• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • ईश्वरीय अपनत्व की कसौटी
    • करुणा से जन्मे मोती
    • वह करुणा-सागर प्रार्थना की पुकार सुनता है
    • ज्योतिपर्व पर ‘श्री’ तत्व के माहात्म्य को समझें
    • समष्टिगत चेतना चहुँओर संव्याप्त है
    • जैसे को तैसा की नीति (Kahani)
    • रहे भाव संकीर्ण अगर तो वह पूजन किस काम का?
    • सृष्टि का हर प्राणी विशिष्टता सम्पन्न
    • जाको राखे साईंयाँ....
    • प्रगति की आकांक्षा ही नहीं, प्रयास भी करें
    • शक्ति का अनन्त स्त्रोत प्राणाग्नि करे रूप में अपने ही भीतर
    • वृद्धावस्था को दूर भगाना हो तो जवारे का रस पियें
    • सबसे बड़ी पूँजी प्रामाणिकता
    • शिव - उपासना के पीछे छिपे गूढ़ रहस्य
    • हमसे कहीं अधिक संवेदनशील हैं पेड़ - पौधे
    • ईस देई फल हृदय बिचारी
    • VigyapanSuchana
    • शब्द को हम शब्दब्रह्म बनाले
    • वनौषधियजन - यज्ञचिकित्साः नूतन आयाम
    • वह आत्माओं से बातें करती है
    • नवरात्रि साधना से पूर्व कुछ सावधानियाँ समझ लें
    • इस लोक से परे भी बहुत कुछ अतिविलक्षण है।
    • परिष्कृत मस्तिष्क बनता है कल्पतरु
    • धर्ममय ‘अर्थ’ ही हमारे लिए वरेण्य हो
    • गायत्री परिवार की स्थापना का मूलभूत आधार - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • पं श्रीराम शर्मा आचार्य का जीवनदर्शन : समग्र वांग्मय
    • वनौषधियों की वेदना
    • वनौषधियों की वेदना (Kavita)
    • पुनर्प्रकाशित विशेष लेख- - माँ गायत्री के वरदपुत्र- इस युग के विश्वामित्र
    • एक विशेष निवेदन
    • अपनों से अपनी की बात- - साधना वर्ग समारोह से उपजे दो महत्वपूर्ण कार्यक्रम
    • आत्मशक्ति से युगशक्ति के जारण हेतु प्राणानुदायुक्त विशिष्ट ध्यान
    • संस्कार-महोत्सव से सम्बन्धित कुछ विशेष निर्देश
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • ईश्वरीय अपनत्व की कसौटी
    • करुणा से जन्मे मोती
    • वह करुणा-सागर प्रार्थना की पुकार सुनता है
    • ज्योतिपर्व पर ‘श्री’ तत्व के माहात्म्य को समझें
    • समष्टिगत चेतना चहुँओर संव्याप्त है
    • जैसे को तैसा की नीति (Kahani)
    • रहे भाव संकीर्ण अगर तो वह पूजन किस काम का?
    • सृष्टि का हर प्राणी विशिष्टता सम्पन्न
    • जाको राखे साईंयाँ....
    • प्रगति की आकांक्षा ही नहीं, प्रयास भी करें
    • शक्ति का अनन्त स्त्रोत प्राणाग्नि करे रूप में अपने ही भीतर
    • वृद्धावस्था को दूर भगाना हो तो जवारे का रस पियें
    • सबसे बड़ी पूँजी प्रामाणिकता
    • शिव - उपासना के पीछे छिपे गूढ़ रहस्य
    • हमसे कहीं अधिक संवेदनशील हैं पेड़ - पौधे
    • ईस देई फल हृदय बिचारी
    • VigyapanSuchana
    • शब्द को हम शब्दब्रह्म बनाले
    • वनौषधियजन - यज्ञचिकित्साः नूतन आयाम
    • वह आत्माओं से बातें करती है
    • नवरात्रि साधना से पूर्व कुछ सावधानियाँ समझ लें
    • इस लोक से परे भी बहुत कुछ अतिविलक्षण है।
    • परिष्कृत मस्तिष्क बनता है कल्पतरु
    • धर्ममय ‘अर्थ’ ही हमारे लिए वरेण्य हो
    • गायत्री परिवार की स्थापना का मूलभूत आधार - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • पं श्रीराम शर्मा आचार्य का जीवनदर्शन : समग्र वांग्मय
    • वनौषधियों की वेदना
    • वनौषधियों की वेदना (Kavita)
    • पुनर्प्रकाशित विशेष लेख- - माँ गायत्री के वरदपुत्र- इस युग के विश्वामित्र
    • एक विशेष निवेदन
    • अपनों से अपनी की बात- - साधना वर्ग समारोह से उपजे दो महत्वपूर्ण कार्यक्रम
    • आत्मशक्ति से युगशक्ति के जारण हेतु प्राणानुदायुक्त विशिष्ट ध्यान
    • संस्कार-महोत्सव से सम्बन्धित कुछ विशेष निर्देश
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1997 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


ईस देई फल हृदय बिचारी

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 15 17 Last
कौन ईश्वर को प्रिय है और किन की वे सहायता करते हैं ? इसे यदि जानना हो, तो इस बात पर विचार करना पड़ेगा कि उनकी गतिविधियाँ क्या हैं और वे सोचते कैसे हैं ? कारण कि कर्ममय दुनिया में उसे पाने का सरल साधन श्रेष्ठ चिन्तन और सेवा - वृत्ति है। जो इन्हें जितने अंशों में अपनाते और और व्यवहार में उतारते हैं , समझना चाहिए भगवान के वे उतने ही निकट और स्नेह पात्र हैं। कर्मयोगियों के जीवन में घटने वाली घटनाएँ इसकी पुष्टि करती हैं।

प्रसंग उन दिनों का है, जब अपने देश में राजतंत्र था एवं बंगाल में सम्राट कीर्तिचन्द्र की शासन - सत्ता थी। इन्हीं दिनों हुगली जिले में नारायणदास नामक एक समाज - सेवी हुआ करते थे। अपनी सेवावृत्ति के कारण पूरे राज्य प्रसिद्ध थे। वे इतने सरल और शुद्ध हृ थे कि किसी कष्ट उनसे सहा नहीं जाता, तत्काल उसकी सहायता के लिए दौड़ पड़ते तथा जितनी और जैसी मदद बन पड़ती , उसे करने में कोई कसर उठा न रखते। उन दिनों बंगाल के हर गाँव में तालाब हुआ करता था। नारायणदास जिस गाँव में रहते थे, उसके आस- पास के प्रायः गाँवों में उन्हीं के खुदवाये तालाब थे। वे धनवान् थे ओर विद्वान भी , पर धन की जैसी लिप्सा सर्वसामान्य में देखी जाती है उसका उनमें पूर्णतः अभाव था। विपत्तिग्रस्त व्यक्ति जब ओर जितनी की आर्थिक सहायता माँगने आते उसे पूरा करने में वे हर समय सन्नद्ध रहते।

उनकी पत्नी मालती भी उनके कार्यों में भरपूर सहयोग करती। अभावग्रस्तों के प्रति उनके मन में अपार करुणा थी। वे मुक्तहस्त से लोगों की मदद करने में पीछे नहीं रहतीं। वह यदा - कदा एकान्त में अपने इष्ट के समक्ष भाव - विभोर होकर उद्गार व्यक्त करतीं कि भगवन् ! मैं । इस जीवन के बाद जब और जहाँ कहीं भी पैदा होऊँ , मुझे इस स्थिति में अवश्य बनाये रखना किस इसी प्रकार समाज की सेवा - सहायता कर सकूँ । इस कार्य में मुझे आत्म संतुष्टि एवं निकटता की अनुभूति होती है , वैसे अन्य काम में नहीं।

दोनों का जीवनक्रम इसी प्रकार चल रहा था। इस क्रम में आयु कब ढल गई, पता न चला। जब ज्ञात हुआ , तो तीर्थयात्रा की योजना बनायी। विचार यह था कुछ दिनों तीर्थसेवन करने के उपरांत पुनः सेवा कार्य प्रारंभ किया जाय , अतएव आवश्यक सामान बैलगाड़ी में लादकर पति - पत्नी एक दिन अयोध्या के लिए निकल पड़े। मार्ग में मिलने वाले तीर्थों का आनन्द - लाभ लेते हुए वे चित्रकूट पहुँचे। यहाँ कुछ दिन ठहरकर फिर अयोध्या की ओर चल पड़े। रास्ता सघन वन से होकर जाता था। मार्ग का भली - भाँति ज्ञान न होने से वे इधर - उधर भटकते हुए आगे बढ़ रहे थे। वहाँ कोई बताने वाला भी नहीं था कि कौन सा रास्ता किधर जाता है। जब कुछ अनुमान से हो रहा था। चलते - चलते थक जाते , तो वृक्षों के नीचे विश्राम कर लेते और रात्रि होने पर वही ही वृक्ष उनके आश्रय - स्थल बनते। इस प्रकार चलते हुए कई दिनों के उपरांत वे एक गाँव के निकट पहुँचे। यह लुटेरे भीलों का गाँव था। उन्होंने अन्दाज लगाया कि इनके पास धन है बस उनके पीछे धन है। उन्होंने पूछा कि वे लोग गहन वन में कैसे आ गए ? नारायणदास ने सरलतापूर्वक बता दिया कि वे अयोध्या जा रहे हैं। सम्भवतः मार्ग भटक गये और यहाँ आ पहुँचे। डाकुओं ने कहा अच्छा हुआ भेंट हो गई। हम लोग भी उधर ही जा रहे हैं। चिन्ता न करो, अब हम राह बताते चलेंगे। सरल नारायणदास का उन पर सहज ही विश्वास हो गया। वे उनके साथ - साथ चलने लगे। लुटेरे उन्हें घनघोर जंगल में ले आए। वहाँ पहुँचकर भीलों ने ने उन्हें पकड़ लिया और उनकी खूब पिटाई की। इसके बाद उनके हाथ - पैर बाँध कर एक खाई में डाल दिया, उनकी पत्नी के पास गये।

मालती अपने पति की दुर्दशा को बर्दाश्त न कर सकी और मूर्च्छित हो गई। लुटेरे उसे भी घसीटकर ले जाने लगे। इतने में उसे होश आ गया। उसने अपने आराध्य का स्मरण किया और इस संकट की घड़ी में प्राण - रक्षा के लिए विनती करने लगी।

अभी कुछ ही पल बीते थे कि घोड़े के टापों के शब्द सुनाई पड़ने लगे। ध्वनि से ऐसा ज्ञात होता था कि कोई सवार इसी ओर तेजी चला आ रहा है। लुटेरे असमंजस में थे कि अब क्या किया जाए। अभी वे कुछ निर्णय ले पाते उससे पूर्व ही सामने से श्वेत घोड़े पर गठीले बदन का एक दीर्घाकार नवयुवक आत दिखलाई पड़ा। उसके वस्त्राभूषण से ऐसा प्रतीत हो रहा था , जैसे वह कोई राजकुमार हो। कानों में रत्न - कुण्डल, गले में मोतियों का आकर्षक माला, शरीर पर मूल्यवान वस्त्र, बगल में लटकती सुदीर्घ तलवार, पीर पर बाणयुक्त तरकस और कंधे झूलता धनुष। इस राजसी वेश - भूषा में शस्त्रों से सुसज्जित क्षत्रिय कुमार को देखकर लुटेरे घबरा गए। उन्हें ऐसा लगने लगा , मानो साक्षात् शक्ति का स्वरूप ही आ गया हो। जान संकट में पड़ी अनुभव कर वे इधर - उधर भागने लगे।

ईश्वर के उद्यान की रखवाली करने वालों का ईश्वर सदा ध्यान रखते हैं। जब सामान्य मनुष्य साधारण उपकार के प्रति कृतज्ञ बना रहता है और ऐसे किसी अवसर की तलाश में रहता है , जब वह उससे उऋण हो सके, तो परमात्मा भला इतने कृतघ्न कैसे हो सकते हैं कि उनके कार्यों के प्रति समर्पित अपने युवराज को संरक्षण तक प्रदान नहीं कर सकें। इस दुनिया में सर्वत्र आदान - प्रदान का नियम है। यहाँ बिना कुछ दिये किसी से कुछ प्राप्त कर सकना संभव नहीं। पाने के लिए देना ही पड़ेगा - यही सृष्टि का विधान है। यह विधान जीव - जन्तु , वृक्ष - वनस्पति और मनुष्य से लेकर सामान्य रूप में लागू होता है। अतः जो लोग भगवद् कार्य में संलग्न होते हैं , वे कभी खाली हाथ नहीं रहते। भगवान की कृपा और सहायता उन्हें बार - बार मिलती रहती है।

नारायण दम्पत्ति के साथ ऐसा ही घटित हुआ। दुरावस्था की घड़ी में उन्हें तत्क्षण भगवत् सहायता उपलब्ध हुई और वह युवक उनकी रक्षार्थ आ पहुँचा। आते ही उसने पूछा - माते ! तुम कौन हो ? इस गहन वन में अकेली कैसे हो ? तुम्हारे साथ क्या कोई पुरुष नहीं ? ये कौन तुम्हें घेरे हुए थे ? हमें देखते ही वह भाग क्यों गये ? यह बैलगाड़ी कैसी है, शायद कहीं दूर गन्तव्य के लिए निकली थी ?

प्राणों में अमृत घोलते हुए ये शब्द कानों में पड़े तो मालती ने आँखें खो दीं, देखा सामने एक क्षत्रिय कुमार खड़ा है। वह ऊपर से लेकर नीचे तक उसके शस्त्रों और आभूषणों को निहारती रह गयी , तभी युवक का स्वर पुनः उभरा। उसमें फिर वही प्रश्न थे। मालती अब तक उठ बैठी थी। उसने संक्षेप में अपनी कहानी कह सुनाई और आग्रह किया कि मेरी कुछ सहायता करो। तुम कौन हो ? इसे तो मैं नहीं जानती, पर मेरे त्राता बनकर आए इसलिए यह प्रार्थना कर रही हूँ। मेरे पति को इन दुष्टों ने बहुत मारा हैं वे कहाँ हैं ? जीवित हैं या मृत ? इसकी खोज करने में मेरा सहयोग करो।

युवक न कहा - देवि ! आप चिंता न करे। हम उन्हें जल्द ही ढूँढ़ लेंगे। वे यहीं कही आस - पास ही होंगे। इतना कहकर दोनों एक ओर चल पड़े।

ईश्वर की लीला भी बड़ी / विचित्र है। कहीं वे मनुष्य शरीर के माध्यम से सहयोग कतरे हैं, तो कहीं जीव - जंतुओं को इसका आधार बनाते हैं। आखिर /चेतना और प्रेरणा तो दोनों में उन्हीं का कार्य करती हैं। ऐसे में किसी भी प्राणी से कोई भी कार्य सम्पन्न करवा लेने में उनको क्योंकर मुश्किल होना चाहिए।

नारायणदास के हाथ -पाँव बाँधकर लुटेरे जब खाई में डाल गए, तो थोड़े समय पश्चात् दो बड़े - बड़े चूहों ने आकर उनके समस्त बन्धन काट डाले। तब वह अचेत थे। कुछ देर उन्हें होश आ गया। वे उठ बैठे। खड़ा होने कोशिश करने लगे तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उनके शरीर में प्राण हैं ही नहीं । अंग - अवयव शक्तिहीन ओर शिथिल पड़ गए थे। अब वह क्या करें ? अभी ऐसा विचार कर ही थे कि सामने से एक भील आता दिखाई पड़ा। उसे देखकर वह वह भयभीत हो उठे और किसी प्रकार भागने का प्रयत्न करने लगे। दो - तीन बार के प्रयास में भी वे सफल न हो सके। भील यह सब देख रहा था। दूर से ही चिल्लाकर उसने आश्वस्त किया कि डरने की आवश्यकता नहीं। वह कोई लुटेरा नहीं, उसका शुभचिन्तक और उसके लिए औषधि ला रहा है। अब नारायणदास का डर कुछ कम हुआ। आगन्तुक के हाथ में उन्होंने एक पात्र देखा, तो विश्वास हो गया कि उसमें वह कुछ ला रहा है। वहाँ पहुँचकर उसने वह पात्र नारायणदास को पकड़ा दिया और उसमें रखी औषधि को पी जाने को कहा। वे असमंजस में पड़ गये, सोचने लगे - इसे वह पीयें या नहीं ? कहीं ठगी का यह कोई दूसरा तरीका तो नहीं। क्या पता इसमें कोई प्राणघातक चीज हो ?

भील उनकी मनः स्थिति समझ रहा था, उसने पात्र अपने हाथ में लिया और उसमें रखे जलीय पदार्थ का कुछ भाग अपने मुँह में उड़ेल लिया, फिर उसको लौटाते हुए उसे पी जाने को कहा। अब निर्भय होकर नारायणदास उसे भी पी गए। पीते ही उन्हें बड़ी अद्भुत अनुभूति हुई। ऐसा लगा मानो सारी ताकत शरीर में वापस लौट आई हो। पीड़ा के मारे अंग - अंग टूट रहे थे, वह तत्काल ठीक हो गया। वे खाई से बाहर निकले और मालती का पता लगाने के लिए चल पड़े। साथ में वह वनवासी भी था। थोड़ी दूर बढ़ने पर ही मालती दीख गई। वह उधर ही आर रही थी। उसके साथ क्षत्रिय युवक भी था। दोनों ने एक दूसरे की कुशलता पूछी और आश्वस्त हुए। मालती ने युवक का परिचय दिया और नारायणदास ने आदिवासी का। दोनों त्राता आमने - सामने खड़े थे। उन्होंने एक दूसरे का अभिवादन किया। दोनों असामान्य पुरुष थे। दोनों का स्पर्श असाधारण था।

नारायणदास अब आगे बढ़ने का कार्यक्रम बनाने लगे। युवक ने उन्हें रास्ता बतलाते हुए उस पर निर्भय चले जाने को कहा। मार्ग सम्बन्धी आवश्यक जानकारी देने के पश्चात् वे दोनों भी दो दिशाओं प्रस्थान कर गये। पति - पत्नी उन्हें विदाई देते हुए सहायता के लिए आभार प्रकट किया। बाद में बैलगाड़ी में सवार हो कर वे भी चल पड़ें सामने ही युवक घोड़े पर सवार होकर चला जा रहा था। पति - पत्नी की दृष्टि उसी पर टिकी थी, तभी अचानक न जाने वह कहाँ गायब हो गया। दूसरी ओर पलट कर देखा, तो भील भी अन्तर्धान हो चुका था। अब उनकी समझ में आया कि वास्तव में वे कौन थे दस दम्पत्ति अपने भाग्य को सराहते हुए अयोध्या पहुँचे और फिर सरयू किनारे एक कुटिया बनाकर स्थायी रूप से वही रहने लगे। उनका सारा जीवन लोक - मंगल में व्यतीत हुआ।

संसार ईश्वर की संरचना है। इसका लौकिक नियन्ता मनुष्य को माना जा सकता है वह चाहे तो अपने उत्कृष्ट चिन्तन और उदात्त गतिविधियों के द्वारा इसे स्वर्ग जैसा सुन्दर , सुखद और श्रेष्ठ बना दे तथा चाहे तो नरक की निकृष्टता में धकेल दे। यह पूर्णतया आदमी की अपनी इच्छा पर निर्भर है। बुरे कार्यों के लिए दण्ड और प्रताड़ना की सर्वत्र व्यवस्था है एवं अच्छे कार्यों के लिए पुरस्कार दिये जाते हैं। पुत्र कुमार्गगामी बने और घर बर्बाद करे - यह किस पिता को पसन्द होगा, इसके विपरीत उसके उत्तम कार्यों की प्रशंसा भी होती है और पारितोषिक भी मिलते हैं। परमपिता के कार्यों में सहभागी बनकर इन दिनों हम ऐसे ही इनाम - इकराम के रूप में उनके दिव्य अनुदान और वरदान प्राप्त कर सकते हैं। यह हमारी अपनी मर्जी है कि इस अवसर का लाभ उठाकर हम स्मृति - आकाश में देदीप्यमान नक्षत्र की तरह चमकते रहें अथवा विस्मृति के महातिमिर में विलीन हो जाएँ।

First 15 17 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • ईश्वरीय अपनत्व की कसौटी
  • करुणा से जन्मे मोती
  • वह करुणा-सागर प्रार्थना की पुकार सुनता है
  • ज्योतिपर्व पर ‘श्री’ तत्व के माहात्म्य को समझें
  • समष्टिगत चेतना चहुँओर संव्याप्त है
  • जैसे को तैसा की नीति (Kahani)
  • रहे भाव संकीर्ण अगर तो वह पूजन किस काम का?
  • सृष्टि का हर प्राणी विशिष्टता सम्पन्न
  • जाको राखे साईंयाँ....
  • प्रगति की आकांक्षा ही नहीं, प्रयास भी करें
  • शक्ति का अनन्त स्त्रोत प्राणाग्नि करे रूप में अपने ही भीतर
  • वृद्धावस्था को दूर भगाना हो तो जवारे का रस पियें
  • सबसे बड़ी पूँजी प्रामाणिकता
  • शिव - उपासना के पीछे छिपे गूढ़ रहस्य
  • हमसे कहीं अधिक संवेदनशील हैं पेड़ - पौधे
  • ईस देई फल हृदय बिचारी
  • VigyapanSuchana
  • शब्द को हम शब्दब्रह्म बनाले
  • वनौषधियजन - यज्ञचिकित्साः नूतन आयाम
  • वह आत्माओं से बातें करती है
  • नवरात्रि साधना से पूर्व कुछ सावधानियाँ समझ लें
  • इस लोक से परे भी बहुत कुछ अतिविलक्षण है।
  • परिष्कृत मस्तिष्क बनता है कल्पतरु
  • धर्ममय ‘अर्थ’ ही हमारे लिए वरेण्य हो
  • गायत्री परिवार की स्थापना का मूलभूत आधार - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • पं श्रीराम शर्मा आचार्य का जीवनदर्शन : समग्र वांग्मय
  • वनौषधियों की वेदना
  • वनौषधियों की वेदना (Kavita)
  • पुनर्प्रकाशित विशेष लेख- - माँ गायत्री के वरदपुत्र- इस युग के विश्वामित्र
  • एक विशेष निवेदन
  • अपनों से अपनी की बात- - साधना वर्ग समारोह से उपजे दो महत्वपूर्ण कार्यक्रम
  • आत्मशक्ति से युगशक्ति के जारण हेतु प्राणानुदायुक्त विशिष्ट ध्यान
  • संस्कार-महोत्सव से सम्बन्धित कुछ विशेष निर्देश
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj