• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सद्गुरु के स्वर
    • स्वप्न से आत्मबोध
    • अड़सठ तीरथ हैं घट भीतर ...
    • मन की कुसंस्कारों को छुपाना (Kahani)
    • चिर यौवन लाने को आतुर हैं ययाति की संतानें
    • दृश्य जगत की अदृश्य पहेलियाँ (Kahani)
    • जीवन-विद्या का उच्चतम सोपान- ध्यान
    • ज्ञान की रटो मत, आचरण में उतारो
    • कृत्रिम सृष्टि की दिशा में प्रयोगरत विज्ञान क्या सफल हो सकेगा ?
    • वीरमति का आत्मोत्सर्ग
    • आस्था संकट का निवारण इस तरह होगा
    • अक्षय आनन्द अध्यात्म की सर्वोपरि उपलब्धि
    • ब्रह्मविद्या का रहस्य निहित है- ब्रह्मचर्य में
    • भूलोक की कामधेनु है-गायत्री
    • मंत्र-सिद्धि का मर्म
    • स्वर्ग कहीं भूमि पर होना चाहिए (Kahani)
    • सपनों के झरोखे से मृत्यु का दर्शन
    • शाश्वत-सनातन मात्र विवेक ही है
    • सिद्धिदात्री सामर्थ्य है सविता देवता की साधना में
    • बलिदान ने जगायी संवेदना
    • यजन प्रक्रिया को सर्वांगपूर्ण बनाते हैं मंत्र
    • निर्दोष ऊर्जा स्रोत
    • ग्रामोत्थान प्रशस्त करेगा राष्ट्रोत्थान की प्रक्रिया को
    • गायत्री साधना के प्रत्यक्ष चमत्कार (Kahani)
    • निष्कलंक सम्पूर्ण क्राँति का बिगुल बज गया है
    • गायत्री परिवार की स्थापना का मूलभूत आधार - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • VigyapanSuchana
    • दीर्घसूत्री मत बनो
    • अपनों से अपनी बात - - महाकाल ही मंगलाचरण थिरकन को तीव्र से तीव्रतर बना रहा है
    • परिवर्तन की वेला आ पहुँची, विभूतिवान् अपने दायित्व सँभालें
    • अपरिमित सम्भावनाओं का आधार मानवी व्यक्तित्व (Kahani)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सद्गुरु के स्वर
    • स्वप्न से आत्मबोध
    • अड़सठ तीरथ हैं घट भीतर ...
    • मन की कुसंस्कारों को छुपाना (Kahani)
    • चिर यौवन लाने को आतुर हैं ययाति की संतानें
    • दृश्य जगत की अदृश्य पहेलियाँ (Kahani)
    • जीवन-विद्या का उच्चतम सोपान- ध्यान
    • ज्ञान की रटो मत, आचरण में उतारो
    • कृत्रिम सृष्टि की दिशा में प्रयोगरत विज्ञान क्या सफल हो सकेगा ?
    • वीरमति का आत्मोत्सर्ग
    • आस्था संकट का निवारण इस तरह होगा
    • अक्षय आनन्द अध्यात्म की सर्वोपरि उपलब्धि
    • ब्रह्मविद्या का रहस्य निहित है- ब्रह्मचर्य में
    • भूलोक की कामधेनु है-गायत्री
    • मंत्र-सिद्धि का मर्म
    • स्वर्ग कहीं भूमि पर होना चाहिए (Kahani)
    • सपनों के झरोखे से मृत्यु का दर्शन
    • शाश्वत-सनातन मात्र विवेक ही है
    • सिद्धिदात्री सामर्थ्य है सविता देवता की साधना में
    • बलिदान ने जगायी संवेदना
    • यजन प्रक्रिया को सर्वांगपूर्ण बनाते हैं मंत्र
    • निर्दोष ऊर्जा स्रोत
    • ग्रामोत्थान प्रशस्त करेगा राष्ट्रोत्थान की प्रक्रिया को
    • गायत्री साधना के प्रत्यक्ष चमत्कार (Kahani)
    • निष्कलंक सम्पूर्ण क्राँति का बिगुल बज गया है
    • गायत्री परिवार की स्थापना का मूलभूत आधार - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • VigyapanSuchana
    • दीर्घसूत्री मत बनो
    • अपनों से अपनी बात - - महाकाल ही मंगलाचरण थिरकन को तीव्र से तीव्रतर बना रहा है
    • परिवर्तन की वेला आ पहुँची, विभूतिवान् अपने दायित्व सँभालें
    • अपरिमित सम्भावनाओं का आधार मानवी व्यक्तित्व (Kahani)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1997 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


जीवन-विद्या का उच्चतम सोपान- ध्यान

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 6 8 Last
ध्यान जीवन का उच्चतम विज्ञान है । इसी वजह से महर्षि वेदव्यास ने ध्यान को ज्ञान से भी श्रेष्ठ निरूपित किया है । यही वह प्रक्रिया व विज्ञान है, जिससे सतत् परमात्मा का अनुभव-बोध किया जा सकता है । ध्यान, आध्यात्मिक जीवन के साथ-साथ भौतिक जीवन को भी शान्ति-शीतलता तथा अनिर्वचनीय आनन्द से ओत- प्रोत कर देता है । आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी इस पर गहन अन्वेषण-अनुसन्धान किया है । इसी के परिणाम स्वरूप चिकित्सा के क्षेत्र में ध्यान चिकित्सा एक नवीन उपलब्धि साबित हुई है । विश्व के ख्याति प्राप्त मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मनःसंताप के वर्तमान युग में शारीरिक एवं मानसिक अरोग्य तथा तनाव-मुक्ति को सर्वश्रेष्ठ पद्धति ध्यान ही हो सकता है ।

छान्दोग्य उपनिषद् में ‘ध्यानं वाव चित्ताद भूयः’ अर्थात् ध्यान ही चित्त से बढ़कर है । नारद पुराण में ध्यान तत्त्व का कुछ इस प्रकार से वर्णन है-

ध्यानात्पापानि नश्यन्ति ध्यानान्मोक्षं च विन्दति । ध्यानात्प्रसीदति हरिद्धर्धानात्सर्वासाधनाम् ॥

ध्यान से पाप नष्ट होते हैं । ध्यान से मोक्ष मिलता है । ध्यान से भगवान प्रसन्न होते हैं । ध्यान से सब मनोरथों की सिद्धि होती है । युग नायक स्वामी विवेकानन्द ध्यान को आध्यात्मिक जगत की विभूतियों एवं उपलब्धियों हेतु सबसे बड़ा सहायक साधन मानते थे । उनके अनुसार, ध्यान के द्वारा हम भौतिक भावनाओं से अपने आपको स्वतन्त्र कर लेते हैं और अपने ईश्वरीय स्वरूप का अनुभव करने लगते हैं ।

महर्षि अरविन्द कहते हैं कि भारतीय शब्द ध्यान की भावना को अभिव्यक्त करने के लिए अंग्रेजी में दो शब्दों का व्यवहार किया जाता है- Meditation (ध्यान) तथा ( Con-templation ) (निदिध्यासन) । जब मनुष्य अपने मन को किसी एक ही विषय को स्पष्ट करने वाली, किसी एक ही विचारधारा पर एकाग्र करता है, तो उसे ही वास्तव में ध्यान कहते हैं । परन्तु जब मनुष्य किसी एक विषय, मूर्ति या भावना आदि पर मन दृष्टि लगा देता है, जिससे एकाग्रता की शक्ति की सहायता से उसके मन में स्वभावतः इनका ज्ञान उदित हो जाता है, तो वही कहलाता है Con-tem plation ) (निदिध्यासन) । ये दोनों ही चीजें ध्यान के रूप में हैं, क्योंकि ध्यान का मूल स्वरूप ही है मानसिक एकाग्रता । फिर वह एकाग्रता चाहे विचार पर की जाए या किसी दृश्य पर या फिर ज्ञान पर ।

ध्यान के अनेकों रूप हैं, यह कई प्रकार का होता है । अरविन्द आश्रम की अधिष्ठाता शक्ति श्रीमाँ ने ध्यान का दो भागों में वर्णन किया है-सक्रिय ध्यान एवं अक्रिय ध्यान । सक्रिय ध्यान में एक विचार को लेकर उसके विशेष परिणाम पर पहुँचने के लिए उसका अनुसरण किया जाता है । इससे यथार्थ रूप में निश्चल-नीरव प्रशान्ति होती है । सक्रिय ध्यान अति दुष्कर एवं कठिन होता है । इसमें सभी विचारों को बन्द करने का प्रयास नहीं किया जाता । क्योंकि कुछ विचार तो ऐसे होते हैं, जो पूरी तरह से मशीनी होते हैं और उनको हटा पाना भी समय साध्य होता है । इसमें जैसे-जैसे एकाग्रता बढ़ती है, परिपक्व होती है, अभीप्सा तीव्रतर होती है, वैसे-वैसे आनन्द का झरना फूटने लगता है ।

ध्यान की सूक्ष्मता को विश्लेषित करते हुए श्रीमाँ आगे कहती हैं कि तुम दिव्य शक्ति की ओर उद्घाटित होने के लिए ध्यान कर सकते हो, तुम अपनी सत्ता और अस्तित्व की गहराइयों में बैठने हेतु भी ध्यान कर सकते हो। तुम यह जानने के लिए भी ध्यान कर सकते हो कि तुम स्वयं को सर्वांगीण रूप से कैसे विकसित कर सकते हो अथवा भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रति तुम्हारा सम्पूर्ण-समर्पण विसर्जन-विलय किस प्रकार सम्भव है । तुम सभी प्रकार की चीजों के लिए ध्यान कर सकते हो । तुम शान्ति, स्स्रिता, नीरवता, निश्चल स्थिरता में प्रवेश के लिए ध्यान लगा सकते हो । अधिक सफलता पाए बिना लोग साधारणतया यही करते हैं । परन्तु तुम रूपान्तरित साधित करने की शक्ति पाने हेतु, जिन स्थलों-बिन्दुओं को रूपान्तरित करने की आवश्यकता है , उनका पता लगाने के लिए प्रगति की धारा को प्राप्त करने के लिए भी ध्यान कर सकते हो और फिर तुम व्यवहारिक कारणों से भी ध्यान कर सकते हो । जब कोई कठिनाई दूर करनी हो, कोई समाधान पाना हो, जब तुम किसी न किसी कार्य में सहायता चाहते हो, तुम इस सबके लिए भी ध्यान कर सकते हो । अन्त में श्रीमाँ का यह कहना है-ध्यान जीवन की भौतिक, आध्यात्मिक सभी परिस्थितियों में अंकुरित होने वाली हर समस्या के समाधान के लिए कारगर उपाय है ।”

व्यक्तिगत ध्यान के अलावा सामूहिक ध्यान भी किया जाता है । मानव इतिहास के प्रारम्भ से लोगों के कुछ समुदाय अपनी अन्तरात्मिक स्थितियों को सम्मिलित रूप से अभिव्यक्त करने के लिए एक जगह इकट्ठा हुआ करते थे । सामूहिक ध्यान का अभ्यास सभी कालों में किया जाता रहा है । इसका कारण, तरीका और प्रयोजन भले भिन्न रहे हों । कुछ लोक-विख्यात उदाहरणों से इसकी महत्ता एवं चमत्कारिक प्रभावों को स्पष्ट किया जा सकता है । घटना हजारवी ईसवी की है, जब कुछ भविष्यवक्ताओं ने यह घोषित किया था कि अब संसार का अन्त सन्निकट है । तब सभी स्थानों पर लोगों ने एकत्रित होकर सामूहिक ध्यान का सहारा लिया था । इसी प्रकार इंग्लैण्ड का राजा जार्ज निमोनिया की अन्तिम अवस्था में आखिरी साँसें गिन रहा था । लोग न केवल चर्चा में, बल्कि राजमहल के सामने, सड़कों पर एकत्रित हुए थे । सभी सामूहिक ध्यान में निमग्न होकर पुकार रहे थे कि उनका राजा जार्ज स्वस्थ हो जाए । उन दिनों के विशेषज्ञों ने इसे चमत्कार ही कहा कि जार्ज अच्छा हो गया ।

सामूहिक ध्यान के इस तरह के चमत्कारी परिणामों की गिनती हजारों में है । हालाँकि यह सब सामूहिक ध्यान का एकदम बाहरी स्वरूप है । सामूहिक ध्यान में अपरिमित शक्ति का संचार होने लगता है । इसके लिए एकत्रित सदस्य एकमत, सामंजस्य और सहयोग के साथ एक समूह या एकमात्र इकाई जैसे होना चाहिए । वर्तमान युगसन्धि महापुरश्चरण की वेला में ब्रह्म मुहूर्त में करोड़ों गायत्री साधकों के सामूहिक ध्यान से हो रही हलचलों को दिव्य-दृष्टि से सम्पन्न बड़ी आसानी से अनुभव कर सकते हैं ।

ध्यान का मुख्य उद्देश्य ईश्वर-प्राप्ति है । परमात्म-चेतना सृष्टि के हर घटक में समाहित है । ध्यान द्वारा इसी सत्ता से एकात्म उत्पन्न करना होता है । ‘द आर्ट आफ मेडीटेशन में जोएल गोल्डस्मिथ ने ध्यान-प्रक्रिया का बड़ा रोचक एवं सुन्दर विश्लेषण किया है । इनके अनुसार, ध्यान न तो स्वास्थ्य और सम्पत्ति के लिए करना चाहिए और न कामना-वासना की पूर्ति हेतु । ध्यान तो विशुद्धतः भगवत्प्राप्ति के लिए ही करना श्रेयस्कर है । ध्यान की प्रक्रिया मनुष्य के जीव भेद को समाप्त कर परमात्मा से तदाकार कर देती है । अन्त में शेष रह जाता है, केवल शान्ति, स्स्रिता, आनन्द एवं परमानन्द । अहंकार ही वह विभेदीकरण है, जो आत्मा और परमात्मा को विभाजित कर देती है । अहंकार से द्वैत भाव का जन्म होता है, मैं और मेरेपन का । ध्यान इस अहंकार को गलाकर निर्विकल्प समाधि में एकाकार कर देता है । मनुष्य के रग-रग में, कण-कण में परमात्मा की सुगन्ध बिखरने लगती है । सतत् प्रभुमय चिन्तन की तरंग उठने लगती हैं । यह ध्यान का आध्यात्मिक गुण है, जो एक नगण्य मानव को देव और दिव्य भाव में परिवर्तित कर परमात्मीय कर देता है । विश्वविख्यात स्वामी विवेकानन्द नित्य दो घण्टे ध्यान की अनन्त गहराई में विचरण करते थे । अध्यात्म जगत में भगवान बुद्ध को सबसे प्रखर ध्यानी माना जाता है ।

आधुनिक विज्ञानवेत्ताओं का कहना है कि ध्यान से शारीरिक एवं मानसिक विश्रान्ति मिलती है । इस प्रक्रिया के परिणाम में व्यक्ति गहरे विश्राम का अनुभव करता है । इस समय साधक के शरीर में आक्सीजन की कुल खपत में जो कमी आती है, वह व्यक्ति को मिलने वाली शान्ति प्राप्त करने में सहायक होती है । प्राकृतिक रूप से कोशिकाओं में ऑक्सीजन की आवश्यकता घट जाती है । ऑक्सीजन की खपत की माप लेकर मेटाबालिक दर निकालते हैं । ध्यान के लिए यह गति बहुत अधिक घट जाती है । वैज्ञानिक शोध से स्पष्ट हुआ है कि औसत 20 प्रतिशत की गिरावट ध्यान के पहले 10 मिनट में ही आ जाती है । गहन निद्रा की तुलना में ध्यान के दौरान चयापचीय क्रिया में जो कमी आती है, उससे शरीर स्वस्थ एवं मन तनाव मुक्त रहता है ।

ध्यान के विषय में विश्व के 27 देशों में 200 स्वतंत्र विश्वविद्यालय और शोध संस्थाओं में पिछले 36 साल के दौरान 500 से अधिक वैज्ञानिक शोध हुए हैं । इसमें 30 हजार से भी अधिक शिक्षक हविश्व के विभिन्न देशों में कार्यरत हैं । एक अध्ययन के नवीनतम आँकड़े से पता चलता है कि संसार के 50 लाख व्यक्ति ध्यान करके अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोगों से मुक्ति पा चुके हैं । बीमारियों से बचाव के लिए आजकल ध्यान चिकित्सा पद्धति जोरों से प्रचलित है । इसके नूतन स्वरूप प्रदान करने विश्व भर में ख्याति प्राप्त डॉ0 दीपक चोपड़ा ने ध्यान चिकित्सा को प्राइमोडियल साउण्ड मेडिटेशन (पी. एस. एम.) द्वारा प्रारम्भ किया है । यह विश्व के 113 देशों में प्रचलित है । भारत में मूलचन्द अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ0 के. के अग्रवाल ने भी इसकी शुरुआत की है ।

ध्यान- चिकित्सा में व्यक्ति के मूल स्वभाव के अनुसार एक सार्वभौम मंत्र का निर्धारण किया जाता है । ध्यान से पूर्व तीन प्राणायाम का अभ्यास कराया जाता है । यह प्राणायाम तीन प्रकार का कार्य करता है । दिमाग के नकारात्मक सोच को दूर कर उसका निषेध करता है तथा सकारात्मक विचारों को जन्म देता है । पी. एस. एम. में प्राकृतिक स्वरलहरियों का इस्तेमाल किया जाता है । डॉ0 अग्रवाल के अनुसार, इस चिकित्सा में साधक के जन्म के समय की ब्रह्माण्डीय स्थिति की जानकारी ली जाती है, ताकि उसकी मूल वृत्ति को प्रभावित किया जा सके । इसमें मनुष्य की मूल वृत्ति को झकझोर कर उसे नूतन दिशा प्रदान की जाती है ।

इसे 20 मिनट तक कराया जाता है । ध्यान- चिकित्सा के लिए किसी विशेष आसन की आवश्यकता नहीं पड़ती है, परन्तु भोजनोपरान्त इसे नहीं किया जाता है । चिकित्सकों के मतानुसार ध्यान में आदमी तीन प्रकार की स्थिति में पहुँचता है । पहले तो उसे नींद आ जाती है ऐसी स्थिति में शरीर को आराम दिया जाता है । मन का कम्पन बड़ा तीव्रतर होता है , जिससे किसी निश्चित विचार का आना सम्भव नहीं होता । नियन्त्रित ध्यान में मन में उठती इन अनियन्त्रित तरंगों को शान्त करने में सहायता मिलती है । ध्यानयोगियों का मन है कि दो विचारों के बीच की अवधि शून्य होती है । इसी क्षणिक शून्य में ही अनिर्वचनीय आनन्द की प्राप्ति होती है । समाधि में यही शून्यता व्याप्त रहती है । ध्यान-चिकित्सक इसी शून्यता को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं । जाहिर है आदमी सैकड़ों सोच से घिरा रहता है , उसका दिमाग कभी खाली नहीं रहता है । योगी अचेतन को ही इसका मुख्य कारण मानते हैं ।

डॉ0 अग्रवाल के अनुसार, ध्यान-चिकित्सा में मानसिक सफाई एवं परिष्कार की अनिवार्यता होती है । ध्यान से शारीरिक-बल मानसिक-क्षमता एवं हृदयगत भावना में अभिवृद्धि होती है । रोग-प्रतिरोधक क्षमता के बढ़ जाने से शरीर नीरोग एवं सबल बना रहता है । हृदय तथा साँस की गति कम हो जाती है । शरीर के तापमान में कमी आती है । इससे शरीर में अतिरिक्त ऊर्जा का ह्रास रुक जाता है, जिसका उपयोग आत्मविकास में होता है । चिकित्सकों के अनुसार बीस मिनट का पूर्ण ध्यान सात घण्टे की गहरी नींद के बराबर होता है । ध्यान करने वाले साधकों की औसत आयु बढ़ जाती है । ये अपनी उम्र से दस-पन्द्रह साल कम आयु के लगते हैं ।

ध्यानयोगियों ने व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को तीन भागों में बाँटा है । स्थूलशरीर में ऊर्जा का संचरण, सूक्ष्म शरीर में मन और बुद्धि तथा कारण शरीर को भावना और संवेदना का शरीर माना जाता है । ध्यान का प्रभाव स्थूल शरीर से आरम्भ होकर सीधे कारण शरीर तक पहुँच जाता है । यही नहीं इसी प्रभाव के बलबूते अहंकार की अभेद्य दीवार धराशायी हो जाती है । मन पर आत्मा की किरणों पड़ती हैं तथा आत्मा अपने मूल स्वरूप में ज्योतिर्मय हो उठती है । ध्यान से व्यक्ति अपने आत्म-तत्त्व में आनन्दित रहता है । ध्यान के इस आनन्द का सूफी सन्त जामी ने फारसी में कुछ इस तरह जिक्र किया है-

गर दिल तो गुल गुजाद गुल बशी । बर बुल-बुले बेकरार बुलबुल बशी ॥

यदि तो अपने दिल में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाए तो बुलबुल हो जाएगा । ध्यान जिसका किया जाता है, उसी में चेतना तादात्म्य हो जाती है । आनन्द के अनन्त महासागर परमात्मा में ध्यान लगाने से स्वयं की चेतना का रोग-शोक से मुक्ति पाकर आनन्दमय हो जाना स्वाभाविक ही है ।

First 6 8 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सद्गुरु के स्वर
  • स्वप्न से आत्मबोध
  • अड़सठ तीरथ हैं घट भीतर ...
  • मन की कुसंस्कारों को छुपाना (Kahani)
  • चिर यौवन लाने को आतुर हैं ययाति की संतानें
  • दृश्य जगत की अदृश्य पहेलियाँ (Kahani)
  • जीवन-विद्या का उच्चतम सोपान- ध्यान
  • ज्ञान की रटो मत, आचरण में उतारो
  • कृत्रिम सृष्टि की दिशा में प्रयोगरत विज्ञान क्या सफल हो सकेगा ?
  • वीरमति का आत्मोत्सर्ग
  • आस्था संकट का निवारण इस तरह होगा
  • अक्षय आनन्द अध्यात्म की सर्वोपरि उपलब्धि
  • ब्रह्मविद्या का रहस्य निहित है- ब्रह्मचर्य में
  • भूलोक की कामधेनु है-गायत्री
  • मंत्र-सिद्धि का मर्म
  • स्वर्ग कहीं भूमि पर होना चाहिए (Kahani)
  • सपनों के झरोखे से मृत्यु का दर्शन
  • शाश्वत-सनातन मात्र विवेक ही है
  • सिद्धिदात्री सामर्थ्य है सविता देवता की साधना में
  • बलिदान ने जगायी संवेदना
  • यजन प्रक्रिया को सर्वांगपूर्ण बनाते हैं मंत्र
  • निर्दोष ऊर्जा स्रोत
  • ग्रामोत्थान प्रशस्त करेगा राष्ट्रोत्थान की प्रक्रिया को
  • गायत्री साधना के प्रत्यक्ष चमत्कार (Kahani)
  • निष्कलंक सम्पूर्ण क्राँति का बिगुल बज गया है
  • गायत्री परिवार की स्थापना का मूलभूत आधार - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • VigyapanSuchana
  • दीर्घसूत्री मत बनो
  • अपनों से अपनी बात - - महाकाल ही मंगलाचरण थिरकन को तीव्र से तीव्रतर बना रहा है
  • परिवर्तन की वेला आ पहुँची, विभूतिवान् अपने दायित्व सँभालें
  • अपरिमित सम्भावनाओं का आधार मानवी व्यक्तित्व (Kahani)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj