• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जीवन की मूल प्रेरणा है परमार्थ
    • कामये दुःखतप्तानाम् प्राणिनामर्त्तिनाषनम्
    • अध्यात्म-चेतना का ध्रुव केन्द्र है- देवात्मा हिमालय
    • शौर्य का रहस्य
    • सत्य का अवलम्बन ही वरेण्य
    • शौर्य का रहस्य
    • सत्य का अवलम्बन ही वरेण्य
    • उज्ज्वल भविष्य का संदेशवाहक देवदूत
    • अनगढ़ व चंचल मन को एकाग्र कैसे करें?
    • जीवन जीने की कला सिखाती है-आस्तिकता
    • Quotation
    • आ रहा है चिकित्सा का स्वर्णिम युग
    • सच्चा सत्संग
    • यह कैसा विरोधाभास?
    • अंधविश्वासों की मृगमरीचिका (Kahani)
    • रहस्यमय भारत, अनूठे यहाँ के लोग
    • नशेबाजों जैसा उद्धत आचरण बहुत महंगा पड़ेगा
    • Quotation
    • परिस्थितियों का दास नहीं, नियन्ता है मनुष्य
    • माँ की सीख (Kahani)
    • क्यों इतराते हैं अपने बुद्धि-कौशल पर आप?
    • भगवान की हँसी (Kahani)
    • जीवनपर्यंत मानव जीता है चारों युगों में
    • फिजिक्स से मेटाफिजिक्स की ओर
    • VigyapanSuchana
    • योग्य (Kahani)
    • क्यों आत्महत्या को उतारू है आज की दुनिया?
    • गलत आदत (Kahani)
    • हरीतिमा संवर्धन ही एकमात्र उपाय
    • Quotation
    • भावी युग भावनात्मक विकास को योग्यता का मानदण्ड मानेगा
    • तोता रटन्त ज्ञान (Kahani)
    • जादुई जीन्स के रहस्य अब उद्घाटित हो रहे हैं।
    • भविष्य का ज्ञान (Kahani)
    • सुनियोजित हमारी यज्ञ प्रक्रिया
    • दण्ड के पात्र (Kahani)
    • हम राजनीति में भाग क्यों नहीं लेते ? (2)
    • परमपूज्य पूज्य की अमृतवाणी
    • सात महान आत्माएँ (Kahani)
    • जिज्ञासाएँ आपकी-समाधान हमारे
    • अपनों से अपनी बात- - यह बसंत पर्व कुछ सुनिश्चित संभावनाएँ लेकर आया है।
    • अखण्ड-ज्योति क्यों पढ़ें ? क्यों पढ़ायें ?
    • VigyapanSuchana
    • वसंत (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • जीवन की मूल प्रेरणा है परमार्थ
    • कामये दुःखतप्तानाम् प्राणिनामर्त्तिनाषनम्
    • अध्यात्म-चेतना का ध्रुव केन्द्र है- देवात्मा हिमालय
    • शौर्य का रहस्य
    • सत्य का अवलम्बन ही वरेण्य
    • शौर्य का रहस्य
    • सत्य का अवलम्बन ही वरेण्य
    • उज्ज्वल भविष्य का संदेशवाहक देवदूत
    • अनगढ़ व चंचल मन को एकाग्र कैसे करें?
    • जीवन जीने की कला सिखाती है-आस्तिकता
    • Quotation
    • आ रहा है चिकित्सा का स्वर्णिम युग
    • सच्चा सत्संग
    • यह कैसा विरोधाभास?
    • अंधविश्वासों की मृगमरीचिका (Kahani)
    • रहस्यमय भारत, अनूठे यहाँ के लोग
    • नशेबाजों जैसा उद्धत आचरण बहुत महंगा पड़ेगा
    • Quotation
    • परिस्थितियों का दास नहीं, नियन्ता है मनुष्य
    • माँ की सीख (Kahani)
    • क्यों इतराते हैं अपने बुद्धि-कौशल पर आप?
    • भगवान की हँसी (Kahani)
    • जीवनपर्यंत मानव जीता है चारों युगों में
    • फिजिक्स से मेटाफिजिक्स की ओर
    • VigyapanSuchana
    • योग्य (Kahani)
    • क्यों आत्महत्या को उतारू है आज की दुनिया?
    • गलत आदत (Kahani)
    • हरीतिमा संवर्धन ही एकमात्र उपाय
    • Quotation
    • भावी युग भावनात्मक विकास को योग्यता का मानदण्ड मानेगा
    • तोता रटन्त ज्ञान (Kahani)
    • जादुई जीन्स के रहस्य अब उद्घाटित हो रहे हैं।
    • भविष्य का ज्ञान (Kahani)
    • सुनियोजित हमारी यज्ञ प्रक्रिया
    • दण्ड के पात्र (Kahani)
    • हम राजनीति में भाग क्यों नहीं लेते ? (2)
    • परमपूज्य पूज्य की अमृतवाणी
    • सात महान आत्माएँ (Kahani)
    • जिज्ञासाएँ आपकी-समाधान हमारे
    • अपनों से अपनी बात- - यह बसंत पर्व कुछ सुनिश्चित संभावनाएँ लेकर आया है।
    • अखण्ड-ज्योति क्यों पढ़ें ? क्यों पढ़ायें ?
    • VigyapanSuchana
    • वसंत (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1997 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


अपनों से अपनी बात- - यह बसंत पर्व कुछ सुनिश्चित संभावनाएँ लेकर आया है।

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 40 42 Last
बसन्त का आगमन कर वर्ष होता है एवं हर बार वह ठिठुरन भी सर्दी से त्राण दिलाता हुआ एक गुनगुनी-सी गर्मी, जो उल्लास का प्रतीक है, के आगमन का निमित्त बन जाता है। बसन्त पर्व, बसंती रंग युगों-युगों से विवेक और बलिदान का प्रतीक बना प्रेरणा देता रहा है। शहीदों ने “बसन्ती चोला रंग डालो” “मेरा रंग दे बसन्ती चोला” एवं “संतों ने इसीलिए तो पहल लिया है यह केसरिया बाना-” इन माध्यमों से अपने अंतः के बलिदानी भाव की अभिव्यक्ति की है। “बसन्ती” शब्द में एक विलक्षण-सी मस्ती समायी पड़ी है। यह लौकिक भी है व अलौकिक भी, जिसकी रसानुभूति उन्हीं को हो पाती है, जो इसे सही अर्थों में समझ पाते हैं।

बसन्त पर्व गायत्री परिवार-युग निर्माण मिशन के प्रणेता-अधिष्ठाता परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का आध्यात्मिक जन्मदिवस होने के साथ-साथ तत्वबोध का पर्व भी है। मिशन हर वर्ष अपना वार्षिकोत्सव इन्हीं दिनों मनाता है। यह उनके अपनी दैवी पोक्ष मार्गदर्शक सत्ता जिसे उनने अपना मास्टर, अपना गुरु कहा, से साक्षात्कार का पुण्य दिवस भी है। इसी दिन महागुरु की प्रेरणा ने युवा शिष्य के अंतःकरण में प्रवेश कर उनके अस्तित्व के हर कण को अलौकिक बोध प्राप्त करा दिया। शिष्य के भावभरे समर्पण ने उसे अपने महागुरु के साथ एकाकार कर दिया। उनके व्यक्तित्व में एक विलक्षण आध्यात्मिक चेतना ज्योतिर्मान हो उठी। सहस्राब्दियों से अनीति-अज्ञान-अभाव के अंधकार से घिरे मानव समुदाय को संप्रदाय-जाति की क्षुद्र मान्यताओं से ऊपर उठाकर एक मानवधर्म व एक संस्कृति की ओर ले जाकर एक विराट विश्व ही नहीं, युग के नवनिर्माण का संकल्प इसी पावन दिन लिया गया था। इसी दिन आगे के वर्षों में वे सारे महत्वपूर्ण निर्धारण किए गए जिनने मिशन की आधारशिला रखी, मानव में देवत्व, धरती पर स्वर्ग का स्वप्न साकार किये जाने का एक ब्ल्यू प्रिन्ट तैयार किया।

प्रस्तुत बसन्त पर्व (11 फरवरी 1997) कुछ ऐसे क्षणों में आया है जब हम संक्रान्ति घड़ियों से गुजर रहे हैं। भारतवर्ष का भविष्य निश्चित ही स्वर्णिम सींवना लिए हमारे सामने खड़ा है किन्तु प्रसव काल की वेदना भरी घड़ियां भी इन्हीं कुछ वर्षों की अवधि में अनुभूत की जा सकेंगी। ऐसे में यह विराट गायत्री परिवार जो करोड़ों व्यक्तियों की प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है, प्रगतिशील धर्मतंत्र का पर्यायवाची है एवं सभी की आशा का केन्द्रबिन्दु है, एक ही आश्वासन अपनी गुरुसत्ता के उनके तत्वबोध दिवस पर दे सकता है कि यह 5-6 वर्षों की घड़ियाँ चैन से बैठने की नहीं, सक्रियता का परिमाण निरन्तर बढ़ा देने वाली होंगी। इन दिनों देवमानवों के रूप में वृक्षों की संपदा अपने पूर्ण यौवन पर हैं। बस वे फूलने-फलने की तैयारी में लगे हैं एवं सारी वसुधा को अपने आम्र बौरों की सृवास से महका देना चाहते हैं। अधिक से अधिक पूर्ण समयदानी इस अवधि में सक्रियता बढ़ाते हुए अपना बलिदानी संकल्प पूरा कर दिखाना चाहते हैं। यही अपेक्षित भी था, उन अंशावतारों से, मध्यावतारों से जो निष्कलंक प्रज्ञावतार की सत्ता का हाथ बँटाने विशेष रूप से इन दिनों धरती पर प्रकटे हैं, कैसी सौभाग्यशाली बेला है है?

प्रस्तुत वेला उल्लास की चहक व ज्ञान की महक से उमंगती उन क्षणों की है जो वर्ष में एक बार ही आती है। हम उनके मानसपुत्र उस उल्लास से अभिपूरित न हों, यह कैसे हो सकता है? हर परिजन स्थानीय स्तर पर ऐसी वेला में अपने घर या अपनी शाखा या अपने प्रज्ञामण्डल, स्वाध्याय-मण्डल में अथवा शक्तिपीठ पर सामूहिक अखण्ड जप में भागीदारी कर युगऋषि की चेतनसत्ता का एक अंश स्वयं में समाहित करने का भावभरा संकल्प लेता है। श्रेष्ठ साधक ही इस अवधि में उभरे उल्लास की सुनियोजित कर उन्हें त्याग-बलिदान, विद्या विस्तार की ओर मोड़ दे पाते हैं। साधनात्मक स्तर पर इसीलिए यह परिपाटी बनायी गयी है, कि सामूहिक अखण्ड जप का क्रम हर स्थान पर चले, चाहे उसमें सक्रिय परिजन एक घण्टा ही भागीदारी कर सकें, अवश्य करें।

यही पर्व मिशन का वार्षिकोत्सव पर्व भी है। माँ सरस्वती का जन्मदिवस होने के कारण सद्ज्ञान-विस्तार का पर्व भी है यह। ऐसे में सामूहिक आयोजन जिसमें पर्वों की प्रेरणा की पुण्य-प्रक्रिया द्वारा सभी तक युगऋषि का जीवन संदेश पहुँचाया जाता है, हर स्थान पर आयोजित होना चाहिए। यह लकीर पीटने की तरह न हो अपितु इसमें पूर्व की प्रगति समीक्षा एवं आगे के महत्वपूर्ण निर्धारणों की चर्चा हो। अब इक्कीसवीं सदी में मात्र गिने चुने चार वर्ष शेष रह गए हैं। कैसे हम आशावाद को जाग्रत-जीवन बनाए रख सकते हैं। एवं अपने क्रिया-कलापों को आदर्शवादी बनाकर “कालनेमि” की माया से नितान्त अप्रभावित रह युगचेतना का संचार कर सकते हैं, यह अपेक्षा सभी हमसे रख रहे हैं।

नवसृजन के भगवत् मुहूर्त की इस बेला में जब हम देव संस्कृति दिग्विजय के अनेकों सोपान पार कर आज एक समानांतर धर्मतंत्र की विराट शक्ति का स्वरूप सबके समक्ष रख पाने में समर्थ हो पाए हैं, तो उसके मूल में युगऋषि का, मातृसत्ता का तप है उनका पुण्य है एवं देह ब्रह्मणत्व है जिसकी सिद्धि आज चहुँओर देखी जा सकती है। हर बसंत पर्व इन सभी की स्मरण दिलाता हम सभी में नूतन शक्ति का प्राण संचार करता आता है।

यही संकेत देता है कि हम ऋषियुग्म के बताए राजमार्ग पर चलकर निश्चित ही उस लक्ष्य को पा लेंगे, जिसके लिए वे हमें संकल्प दिला गए है।

संस्कार महोत्सवों की अभिनव शृंखला सारे भारत में पड़ी है। सारे भारत भर से उनकी माँग है। सभी जिला स्तरीय नगर या कस्बे भी इनका आयोजन करने की क्षमता रखते हैं, अतः उत्साह उभरना स्वाभाविक भी है। इस वर्ष को पुनर्गठन वर्ष नाम दिए जाने के बाद सभी से यह कह दिया गया था कि अपना संपूर्ण उत्साह गाँव में गायत्री यज्ञ व घर-घर में गायत्री उपासना के शंखनाद के साथ संस्कार रूपी बीज के अंकुरित-पल्लवित होने योग्य पृष्ठभूमि बनाने के निमित्त नियोजित कर दें। बहुत कुछ स्थानों पर ऐसा हो भी रहा है। किंतु कही-कहीं बड़े आयोजनों का, विराट भव्य समारोहों का आग्रह उभरकर आ जाता है, बिना किसी प्रकार की तैयारी के। अभी तक जो संस्कार महोत्सव संपन्न हुए है, उनसे बड़ा ही विलक्षण वातावरण उन स्थानों पर बना है एवं गायत्री यज्ञ व एक प्रकार से देव संस्कृति के प्रति रुझान अत्यधिक परिणाम में बढ़ा है। ये संस्कार महोत्सव मूलतः उन स्थानों पर किये गये, जहाँ मिशन का आलोक इतनी तीव्र गति से नहीं पहुँच पाया था। उत्तर भारत , पश्चिमोत्तर , पूर्वोत्तर एवं दक्षिणी भारत के कई भागों से उत्साह उभर कर आया है एवं वहाँ उन्हें संपन्न किए जाने की प्रक्रिया जोर पकड़ रही है, तैयारियाँ चल रही है एवं इस वर्ष की शरद पूर्णिमा तक संभवतः बहुत बड़ा क्षेत्र इस प्रसार में लिया जा सकेगा । अब जो महत्वपूर्ण है, वह समझना है। जहाँ बड़े-बड़े महानगर है वहाँ मुम्बई में संपन्न ज्ञान या की तरह विराट ज्ञान यज्ञ प्रायः चौबीस स्थानों पर सम्पन्न किया जाना है जिनमें इलेक्ट्रानिक एक्जीबिशन , मल्टीमीडिया, डिस्पले, देवात्मा हिमालय का दिग्दर्शन एवं विराट दीप यज्ञ को ही प्रधानता दी जाएगी । यह योग निश्चित ही पाश्चात्य सभ्यता के भौतिक प्रभाव से वहाँ की युवा शक्ति व न्यायों को उबारने में समर्थ हो सकेगा। इसके अलावा अब अन्यान्य प्राप्तों में ग्राउण्ड वर्क, कर सक्रियता पूर्वक संस्कार महोत्सवों की पृष्ठभूमि बनाने वाले अधिकाधिक समयदानियों की आवश्यकता पड़ेगी। यह पूर्ति अपने भावनाशील परिजन ही करेंगे व इसी वसंत पर्व पर “अभी नहीं तो की नहीं” का संकल्प लेंगे।

यदि इस वर्ष हम ज्ञान यज्ञों, विज्ञान सम्मत प्रतिपादन वाली प्रदर्शनियों तथा संस्कार महोत्सवों को सुचारु रूप से संपादित कर सके तो विश्वास किया जाना चाहिए कि अगले वर्ष तक काफी कुछ वातावरण गायत्रीमय एवं यज्ञमय होता दीख पड़ने लगेगा। विराट भव्य आयोजनों में भारी शक्ति व्यय करने के स्थान पर प्रयोगों का यह क्रम चल पड़ा है जो अब सभी को हृदयंगम हो रहा है क्योंकि इससे ऊर्जा का समान वितरण होने में मदद मिलती है। एक चूक जो हम सबसे होती रहती है, वह है अति उत्साह में आकर समाज निर्माण के कार्यों में तत्पर हो जाना, पर अपनी साधनात्मक दिनचर्या या जीवन को गौण मान लेना साधनात्मक पराक्रम अपने स्थान पर जरूरी है एवं वही एक मात्र संबल है जो साधक को पथभ्रष्ट, अहंकारी, उन्मादी नहीं बनने देता न्यूनतम ही सही किसी न किसी रूप में दैनिक जीवन में साधना का समावेश अत्यंत जयरी है यदि यह क्रम चलता रहे तो हमारे आस-पास परमपूज्य गुरुदेव गुरुदेव के श्रेष्ठ आदर्शों के प्रति समर्पित कार्यकर्ताओं की एक टीम खड़ी होगी, न कि कुछ कच्ची बुद्धि के खुशामदी पसंद समर्थकगण , जो हमें अपना माध्यम बनाकर कुछ स्वार्थ पूर्ति करते हैं। विराट से विराटतम होते जा रहे संगठन के लिए यह समझना अत्यन्त जरूरी है।

हमारा सामूहिक स्वरूप उभरकर आए एवं वसंत पर्व से वासंती लहरे हमारी अंदर की ठण्डक को दूर कर उसमें कुछ गरमाई ला दे, यही हम सबकी इस वसंत पर्व पर प्रार्थना होनी चाहिएं हम कालनेमि के मायाजाल में न फँसने पाएँ, हमारा आत्मबल इतना बढ़ती जाए कि हम प्रभावित होने के स्थान पर औरों को प्रभावित कर इन्हें इस सशक्त आंदोलन में घसीटते चले , यही हमारा संकल्प इस पावन पर्व पर होना चाहिए। वासंती बयार बेअसर न होने पाए, उसकी यह संचार क्षमता समाप्त न होने पाए, यही हम सब की इस ईशसत्ता से प्रार्थना होनी चाहिए। जिस वासंती स्पर्श से भगतसिंह को मतवाला बनाकर फाँसी का फंदा चूमने की ओर प्रेरित किया था, क्या उसे पाकर भी हम एक कापुरुष की तरह सांस्कृतिक गुलामी भरी जिंदगी जीना चाहेंगे ? नहीं, हम सबका दृढ़मत से यह शिव-संकल्प इस पावन वेला में उभर कर आना चाहिए कि अब बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध का एक-एक क्षण राष्ट्रभूमि की सेवा में नियोजित हो। मलीनता व प्रदूषणयुक्त वायु की तरह घोटालों- षड्यंत्रों -कानाफूसियों के झोंके हमें स्पर्श भी न करने पाएँ एवं हम एक साथ एक भी न करने पाएँ हम एक साथ एक स्वर से समूह गान करते हुए उस मातृसत्ता व गुरुसत्ता को एक आश्वासन दे सकें कि अभी भी इस धरती पर बसंती आत्माहुति देने वालों की संख्या कम नहीं हुई है। वह निरन्तर बढ़ती ही चली जाएगी, तब तक जब तक कि साँस्कृतिक क्रांति के माध्यम से यह राष्ट्र सारे विश्व का जगद्गुरु नहीं बन जाता है।

First 40 42 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • जीवन की मूल प्रेरणा है परमार्थ
  • कामये दुःखतप्तानाम् प्राणिनामर्त्तिनाषनम्
  • अध्यात्म-चेतना का ध्रुव केन्द्र है- देवात्मा हिमालय
  • शौर्य का रहस्य
  • सत्य का अवलम्बन ही वरेण्य
  • शौर्य का रहस्य
  • सत्य का अवलम्बन ही वरेण्य
  • उज्ज्वल भविष्य का संदेशवाहक देवदूत
  • अनगढ़ व चंचल मन को एकाग्र कैसे करें?
  • जीवन जीने की कला सिखाती है-आस्तिकता
  • Quotation
  • आ रहा है चिकित्सा का स्वर्णिम युग
  • सच्चा सत्संग
  • यह कैसा विरोधाभास?
  • अंधविश्वासों की मृगमरीचिका (Kahani)
  • रहस्यमय भारत, अनूठे यहाँ के लोग
  • नशेबाजों जैसा उद्धत आचरण बहुत महंगा पड़ेगा
  • Quotation
  • परिस्थितियों का दास नहीं, नियन्ता है मनुष्य
  • माँ की सीख (Kahani)
  • क्यों इतराते हैं अपने बुद्धि-कौशल पर आप?
  • भगवान की हँसी (Kahani)
  • जीवनपर्यंत मानव जीता है चारों युगों में
  • फिजिक्स से मेटाफिजिक्स की ओर
  • VigyapanSuchana
  • योग्य (Kahani)
  • क्यों आत्महत्या को उतारू है आज की दुनिया?
  • गलत आदत (Kahani)
  • हरीतिमा संवर्धन ही एकमात्र उपाय
  • Quotation
  • भावी युग भावनात्मक विकास को योग्यता का मानदण्ड मानेगा
  • तोता रटन्त ज्ञान (Kahani)
  • जादुई जीन्स के रहस्य अब उद्घाटित हो रहे हैं।
  • भविष्य का ज्ञान (Kahani)
  • सुनियोजित हमारी यज्ञ प्रक्रिया
  • दण्ड के पात्र (Kahani)
  • हम राजनीति में भाग क्यों नहीं लेते ? (2)
  • परमपूज्य पूज्य की अमृतवाणी
  • सात महान आत्माएँ (Kahani)
  • जिज्ञासाएँ आपकी-समाधान हमारे
  • अपनों से अपनी बात- - यह बसंत पर्व कुछ सुनिश्चित संभावनाएँ लेकर आया है।
  • अखण्ड-ज्योति क्यों पढ़ें ? क्यों पढ़ायें ?
  • VigyapanSuchana
  • वसंत (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj