
अपनों से अपनी बात - महापूर्णाहुति की यही अवधि सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण
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फरवरी 1957 की ‘अखण्ड ज्योति’ में परमपूज्य गुरुदेव ने लिखा है-”नवयुग के फलितार्थ होने की सही अवधि इक्कीसवीं सदी है। महाकाल की असीम अवधि में युग की-इतिहास की दृष्टि से सैकड़ों क्या हजारों वर्षों का भी कोई महत्व नहीं होता। सतयुग की भविष्यवाणी जो हमने की है, उसका पहला आधार है- अदृश्य जगत् का सूक्ष्मप्रवाह, जो कुछ नई उथल-पुथल करने के लिए अपने उद्गम से चल पड़ा है और अपने उद्देश्य पूरा करके ही रहेगा। दूसरा आधार है- हमारा निज का संकल्प, जो किसी उच्चसत्ता की प्रेरणा से महाकाल की चुनौती की तरह अवधारित किया गया है। नवनिर्माण के लिए अपनी निज की क्षमता को इन्हीं तीन वर्षों में विशेष रूप से पैना और तीक्ष्ण किया गया है। अपने इस कथन के बारे में निश्चित हम इसलिए हैं कि इस प्रयोजन में हमसे भी कही अधिक बड़ी और समर्थ सत्ता इस कार्य को आगे बढ़कर कर रही है। जो घटित होने वाला है, उस सफलता के लिए श्रेयाधिकारी-भागीदार बनने से दूरदर्शी विज्ञजनों में से किसी को भी चूकना नहीं चाहिए।” (पृष्ठ 63-64) यह उद्धरण यहाँ इसलिए दिया गया है कि महापूर्णाहुति वर्ष के इस महापुरुषार्थ के तृतीय चरण ये गुजरते हुए कहीं हम में से किसी पर अहंता का आक्रमण न हो जाए कि जो दृश्यमान है, सक्रिय है वही कर रहा है। ऐसा भी न हो कि प्रस्तुत परिस्थितियों के निराशाजनक वातावरण में औरों की तरह हम भी इस कार्य को असंभव मानने लगें।
इन दिनों की दिव्य भूमिका में गुरुसत्ता द्वारा छोड़े उत्तराधिकार को वहन करने की, उनके द्वारा संकल्पित पुरुषार्थ को पूरा करने हेतु बल देते रहने की सामर्थ्य हर किसी में है। यह अनुभूति यदि हमें हो सके, तो अब से लेकर आगामी डेढ़-दो वर्षों में होने जा रहे युगपरिवर्तन के रोमाँचकारी क्षणों का न केवल हम आनंद ले सकेंगे, प्रतिपल- प्रतिश्वास इसी निमित्त जी भी सकेंगे। यह राष्ट्र की कुंडलिनी जागरण की - उसके सारे विश्व का सिरमौर बनने की पूर्ववेला वाला समय है। हममें से हर किसी को साधक की मनःस्थिति पैदा करनी होगी, वैसा बनना ही नहीं दिखना भी होगा। परिवर्तन उसके पश्चात् तो छूत की बीमारी की तरह फैलता चला जाता है।
महापूर्णाहुति के दो चरण संपन्न हुए। अब तीसरा चरण सारे देश व विश्वभर में चल रहा है। महापूर्णाहुति के महापुरुषार्थ का यही मेरुदंड भी है। वसंतपंचमी से गायत्री जयंती तक की एक महत्वपूर्ण अवधि, जो प्रायः चार माह की होती है, दो उपक्रमों के लिए आवंटित है। ये है (1) राष्ट्र जागरण तीर्थयात्रा (2) क्षेत्रीय दीपयज्ञों के संगठन प्रधान समारोह-प्रतिभाओं के संकल्प एवं संभागीय स्तर की पूर्णाहुतियाँ। राष्ट्र जागरण तीर्थयात्रा भूमि के प्रसुप्त संस्कारों को जगाती जन−जन में नवचेतना उमगाती चौदह रथों द्वारा भारत में संपन्न हो रही है। जिस शक्ति का उपार्जन इस प्रक्रिया से हो रहा है, उसका सुनियोजन क्षेत्रीय संगठन समारोहों में होना है। इसलिए महत्वपूर्ण दोनों ही हैं, किंतु कहीं ऐसा न हो कि प्रचार प्रधान तीर्थयात्रा में ही परिजनों की शक्ति चुक जाए। उसे ही सब कुछ मान बैठें । ऐसा करने से तो हम यू टर्न करके नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली उक्ति को सार्थक करते हुए, मिशन की प्रौढ़ावस्था की अवधि में पुनः प्रचारात्मक हल्ले-गुल्ले तक पहुँच पाएँगे। सभी परिजनों को अपने अपने क्षेत्र की तीर्थयात्राओं के स्वागत की तैयारी भी करनी है, व्यवस्था भी देखनी है, पर यह मात्र एक सप्ताह का कार्य है। शेष सारा समय इस चार माह की अवधि का संगठनात्मक पुरुषार्थ में- ज्ञानयज्ञ की पुण्य प्रक्रिया के विस्तार में तथा विधेयात्मक उल्लास पैदा कर सप्त क्राँतियों की विराट् स्तर पर तैयारी में ही लगना चाहिए।
सभी को अपने अपने जिले का - अपने लिए निर्धारित समय तीर्थयात्रा के लिए पूर्व से तय कर लेना चाहिए। इस पत्रिका के पहुँचने तक एक बहुत बड़े क्षेत्र में यात्रा भ्रमण कर चुकी होगी, फिर भी जो हिस्सा रह गया है, वह इस प्रतीक्षा में कही इस बहुमूल्य समय को गँवा न दे। जहाँ से यात्रा गुजर चुकी, वहां पैदा हुए उत्साह व जनसमर्थन का नियोजन संगठनात्मक प्रयाज व संभागीय महापूर्णाहुति के निमित्त होना है। जहाँ से यात्रा गुजरनी है, वहाँ अपनी पूर्व तैयारी तो रहे, साथ ही गाँव-ब्लॉक, जिले, नगरीय स्तर के मंथन भी साथ चलते रहें। सही व्यवस्था बुद्धि वही होती है, जो अपना समयचक्र ठीक से बना लेती है। हमारे कार्यकर्ताओं को अब प्रौढ़-परिपक्व बनकर अपनी कार्ययोजना बनाना आना चाहिए। समय तो तेजी से भागता है। देखते-देखते 19 जून (गायत्री जयंती) की वेला आ जाएगी। तब कहीं यह पछतावा न हो कि हमारा मंथन तो हो ही नहीं पाया। हमने पढ़ा तो था, किंतु व्यक्ति-परिवार समाज निर्माण की सुनिश्चित आहुतियों का संकल्प तो पूरा हुआ ही नहीं। एक बेहतर इनसान बनने व जुड़ने वाले हर व्यक्ति को श्रेष्ठ इनसान बनाने का हमारा संकल्प लिया ही नहीं गया, तो युगनिर्माण होगा कैसे ? अपना परिवार गायत्री परिवार व शुभेच्छुओं के परिवारों तक संस्कार चेतना नहीं पहुँची, तो फिर एक बड़ी कमी रह गई, हमारे अभियान में। संभागीय पूर्णाहुतियाँ तो हो जाएँगी, महापूर्णाहुति भी विराट् स्तर पर हो जाएगी, पर यह जा कमी है, यह भविष्य में किसी प्रायश्चित के लिए भी समय नहीं देगी। एक सही व्यक्ति व प्रजातंत्र की छोटी-सशक्त व समर्थ इकाई परिवार मिलकर ही समाज बनाते हैं। समाज निर्माण ऐसी प्रतिभाओं के द्वारा ही होगा। प्रतिभाओं का संगठन संगतिकरण ही इस समय का श्रेष्ठतम कर्म है, युगयज्ञ है एवं हम सभी की इसमें भागीदारी इस समय का युगधर्म हैं।
समाज के - राष्ट्र के नवनिर्माण हेतु इस समय सृजन क्राँति के सात कार्यक्रम दिए गए हैं। ये इस प्रकार हैं -
(1) साधना - उपासना पद्धति भले ही भिन्न क्यों न हो, सभी को जीवन साधना के सूत्रों का अभ्यास करना चाहिए। यह साधना इतनी प्रखर बन जाए कि साधक का व्यक्तित्व नवसृजन के लिए ईश्वर के साथ साझेदारी में युगधर्म के निर्वाह में सक्षम हो जाए। आत्मशक्ति के निखार से ही युगशक्ति का उद्भव होगा। इसी के प्रशिक्षण समग्र रूप में जन-जन तक विस्तार हेतु देवसंस्कृति विश्वविद्यालय का एक प्रभाग भाषा एवं धर्म विद्यालय के रूप में खोला जा रहा है।
(2) शिक्षा - साक्षरता विस्तार से लेकर अपने जीवन को कौशल पूर्वक जीना। संस्कारयुक्त सार्थक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते हुए उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रगमन। शिक्षणतंत्र में एक बुनियादी परिवर्तन लाने हेतु संकल्पित होना। इस विधा पर भी एक पूरा संकाय विश्वविद्यालय में स्थापित किया जा रहा है।
(3) स्वास्थ्य - अशक्ति निवारण को प्रारंभिक आवश्यकता मानते हुए समाज के हर वर्ग को उन्हीं की परिस्थितियों व संसाधनों के बीच स्वस्थ, सक्रिय व सुखी बनाने का प्रयास करना। वनौषधि विज्ञान का पुनर्जीवन तथा आयुर्वेद को विज्ञानसम्मत बनाकर जन-जन तक उसका विस्तार। स्वास्थ्य संबंधी जागरुकता फैलाने के लिए स्वास्थ्य शिक्षा विस्तार योजना को गति देना। ‘नंगे पैर चिकित्सक’ वाली क्राँति यथाशीघ्र संपन्न करना इसका उद्देश्य है। इस विधा पर भी एक पूरा समग्र संकाय स्थापित किया जा रहा है।
(4) स्वावलंबन - हर व्यक्ति में स्वावलंबी जीवन जीने की उमंग विकसित हो। आर्थिक क्राँति को साकार करने के लिए घर-घर कुटीर उद्योग, ग्रामोद्योगों का प्रचलन। गौशालाओं व गौ केंद्रित अर्थव्यवस्था को धुरी बनाकर वैसी ही जीवनशैली विकसित करने का प्रयास इसके अंतर्गत किया जाना है। स्वयंसेवी बचत समूहों द्वारा राष्ट्र को अपने पैरों पर खड़ा करना तथा स्वदेशी आँदोलन को गति देना इसी के अंतर्गत आता है। ग्राम विकास होगा तो ही बढ़ती आबादी, प्रदूषण, शहरीकरण से उपजी समस्याएँ घटेंगी, यह निश्चित मानना चाहिए। इसी विधा के परिपूर्ण प्रशिक्षण के लिए एक फैकल्टी विश्वविद्यालय में स्थापित की गई है।
(5) पर्यावरण - पर्यावरण के संरक्षण में सहयोगी वृक्षों का विस्तार, ऐसी ही विकास योजनाओं का प्रचलन। प्रदूषण निवारण हेतु एक सशक्त आँदोलन स्वयं से आरंभ कर समाज तक चलाना। सूक्ष्म के परिशोधन हेतु सामूहिक साधना का अवलंबन-शब्दशक्ति के प्रयोग-यज्ञविज्ञान की उपचार प्रक्रिया का अवलंबन इसके अंतर्गत आता है। जो भी घटक पर्यावरण को बिगाड़े, उसके विरुद्ध एक आँदोलन।
(6) महिला जागरण - पृथ्वी का शोषण व महिला शक्ति पर दमन मानव की तथाकथित विकासयात्रा में साथ-साथ चला है। महिलाओं को उनके गौरव का भान कराते हुए, उनकी योग्यता का जागरण, विकास व नवसृजन में भागीदारी इस आँदोलन का मुख्य अंग है। नारी सुरक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन एवं उनकी पुरुषों के समान प्रतिष्ठा आध्यात्मिक स्तर पर किए जा रहे पुरुषार्थ द्वारा ही संभव हो सकेगी। गायत्री परिवार में आधी कार्यशक्ति महिला शक्ति है। इसका नवजागरण शक्ति जागरण इस क्राँति का मूल उद्देश्य है।
(7) व्यसन मुक्ति- कुरीति उन्मूलन- बढ़ते व्यसनों एवं कुरीतियों के दुष्परिणामों से जन-जन को अवगत कराते हुए उनसे मुक्त कराना इस समय का युगधर्म है। व्यसनों से बचे समय साधनों अर्थशक्ति को सृजन प्रयासों में लगाया जाना चाहिए।
सप्त क्राँतियों में से जो जितना कर सके, गति के साथ सँभाल सके वह आने वाले बारह वर्षों में हो रहे विराट् नवसृजन के पुरुषार्थ में भागीदार बन सकेगा। ये सभी संकल्प इन्हीं दिनों के सघन मंथन के साथ व्यक्तिगत या सामूहिक स्तर पर लिए जाने हैं।
संभागीय स्तर की महापूर्णाहुतियों का क्रम प्रायः बीस मई के बाद आरंभ हो जाएगा। प्रायः 18 केंद्रीय टोलियों द्वारा छह चरणों में, इस तरह 108 स्थानों पर यह कार्यक्रम 19 जून गायत्री जयंती तक संपन्न होने हैं। भारतभर के सभी स्थानों का निर्धारण लगभग हो चुका है। विस्तार से जानने के लिए 1 अप्रैल का पाक्षिक ‘प्रज्ञा अभियान’ सभी पढ़ लें। जैसाकि बताया गया था 19 जून को अंतिम आयोजन के बाद सभी यात्राएँ जन्मभूमि आंवलखेड़ा, गायत्री तपोभूमि अखण्ड ज्योति संस्थान मथुरा होती हुई शांतिकुंज हरिद्वार 16 जून ज्येष्ठ पूर्णिमा की पहुँचेगी व अपने-अपने कलश अखण्ड दीपक की साक्षी में स्थापित करेंगी। इस समय गुजरात में पाँच, म0प्र0 में दो, राजस्थान में एक हरियाणा, हिमाचल, जम्मू, पंजाब में एक उड़ीसा बंगाल में एक उत्तरप्रदेश में दो महाराष्ट्र में एक तथा दक्षिण भारत में एक इस प्रकार कुल 14 यात्राएँ विभिन्न जोन में होती हुई निकल रही हैं। सघन मंथन भी चल रहा है एवं गायत्री परिवार के विषय में जनचेतना तेजी से जाग रही है।
इसी स्तर की तीर्थयात्राएँ दो अमेरिका व कनाडा में एक यू0के0 में एवं एक दक्षिण पूर्वी अफ्रीका में भी निकाली जानी हैं। अमेरिका व कनाडा की यात्रा तो आठ अप्रैल से आरंभ हो रही है। इंग्लैंड की रथयात्रा मई व जून में चलेगी तथा दक्षिण अफ्रीका की जून से अक्टूबर तक। इसी के साथ विदेश की धरती पर ढाई-ढाई दिन प्रायः चौबीस संस्कार महोत्सव 18 जून से 9 सितंबर तक की अवधि में उतरी अमेरिका (दस स्थानों पर), कनाडा (दो स्थानों पर), इंग्लैंड व यूरोप (छह स्थानों पर), दक्षिणी व पूर्वी अफ्रीका, मारीशस, सूरीनाम (चार स्थानों पर) तथा आस्ट्रेलिया क्षेत्र में (दो स्थानों पर) संपन्न होंगे। इनके साथ-साथ युवावर्ग की पाँच दिवसीय तीन गोष्ठियाँ अमेरिका में तथा तीन यूरोप की धरती पर रखी जा रही हैं। विस्तार से अगले अंक में इसकी जानकारी परिजन पा सकेंगे।
19 जून के महापुरुषार्थ के बाद भारतवर्ष के स्थान-स्थान पर सघन मंथन की गोष्ठियों का क्रम चलेगा। कार्यकर्ताओं के द्वारा संगठित सक्रिय समयदानियों के समूहों की केंद्रीय कार्यकर्ताओं द्वारा जिलों के समुच्चय स्तर पर गोष्ठियाँ आयोजित होंगी। घर-घर क्राँतिधर्मी साहित्य व उसके अनुवादों को पहुँचाया जाएगा। जनसाहित्य जो पाँच पुस्तकों के सेट के रूप में छपा है, वह भी अधिक से अधिक व्यक्तियों तक पहुँचाया जाएगा। बौद्धिक वर्गों की गोष्ठियाँ स्थान-स्थान पर ली जाएँगी। चैंबर ऑफ कॉमर्स, रोटरी व लायंस क्लब, भारत विकास परिषद, विभिन्न जातीय संगठन, क्लबों, संगठनों के बीच, युवावर्ग व प्रशासकीय अधिकारियों आदि के बीच होने वाली इन गोष्ठियों से गायत्री परिवार की वर्तमान व भविष्य की राष्ट्रनिर्माण की योजनाओं की जानकारी प्रत्येक को मिलेगी।
चतुर्थ चरण में 13 अक्टूबर 2000 शुक्रवार शरद पूर्णिमा के दिन शाम 8 से 9 के बीच नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में प्रायः पचास हजार संकल्पित प्रतिभावानों का एक विभूति ज्ञानयज्ञ संपन्न होगा। इसमें राष्ट्र के प्रमुख दो पदाधिकारी राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री, सभी देशों के राजदूत, स्वैच्छिक संगठनों, धर्म-संप्रदाय के प्रमुखों की उपस्थिति में गायत्री परिवार के नवनिर्माण के संकल्प को घोषित किया जाएगा। निश्चित ही इस कार्यक्रम की गूँज दिग्दिगंत तक फैलेगी। इसी के 9 माह बाद 7 से 19 नवंबर की तारीखों में सृजन संकल्प विभूति महायज्ञ के रूप में महापूर्णाहुति कार्यक्रम शांतिकुंज हरिद्वार के तत्वावधान में माँ गंगा की गोद में संपन्न होगा। सुनिश्चित समय साधन पुरुषार्थ साधना लोकमंगल के निमित्त नियोजित करने वाले ही इसमें भागीदारी करेंगे।
जैसे-जैसे समय गुजरता जा रहा है, हर परिजन को युगपरिवर्तन के क्षणों की सहज ही अनुभूति भी हो रही है। समग्र परिवर्तन लेकर आ रही इक्कीसवीं सदी के आगमन की पूर्ववेला में आया यह संक्रमण काल वाला वर्ष निश्चित ही अत्यंत महत्वपूर्ण है, यह सभी जानते हैं।