
आ रहा है चिकित्सा का स्वर्णिम युग
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
अतीन्द्रिय क्षमताओं में दिव्यदृष्टि, दूरश्रवण, भविष्य कथन जैसी कितनी ही सामर्थ्यों की गणना होती रहती है। इनमें से भविष्य के अन्तराल में चल रही सूक्ष्म हलचलों को सही-सार्थक रूप से देख व समझ सकने में विरले ही समर्थ होते हैं। इतने पर भी कितने ही व्यक्ति ऐसे होते हैं जो प्रत्यक्ष परिस्थितियों के आधार पर निकट भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का सही आकलन करने में सफल होते हैं। भविष्यवक्ताओं का कहना है कि प्रत्यक्ष परिस्थितियों के आधार पर लगाया गया सत्य का अनुमान असत्य भी हो सकता है। यदि मनुष्य अथवा कोई व्यक्ति वर्तमान प्रतिकूल परिस्थितियों को जानकर अनुकूल क्रियाकलापों को अपना ले, सुरक्षा की ओर ध्यान देना शुरू कर दे तो ऐसे में घटित न होने पर भी भविष्यवाणी को झूठा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि सम्भावना होने पर भी प्रयासपूर्वक उसे टाल दिया जाता है। आर्किटेक्ट अपनी योजना में हेर-फेर कर भावी इमारत का स्वरूप बदल सकता है, इतने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि आरम्भिक स्वरूप झूठा था।
ऐसे ही आकलनकर्ताओं में पाश्चात्य वैज्ञानिक एवं डाक्टर जेराल्ड मैक्समेन का नाम प्रमुख है। उनके अधिकांश भविष्य कथन चिकित्सा क्षेत्र से संबंधित हैं। उन्होंने ‘मेडिसिन इन द ट्वेन्टी फर्स्ट सेंचुरी’ नामक पुस्तक में ‘द पोस्ट फिजिशियन एरा’ नामक शीर्षक से अपने लेख में इक्कीसवीं सदी को चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष उपलब्धियों की सदी घोषित किया है। सन् 1976 में ही उन्होंने सन् 1990 के बारे में जिन-जिन रोगों पर विजय प्राप्त करने का संकेत दिया था, वस्तुतः चिकित्साविज्ञानियों को उसमें पूर्णतः सफलता मिल गयी है। उनका यह आकलन उस समय चल रहे विभिन्न प्रयोग-परीक्षणों पर आधारित था।
सन् 1990 तक की उपलब्धियों में गर्भ में ही शिशु-भ्रूण के लिंग का पता लगाने में सफलता, अप्राकृतिक अथवा प्लास्टिक के बने हुए अंग-अवयवों का प्रयोग, कृत्रिम हृदय का आरोपण एवं विभिन्न रोगों के विश्लेषण के लिए कैट स्कैनिंग नामक यंत्र का निर्माण जैसी भविष्यवाणियाँ सत्य सिद्ध हुईं। छूत से फैलने वाले संक्रामक रोगों पर सम्पूर्ण विजय, क्षयरोग, टी.बी., एक्जिमा , कोढ़ जैसे चर्म रोगों के लिए पूर्ण निदान जैसे उनके आकलन क्रमशः सही सिद्ध होते जा रहे हैं।
सन् 1990 से सन् 2050 तक के बारे में उनने लिखा है कि इस अवधि में संश्लेषित रसायनों का प्रयोग कम खर्च वाले भोज्य पदार्थों के रूप में होने लगेगा एवं कैंसर जैसी प्राणघातक बीमारियों के लिए विशिष्ट औषधियों का आविष्कार हो जाएगा। यह खोजें सन् दो हजार से पूर्व ही हो जाएँगी। इसी बीच मानवी मस्तिष्क का प्रत्यारोपण भी सम्मिलित है। इस आधार पर बाल्यावस्था से ही बच्चों को बुद्धिमान, मेधावी , तीव्र स्मरण शक्ति वाला एवं प्रतिभावान बनाया जा सकेगा। सन् 2000 तक मनुष्य शरीर के सभी अंग-अवयवों के आरोपण के लिए विशिष्ट प्रयोग सम्पन्न हो जाएँगे और सरलतापूर्वक किसी भी रोगग्रस्त अंग के स्थान पर स्वस्थ अंग को स्थापित किया जा सकेगा। इस स्थिति में लूले-लँगड़े, गूँगे-बहरे एवं अपंग जैसे व्यक्तियों, पीड़ितों लोगोँ की संख्या कम हो जायेगी और उनके लिए स्वर्णिम भविष्य का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा ।
डॉ. जेराल्ड के अनुसार इससे अगले ही कुछ वर्षों में वृद्धावस्था से मुक्ति पाने के लिए रासायनिक दवाओं का संश्लेषण तो होगा ही, किन्तु सदैव चिरयुवा बने रहने के लिए संयमपरक उन सभी आध्यात्मिक मान्यताओं की पुष्टि विज्ञान द्वारा हो जाएगी जिसे इन दिनों अभी हास-परिहास में टाल दिया जाता है। संयम, नियम, तप-तितिक्षा , ब्रह्मचर्य प्राणायाम, ध्यान, योग-व्यायाम, खान-पान, इन्द्रियों का सदुपयोग जैसे शाश्वत आध्यात्मिक सिद्धान्तों पर विज्ञान एवं चिकित्सा की मुहर लगेगी और उन्हें ही चिरयौवन के महत्वपूर्ण औषधि-उपचार के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। परिणामस्वरूप लोग सहज ही इस आध्यात्मिक पथ का अनुसरण करने लगेंगे। अंगों के क्रमिक जैविक विकास के लिए सन् 2007 तक विशिष्ट प्रयोग सम्पन्न हो जाएँगे। जन्म जात आनुवांशिक श्रेष्ठता के लिए कृत्रिम उपायों पर विशेष प्रकार के प्रयोग-परीक्षण होंगे, जिसमें स्थूल उपायों की अपेक्षा चेतना की गहन एवं सूक्ष्म परतों को प्रभावित करने वाले आध्यात्मिक उपचारों को मान्यता मिलेगी। इसमें शारीरिक एवं मानसिक योग प्रक्रिया भी सम्मिलित होगी। इन दिनों चल रही जीन प्रत्यारोपण की प्रक्रिया निरर्थक एवं हानिकारक सिद्ध होगी। सन् 2012 तक मानवी प्रतिभा बढ़ाने के लिए उपयुक्त औषधियाँ खोज ली जाएँगी, लेकिन उसे चिरस्थायी बनाने के लिए अध्यात्म उपचारों का सहारा लेना पड़ेगा। इसके बिना सारे प्रयास व्यर्थ ही साबित होंगे।
इसी क्रम में डॉ. जेराल्ड का भविष्य कथन है कि सन् 2030 तक जेनेटिक्स -अनुवांशिकी पर मनुष्य पूरी तरह नियंत्रण प्राप्त कर लेगा। इक्कीसवीं सदी के मध्य तक चिरयौवन के सिद्धान्तों एवं दीर्घायुष्य प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक उपाय खोज लिये जायेंगे और इस उपाय उपचार से लोगों की उम्र में काफी वृद्धि की जा सकेगी। इन दिनों मनुष्य की औसत आयु 40 से 60 वर्ष के बीच है, अगले दिनों उसे 100 से 120 वर्ष के निकट तक पहुँचाया जा सकेगा। तब अधिकांश व्यक्ति स्वस्थ एवं दीर्घजीवी होंगे। मानव समुदाय के लिए विज्ञान एवं अध्यात्म के संयुक्त प्रयास की यह सबसे बड़ी देन होगी।
अब विज्ञान-जगत के मूर्धन्य मनीषी भी इस तथ्य को समझने लगे हैं कि अकेले भौतिक विज्ञान के विकास से मनुष्य का सर्वांगीण हितसाधन सम्भव नहीं है। डॉ. जेराल्ड का उक्त कथन इस बात की पुष्टि करता है। आने वाले समय में सचमुच विशिष्ट स्तर के प्रयोग-परीक्षण होंगे और उससे मनुष्य का बहुत बड़ा हितसाधन होगा। इस सम्बन्ध में अध्यात्म क्षेत्र की सेवा सराहनीय होगी। विज्ञान को साथ लेकर वह मनुष्य के सर्वांगीण विकास में निश्चय ही बहुत कुछ कर सकेगा।