
वसंत (kavita)
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हर वसंत ने लिस जीवन के, नये-नये शृंगार किये।
उसके वासंती-जीवन ने ‘वासंती-उपहार’ दिये॥
उसके जीवन में वसंत की परिभाषा साकार हुई।
उसकी’जीवन को जीने की कला’ वसंत-बहार हुई ॥
उसने वासंती-चिंतन को भी, अनुपम आकार दिये।
उसके वासंती-जीवन ने, ‘वासंती-उपहार’ दिये॥1॥
मानवीय चिंतन, चरित्र के उपवन में पतझर देखा।
भावों के बिरवे मुरझाये देख, खिंची चिंता-रेखा॥
स्नेह और संवेदन रस से, सूखे बिरवे सींच ये।
उनके वासंती-जीवन ने, ‘वासंती-उपहार’ दिये ॥2॥
जीवन भर ही वासंती-बलिदानों का बाना पहिना।
वासंती-व्यक्तित्व निखारा, पहिन तितीक्षा का गहना॥
जन-जन को मुस्कानें बाँटीं, खुद पीड़ा के घूँट पिये।
उनके वासंती-जीवन ने, ‘वासंती -उपहार’ दिये ॥3॥
‘गायत्री-परिवार’ बनाया अपने प्राण पिला कर के।
पाला-पोषा बड़े प्यार से माँ ने स्नेह लुटा कर के ॥
माँ की छाती, हृदय पिता का, थे कितने अरमान लिये।
उनके वासंती-जीवन ने, ‘वासंती-उपहार ‘ दिये ॥4॥
बार-बार आत्मचिंतन को, पर्व-वासंती आता है।
बलिदानी-जीवनी से जोड़ा, किसने ? कितना ? नाता है॥
या उनके प्राणों को पीकर, उन प्राणों को त्रास दिये।
जिनके वासंती-जीवन ने ‘वासंती-उपहार’ दिये ॥5॥
उनके अरमानों की बगिया, कहीं न हम ही मुरझा दें। अहंकार की, राग-,द्वेष की लपटे, उसे न झुलसा दें॥ हर वसंत ने चेताने को, हमें यही निर्देश दिये। उनके वासंती-जीवन ने, ‘वासंती-उपहार- दिये॥6॥ उनके जन्मदिवस पर, अपने मन को संकल्पित कर दें। अहंकार का शीश काटकर, चरणों में अर्पित कर दें॥ ताकि उन्हें विश्वास हो सके, उनके ही अनुरूप जिये। जिनके वासंती-जीवन ने ‘वासंती-उपहार’ दिये ॥7॥ -मंगल विजय ‘विजय वर्गीय’ *समाप्त*
उनके अरमानों की बगिया, कहीं न हम ही मुरझा दें। अहंकार की, राग-,द्वेष की लपटे, उसे न झुलसा दें॥ हर वसंत ने चेताने को, हमें यही निर्देश दिये। उनके वासंती-जीवन ने, ‘वासंती-उपहार- दिये॥6॥ उनके जन्मदिवस पर, अपने मन को संकल्पित कर दें। अहंकार का शीश काटकर, चरणों में अर्पित कर दें॥ ताकि उन्हें विश्वास हो सके, उनके ही अनुरूप जिये। जिनके वासंती-जीवन ने ‘वासंती-उपहार’ दिये ॥7॥ -मंगल विजय ‘विजय वर्गीय’ *समाप्त*