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Magazine - Year 1997 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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सपनों के झरोखे से मृत्यु का दर्शन

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First 16 18 Last
सन् 1800 ई0! मारेन्गो युद्ध युद्ध !! की तलवार नेपोलियन के सिर पर झूल रही थी। वह हेलना में मृत्युशय्या पर पड़ा अपने अन्तिम क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था। उसकी महत्त्वाकाँक्षा अभी भी पहले की तरह पर्वत शिखरों की ऊँचाइयों को छू रही थी। स्टींगल उसके विश्वासपात्र सेनापतियों में से मुख्य था। वह धीर-वीर बलिष्ठ और रणनीति में कुशल तो था ही, साथ ही सूझा-बूझ का भी धनी था। नेपोलियन उसको अपने दाहिने हाथ के समान मानता था। उसने मारेन्गो के युद्ध की जिम्मेदारी सौंपते हुए उससे कहा-स्टींगल जल्दी करो आगे बढ़ो!” स्टींगल भी अपने स्वामी नेपोलियन की वीरता से प्रभावित था और उसका हृदय से सम्मान करता था। जब वह रणभूमि में जाने को उद्यत हुआ तो उसने श्रद्धा से नेपोलियन के हाथ चूमे और विनीत होकर बोला

“मेरी एक प्रार्थना है, स्वामिन्?”

“स्टींगल! हम तुम्हारी एक प्रार्थना तो क्या हजारों प्रार्थनाएँ सुनने को तैयार हैं, पर..... ।” “पर! ..... क्या स्वामी?”

“यही कि पहले तम हमारी ओर से युद्ध में विजयी बनकर लौट आओ।”

“युद्ध में निश्चित रूप से विजयी आपकी ही होगी। इस सत्य को तो कोई बदल नहीं सकता, मगर।”

“मगर क्या स्टींगल! साफ-साफ कहो, तुम आखिर क्या कहना चाहते हो ? “

“यही कि मैं युद्ध में तो विजयी रहूँगा, मगर वापस न लौट पाऊँ गा। आज आपसे यही आखिरी मुलाकात है।”

“नहीं, स्टींगल कदापि, नहीं। हम इसे कैसे मान लें ? तुमने तो हर बार मृत्यु पर विजयी पायी है।”

“आप ठीक कहते हैं श्रीमान।”

“फिर! आज तुम आखिर इतने निराश-हताश क्यों हो ?”

“स्वामी! बात सह है कि रात को मैंने स्वप्न देखा था कि मैं शत्रु के सैनिकों को खदेड़ता हुआ बढ़ रहा हूँ । मैं जैसे ही एक विशेष शत्रु, सेनाधिकारी का काम-तमाम करना चाहता था कि एक सैनिक, जो शरीर पर कवच और चेहरे पर नकाब धारण किए हुए था, सहसा मेरे सामने आ खड़ा हुआ। मैं जैसे ही उसे अपने भाले से छलनी करना चाहता था कि उसके शरीर से कवच और नकाब खुलकर धरती पर जा पड़े। वह हाथ में तलवार लिए मुझे साक्षात् अपनी मौत लगा। उसने एक व्यंगपूर्ण और भयंकर अट्टहास किया और निमिष भर में मेरा सिर धड़ से अलग कर दिया।”

स्टींगल जब अपनी बात कह चुका तो नेपोलियन मुसकराते हुए दासे क्षण उसे देखता रह, फिर बोला -”स्टींगल! स्वप्न भी कभी सच हुआ है ? उन स्वप्नों का न कोई सिर होता है न पैर! आदमी को स्वप्नों की बेहूदगी में नहीं बहना चाहिए। अपने मन से भय का भूत तुरन्त भगा दो और देखे गए स्वप्न को भी फौरन भूल जाओ। मत याद रखो कि तुमने स्वप्न में क्या देखा था और क्या नहीं।”

“श्रीमन्! आप तो जानते ही हैं कि मैं घोर से संकट पड़ने पर भी भयभीत नहीं होता पर इस स्वप्न को मैं जितना-जितना भुलाने का प्रयत्न करता हूँ, यह मुझे उतना ही यासद आ-आकर व्यथित करने लगता है इसे स्वप्न के माध्यम से मेरे अंतर्मन ने पूर्वाभास का अहसास पाया है।”

“स्टींगल! अब व्यर्थ की बातें छोड़ो और युद्धभूमि में जाकर कर्तव्य निभाओ । तुम अवश्य विजयी होगे। जाओ, हमारी हार्दिक शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ हैं। ये पूर्वाभास आदि की बातें अन्धविश्वास के सिवाय कुछ भी नहीं।”

नेपोलियन की इस बात के उत्तर में स्टींगल ने उसे अदब से प्रणाम किया और उससे विदा लेकर घोड़े पर सवार रणभूमि में आ डटा। वह प्राण-पण से शत्रुओं से लोहा लेता रहा। उन्हें छठी का दूध याद दिलाता रहा। शत्रु दल उसकी वीरता को देखकर स्तब्ध था।

युद्ध जोरों से चल रहा था। भालों, किरचों, ढ़ालों और तलवारों की कर्णभेदी ध्वनियाँ आकाश तक गूँज रही थीं। खून की नदियाँ बहने लगी थीं। घायल ओर मरते हुए सैनिकों की चीखें तथा घोड़ों की हिनहिनाहटों ने वातावरण को और भी वीभत्स बना दिया था। चारों तरफ त्राहि-त्राहि का शोर मचा हुआ था।

संध्या होने पर नेपोलियन को जब स्टींगल की मृत्यु का शोकपूर्ण समाचार मिला, तो एक बार तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ। उसने तुरन्त स्टींगल के साथ लड़ रहे सैनिकों को बुलाया और पूछा-क्या तुम बता सकते हो कि स्टींगल की मृत्यु किन परिस्थितियों में, किस प्रकार हुई ?”

उसके इस प्रश्न के उत्तर में पास खड़े उन सैनिकों में से एक सैनिक बड़े अदब से आगे बढ़ आया और बताने लगा-स्वामी सेनापति स्टींगल की वीरता से भला कौन इनकार कर सकता था। उनकी वीरता के सामने वे सबके सब घुटने टेकते जा रहे थे। मारे भय के उन सबके रक्तिम मुखमण्डल देखते ही देखते पीले पड़ते चले गए थे। जब वे शत्रुओं से दृढ़तापूर्वक जूझ रहे थे, तो सहसा एक सैनिक शरीर पर कवच और चेहरे पर नकाब धारण किए उनके सामने न जाने कहाँ से आकर खड़ा हो गया। उसके खड़े होते ही हमारे सेनापति ठगे से रह गए ओर जोर से चीखकर कह उठे-यह वही है, ठीक वही! इसी बीच उस सैनिक का कवच तो शरीर से और नकाब चेहरे पर से अलग होकर नीचे धूल में गिर पड़े। सेनापति ने अपने भाले से उस सैनिक को छेदना चाहा, पर वे सफल न हो सके। उस सैनिक ने अपनी हार से बौखलाकर घात लगाकर सेनापति की गर्दन पर अवनी तलवार से एक भरपूर प्रहार किया, जिससे उनका सिर धड़ से अलग होकर रक्त से लथ-पथ हो धरती पर जा पड़।” “क्या यह सब कुछ तुमने अपनी आँखों से देखा था सैनिक ?” नेपोलियन ने पूछा।

“जी हाँ, स्वामिन्! वह दृश्य मैं कभी भी भूल नहीं सकता। अभी भी सेनापति स्टींगल ओर उस सैनिक का परस्पर द्वन्द्व-युद्ध मेरी आँखों के सामने चल-चित्र की तरह घूम रहा है।”

“उफ! यह सब कुछ कैसे हो गया ? “नेपोलियन के मुँह से हताशा भरा स्वर निकल पड़ा। स्टींगल के द्वारा बतायी स्वप्न की एक-एक बात अक्षरशः ठीक थी।

इस घटना से पूर्व नेपोलियन अतीन्द्रिय क्षमताओं, भविष्यवाणियों-पूर्वाभासों को बकवास बताकर उनकी खिल्ली उड़ाया करता था। परन्तु अब उसके अपने सेनापति स्टींगल की मृत्यु ने उसके अपने इन पूर्वाग्रहों को एक ही झटके में किसी कच्चे धागे के समान तोड़कर रख दिया। अब वह सोच रहा था, स्वप्नों में मिले पूर्वाभास सच भी हो सकते हैं।

First 16 18 Last


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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
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