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Magazine - Year 1998 - Version 2

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संपूर्ण विश्व की आबादी इन दिनों जिस गति से बढ़ रही है, उसे देखते हुए यह चिन्ता होना स्वाभाविक है कि इस बढ़ी हुई जनसंख्या के लिए अतिरिक्त आवास और अनाज कहाँ से जुटे? शिशु जन्म के कुछ माह बाद ही ठोस आहार आवश्यक हो जाता है। वयस्क होने पर शादी के बाद आवास भी चाहिए। बढ़ी हुई जनसंख्या के लिए इन दोनों समस्याओं का साथ-साथ समाधान असंभव है। यदि आहार-संकट का हल अधिकाधिक अन्न उत्पादन करके कर भी लिया गया, तो दूसरा प्रश्न पैदा होगा कि वे रहें कहाँ? यदि आवास को प्रमुखता देकर उनके लिए पृथक्-पृथक् मकान बनाये गए, तो फिर अन्न कहाँ उपजे? यह सवाल सामने आएगा, क्योंकि तब संपूर्ण भूमि मकानों से भर जायेगी और कृषि के लिए स्थान ही नहीं बचेगा। पृथ्वी का अपना सीमित क्षेत्रफल है। सामान्य ढंग से वह एक निश्चित आबादी का ही भार वाहन कर सकती है। रबड़ की तरह खींचकर उसका बढ़ाया जा सकना भी संभव नहीं। ऐसी स्थिति में इन दोनों समस्याओं से एक साथ निपटने के लिए योजनाकारों ने बहुमंजिली गगनचुम्बी इमारतों का सहारा लिया है।

भूमि का उपयोग अन्न के लिए और आकाश का आवास हेतु-इसे इक्कीसवीं सदी की एक महत्त्वाकाँक्षी योजना माना जा सकता है। इससे जहाँ आवास की समस्या सुलझेगी, वहीं प्रत्येक के लिए आहार भी उपलब्ध हो सकेगा। इस प्रकार की परियोजनाओं पर जापान, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि देशों में कार्य या तो प्रारंभ हो चुका है अथवा शीघ्र ही शुरू होने वाला है। उल्लेखनीय है कि इस प्रकार के बहुमंजिले भवन बहुत पहले से ही बनने आरंभ हो चुके थे। पर अब तक इनका उपयोग ऑफिस एवं वाणिज्यिक कार्यों के लिए ही होता रहा। लगभग सभी विकसित एवं विकासशील देशों की राजधानियों में इस प्रकार की इमारतें देखी जा सकती हैं।

ऐसे गगनचुम्बी निर्माणों की श्रृंखला उन्नीसवीं सदी के अन्त से प्रारंभ हुई, जो अब तक जारी है। 19 वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में फ्राँस में एफिल टावर का निर्माण हुआ। यह नौ सौ फुट ऊँचा है। इसके पश्चात् सन् 1931 में अमेरिका के न्यूयार्क शहर में ‘एम्पायर स्टेट बिल्डिंग’ का सृजन हुआ। ऊँचाई में यह फ्राँसीसी मीनार से कहीं अधिक है। इसकी कुल ऊँचाई 1250 फुट है एवं इसमें 102 मंजिलें हैं। सन् 1972 में 1350 फुट ऊँचे ‘वर्ल्ड ट्रेड टावर’ का निर्माण हुआ, जिसमें 110 मंजिलें है। इसके बाद तो धीरे-धीरे अधिक ऊँची इमारतों का निर्माण एक प्रकार से गौरव का विषय बन गया और अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों के मध्य इस बात की प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो गई कि कौन कितनी ऊँची इमारत खड़ी कर सकती है। इसी होड़ के परिणामस्वरूप गगनचुम्बी निर्माण बनते चले गए। इस क्रम में सन् 1974 में ‘सीयर्स मीनार’ बनी। इसमें 110 मंजिलें हैं एवं ऊँचाई 1450 फुट है। इसके उपरांत 1975 में टोरेन्टो कनाडा में जो ‘सी एन टावर’ बना, वह 1820 फुट ऊँचा है। तत्पश्चात् क्वालालम्पुर में इससे भी उत्तुंग ‘ट्रविन टावर’ बना। आजकल अमेरिका की मिगालिन बिटलर कंपनी शिकागो में अपनी 125 मंजिली व्यावसायिक बिल्डिंग परियोजना को कार्यरूप देने में व्यस्त है। विदित है कि उक्त परियोजना के पश्चात् ताइवान की एक फर्म ने सर्वाधिक ऊँचे व्यावसायिक केन्द्र के निर्माण का श्रेय अपने नाम लिखाने के उद्देश्य से 126 मंजिले भवन के निर्माण पर काम करना प्रारंभ कर दिया है। समझा जाता है कि मलेशिया, थाइलैंड, इण्डोनेशिया और फिलीपीन्स आदि देश यहीं से अपने निर्यात व्यापार को नियंत्रित करेंगे। दुनिया के सर्वाधिक ऊँचे और अधिक मंजिलों वाले होटल का सृजन अभी प्रगति पर है। यह 321 मीटर ऊँचा होगा एवं इसमें 56 तल होंगे दुबई के एक कृत्रिम द्वीप पर यह बनाया जा रहा है। इसकी विशेषता यह होगी कि समुद्र के नीचे भी इसमें तीन तल होंगे। बैंकॉक में सम्प्रति जगह की कमी से निपटने के लिए ‘बर्टस’ नामक एक योजना तैयार की गई है। इसके अन्तर्गत भूतल पर मकान-दुकान उसके ऊपर रेल लाइनें तथा सबसे ऊपर सड़कें बनायी जायेंगी। इससे एक ही स्थान के सीमित घेरे से तीनों प्रयोजन एक साथ पूरे किये जा सकेंगे।

ज्ञातव्य है कि यह सब गैर-रिहायशी निर्माण हैं और इससे बढ़ी हुई आबादी की आवास संबंधी समस्या का हल नहीं होता, इसलिए कई देशों ने अब इस तरह की रिहायशी इमारतें बनाने संबंधी परियोजनाओं पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया है। प्रयोग के तौर पर मंगोलिया में बीस मंजिलें रिहायशी भवनों की रचना शुरू हो गई है, जो काफी सफल सिद्ध हुए हैं। आगे ऐसे भवनों को कम-से-कम सौ मंजिला और अधिक-से-अधिक पाँच सौ मंजिला तक बनाने का कार्यक्रम है। इसी क्रम में ‘काजिया’ नामक एक जापानी फर्म ने टोक्यो शहर में ‘डी. आई. बी-200’ नामक एक बहुमंजिली इमारत का प्रस्ताव किया है। इसमें कुल 200 मंजिलें होंगी और संरचना पूर्णतया भूकंपरोधी होगी, जो 6-7 रिक्टर तक के झटकों को आसानी से बर्दाश्त कर सकेगी। एक दूसरी जापानी कंपनी ‘ताकेनाका’ ने ‘स्काई सिटी-1000’ नामक एक सुपरसिटी बनाने की घोषणा की है। यह गगनचुम्बी शहर भी टोक्यो में ही बनाया जाएगा। उम्मीद है कि 1000 मीटर ऊँची इस अट्टालिका में लगभग तीन सौ तल होंगे। ऐसी ही एक अन्य निर्माण योजना ‘एयरोपोलिस-2000’ है। ओहृयाशी नामधारी जापानी कंपनी द्वारा प्रस्तावित इस भवन में पाँच सौ मंजिलें होंगी और इसमें एक विकसित शहर की लगभग सभी सुविधाएँ होंगी। रिहायशी फ्लैटों के साथ-साथ यहाँ दुकानें, बैंक, कार्यालय, बाज़ार सभी कुछ होंगे। इस सुपरसिटी पर करीब 350 अरब डॉलर खर्च होने की उम्मीद है।

एक ऐसी ही सुपरसिटी जापान और आस्ट्रेलिया के सहयोग से एडीलेड, आस्ट्रेलिया में बनने जा रही है। संपूर्ण अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त यह गगनचुम्बी नगरी अपने आकार और ऊँचाई में अद्वितीय होगी? इसे 21वीं सदी की आदर्श स्थापना के रूप में देखा जा रहा है।

ऐसे स्काई स्क्रैपर सुपरसिटी अर्थात् आकाश चूमने वाली इमारतों के निर्माण के लिए जापान एक आदर्श देश है, कारण कि इसका अधिकाँश भाग समुद्र से घिरा है। वहाँ के छोटे-छोटे टापुओं की जमीन को यदि आबादी को बसाने में ही पूरी तरह खपा दिया गया, तो फिर दूसरे कार्यों और अन्न उत्पादन के लिए वहाँ भूमि बचेगी ही नहीं, जिससे विकासकार्य ठप्प हो जायेंगे। ऐसे में विशेषज्ञों का मत है कि छोटी-छोटी अनेक इमारतों की रचना की तुलना में कुछेक विशालकाय गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ खड़ी की जाएँ और पूरे शहर को उनमें बसा दिया जाए। इससे जो जमीन खाली हो, उसका उपयोग कृषिकार्य में किया जाए। वैसे भी टोक्यो में जमीन काफी महँगी है। एक वर्गफुट भूमि की कीमत वहाँ चार लाख डॉलर है। न्यूनाधिक यही स्थिति दूसरे देशों में बड़े शहरों की है, अतः ऐसे निर्माण अब समय की माँग हैं। इसे न सिर्फ जापान जैसे द्वीप-समूह वाले छोटे देश की अनिवार्यता समझी जानी चाहिए, वरन् संपूर्ण विश्व को ऐसी आवासीय योजनाओं पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए तथा इसके दूसरे विकल्पों की भी खोज की जानी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आगामी समय में बढ़ी हुई जनसंख्या के आवास के लिए भूमि का कम से कम एवं आकाश, समुद्र और भूमिगत स्थल का अधिकाधिक उपयोग हो।

जहाँ तक समुद्र पर तैरते भवनों का प्रश्न है, तो इस तरह की एक संरचना बनायी जा चुकी है। टोक्यो के समुद्र में निर्मित इस इमारत का नाम है-ऑफिस बिल्डिंग डेवलपमेंट’। अब इसी तर्ज पर जल-सतह पर विशालकाय शहरों की परिकल्पना की जा रही है। अमेरिकी कंपनी ‘वर्ल्ड सिटी कारपोरेशन’ ने ‘फिनिक्स वर्ल्ड सिटी’ नामक एक ऐसी परियोजना तैयार की है, जिसमें एक साथ कम-से-कम छह हजार लोग रह सकेंगे। इस तैरते शहर में आधुनिक नगरी की प्रायः सभी सुविधाएँ मौजूद होंगी। इसमें थियेटर, पुस्तकालय, प्लेग्राउण्ड से लेकर रिहायशी मकान तक सब कुछ होंगे। कहने को यह एक शहर भले ही हो, पर वास्तव में यह एक जहाज है, जिसमें कई मंजिलें होंगी। इस वर्ष के अंत तक इसके बनकर तैयार हो जाने की आशा है।

इसके अतिरिक्त योजनारहित ढंग से बने व्यापक क्षेत्र को घेरने वाले पुराने शहरों को उजाड़कर नये शहर बसाने की भी योजना दुनिया भर में चल रही है। इन्हें वैज्ञानिक ढंग से बसाते हुए विस्तृत जगह में फैले मकानों को कई गगनचुम्बी इमारतों में समेट लिया जायेगा। इससे जो भूमि खाली होगी, उसका उपयोग बदलते मौसम को रोकने के लिए वृक्षारोपण के रूप में एवं अन्न उत्पादन के लिए किया जायेगा। चीन का पुडोंग प्राँत ऐसा ही एक राज्य है, जो पुनर्निर्माण के लिए प्रस्तावित है। इसमें विशालकाय भवनों के अतिरिक्त भूमिगत रेलमार्गों एवं सुरंगों का निर्माण भी सम्मिलित है, ताकि भूमि के अधिकाधिक हिस्से का उपयोग हरीतिमा संवर्द्धन के लिए हो सके। कुवैत में प्रारंभ में ‘सुबैया’ और ‘रस अजजोर’ के आधुनिकीकरण का कार्य हाथ में लिया गया है। इनके पूरा होते ही दूसरे बड़े शहरों को भी आसमान से बातें करने वाली इमारतों में बसाया जायेगा। अरब देशों में जहाँ उपजाऊ भूमि की किल्लत है और जहाँ का अधिकाँश इलाका रेगिस्तानी है, यह योजना काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती है। नाइजीरिया अपनी नयी राजधानी ‘अबूजा’ पर सत्तर के दशक से ही कार्य कर रहा है। जापान के व्यापारिक जिले ‘मारुनोशी’ को नये सिरे से बसाने की चर्चा प्रशासनिक स्तर पर चल रही है। इस परियोजना के अन्तर्गत संपूर्ण जिले में लगभग 75 उत्तुंग इमारतें बनायी जाएँगी, जिनमें समग्र जिले को सिकोड़ने का कार्यक्रम है। इसके योजनाकार प्रसिद्ध जापानी फर्म 'मित्सुबीशी इस्टेट कम्पनी’ के अभियंता हैं। ऐसे ही एक अन्य जापानी फर्म ‘मात्सुशिता’ के अधीन ओसाका शहर के आधुनिकीकरण की परियोजना है। इसे एक व्यापारिक केन्द्र के रूप में विकसित करने का विचार है। पिछले दिनों जापानी इंजीनियरों ने टोक्यो के पूर्वी छोर पर एक अत्याधुनिक शहर बसाया है। इसमें हर प्रकार की आधुनिक सुविधाएँ मौजूद हैं। एक अन्य मिनी शहर पेरिस स्थित यूरो डिज्नीलैंड है। इसके अतिरिक्त विश्व के छोटे-बड़े विभिन्न देशों में नये शहर पुरानों का स्थान ले रहे हैं। म्यांमार में रंगून के निकट एक नया शहर बसाने की योजना पर कार्य प्रारंभ हो चुका है। यह सिटी ‘म्यांमार काॅन्कोर्ड डेवलपमेंट वेंचर’ नामक कंपनी द्वारा एक जापानी फर्म के सहयोग से बसायी जा रही है।

उल्लेखनीय है कि नवीन शहर बसाने संबंधी उपरोक्त सभी परियोजनाओं में बिखरे हुए अलग-अलग मकानों का कोई स्थान नहीं है। सभी रिहायशी कमरे एक बहुमंजिले भवन के रूप में होंगे। हर भवन वास्तव में एक लघु शहर जैसा होगा। सभी आवश्यक वस्तुएँ उसमें विद्यमान होंगी। किसी को किसी वस्तुविशेष के लिए कहीं बाहर भागने की परेशानी मोल नहीं लेनी पड़ेगी। इस तरह एक ही नगर में उसकी कई छोटी-छोटी गगनचुम्बी इकाइयाँ होंगी, जो स्वयं में एक पूर्ण नगर होंगी।

इस प्रकार 21 वीं सदी को विशालकाय महलों वाला शहर कहना अनुचित न होगा। आज से चार दशक पूर्व मूर्धन्य वास्तुशास्त्री फ्रैंकलॉयड राइट ने आसमान से बातें करने वाली लगभग एक मील ऊँची एक ऐसी अट्टालिका की कल्पना की थी, जिसमें एक साथ करीब एक लाख लोग कार्य कर सकें। यद्यपि तब के उपलब्ध तकनीकी ज्ञान के द्वारा 530 मंजिली ऊँची इस इमारत का निर्माण संभव था। किन्तु इसे सिर्फ इस कारणवश नहीं बनाया जा सका कि इतनी ऊँचाई तक ले जाने वाली कोई लिफ्ट तब मौजूद नहीं थी।

आज कई प्रकार की लिफ्टों पर अनुसंधान हो रहे हैं। यों अब भी कोई ऐसी लिफ्ट विकसित नहीं हो सकी है, जो अकेले ही भूमितल से शिखर तक की दूरी तय कर सके। फिर भी अब उत्तुंग महलों के कंगूरे तक पहुँच सकना असंभव नहीं रहा। इसमें लिफ्टों की एक श्रृंखला कार्य करती है, जो यात्री को निर्धारित ऊँचाई पर पहुँचाकर छोड़ देती है। उससे आगे का सफर दूसरी लिफ्ट से तय करना पड़ता है। इस प्रकार सबसे ऊपरी तल तक पहुँचना शक्य हो जाता है। अब तो दायें-बायें चलने वाली लिफ्टें भी बन गई हैं। इस प्रकार की लिफ्टें जापान अपने बहुमंजिले भवनों में सम्प्रति बहुतायत से इस्तेमाल कर रहा है। इन दिनों एक ऐसी लिफ्ट पर काम चल रहा है, जो ऊपर-नीचे दायें-बायें चारों दिशाओं में चल सके। यदि ऐसा हो सका तो एक ही बिल्डिंग में कई लिफ्टों की आवश्यकता नहीं रह जायेगी।

किंतु सवाल यह नहीं है सवाल यह है कि ऊँची-ऊँची मीनारों की तरह विशाल अट्टालिकाएँ खड़ी कर लेने भर से ही काम चल जाएगा क्या? उसके साथ क्या अन्य अनेक प्रकार की समस्याएँ भी उठ खड़ी नहीं होंगी? निश्चय ही ऐसा होगा, तो फिर उनका साथ-साथ समाधान भी सोचना पड़ेगा, जैसे कि विशाल भवन की आधारभूमि कब तक उन गगनचुम्बी इमारतों का भार वहन कर सकेगी? क्या लंबे समय बाद उनके जमीन में धसकने की संभावना नहीं बढ़ जायेगी? जैसा कि पीसा की मीनार के साथ हुआ। यह वृहदाकार मीनार अपने उदग्र शीर्ष से 5 मीटर तिर्यक झुक चुकी है। फिर इस विशालकाय निर्माणों का रख-रखाव सरल नहीं है। लंबे काल तक ऐसे महलों में रहना खतरे से खाली नहीं होगा। ऐसे में यदि कोई दुर्घटना हुई, तो एक साथ हजारों लोग मारे जायेंगे। इसके अतिरिक्त अग्निकाण्ड जैसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए भी समुचित प्रबंध करना पड़ेगा, ताकि ऐसी किसी स्थिति में वहाँ फँसे लोगों को तत्काल निकाला जा सके। यों अब तक की ऐसी दुर्घटनाओं में लोगों को सुरक्षित निकाल पाना काफी कठिन साबित हुआ है, इसलिए कोई ऐसा तरीका ढूँढ़ना पड़ेगा, जो पिछले प्रयुक्त उपायों से भिन्न और तकनीकी दृष्टि से अधिक समुन्नत एवं परिष्कृत हो। यदि इन सब से बचाव हो भी गया, तो एक अन्य खतरा भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा से सदा बना ही रहेगा। भूकंपरोधी भवनों के दावे कितने सच्चे साबित होते हैं-यह तो समय ही बतायेगा, पर इस संबंध में जो एक असमंजस और आशंका उठती है, वह यह कि आखिर आकाश को चूमने वाली इस प्रकार की इमारतें कितनी उत्तुंग बन सकेंगी? उसकी भी एक सीमा है। चाँद-सूरज को छूने वाले प्रासाद तो नहीं बनाये जा सकते। ऐसी स्थिति में कुछ काल बाद पुनः वही समस्या सिर उठाने लगेगी-और बढ़ी हुई आबादी को कहाँ बसाया जाए? यह ज्वलन्त पहेली समाज विज्ञानियों और नृतत्त्ववेत्ताओं को चैन से नहीं रहने देगी। इस दशा में समझदारी यही कहती है कि डाल और पत्तियों को काटने-छाँटने की अपेक्षा विषवृक्ष का मूलोच्छेद किया जाए जनसंख्या-वृद्धि पर रोक लगने से सम्पूर्ण समस्या का स्वतः समाधान संभव हो जाएगा, अतः इस मूल बिंदु पर अधिकाधिक ध्यान केन्द्रित किये जाने की आवश्यकता है।

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