• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जीवन की मूल प्रेरणा है परमार्थ
    • कामये दुःखतप्तानाम् प्राणिनामर्त्तिनाषनम्
    • अध्यात्म-चेतना का ध्रुव केन्द्र है- देवात्मा हिमालय
    • शौर्य का रहस्य
    • सत्य का अवलम्बन ही वरेण्य
    • शौर्य का रहस्य
    • सत्य का अवलम्बन ही वरेण्य
    • उज्ज्वल भविष्य का संदेशवाहक देवदूत
    • अनगढ़ व चंचल मन को एकाग्र कैसे करें?
    • जीवन जीने की कला सिखाती है-आस्तिकता
    • Quotation
    • आ रहा है चिकित्सा का स्वर्णिम युग
    • सच्चा सत्संग
    • यह कैसा विरोधाभास?
    • अंधविश्वासों की मृगमरीचिका (Kahani)
    • रहस्यमय भारत, अनूठे यहाँ के लोग
    • नशेबाजों जैसा उद्धत आचरण बहुत महंगा पड़ेगा
    • Quotation
    • परिस्थितियों का दास नहीं, नियन्ता है मनुष्य
    • माँ की सीख (Kahani)
    • क्यों इतराते हैं अपने बुद्धि-कौशल पर आप?
    • भगवान की हँसी (Kahani)
    • जीवनपर्यंत मानव जीता है चारों युगों में
    • फिजिक्स से मेटाफिजिक्स की ओर
    • VigyapanSuchana
    • योग्य (Kahani)
    • क्यों आत्महत्या को उतारू है आज की दुनिया?
    • गलत आदत (Kahani)
    • हरीतिमा संवर्धन ही एकमात्र उपाय
    • Quotation
    • भावी युग भावनात्मक विकास को योग्यता का मानदण्ड मानेगा
    • तोता रटन्त ज्ञान (Kahani)
    • जादुई जीन्स के रहस्य अब उद्घाटित हो रहे हैं।
    • भविष्य का ज्ञान (Kahani)
    • सुनियोजित हमारी यज्ञ प्रक्रिया
    • दण्ड के पात्र (Kahani)
    • हम राजनीति में भाग क्यों नहीं लेते ? (2)
    • परमपूज्य पूज्य की अमृतवाणी
    • सात महान आत्माएँ (Kahani)
    • जिज्ञासाएँ आपकी-समाधान हमारे
    • अपनों से अपनी बात- - यह बसंत पर्व कुछ सुनिश्चित संभावनाएँ लेकर आया है।
    • अखण्ड-ज्योति क्यों पढ़ें ? क्यों पढ़ायें ?
    • VigyapanSuchana
    • वसंत (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • जीवन की मूल प्रेरणा है परमार्थ
    • कामये दुःखतप्तानाम् प्राणिनामर्त्तिनाषनम्
    • अध्यात्म-चेतना का ध्रुव केन्द्र है- देवात्मा हिमालय
    • शौर्य का रहस्य
    • सत्य का अवलम्बन ही वरेण्य
    • शौर्य का रहस्य
    • सत्य का अवलम्बन ही वरेण्य
    • उज्ज्वल भविष्य का संदेशवाहक देवदूत
    • अनगढ़ व चंचल मन को एकाग्र कैसे करें?
    • जीवन जीने की कला सिखाती है-आस्तिकता
    • Quotation
    • आ रहा है चिकित्सा का स्वर्णिम युग
    • सच्चा सत्संग
    • यह कैसा विरोधाभास?
    • अंधविश्वासों की मृगमरीचिका (Kahani)
    • रहस्यमय भारत, अनूठे यहाँ के लोग
    • नशेबाजों जैसा उद्धत आचरण बहुत महंगा पड़ेगा
    • Quotation
    • परिस्थितियों का दास नहीं, नियन्ता है मनुष्य
    • माँ की सीख (Kahani)
    • क्यों इतराते हैं अपने बुद्धि-कौशल पर आप?
    • भगवान की हँसी (Kahani)
    • जीवनपर्यंत मानव जीता है चारों युगों में
    • फिजिक्स से मेटाफिजिक्स की ओर
    • VigyapanSuchana
    • योग्य (Kahani)
    • क्यों आत्महत्या को उतारू है आज की दुनिया?
    • गलत आदत (Kahani)
    • हरीतिमा संवर्धन ही एकमात्र उपाय
    • Quotation
    • भावी युग भावनात्मक विकास को योग्यता का मानदण्ड मानेगा
    • तोता रटन्त ज्ञान (Kahani)
    • जादुई जीन्स के रहस्य अब उद्घाटित हो रहे हैं।
    • भविष्य का ज्ञान (Kahani)
    • सुनियोजित हमारी यज्ञ प्रक्रिया
    • दण्ड के पात्र (Kahani)
    • हम राजनीति में भाग क्यों नहीं लेते ? (2)
    • परमपूज्य पूज्य की अमृतवाणी
    • सात महान आत्माएँ (Kahani)
    • जिज्ञासाएँ आपकी-समाधान हमारे
    • अपनों से अपनी बात- - यह बसंत पर्व कुछ सुनिश्चित संभावनाएँ लेकर आया है।
    • अखण्ड-ज्योति क्यों पढ़ें ? क्यों पढ़ायें ?
    • VigyapanSuchana
    • वसंत (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1997 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


परिस्थितियों का दास नहीं, नियन्ता है मनुष्य

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 18 20 Last
इन दिनों जिस गति से मानसिक विकृतियाँ और व्याधियाँ बढ़ी हैं, उन्हें साधारण नहीं, असाधारण कहना चाहिए। इसके लिए जिम्मेदार किसे ठहराया जाय-स्वयं को, समाज को या परिस्थितियों को?

इन बिन्दुओं पर गहराई से विचार करने पर यही ज्ञात होगा कि इसके लिए दोष भले ही व्यक्ति या परिस्थिति को दे दिया जाय, पर मूल त्रुटि अपनी निजी ही कही जायेगी। यदि आदमी में अप्रिय प्रसंगोँ को पचाने और सहजता से उसकी उपेक्षा करने की प्रवृत्ति हो, तो कोई कारण नहीं कि वह सामान्य जिन्दगी न जी सके। मुसीबत वहाँ खड़ी होती है, जहाँ राई का पर्वत बना दिया जाता और छोटे प्रकरण को बढ़ा-चढ़ाकर इतना और इस कदर उलझा दिया जाता है कि व्यक्ति स्वयं भी उसी मकड़-जाले में फँस कर हाथ-पैर पीटता रह जाता है। मक्खियाँ जब मकड़ी के बुने जाले में एक बार फँस जाती हैं, तो फिर लाख कोशिश करने के बावजूद भी निकल नहीं पातीं। यही हाल मनुष्य का होता है। ऐसी स्थिति में उसके पास एक ही विकल्प शेष रह जाता है-आत्महत्या। आदमी सोचता है कि प्रस्तुत मनोवेदना से छुटकारा पाने का यह एक सरल तरीका है, पर शायद यह भूल जाता है कि इस प्रकार की प्रवृत्ति से आगामी जन्म और कठिनाइयों भरा बनता है। यह एक सामान्य सिद्धान्त की बात है कि हमारी रुचि जिस क्षेत्र में जितनी होगी, उसमें उत्तरोत्तर विकास ही होता जायेगा, वह घटेगी नहीं, वरन् बढ़ेगी ही। व्यभिचारियों को व्यभिचार की सुखानुभूति एक बार मिल जाने के उपरांत फिर उस कुटेव से स्वयं को पृथक् कहाँ रख पाते हैं? समय के साथ-साथ पाप-पंक में और धँसते ही चले जाते हैं। वास्तव में मन की गति ही ऐसी है कि उसे एक बार प्रयत्नपूर्वक जिस ओर लगा दिया गया, फिर उस दिशा से हटने का नाम नहीं लेता। शराबी, जुआरी, चोर, बेईमान, भ्रष्ट, दुष्ट सब इसी स्तर के होते हैं। वे अपने व्यसनों में इतने अभ्यस्त बन चुके होते हैं कि मन बार-बार उन्हें उसी राह पर घसीट ले जाता है। यह बात नहीं कि वे इनसे उबरने का प्रयास नहीं करते। अपनी ओर से हर कोई इस भँवर से बच निकलना चाहता है, पर मन रूपी भँवर की गति इतनी प्रबल और प्रचण्ड होती है कि उसके आगे उसका बाह्य प्रयास एक प्रकार से निकम्मा साबित होता और जीवन भर पछतावा ही शेष रहता है।

आत्मघात को अन्तिम उपचार के रूप में अपनाने वालों के साथ भी यही होता है। यह बात नहीं कि इसका फैसला वह एक ही बार में ले लेता है। इस सम्बन्ध में अनेक बार उसकी मनःस्थिति बनती-बिगड़ती है। कई बार वह अपनी मानसिक कमजोरी पर काबू पाने की कोशिश करता है। सोचता है कि अगले कुछ दिनों में शायद वह इस दुःखद स्थिति को परास्त कर सके, पर आगे उसकी मानसिक उलझन उसे और भी बिगड़ती प्रतीत होती है। इस असह्य स्थिति में जीवन समाप्त कर लेने का विचार बार-बार उसके मन में उठने लगता है। फिर वह किसी प्रकार मन को समझाकर एवं कुछ परिस्थिति से समझौता कर दशा को सुधारने की कोशिश करता है, किन्तु यह अवस्था अधिक दिनों तक नहीं रह पाती और अवसाद का कुचक्र पुनः उसे घेर लेता है। वह इससे एक बार फिर बाहर आने का प्रयत्न करता है। जिसमें तनिक भी जीवट शेष होता है, वह इस बार भी अपनी मानसिक दुरभिसंधि से बाहर निकले में सफल हो जाता है पर जिनका मनोबल बरी तरह ध्वस्त हो चुका होता है, वे अपनी जीवन-लीलाएँ यहीं समाप्त कर लेते हैं। यह एक दृष्टि से कायरता है और दूसरी दृष्टि से महापातक भी।

कायरता इसलिए, क्योंकि व्यक्ति ने कठिनाइयों के आगे आत्म-समर्पण कर दिया। पाप इसे इसलिए कहेंगे कि मनुष्य का वास्तविक उद्देश्य प्रगति करना है, अवगति नहीं, विकास के एक सोपान से अगले सोपानों में प्रवेश करना, पीछे लौटना नहीं। जब कोई वातावरण, व्यक्ति या परिस्थिति से परेशान होकर आत्महत्या करता है, तो यथार्थ में वह अपने अगले जीवन की उन्नति को अवरुद्ध कर लेता है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, मन की गति और अभिरुचि पूर्व जन्म में जिस ओर होती है, दूसरे जन्म में भी अनायास ही वह उसी ओर मुड़ जाती है। विगत जन्म में चूँकि उसकी प्रवृत्ति बार-बार आत्महत्या की ओर बनी रहती है, इसलिए आगामी जीवन में भी उसका रुझान उसी ओर बना रहता है और बार-बार छोटी-छोटी बात पर भी मन आत्मघात को करता है। आत्मविद्या के आचार्यों का कथन है कि ऐसे व्यक्तियों की जीवनलीला दूसरे जन्म में भी अक्सर आत्महत्या द्वारा ही समाप्त होती है। यह आत्म-प्रगति के आगे रोड़े अटकाने जैसा हुआ, अतएव इसकी गणना पाप में की गयी है।

मूर्धन्य मनीषी एरिक फ्राँम ने अपनी पुस्तक ‘दि से न सोसायटी’ में इन दिनों की बढ़ती मानसिक व्याधि का मुख्य कारण भौतिकवाद को बताया है। वे कहते हैं कि इन दिनों समाज प्रतिस्पर्धी बन गया है। आज का हर व्यक्ति दूसरे से प्रतियोगिता करता है। गरीब अमीर का स्वाँग रचता और छोटा-बड़े जैसा सम्मान पाना चाहता है। अभीप्सा बुरी बात नहीं। यदि मनुष्य इच्छाओं पर अंकुश लगा दे, तो शायद उसकी भौतिक प्रगति हजारों वर्ष पूर्व जितनी थी, उससे एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाती। आज की उन्नति को मानवी आकाँक्षा का ही परिणाम कहना पड़ेगा, पर एरिक फ्राँम का कहना है कि पुराने जमाने और वर्तमान समय की मनःस्थिति में जो मूल अन्तर आया है, वह यह कि अब इच्छा, सिर्फ आकाँक्षा न रह कर महत्वाकाँक्षा बन गई है। यही खतरनाक है। वे कहते हैं कि इच्छा और आकाँक्षा स्वस्थ मनोवृत्ति है। इसमें प्रगति की कामना और कोशिश तो रहती है, पर यदि किसी प्रकार सफलता न भी मिल सकी, तो इसे सामान्य रूप में ही लिया जाता है, जबकि महत्वाकाँक्षा में अभीष्ट को येन-केन-प्रकारेण प्राप्त कर लेने की प्रबल लिप्सा होती है। इसमें व्यक्ति स्वयं को उससे इतना घनिष्ठ रूप से जुड़ा अनुभव करता है कि यदि किसी प्रकार वह उसे प्राप्त करने में असफल रहा, तो वह उसको झकझोर कर रख देता है। यहीं से उसकी मानसिक परेशानी शुरू होती है। उनके अनुसार हम अपनी स्थिति और आवश्यकता के अनुरूप इच्छा तो करें, पर महत्वाकाँक्षा से बचें। यदि ऐसा हो सका, तो आज के व्यक्ति और समाज मानसिक रूप से उतने ही स्वस्थ बन सकते हैं, जितने पूर्व में कभी थे।

शरीर में अनेक प्रकार के विषाणु प्रवेश करते और विविध लक्षणों वाले रोग उत्पन्न करते ही रहते हैं। इसी प्रकार मनोभूमि में कितने ही प्रकार के विकार अपने स्थान बनाते और जड़ें जमाते हैं। इस क्रम में परिपूर्ण उन्माद न सही, उससे मिलते-जुलते उतने ही घातक, उतने ही भयानक रोग उत्पन्न करते हैं। इनमें कितने ही प्रमुख और विघातक व्याधियाँ हैं। मैलनकोलिया अर्थात् विषादजन्य स्थिति, न्यूरस्थेनिया अर्थात् स्नायु सम्बन्धी असंतुलन, डिमेंषिया पैरालिटिका अर्थात् आवेश का क्षणिक दौरा एवं डिमेंषिया प्रिकोक् अर्थात् किशोरों की हिंसात्मक वृत्ति जैसी कितनी ही विकृत मनः-स्थितियाँ ऐसी हैं, जो बुद्धि और विवेक को अव्यवस्थित कर देतीं और जब, जहाँ जो भी सनक सवार होती है, उसी में मस्तिष्क इस प्रकार और इतनी द्रुतगति से गतिमान हो जाता है कि स्वयं को सँभालना मुश्किल हो जाता है। मनःशास्त्रियों का कहना है कि यह सभी न्यूनाधिक भौतिकवाद की ही देन है।

दूसरी ओर ‘फिलॉसफी ऑफ विविलाइजेषन’ नामक अपनी रचना में अल्बर्ट श्वाइत्जर लिखते हैं कि मानसिक विकृति का वास्तविक कारण जीवन-दर्शन में निहित है। उनके अनुसार, आज का जीवन-दर्शन ही त्रुटिपूर्ण है। जीवन के प्रति हर एक की यही सोच और सही समझ हो और उसका जो यथार्थ उद्देश्य है, उसको ध्यान में रखकर चले, तो कोई कारण नहीं कि मनुष्य जीवन मानसिक विक्षोभों के भ्रम-जंजाल में पड़कर एक प्रकार से नष्ट हो जाय। वे कहते हैं कि जीवन-दर्शन ऐसा होना चाहिए, जिसमें शाँति, संतोष ओर प्रगति तीनों का सामंजस्यपूर्ण संतुलन हो। आज प्रगति तो है पर शान्ति और संतोष का पूर्णतया अभाव, जबकि होना यह चाहिए कि प्रगति के साथ शान्ति भी हो। इन दिनों भौतिक प्रगति के द्वारा शान्ति प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है, जबकि इस विधि द्वारा संतोष सम्भव नहीं, कारण कि शान्ति अन्दर की उपज है, प्रगति बाहर का प्रयास जब प्रगति के द्वारा शान्ति प्राप्त करने का प्रयत्न होता है, तो चूँकि यह असम्भव है, इसलिए उसके स्थान पर असन्तोष पैदा हो जाता है। यही असन्तोष विकृत होकर अनेकानेक प्रकार की मानसिक कुँठाओं का कारण बनता है, जिसकी अन्तिम परिणति आत्महत्या के रूप में सामने आती है।

मनःशास्त्री आज की मनोविकृति के चाहे जो कारण बतायें, अध्यात्मवेत्ता इस सम्बन्ध में एकमत हैं कि मानसिक आधि का कारण बाह्य परिस्थिति नहीं, व्यक्ति की निजी मनःस्थिति है। यदि उसके अन्दर प्रेम, सहयोग, सेवा, सहकार, करुणा, उदारता जैसे गुण हों, तो पहली बात तो यह है कि प्रतिकूलताओं की सम्भावनाएँ काफी न्यून हो जाती हैं। इतने भर भी यदि परिस्थितियाँ मनोनुकूल न हो सकीं, तो सहिष्णु बनकर उनका सामना किया जाना चाहिए। इस स्थिति में मानसिक उलझनों से छुटकारा पाया जा सकता, इससे कम में नहीं। जो परेशानी का कारण और निवारण बाहर तलाश करते हैं वास्तव में वे भ्रान्ति में होते हैं। ‘मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है’-यह तथ्य भी इसी बात की पुष्टि करता है कि सब कुछ मनुष्य के निजी सोच और प्रयास में निहित है। वह यदि स्वयं को परिस्थितियों का दास मान ले, तो स्वयं भगवान भी उसे ऊँचा नहीं उठा सकते, किन्तु यदि वह यह मान कर चले कि परिस्थितियों का वह स्वामी और नियंता है, तो न केवल वह अपनी प्रगति को ही अक्षुण्ण बनाये रख सकेगा, वरन् मनः स्थिति भी इतनी शान्त, सुव्यवस्थित और शीतलता से भरी-पूरी होगी जिसे देखकर यही कहना पड़ेगा कि वह कोई साधारण नहीं, असाधारण मनुष्य है।

First 18 20 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • जीवन की मूल प्रेरणा है परमार्थ
  • कामये दुःखतप्तानाम् प्राणिनामर्त्तिनाषनम्
  • अध्यात्म-चेतना का ध्रुव केन्द्र है- देवात्मा हिमालय
  • शौर्य का रहस्य
  • सत्य का अवलम्बन ही वरेण्य
  • शौर्य का रहस्य
  • सत्य का अवलम्बन ही वरेण्य
  • उज्ज्वल भविष्य का संदेशवाहक देवदूत
  • अनगढ़ व चंचल मन को एकाग्र कैसे करें?
  • जीवन जीने की कला सिखाती है-आस्तिकता
  • Quotation
  • आ रहा है चिकित्सा का स्वर्णिम युग
  • सच्चा सत्संग
  • यह कैसा विरोधाभास?
  • अंधविश्वासों की मृगमरीचिका (Kahani)
  • रहस्यमय भारत, अनूठे यहाँ के लोग
  • नशेबाजों जैसा उद्धत आचरण बहुत महंगा पड़ेगा
  • Quotation
  • परिस्थितियों का दास नहीं, नियन्ता है मनुष्य
  • माँ की सीख (Kahani)
  • क्यों इतराते हैं अपने बुद्धि-कौशल पर आप?
  • भगवान की हँसी (Kahani)
  • जीवनपर्यंत मानव जीता है चारों युगों में
  • फिजिक्स से मेटाफिजिक्स की ओर
  • VigyapanSuchana
  • योग्य (Kahani)
  • क्यों आत्महत्या को उतारू है आज की दुनिया?
  • गलत आदत (Kahani)
  • हरीतिमा संवर्धन ही एकमात्र उपाय
  • Quotation
  • भावी युग भावनात्मक विकास को योग्यता का मानदण्ड मानेगा
  • तोता रटन्त ज्ञान (Kahani)
  • जादुई जीन्स के रहस्य अब उद्घाटित हो रहे हैं।
  • भविष्य का ज्ञान (Kahani)
  • सुनियोजित हमारी यज्ञ प्रक्रिया
  • दण्ड के पात्र (Kahani)
  • हम राजनीति में भाग क्यों नहीं लेते ? (2)
  • परमपूज्य पूज्य की अमृतवाणी
  • सात महान आत्माएँ (Kahani)
  • जिज्ञासाएँ आपकी-समाधान हमारे
  • अपनों से अपनी बात- - यह बसंत पर्व कुछ सुनिश्चित संभावनाएँ लेकर आया है।
  • अखण्ड-ज्योति क्यों पढ़ें ? क्यों पढ़ायें ?
  • VigyapanSuchana
  • वसंत (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj