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Magazine - Year 1997 - Version 2

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सृष्टि का हर प्राणी विशिष्टता सम्पन्न

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स्रष्टा को अपनी संतानें समान रूप से प्यारी हैं। उसने अपनी सभी संतानों को कोई न कोई ऐसा विशिष्ट अनुदान दिया है, जिसके कारण क्षुद्र से क्षुद्र प्राणी भी अपनी जीवन -यात्रा बेखटके पूर्ण कर लेता है। उसने किसी को कोई खिलाने-खेलने के साधन दिये हैं, तो किसी को कोई । इस सृष्टि से न तो कोई सर्वथा साधन विहीन है और न सर्वसम्पन्न। हर प्राणी को अपनी आवश्यकता के अनुरूप इतने और ऐसे साधन प्रचुर परिणाम में उपलब्ध हैं जिनसे वह अपनी जीवनचर्या संतोष और प्रसन्नता के साथ चला सके। किसी भी प्राणी पर नजर डाली जाय तो स्पष्ट हो जाता है कि वे सभी सृजेता के कृपापात्र हैं और अपनी आवश्यकता के अनुरूप इतने साधन सम्पन्न हैं कि किन्हीं उपलब्धियों में मनुष्य से छोटे और पिछड़े हुए सिद्ध नहीं किये जा सकते। इस तथ्य को थोड़ा अधिक गहराई से विचार करने पर सहज ही जाना जा सकता है और उसके अनेक प्रमाण पाये जा सकते हैं।

उदाहरण के लिए, आत्मरक्षा के साधनों को ही लिया जा सकता है, जो प्रत्येक प्राणी की एक महती आवश्यकता है। जीवों में जागरूकता और पराक्रमवृत्ति को जीवंत बनाये रखने के लिए प्रकृति ने शत्रुपक्ष का निर्माण किया है। यदि सभी जीवों को शाँतिपूर्वक और सुरक्षित रहने की सुविधा मिली होती तो फिर वे आलसी और प्रमादी होते चले जाते । उनमें जो स्फूर्ति और कुशलता पायी जाती है, वह या तो विकसित ही न होती या फिर जल्दी ही समाप्त हो जाती। प्राणियों की आवश्यकताएँ तथा इच्छाएँ ही उनकी शारीरिक, मानसिक एवं भौतिक परिस्थितियों का सृजन करती हैं।

सिंह, व्याघ्र, सुअर, हाथी, मगर आदि विशालकाय प्राणियों को ही लें, तो वे अपने पैने दाँतों से आत्मरक्षा करते हुए देखे जाते हैं और उनकी सहायता से आहार भी प्राप्त करते हैं। साँप, बिच्छू, बर्रे, ततैया, मधुमक्खी आदि अपने डंक चुभोकर शत्रु को परास्त करते हैं। सीपी, घोंघा, केंचुआ आदि के शरीर से जो द्रव पदार्थ या दुर्गन्ध निकलती हैं, उससे शत्रुओं को नाक बंद करके भागना पड़ता है। गैंडा, कछुआ, सीपी, घोंघा, शंख, आर्मेडिलो आदि की त्वचा पर जो कठोर कवच चढ़ा होता है, उससे उनकी रक्षा होती है। टिड्डे का रंग घास जैसा, तितली का फूलों जैसा, चीते का पेड़-पौधों की छाया जैसा चितकबरापन और गिरगिट मौसमी परिवर्तन के अनुरूप अपना रंग बदलता है।

शिकारी जानवरों को अधिक परिश्रम करना पड़ता है। इस दृष्टि से उन्हें दाँत, नाखून, पंजे ही साधारण रूप से मजबूत नहीं मिले, वरन् उन्हें अनुदान रूप में मिली पूँछ तक की अपनी विशेषता है। अनुसंधानकर्ता प्राणि विज्ञानियों का कहना है कि जीवजगत में बहुत कम प्राणी ऐसे हैं, विशेषकर रीढ़धारी, जो बिना पूँछ वाला प्राणी है। भ्रूणीय अवस्था में यह अधिक स्पष्ट रहती है और बाद में मात्र अवशेष के रूप में रह जाती है। प्राणिशास्त्री लैमार्क के अनुसार प्रकृति का एक नियम है कि जीवधारियों में जिस अंग का उपयोग अधिक होता है वे अधिक सक्षम और सक्रिय बने रहते हैं और जिनका उपयोग नहीं होता वे धीरे-धीरे लुप्तप्राय हो जाते हैं या अवशेष मात्र रह जाते हैं। जैसे मनुष्य की पूँछ, आँखों की निक्टेटिंग मेम्ब्रेन एवं बाहकर्णपिन्ना आदि।

दक्षिण एशिया एवं दक्षिण अफ्रीका के जंगलों में निवास करने वाला एक जानवर है-पैंगोलिन इसके शरीर के चारों ओर प्रकृति ने ऐसा सुरक्षात्मक कवच बनाया है जो अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित सेना की भाँति उसकी रक्षा करते हैं और इसके कारण उसकी सुंदरता भी बढ़ जाती है। इसका मुख्य भोजन चींटियाँ और दीमक है। पेड़ों पर चढ़ने वाली पैंगोलिन विशाल वृक्षों से लेकर छोटी-मोटी शाखाओं पर अपनी इस विशेषता के कारण सहज रूप से चढ़ जाती है और पंजों से चींटियों और दीमकों को खोदकर अपना प्रिय भोजन करती है।

जीवशास्त्रियों के अनुसार पूँछ न केवल शरीर के संतुलन को बनाये रखने का कार्य करता है वरन् कितने ही प्राणी इसके कारण शत्रुओं से अपनी आत्मरक्षा भी करते हैं। छिपकली अपनी पूँछ के समान अस्त्र और किसी प्राणी के पास नहीं है। शत्रु के सामने मोड़-मरोड़ कर वह अपनी पूँछ को शरीर से अलग करके फेंक देती है, जो कुछ समय तक जीवित प्राणी की तरह उछलती-फुदकती रहती है। दुश्मन उसे अपना शिकार समझ कर उस पर झपट पड़ता है और इस तरह उसकी प्राणरक्षा हो जाती है। रंग बदलने वाली गिरगिट आत्मसुरक्षा के लिए इसे विशिष्ट यंत्र के रूप में प्रयुक्त करते हैं। सामयिक परिस्थितियों के अनुरूप रंग बदल लेने पर इनके शत्रुओं को घास का भ्रम हो जाता है।

यहीं विशेषताएँ प्रायः स्तनपायी जीवों में भी कुछ अंशों में पायी जाती हैं। जमीन में, बिल में रहने वाला चूहा अपने पूँछ के अंतिम सिरे को आवश्यकता पड़ने पर उसी तरह शेष भाग से अलग कर देता है जिस प्रकार नाखून बढ़ने पर मनुष्य उसे काटकर अलग कर देता है। अनुसंधानकर्ता जंतुविज्ञानियों का कहना है कि पचास प्रतिशत चूहे शत्रु से घिर जाने पर अपनी पूँछ दुश्मन के मुँह में दे देते हैं और अंतिम समय सिरे को शरीर से अलग करके अपनी रक्षा कर लेते हैं। अफ्रीका में पाये जाने वाला डोर माउस नामक जीव तो बड़ी आसानी से अपनी जान बचा लेता है। उसकी पूँछ में आठ मिलीमीटर दूरी पर बड़े-बड़े धब्बे पाये जाते हैं, जो सतत् अपना स्थान बदलते रहते हैं। शत्रु को यह पता ही नहीं चल पाता कि आखिर सही धब्बा कौन सा हैं जिससे यह पहचाना जा सके कि यह अमुक जंतु है।

पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि प्रणय प्रस्ताव के लिए नर पक्षी अपनी कुशलता व सद्भावना प्रकट करने के लिए मादा की मनुहार करते हैं। इसके लिए वे विभिन्न मुद्राएँ बनाते, उपहार देते व नृत्य करते हैं। मोर का नृत्य देखते ही बनता है। इसमें उसकी पूँछ ही कलात्मकता का प्रमुख स्रोत होती है। अधिकाँश पक्षियों के लिए उनकी पूँछ ही उनके स्वेटर और कंबल का काम करती है। ठण्ड के दिनों में पक्षी अपने आपको इनसे ढक लेते हैं और गरम कपड़े की भाँति इसे प्रयुक्त कर अपनी रक्षा कर लेते हैं। दीमक खाने वाले जंतु अपने पूँछ का प्रयोग स्थायी, नरम व सुविधा जनक बिस्तर के रूप में करते हैं। जब भी सोने की इच्छा होती है पूँछ को नीचे बिछा लेते हैं और गहरी नींद का आनंद लेते हैं। बिच्छू और साँप की कुछ प्रजातियाँ अपनी पूँछ का प्रयोग एक सबल हथियार के रूप में करते हैं। आक्रमण होने पर वे सुरक्षा के लिए इसी का प्रयोग करके आक्रान्ता को परास्त करते हैं।

कुछ जानवर अपनी पूँछ का उपयोग भोजन-संग्राही के रूप में करते हैं। मेडागास्कर में पाया जाने वाला चूहा अनुकूल समय वर्षाकाल में अपनी पूँछ में मोटी चर्बी एकत्र कर लेता है, जिससे इसका आकार काफी मोटा हो जाता है। गर्मी के दिनों में जब खाद्य पदार्थों की कमी पड़ जाती है, तब यह अपने आपको गेंद के रूप में गोल-मटोल बनाकर बाँबियों में या घास-फूस से बनाये घोंसले में सोया पड़ा रहता है। इन दिनों पूँछ में संग्रहित चर्बी से ही काम चलाता है। जिसके कारण मोटापा कम होने लगता है।

किसी भी प्राणी पर दृष्टिपात करें, सभी को प्रकृति का प्यार, संरक्षण और अनुदान मिला हुआ है। ऐसा प्रत्यक्ष दीखता है। उदाहरण स्वरूप वृक्षों पर रहने वाला आस्ट्रेलिया का टेडीवियर नामक प्राणी अपनी पीठ पर आधे दर्जन तक बच्चे लादे हुए फिरता है। इसी तरह अमेरिका के ओपोसम चूहों के आठ-दस बच्चे अपनी माँ की पीठ पर लदे फिरते हैं। ये बच्चे इतने चतुर होते हैं कि अपनी पूँछ माता की पूँछ में लपेट कर जंजीर सी बना लेते हैं।

पूँछ का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं मनोरंजक उपयोगिता है-संचार व्यवस्था। कुत्ते अपनी प्रसन्नता और कृतज्ञता अपनी दुम हिलाकर व्यक्त करते हैं। जब मालिक या परिवार का कोई सदस्य घर आता है तो उस समय कुत्ता विशेष प्रकार की आवाज निकालते हुए पूँछ को तेजी से हिलाता है। इन क्रियाकलापों से वह अपनी प्रसन्नता अभिव्यक्त करता है। इसी तरह भेड़िये की मानसिकता को उसकी पूँछ प्रदर्शित करती है। नर एवं मादा भेड़ियों का समूह अपनी पूँछ की हरकतों के आधार पर संचार समन्वय स्थापित करता है।

पूँछ से संचार भेजने के संबंध में अमेरिका के वैज्ञानिकों ने कैलीफोर्निया में पाये जाने वाले चूहा वर्गीय पाकेट नामक जंतु के बारे में गहन अनुसंधान किया है। इन प्राणियों के सबसे बड़े शत्रु हैं-साँप और इनमें भी धामन् साँप। यह इन्हीं चूहों को खाकर अपना जीवन निर्वाह करती है। जब से आक्रान्ता इस क्षेत्र में प्रवेश करते हैं जिनमें इस वर्ग विशेष के चूहे रहते हैं, तब वे भागते नहीं। वे कभी भी व्यक्तिगत सुरक्षा को महत्व नहीं देते। यदि वैयक्तिक बलिदान से सामूहिक सुरक्षा हो जाय तो बलिदान देने में पाकेट चूहे कोताही नहीं बरतते। तत्काल वहीं स्थिर रहकर अपने साथी-सहचरों को पूँछ रूपी दूरसंचार केन्द्र से संदेश भेजता है। सामान्य संकट आने पर वह अपनी पूँछ को तीन बार जमीन पर जोर-जोर से पटकता है। खतरे की संभावना होने पर दो बार और अनुभव न होने पर एक बार। पूँछ की इन हरकतों एवं क्रिया-प्रतिक्रियाओं के आधार पर खतरे की तीव्रता को उनके सहचर पहचान बना लेते हैं। धामिन साँप, जो इनका सबसे बड़ा दुश्मन हैं, उसे देखकर ये तेजी से पूँछ को जमीन पर पटकते हैं।

सामान्यतया हिरण झुण्ड में रहकर जंगलों में शाँतिपूर्वक घास-पात चरते रहते हैं। पर जैसे ही उनमें से किसी एक साथी का कान खड़ा हुआ , सभी सतर्क हो जाते हैं, मानो कोई दुश्मन आ गया हो। ब्राजील के जंगलों में पाये जाने वाले बूली बंदर पर भेड़ जैसी ऊन होती है। मकड़ी की तरह हाथ-पैर और पूँछ के सहारे यह एक डाली से दूसरे डाली पर उल्टी-सीधी चाल से उतरता और उछलता रहता है। इसलिए इस बानर का नाम स्पाइडर मंकी पड़ा। यह बंदर शायद ही कभी-कभी जमीन पर पैर रखता है। एक डाली से दूसरी डाली या एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलाँग लगाने में इसकी पूँछ ही मदद करती है। इसके सहारे यह डालियों पर देर तक लटका रहता है और हाथ पैर से खाने की चीजें तोड़ सकता है। बच्चे अपनी माँ पर सवारी करते समय पूँछ के सहारे ही उसे पकड़े रखते हैं। यह सभी उदाहरण इस बात के प्रमाण हैं कि भगवान मनुष्य के लिए ही नहीं, अपने सभी पुत्रों के प्रति समान रूप में उदार है। इसकी न्यायनिष्ठा में कहीं कोई व्यतिरेक नहीं।

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