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Magazine - Year 1998 - Version 2

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Language: HINDI
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जिजीविषा के बल पर जीवित रहे ये अजूबे

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दुनिया में अजूबों की कोई कमी नहीं। जिस प्रकार प्रकृति में स्रष्टा ने एक-से-एक बढ़कर विलक्षणताएँ पैदा की हैं, उसी प्रकार कितनी ही विचित्रताएँ मनुष्यों में भी देखी जाती हैं। साधारण मनुष्य एक देहधारी होता है, पर असाधारण स्थिति में उसमें दो-दो शरीर भी देखे जाते हैं। उनका चलना-फिरना उठना-बैठना सोना-जागना सब कुछ अद्भुत होता है, इतने पर भी वे सामान्य इनसान की तरह व्यवहार करते हैं।

ऐसे ही दो जुड़वा भाई चांग और इंग थे। उनके शरीर पृथक्-पृथक् न होकर एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। दोनों ने ही लम्बी आयु पायी और मृत्यु लगभग साथ-साथ हुई।

इनका जन्म बैंकॉक के निकट मैक्लांग गाँव में हुआ था। जब पैदा हुए, तो लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, कारण कि वे इस प्रकार के जुड़े हुए बच्चे पहली बार देख रहे थे। दोनों का वक्षस्थल पार्श्व से जुड़ा हुआ था। कटि प्रदेश से लेकर नीचे का हिस्सा अलग-अलग था; पर उनके एक नाभि थी।

प्रारंभ में इन बालकों को दुर्भाग्यसूचक माना गया और किसी आसन संकट की आशंका से सब भयभीत हो उठे। यह खबर उड़ते-उड़ते राजा के कानों तक पहुँची। पुरानी विचारधारा वाले सम्राट के मन में भी डर पैदा हो गया। उसने उन्हें मरवाने की आज्ञा दे दी। इस बात का विद्वान दरबारियों को जैसे ही पता चला, उन्होंने राजा को समझाया कि इससे कोई विपत्ति नहीं आने वाली। यह असामान्य स्तर की सामान्य घटना है। इससे आतंकित होने की आवश्यकता नहीं। इसके बाद थाई नरेश ने अपना आदेश वापस ले लिया। इस प्रकार दोनों बालक जीवित बच गए।

आयु बढ़ने के साथ-साथ उनकी कठिनाइयाँ बढ़ने लगीं। जब वे चलने-फिरने लायक हुए, तो उन्हें अधिकाधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा, कारण कि एक की यदि चलने की इच्छा होती, तो दूसरा बैठना चाहता और दूसरा जब चलना चाहता, तो पहले की कोई और अभिलाषा होती। दोनों अपने-अपने मन की बात करना चाहते; पर देह के जुड़े होने के कारण इसमें व्यवधान पैदा होता और उनमें खींचतान मचने लगती। कई बार यह रस्साकशी इतनी प्रबल होती कि संलग्न स्थान की त्वचा तीव्र खिंचवा के कारण फट जाती तथा वहाँ से रक्त-स्राव होने लगता। वय के साथ-साथ धीरे-धीरे उनमें समझदारी का विकास हुआ एवं वे परस्पर सामंजस्य बिठाना सीख गए। दोनों ने एक-दूसरे की इच्छाओं का आदर करना सीख लिया। इस प्रकार एक को जब किसी बात की तीव्र अभीप्सा होती, तो दूसरा भाई बिना किसी अनख के उसकी पूर्ति में मदद करता।

चांग-इंग के पिता पेशे से मछुआरे थे। नित्यप्रति वे निकटवर्ती नदी में मछलियाँ पकड़ने जाया करते; तो साथ में चांग-इंग को भी ले जाते। धीरे-धीरे वे मछलियाँ पकड़ना सीख गए। इतना ही नहीं, उन्हें तैरना और नाव खेना भी भली-भाँति आ गया। अब वे अपने बूते अपना जीविकोपार्जन कर सकते थे।

कुछ दिन पश्चात् उनके पिता की मृत्यु हो गई। घर पर केवल माँ और चांग-इंग रह गए। आय का कोई स्रोत था नहीं, इसलिए अब भोजन जुटाना मुश्किल पड़ गया। चांग-इंग ने पोल्ट्री फार्म खोल लिया। इसके अतिरिक्त मछली भी पकड़ने और बेचने लगे। इससे किसी प्रकार उनके भोजन-वस्त्र का इन्तजाम हो जाता।

कुछ वर्ष पश्चात् वहाँ के सम्राट की मौत

हो गई। राजसिंहासन पर नये राजा पदासीन हुए। उन्होंने चांग-इंग के बारे में सुन रखा था। दोनों को बुलवाया गया। उन्हें देखकर राजा को उन पर दया आ गई। उनने उन्हें ढेर सारा धन इनाम में दिया।

जब उनकी उम्र 17 वर्ष थी, तो रॉबर्ट हण्टर नामक एक स्कॉट व्यापारी उन्हें यूरोप और अमेरिका के दौरे पर ले गया। दस वर्षों तक विभिन्न देशों में उनकी जगह-जगह नुमाइश लगायी गई। इससे चांग-इंग के पास काफी धन इकट्ठा हो गया। अब अपनी इस प्रकार की प्रदर्शनी से वे ऊब चुके थे। उत्तरी कैरोलिना के एक कस्बे में मकान खरीदा और रहने लगे। बाद में चांग ने ‘एन’ तथा इंग ने ‘एडलिड’ नामक लड़कियों से विवाह कर लिया। दोनों के संतानें हुईं, जो एकदम सामान्य थीं। 63 वर्ष की आयु में एक दिन चांग बीमार पड़ा और उसका निधन हो गया। उसके कुछ ही घंटे पश्चात् स्वस्थ इंग का भी देहान्त हो गया।

ऐसी ही दो जुड़वा बहिनें वायलट और डेजी थीं। उनका जन्म अब से 90 वर्ष पूर्व इंग्लैण्ड के बरहिंगटन कस्बे में हुआ था। दोनों परस्पर कमर से जुड़ी हुई थीं।

जन्म के पश्चात् पिता ने जब उन्हें देखा, तो बहुत निराश हुए और उनकी उपेक्षा करनी शुरू कर दी। माँ मैरी हिल्टन बुद्धिमान महिला थी। उसने उनके आर्थिक महत्व को समझा और उनका भली-भाँति पालन करना प्रारंभ किया। तीन वर्ष की अवस्था से ही वह उनकी स्थानीय मेले-ठेले में नुमाइश लगाने लगी और पैसा कमाने लगी। बारह वर्ष की हुईं, तो उन्हें लेकर विदेश-भ्रमण के लिए निकल पड़ी। आस्ट्रेलिया, अमेरिका, जर्मनी आदि देशों में उनका प्रदर्शन कर उसने खूब धन कमाया।

इस बीच मैरी हिल्टन ने अपनी दोनों लड़कियों को नृत्य और संगीत भी सिखा दिया था। वायलट पियानो बजाती थी और डेजी वायलिन। उनका नृत्य-संगीत सुनकर दर्शक मुग्ध हो जाते एवं बढ़-चढ़कर प्रशंसा करते।

मैरी हिल्टन दोनों के साथ बहुत कठोरता बरतती थीं। उनका जीवन एक प्रकार से गुलामों जैसा गुजर रहा था। वे अब इससे मुक्ति चाहती थीं, पर निर्दयी माँ उन्हें कैसे छोड़ सकती थी। वह जानती थी कि सोने के अण्डे देने वाली इन मुर्गियों को यदि स्वतंत्र कर दिया गया तो वह दाने-दाने के लिए तरस जाएगी। सौभाग्यवश थोड़े दिन बाद माँ की मृत्यु हो गई। वह सोच रही थीं कि शायद अब इस परतंत्र जिन्दगी से छुटकारा मिल जाएगा, पर जालिम पिता धन पैदा करने वाली अपनी बच्चियों की महत्ता को अब समझ चुके थे। वह उन्हें गुलाम बनाये रखना चाहता था, लेकिन अब वे पूर्णरूपेण वयस्क हो चुकी थीं और अपना जीवन अपने ढंग से जीने के लिए कानूनी तौर पर स्वतंत्र थीं। किसी प्रकार उनने अपने पिता पर मुकदमा दायर कर दिया और अदालत के समक्ष अपनी व्यथा-कथा सुना दी। फैसला उनके पक्ष में हुआ और अदालत ने एक लाख डॉलर की धनराशि भी उन्हें दिलवायी।

दोनों ने विवाह किये और उनके बच्चे भी हुए। उन्हें ‘चेण्ड फॉर लाइफ’ नामक एक अमेरिकी फिल्म में काम करने का मौका भी मिला, पर इसी बीच एक सुबह वायलट की मृत्यु हो गई, शाम तक डेजी भी इस संसार से विदा हो गई। उस समय उनकी उम्र 41 वर्ष थी।

मिली और क्रिस्टीन का जन्म कैरोलिना राज्य के कोलम्बस शहर में हुआ था। उनके भी शरीर कमर से जुड़े हुए थे। दो सिर, दो हाथ के अतिरिक्त उनके दो-दो टाँगें भी थीं। कुल मिलाकर वे पृथक् शरीर थीं।

जब मिली-क्रिस्टीन का जन्म हुआ, तब अमेरिका में गुलाम प्रथा थी। उनके माता-पिता एक धनी व्यक्ति के गुलाम थे। उसने जब मिली-क्रिस्टीन की अद्भुत शरीर रचना देखी तो उनसे धन कमाने का निश्चय किया। माता-पिता सहित लड़कियों को एक व्यापारी के हाथ ऊँचे दामों में बेच दिया। व्यापारी ने भी उन्हें अपने पास नहीं रखा और किसी दूसरे के यहाँ विक्रय कर दिया। इस प्रकार कई हाथों में घूमते हुए लड़कियाँ अन्ततः माँ-बाप से बिछुड़ गईं उन्हें जे. पी. स्मिथ नामक एक व्यापारी ने खरीद लिया। वह सहृदय व्यक्ति था। इसलिए उसने उनके माता-पिता को भी खरीद लिया, ताकि मिली-क्रिस्टन की उचित देख-भाल हो सके।

मिली-क्रिस्टीन जब काफी छोटी थीं तभी से उनकी नुमाइश शुरू हो गई। पहली बार इनका प्रदर्शन लंदन में किया गया। उसके बाद से तो दुनिया के अनेक भागों में जीवनपर्यन्त उनकी नुमाइश चलती रही।

जब वह लंदन में थीं, तो महारानी विक्टोरिया ने उन्हें अपने यहाँ बुलाया और ढेर सारे उपहार दिये। मिली-क्रिस्टीन कई दिनों तक राजपरिवार की अतिथि बनी रहीं। इसके बाद यूरोप के विभिन्न देशों की यात्राएँ करते हुए अन्त में वे अमेरिका पहुँची और कोलम्बस शहर में स्थायी रूप से रहने लगीं। इसी मध्य मिली को क्षयरोग हो गया। तब चिकित्सा जगत में इसका कोई इलाज नहीं था। कुछ ही दिनों में उसका शरीर एकदम क्षीण हो गया और अन्त में उसकी मृत्यु हो गई। मिली की मृत्यु के थोड़े ही घंटे बाद क्रिस्टीन भी चल बसी। उनकी कब्र पर निम्न पंक्तियाँ लिखी गईं-एक आत्मा, जिसके दो शरीर थे, दो हृदय जो साथ-साथ धड़कते थे।”

रोजा, जोजफा ब्लैजेक-यह जुड़वा बहिनें चैकोस्लोवाकिया के बोहमिया शहर की रहने वाली थीं। इनकी रीढ़ और पीठ की हड्डियाँ परस्पर जुड़ी हुई थीं। दवा दी जाती, तो उसका असर दूसरी पर भी होता दिखाई पड़ता। एक बार रोजा पीठदर्द से बुरी तरह तड़प रही थी। दर्दनिवारक सारी दवाएँ तात्कालिक राहत ही पहुँचा पा रही थीं, अन्ततः उसे मोर्फिन की सुई लगाकर सुला दिया गया। इसका प्रभाव जोजफा पर भी पड़ा। वह भी गहरी निद्रा में सो गई। दोनों एक सर्कस कम्पनी से जुड़ी हुई थीं। इसके माध्यम से

चैकोस्लोवाकिया में एवं उससे बाहर अनेक देशों में उनका प्रदर्शन किया गया। बाद में दोनों ने एक स्लोवाक युवक से शादी कर ली। रोजा के एक पुत्र पैदा हुआ। जब वे अमेरिका के दौरे पर थीं, तो एक दिन रोजा बीमार पड़ी और मर गई। इसके घण्टे भर बाद जोजफा ने भी शरीर त्याग दिया।

गोडीनो ब्रदर्स फिलीपीन्स में पैदा हुए थे। उनके नाम सिम्पलक्यू गोडीनो और लुइसयो गोडीनो था। उनने दो अलग-अलग लड़कियों से विवाह किया और गृहस्थी बसायी। 27 वर्ष की अवस्था में लुइसयो अचानक ज्वरग्रस्त हो गया। काफी उपचार के बाद भी ठीक न हो सका और उसका निधन हो गया।

भाई की मौत के बाद चिकित्सकों ने सिम्पलक्यू को शल्य क्रिया द्वारा मृत शरीर से पृथक् कर दिया, पर दुर्भाग्यवश उसे एक गंभीर मस्तिष्कीय रोग हो गया और एक पखवाड़े में ही उसकी मृत्यु हो गई।

मनुष्य की शरीर-संरचना चित्र-विचित्र हो सकती है; पर वह जीवन-प्रवाह को किसी भी प्रकार बाधित नहीं कर सकती। कई बार इसके कारण उसकी जिन्दगी अत्यन्त जटिल बन जाती है, जीना मुश्किल हो जाता है, इसके बावजूद अन्दर की दृढ़ता लगातार उसे प्रेरणा देती रहती है और उस सम्बल के सहारे वह जीवन-नौका को पार लगा लेता है। मनुष्य में यदि जिजीविषा और संकल्प का बल न हो, तो शायद पग-पग पर उसे हताश और निराश होना पड़ें यह वह तत्व है, जो उसे किसी भी प्रकार की कायिक विकृति पर विजय प्राप्त करने का साहस प्रदान करते हैं। हमारी काया बनावट की दृष्टि से विलक्षण और कमजोर भले ही हो; पर मानसिक संरचना यदि हर प्रकार से सुदृढ़ हुई, तो इस प्रकार की कोई भी दैहिक त्रुटि जीवन जीने में आड़े नहीं आ सकती।

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