो अपने सौंदर्य से न केवल प्रकृति की सुषमा में अभिवृद्धि करती हैं, बल्कि देखने वालों को अपनी मनोहारी छटा से मुग्ध करती रहती हैं। साथ ही इनकी विचित्रता मानवीय वृद्धि को हैरत में डाल देती है। इनका यह रंग-बिरंगापन भू धरातल-किनारों व पर्वत श्रृंखलाओं के कारण ही हो सकता है। वहाँ उपस्थित रासायनिक तत्व भी इसका कारण हो सकते हैं।

अपनी रंगों भरी छटा से प्राकृतिक सौंदर्य में श्रीवृद्धि करने के साथ ही उसके रहस्यों को उजागर करने में मसाइलैण्ड की काली नदी तथा चीन की पीली नदी बेमिसाल है। आस्ट्रिया की ब्लू डेन्यूव नदी, भूरी इल्ज नदी तथा पीली इन नदी के मिलने से समृद्ध होकर आगे बढ़ती है। संगम स्थल से काफी दूर तक नदियों की पट्टीदार तिरंगी छटा देखते ही बनती है। स्पेन की ‘रिओरीरो’ नदी में एक ऐसा खनिज विद्यमान है जो हवा के सम्पर्क में आते ही पूरी नदी को खूनी लाल रंग में बदल देता है। उस क्षेत्र में हवाएँ इतनी तेज चलती हैं, नदी उतनी ही रक्तवर्ण हो जाती है।

नदियाँ व झीलों को पार करने के लिए इंसान प्रारंभ से पुलों का निर्माण करता आया है, लेकिन कुछ स्थानों पर प्रकृति ने स्वयं ही पुलों का निर्माण कार्य सम्पन्न किया है। उसके इन निर्माण कार्यों की कारीगरी देखते ही बनती है। फिनलैण्ड के पुनखारजू में एक ऐसा ही अद्भुत पुल बना है, जो प्युरो वेसी झील के आर-पार फैला है। साढ़े चार मील लम्बा और जल सतह से ७५ फीट ऊँचा यह मिट्टी का पुल पूरी तरह से प्रकृति द्वारा बनाया गया है। इसी तरह चीन में निकिएंग नदी पर ३१२ मीटर ऊँचा व ४५ मीटर चौड़ा प्राकृतिक पुल है।

प्रकृति ने अपने नैसर्ग में विचित्र एवं आश्चर्यजनक झीलों को भी संजोया हुआ है। अमेरिका में कई साबुन की झीलें हैं। इनमें से एक झील चालीस फुट से भी ज्यादा गहरी एवं ६ एकड़ भूमि में फैली हुई है। वैज्ञानिकों के अनुसार झील की भूमि में बहुत सा क्षार जमा हुआ है। इसी क्षार में नीचे पृथ्वी से प्राकृतिक तेल मिलकर साबुन की झील को जन्म देता है। इस झील के पानी से साबुन की आवश्यकता भली प्रकार पूरी हो जाती है।

वेस्टइंडीज के त्रिनिदा दनामक द्वीप में एक झील ऐसी है, जिसमें पानी की जगह तारकोल भरा हुआ है। यह झील २९ फीट गहरी व १ मील लम्बी है। सामान्यतया तारकोल ठोस रहता है। कभी-कभी यह बहुत सी जगह पर तरल हो जाता है, व इसमें बुलबुले उठने लगते हैं। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि यह खनिज तेल की सूखी हुई झील है, जो हजारों वर्ष पूर्व किसी भूकम्पीय उथल-पुथल के कारण अस्तित्व में आयी होगी।

आयरलैण्ड में एक अद्भुत झील है, जिसमें जो भी चीज डालो वही पत्थर की बन जाती है। जो पूरी तरह से पत्थर नहीं बन सकती, उसके चारों ओर पत्थर की तह जम जाती है, और धीरे-धीरे वह वस्तु पत्थर की तरह बहुत कठोर हो जाती है। विज्ञानवेत्ता अपने अनेकों अनुसंधान-प्रयत्नों के बावजूद इसका कोई समुचित कारण नहीं खोज पाए हैं। बस वे लोक-कथाओं में प्रचलित किसी शापित झील, जिसमें डालने से कोई भी चीज पत्थर की हो जाती है को प्रत्यक्ष देखकर हतप्रभ हैं।

तेजी से अपना रंग बदलने में गिरगिट का उदाहरण मुहावरे की भाँति प्रयोग किया जाता है। लेकिन आस्ट्रेलिया में एक झील ऐसी है, जो मौसम के अनुरूप रंग बदलती है। नवम्बर दिसम्बर में इसका रंग गहरा नीला हो जाता है, फिर जून में हरा और अगस्त सितम्बर में दूध की तरह सफेद हो जाता है। आश्चर्य की बात यही है कि झील के रंग-परिवर्तन का इसके जल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । यह तो सदैव स्फटिक के समान स्वच्छ रहता है। रंगों के इस आश्चर्य भरे सिलसिले में अफ्रीका की एक झील उल्लेखनीय है जिसका रंग सदैव केसरिया रहता है।

रंग ही नहीं कई और ऐसे अचरज भरे कारनामे हैं, जो झीलों में होते रहते हैं। हवाई द्वीप में एक ऐसी झील है जो आग उगलती है। इसे वहाँ के लोग आग की झील कहते हैं। यह झील मोना नामक ज्वालामुखी के मुहाने पर बनी है, जिसमें उबलता हुआ लावा भरा है। इस झील से हमेशा आग की लपटें एवं धुँआ निकलता रहता है।

विश्व में ऐसी भी कुछ झीलें हैं जो खारे पानी की झीलों के रूप में विख्यात हैं। अफ्रीका की असाल झील, विश्व की सबसे अधिक खारी झील है। कोई भी जानवर दुर्भाग्य से इसमें गिर जाये तो तुरन्त मर जाता है। यह समुद्र तल से ५१० फिट नीचे है। वैसे भी यह अफ्रीका का सबसे निम्नतम स्थल भी है।

इस स्थल व जोर्डान की सीमा पर स्थित मृत सागर यानी की “डेडसी” सागर से ७ से ८ गुना अधिक खारा है। इसमें कोई डूब नहीं सकता। स्नान करने वाले लोग इसमें बड़े मजे से उत्प्लावन का आनन्द लेते हैं। क्योंकि इसमें सिर व पैर पानी के ऊपर ही रहते हैं। इस स्थिति में बैठे-अधलेटे लोग खूब आनन्द में पानी के अन्दर रहते हुए पुस्तक या अख़बार पढ़ते रहते हैं। यह झील ५० मील लम्बे व १० मील चौड़े क्षेत्र में फैली हुई हैं। इसका प्रमुख श्रोत जोर्डान नदी है, जो सागर से ४२९६ फीट नीचे है। अर्थात् यह विश्व की सबसे निचली झील है।

पश्चिमी गोलार्ध की सबसे बड़ी नमकीन झील है, “ग्रेट साल्ट लेक” जो सागर से आठ गुना खारी है। इसमें कोई डूब नहीं सकता। यहाँ तक कि इसमें तैरना भी कठिन है। लोग इसमें भी बड़े मजे से उतारने का आनन्द लेते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार हर साल इसमें तीन मिलियन नमक जुड़ता है।

विचित्रताओं के क्रम में फ्रेंच नाइजीरिया की झील इसमें अपनी एक और अनूठी विचित्रता जोड़ती है। वस्तुतः यह सोडे की झील है। जो पाँच मील लम्बी व १३१२ फीट गहरी है। यही नहीं यह प्रतिवर्ष बड़ी होती जा रही है। इसका स्रोत है तिदिची का ज्वालामुखी, जहाँ से निरन्तर सोडियम कार्बोनेट निकलता रहता है। इसी तरह चेडमे ज्वालामुखी के गड्ढे में सोडे की झील बनी है। सूखने पर इसमें कार्बोनेट नमक की तरह सफेद सतह चमकती रहती है।

भारत में राजस्थान की साँभर झील भी नमक नमक उत्पादन में जगत विख्यात है। प्रतिवर्ष अक्टूबर से मई तक आठ माह के दौरान लगभग दो लाख टन नमक देने के बावजूद जून से सितम्बर तक चार माह में इसका खारापन अचानक गायब हो जाता है। इन दिनों वर्ष के दिन रहते हैं। जब अरावली की पर्वत मालाओं के झरते पानी से नदियाँ उफनने लगती हैं। इन दिनों इसका जल शुद्ध व मीठा हो जाता है। अपने जल के स्वाद परिवर्तन में तिब्बत की अरुरसी झील भी कम विख्यात नहीं है। इसका पानी प्रत्येक बारह वर्ष बाद बारी-बारी से खारे व मीठे जल में बदलता रहता है। विश्व की सबसे बड़ी झीलों में से एक आस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी झील, ‘आयर झील’ एक अद्भुत झील है। रेगिस्तान में स्थित यह झील अद्भुत मृग-मरीचिका की तरह प्रकट होती है व विलुप्त हो जाती है। यहाँ मरुस्थलीय गर्म सतह के कारण वाष्पीकरण की प्रक्रिया बहुत तीव्र है। इसमें आने वाली नदियाँ मार्ग में ही सूख जाती हैं। वैसे यह ३६०० वर्गमील क्षेत्र में फैली हुई है। ज्यादातर इसका सूखा या कीचड़ वाला धरातल नमक की चादर ओढ़े रहता है। वर्षा की तेज बौछारों के बाद यह कुछ समय के लिए जीवन्त हो उठती है, लेकिन पानी जल्दी ही सूखने लगता है। सन् १८४० में खोज के बाद से यह सिर्फ दो ही बार पूरी तरह से भर सकी है, लेकिन दोनों ही बार कुछ ही सालों में यह पूरी तरह सूख गयी थी।

आयरलैण्ड की राष्ट्रीय प्रदेश की लोघारिया झील समय-समय पर अचानक गायब हो जाती हैं। इसका कारण इसके अन्दर स्थित एक भूमिगत नहर का होना बताया जाता है। अपने भारतवर्ष में भी अमरावती की बेगमघाट झील भी बारी-बारी से एक वर्ष पानी से भरी रहती है और अगले दो वर्ष पूरी तरह सूखी रहती है।

प्रकृति ने अचरज भरी कारीगरी में नदियों एवं झीलों के रूप में न केवल अपने आश्चर्यों, अनगिनत रहस्यों को उजागर किया है, बल्कि ऐसा भी बहुत कुछ दिया है, जो उसकी सन्तानों को सुविधा एवं सहूलियत दे। गर्म जल की झीलों का पाया जाना कुछ ऐसा ही है। जहाँ मनुष्य तो क्या जंगली जानवर तक ठिठुरती सर्दी में राहत पाते हैं। तिब्बत के बर्फीले यंगवजैन क्षेत्र में गर्म पानी की काफी बड़ी झील है, जो ६१ मीटर तक गहरी व ७३५० वर्गमीटर क्षेत्र में फैली हुई है। इसका तापमान ४५ से ५८ डिग्री सेंटीग्रेड तक रहता है। तिब्बती लोग इसमें चाय गर्म करते हैं।

न्यू मेक्सिको में जेमेजक्रीक के ४०० फीट लम्बी ५० फीट ऊँची व ५० फीट चौड़ी ‘सोड’ झील गर्म झरनों द्वारा प्राकृतिक रूप से बनाई गयी है। इसी तरह कोस्टारिका के पास ज्वालामुखी पर्वत के मुहाने पर गर्म पानी की झील बना है, जो ३७ एकड़ भूमि में फैली है। यह १००० मीटर गहरी है और विश्व के सबसे बड़ा गर्म जल स्रोत के रूप में विख्यात है। इसका सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि इसके बीचो-बीच ३५० मीटर ऊँचा पानी का स्तम्भ बनता है।

इटली के टेरेष्टो से कुछ दूर पीछे पानी का एक स्रोत है। इसमें अचरज की बात यह है कि यह खारे समुद्रतल से ऊपर उठता हुआ सफेद रंग के गोल घेरे के रूप में दिखाई देता है। भारतवर्ष के हिमाचल प्रदेश में कुल्लू मणिकर्ण क्षेत्र के पहाड़ी अंचल में पार्वती नदी के तट पर उबलते हुए जल का चश्मा है, जिसका तापमान सौ डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर रहता है। तीर्थ यात्री यहाँ इसमें चावल, दाल, व अन्य चीजें पकाते हैं।

नदी व झीलों की ही भाँति झरने व जल प्रपात भी प्रकृति के अभिन्न अंग है। इनमें भी कुछ अपनी विलक्षणता के लिए चर्चित हैं। आस्ट्रिया में एक झरना ऐसा है जो प्रतिदिन पानी के ऊपर ठीक ३-३० बजे अपराह्न एक इन्द्रधनुष प्रतिबिम्बित करता है। टोर्न पर्वत में स्थित इस नेडन जल-प्रपात की इस विशेषता से वहाँ के लोग अपनी घड़ी मिलाते हैं साथ ही प्रकृति के इस अनुपम सौंदर्य को निहार कर प्रफुल्लित होते हैं।

स्काटलैंड का लाश क्रान जल प्रपात १००० फीट ऊँचा है। फिर भी बहुत थोड़े-से लोग ही इसे देख पाते हैं, क्योंकि यह एक बार में सिर्फ ३० मिनट तक ही गिरता है और वह भी केवल मूसलाधार वर्षा के बाद ही। रोडेशिया में शक्तिशाली विक्टोरिया जलप्रपात का एक भाग अपने चमकीले इन्द्रधनुष के लिए विख्यात हैं। इसकी रंगीन छटा वहाँ के निवासियों एवं पर्यटकों को अपने सौंदर्य के जादू से मुग्ध करती रहती है। आश्चर्यों की इस परम्परा में इटली में आरमिया के समीप स्थित झरना एक अनूठी कड़ी जोड़ता है। इसमें सर्दियों में भाप उठता हुआ गर्म पानी होता है व गर्मियों में बर्फ की तरह ठंडा जल।

इन्द्रधनुष की सतरंगी छटा अपने निरालेपन से सबका बरबस मन मोह लेती है और यदि कहीं इन्द्रधनुष के अन्दर इन्द्रधनुष वह भी कई एक साथ दिखने लगे तो, फिर उसकी मन मोहकता को बताने के लिए सम्भवतः शब्द पर्याप्त नहीं होंगे। स्पेन के एक नाविक एन्टोनियो डी उल्लाओ ने एक्वेडोर स्थित एक जलधारा की लहरों में ऐसा ही नजारा देखा। उसे एक इन्द्रधनुष के अन्दर चार इन्द्रधनुष दिखाई दिये।

उसके इस उल्लेख पर यही कहना पड़ता है कि प्रकृति कभी-कभी अपना जादुई डंडा घुमाकर ऐसा दृश्य प्रस्तुत करती है कि मनुष्य की बुद्धि ही चकरा जाये। सिगनाइग चू (चीन) के निकट प्रातःकालीन कुहरे के कारण उत्पन्न दृष्टि भ्रम से आकाश में पाँच सूर्य एक साथ दिखाई देते हैं।

आश्चर्यों के इसी क्रम में प्रत्यक्षदर्शियों ने अद्भुत ध्वनियों की घटनाओं का भी उल्लेख किया है। चीन के ही जिंगमेगे क्षेत्र में लगभग ७० कि.मी. दूर बालू का एक टीला है, जहाँ विविध प्रकार की ध्वनियाँ निकलती रहती हैं। एक मुट्ठी रेत उठाकर इस पर डालने से मधुर ध्वनि निकलती है। यदि कोई इस पर गुलमारी लगाए तो इससे कभी रेल के गुजरने की ध्वनि आती है, तो कभी सुदूर आकाश में उड़ रहे हवाई जहाज की ध्वनि।

इटली के टिबोलो नामक पर्वत से निकल रहा फव्वारा भी अपने संगीत के लिए रहस्यमय पहेली बना हुआ है। हजारों वर्षों से निकल रहे इस फव्वारे में माउथआर्गन बजने जैसा संगीत पैदा होता है। ऐसे ही सहारा के रेगिस्तान में बाँसुरी की मीठी आवाज गूँजा करती है।

ब्रिटेन की लाफनिध नामक विशाल झील के किनारे तोप चलने जैसी आवाजें थोड़ी

थोड़ी देर बाद सुनाई देती है, जबकि यहाँ आस-पास कोई सैनिक छावनी या अड्डा नहीं हैं। इन ध्वनियों की विलक्षणता यह है कि इनके भारी विस्फोट के बावजूद झील के जल की स्थिरता में तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ता है। इसी तरह के धमाकों के प्रमाण सुन्दर वन डेल्टा के बोसाल गाँव व गंगा के कछार के विभिन्न स्थानों में मिले हैं। इन पर हुए कई शोध प्रयास इस रहस्य का अनावरण करने में असफल रहें हैं।

प्रख्यात थियोसोफिस्ट कर्नल एच. ए. आलकाट ने भी अपने स्मरण में वारीसाल के रहस्यमय विस्फोटों की सत्यता की पुष्टि की है। उनके अनुसार ये गर्जनाएं इतनी तीक्ष्ण और कर्णभेदी होती थीं कि मानो समीप के किसी सैनिक शिविर से तोप दागी गयी है। “नेचर” पत्रिका में जी.वी. स्काट ने ऐसी ही विलक्षण गर्जनाओं का उल्लेख ब्रह्मपुत्र नदी से ३०० मील दूर चिल्गारी गाँव में नदी तट के आस-पास किया है।

प्राकृतिक आश्चर्यों के इसी क्रम में चलते-पर्वतों एवं गाँवों का उल्लेख भी मिलता है। उत्तरी इटली में मोटेना के समीप स्थित ऐ पर्वत धीरे-धीरे सरक रहा है, जो अब तक अपने स्थान से ४० कि.मी. दूर जा चुका है। आस्ट्रेलिया का पर्यटन ग्राम ग्रामसीन भी हमेशा चलता रहता है। कारण यह है कि १००० फीट मोटी नमक की चट्टान पर टिका हुआ है, जो लगातार अपनी जगह बदल रही है।

प्रकृति में आश्चर्यों एवं रहस्यों की कमी नहीं है। ये सभी आश्चर्य और रहस्य अपनी विचित्रताओं एवं विलक्षणताओं के द्वारा उस परम् आश्चर्य की ओर संकेत करते हैं, जिसके लिए शास्त्रकारों ने “किमार्श्चय परमंग” कहकर जिज्ञासा की है। यही सभी नियमों से परे और सभी नियमों का नियामक है। हमारी-हम सबकी जिज्ञासा उसके प्रति निरन्तर बढ़ती रहें। प्रकृति अपने विविध अचरजों के द्वारा यही प्रशिक्षण देती रहती है।

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