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Magazine - Year 1997 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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ग्रामोत्थान प्रशस्त करेगा राष्ट्रोत्थान की प्रक्रिया को

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पिछले लेख में ग्राम विकास के संदर्भ में हलधर और गोपाल की जोड़ी को जीवन्त बनाने वाली बात कही जा चुकी है। सब मिलाकर ग्राम्य जीवन को इतना आकर्षक बनाने की आवश्यकता है कि लोग गाँवों से नगर की ओर न भागें बल्कि नगरों के प्रदूषण भरे वातावरण से निकलकर गाँवों में बसने के लिए गो संवर्द्धन से लेकर वन सम्पदा एवं सम्पदा के संयोग से पनपने वाले कुटीर उद्योगों के लिए ग्रामीणजनों को प्रशिक्षित करना आवश्यक है। इस संदर्भ में गायत्री परिवार, ऋचा और नाबार्ड के संयुक्त प्रयासों से सफल प्रशिक्षणों और प्रयोगों का क्रम चल पड़ा है। इस संदर्भ में कुछ जनोपयोगी विचार-बिन्दु यहाँ दिए जा रहे है।

गो संवर्द्धन ग्रामोत्थान के लिए व्यापार दूध का तो नहीं वरन् बैल, गोबर, गौमूत्र, बायोगैस, पशुओं की स्वाभाविक मृत्यु से उपलब्ध अहिंसक चमड़े और हड्डियों तथा उनसे बने उत्पादनों का होगा, गोचर हेतु अपनी थोड़ी थोड़ी जमीन भी देने को राजी हो जायेंगे।

गौशालाओं की प्रबन्ध व्यवस्था वैज्ञानिक और उच्चकोटि की बनानी होगी। तभी देश का अर्थतन्त्र पुनः सुदृढ़ और पर्यावरण स्वच्छ हो सकेगा। सिमटती हुई राज्याश्रित विकास प्रक्रिया का विकल्प अब केवल जीवन पद्धति ही हो सकता है जिसके व्यवस्थित प्रचार प्रसार से अधिक से अधिक परिवार इसे अपनी पवित्र परम्परा मानकर अपनाने लगेंगे और जब उनके पशु दूध देना बन्द करेंगे तब उन्हें वे समीपस्थ गोशाला को दान दे देंगे। औसतन दस गाँवों के समूह के बीच एक समर्थ गोशाला स्थापित हो, ग्रामोत्थान का यह नक्शा देखने में तो अच्छा लगता है लेकिन इसे क्रियान्वित करने के लिए गायत्री परिवार के परिजनों को कड़ी मेहनत करनी होगी।

लक्ष्य है कि हर ग्राम पंचायत यह सुनिश्चित करें कि प्रत्येक गर्भवती महिला और हर बच्चे को आवश्यकतानुसार निःशुल्क गोरस मिले, ताकि अगली पीढ़ी तन्दुरुस्त और संस्कारवान बनकर विकास कार्यों में लग सके। ग्राम महिला मण्डल इसके लिए विशेष रूप से प्रयासरत हो सकता है। इससे गाँवों का आकर्षण बढ़ जाएगा और तब होगा ग्रामोत्थान से सम्पूर्ण क्राँति का मार्ग प्रशस्त ।

दूध की डेरी और गोशाला में अन्तर समझना होगा। दूध की डेरी गाय के दूध का व्यापार करती हैं जब ये गायें दूध कम देने लगती हैं तो इन गायों को बेकार समझा जाने लगता है। इन्हीं परिस्थितियों में ये गायें बूचड़खाने पहुँचती है। जब तक गाय के दूध का व्यापार चलता रहेगा, तब तक गौहत्या, कानून बन जाने पर भी बन्द नहीं होगी। दूध का व्यापार आज भैंस केन्द्रित है। आज की बाज़ार संस्कृति को गौसेवा की श्रद्धा पर आधारित यह विकास प्रक्रिया ही मुँहतोड़ जवाब होगी।

ग्रामोत्थान को व्यापक अर्थ देने के लिए गाँव गाँव में जल और रज के संरक्षण का अभियान चलाया जाना है। सहकारिता और गो संवर्द्धन के लिए शोध प्रसार और प्रशिक्षण के कार्य में लगा हुआ है। शान्तिकुञ्ज के रचनात्मक प्रकोष्ठ माध्यम से उक्त शोध कार्यों का लाभ परिजनों तक पहुँचाया जाता रहेगा।

इसके लिए प्रशिक्षण की एक व्यापक योजना बनायी गयी है। प्रज्ञा अभियान के अंतर्गत पीठों या समर्थ केन्द्रों को प्रशिक्षण केन्द्रों के रूप में विकसित किया जाना है। इसके लिए जिन केन्द्रों को चुना जाएगा, उनमें निम्नलिखित क्षमताएँ होनी चाहिए -

1. शक्तिपीठ के 3 पूर्ण समयदानी प्रशिक्षक एवं संगठन के रूप में केन्द्र से प्रशिक्षित कर दिए गये हों।

2. यह प्रशिक्षित प्रशिक्षक सम्बद्ध पीठों पर नियमित प्रशिक्षण कराकर क्षेत्र की आवश्यकता के अनुरूप कुटीर/ ग्रामोद्योगों के लिए कुशल शिल्पी (मास्टर क्राफ्टमैन) तैयार करेंगे और उनके माध्यम से लोगों को विभिन्न उद्योगों का प्रशिक्षण देंगे।

3. शक्तिपीठ में निरन्तर प्रशिक्षण चलाते रहने के लिए प्रशिक्षण कक्ष, प्रशिक्षणार्थियों की भोजन व्यवस्था एवं अन्य आवश्यकताएँ सुविधाजनक तरीके से अपने संसाधनों से संपन्न करने की क्षमता उन केंद्रों में होनी चाहिए।

4. प्रशिक्षण कार्य आरम्भ करने के लिए प्रशिक्षणों के विशय में एवं अन्य आवश्यक विवरण की सूचना केन्द्र को भेजकर यहाँ की अनुमति प्राप्त की जा सकेगी।

5. जड़ी-बूटियों का एक लघु उद्यान शक्तिपीठ पर तैयार कर लिया गया हो, जिससे वनौषधि उपचार एक स्वस्थ जीवनचर्या से स्वास्थ्य संबंधी प्रशिक्षण देन में सुविधा रहेगी।

6. स्थानीय बैंक शाखा व नाबार्ड के प्रबन्धक मण्डल से स्वयं सहायता बचत समूह के गठन तथा उसके उपरान्त बैंक से सम्बद्ध करने के लिए संबंध में विचार विमर्श कर लिया गया हो एवं सहमति प्राप्त कर ली गयी हो।

7. स्वयं सहायता बचत समूह अलग अलग गृह उद्योग एवं ग्रामोद्योग चलाने के लिए गठित किए ही जायेंगे । उत्पादित माल के लिए भी वयं सहायता बचत समूह को तैयार एवं प्रशिक्षित कर उनके माध्यम से समुचित बिक्री व्यवस्था के लिए भी क्षमता प्राप्त करनी होगी।

8. उन्हें केन्द्र द्वारा निर्धारित वित्तीय अनुशासनों का अनुपालन करना होगा।

9. शक्तिपीठ स्वयं व्यावसायिक कार्यों में प्रवृत्त नहीं होंगे। वे सही व्यक्तियों को खड़ा करके उन्हें सहयोगपूर्वक आगे बढ़ाने के लिए समर्थ, कुशल सहयोगी की भूमिका भर निभाएँगे ।

युगनिर्माण मिशन की 500 से अधिक समर्थ शक्तिपीठों को रचनात्मक केन्द्रों के फील्ड चैर्प्टस के रूप में विकसित किया जाना है, जहाँ से देश के कोने कोने से आने वाले परिजनों को ग्रामोत्थान के लिए प्रशिक्षित किया जा सकेगा। लक्ष्य यह है कि देश के 6.5 लाख गाँवों को शीघ्र जीवन की जरूरी आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर बना दिया जाए।

इस अभियान के अंतर्गत महानगरों के उपनगरों यानि गंदी बस्तियों के उपनगरों, यानि गंदी ग्रामवासियों के जीवन में आशा का संचार करने के लिए एक नारा दिया है - अब गाँव वापस चलें। इसको संभव बनाने के लिए एक प्रश्न कौंधता है। गाँव को आकर्षक कैसे बनाए? जिसके अंतर्गत अगले कुछ वर्षों में 5,00,000 उपनगरीय युवाओं को देहात लौटने के लिए राजी किया जा सकेगा और उन्हें इस आशय से प्रशिक्षित भी किया जाएगा, ताकि वे वहाँ लौटकर अपने पाँवों पर खड़े हो सके। मिशन के सम्पूर्ण क्राँति के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अब गाँव वापस चले का नारा बुलन्द करना है।

देश के अभिजात्य वर्ग को अब आगे बढ़कर सहयोग देना है कि ग्रामोद्योग की सामग्री को देशवासियों को सरलता से उपलब्ध कराने के लिए एक व्यापक बाज़ार तंत्र शीघ्र से शीघ्र खड़ा हो जाए। उसके बिना गाँव प्रधान कृषि प्रधान देश भारत में खुशहाली नहीं लाई जा सकती है। हमारे प्रयास सफल हो जाएँगे तो, यह भी हो सकता है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों जो अपना सामान भारत में उसकी गरीबी के कारण गोरस बेचने में सफल न हो पाएँगी, जिस तक हम ऋषि सत्ता के संरक्षण में अवश्य पहुँच सकते हैं। ऐसा दृढ़ विश्वास हमें रखना ही चाहिए।

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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
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