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Magazine - Year 2003 - Version 2

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Language: HINDI
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अपनों से अपनी बात-2 - आद्यशक्ति गायत्री का अवतरण पर्व उल्लास के साथ मनाएं

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हमारा जीवन साधनामय बने, नए संकल्प हम लें

युगशक्ति गायत्री के, ज्ञानगंगा के धरती पर प्रकटीकरण महापर्व है-गायत्री जयंती,गंगा दशहरा। गायत्री महाशक्ति का तत्त्वज्ञान ही नवयुग का आधार बनने जा रहा है, यह अब सुनिश्चित है। अनगढ़ों को, अनार्यों को, दस्युओं को सुगढ़, आर्य एवं देवता बनाकर विश्वामित्र ने कभी नूतन सृष्टि का सृजन किया था। इस युग में इसकी पुनरावृत्ति होने जा रही है, जब चारों ओर अरुणोदय की लाली दिखाई दे रही हैं। गायत्री मंत्र के स्वर कानों से टकरा रहे हैं एवं अंतरिक्ष में उसका सतत गुँजन सभी श्रवण कर रहे हैं। गायत्री महाशक्ति को ऋतुँभरा-प्रज्ञा भी कहा जाता है। ऋतुँभरा वह जिसमें विवेक और श्रद्धा का संगम हो। विवेक तर्क, तथ्य, प्रमाण सहित विवेचना करने वाली दूरदर्शिता का नाम है। श्रद्धा उस आस्था का नाम है, जो उत्कृष्ट आदर्शवादिता से अत्यधिक प्यार करती है और उस स्तर के चिंतन से युक्त, भावभरे रसास्वादन की हमें अनुभूति कराती है। पत्थर में से भगवान प्रकट कर देने वाली श्रद्धा आदर्शों के प्रति गहन निष्ठा का नाम हैं। विवेक-श्रद्धा से युक्त ही युगशक्ति गायत्री है।

ऋतंभरा प्रज्ञा की उमंगभरी हलचलें जब सारी धरित्री पर दृष्टिगोचर होने लगें, अंतःकरण की सदाशयता एवं प्रखर प्रज्ञा के रूप में परिलक्षित होने लगे तो यह मानना चाहिए कि नवयुग आ गया। परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने जीवनभर पुरुषार्थ कर उस महाशक्ति को जनसुलभ बना दिया, जो कभी नर-ब्राह्मणों तक सीमित थी। मानवमात्र एक समान है, पर नारी-स्त्री जाति के लिए वर्जित कर दिया गया था। ब्राह्मण जाति ही श्रेष्ठ है, उसे ही इस महामंत्र का जप करना चाहिए, यह भ्राँति ऐसी फैला दी गई कि प्रायः दो हजार वर्ष के अंधकार युग से भारतभूमि सहित विश्ववसुधा को गुजरना पड़ा। ब्राह्मण जन्म से नहीं, आदमी अपने संस्कारों व कर्म से होता है, यह बात भुला दी गई। यह मंत्र शापित है, कीलित है, बिना शाप-विमोचन या उत्कीलन के इसका जप नहीं किया जा सकता, ऐसी भ्राँतियाँ शास्त्रों का हवाला देकर कही जाती रहीं। जनमानस अज्ञान में डूबा रहा।

विगत सदी के प्रारंभिक दशक में प्रथम विश्वयुद्ध के बाद एक महाशक्ति धरती पर जन्मी-हमारी आराध्यसत्ता परमपूज्य गुरुदेव के रूप में पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का जनम आश्विन कृष्ण त्रयोदशी की पावन बेला में वि. संवत्सर 18 में आगरा (उ.प्र.) के आँवलखेड़ा गाँव में हुआ। उसने कठोर गहन तपश्चर्या द्वारा अपनी सूक्ष्मशरीरधारी गुरुसत्ता से साक्षात्कार कर एवं पारस रूपी हिमालय का स्पर्श कर स्वयं को सोना बना लिया। अपने आस-पास मधुमक्खी के छत्ते की तरह अपने तप एवं अनन्य स्नेह से एक परिवार खड़ा कर लिया, जिसे गायत्री परिवार कहते हैं। 1911 से 1990 तक की जीवनावधि में जो भी कार्य उसने किया, वह सारा माँ गायत्री को समर्पित था, उनके ज्ञान प्रवाह को जन-जन तक पहुँचाने के निमित्त था। उनका जीवन यज्ञीय रहा एवं उसने भारतीय संस्कृति के दोनों अभिभावकों को पुनर्जीवित कर भारतभूमि ही नहीं, विश्व-वसुधा के कोने-कोने तक इस प्रवाह को पहुँचाया। समर्पण इस स्तर का कि उसने स्वेच्छा से अपनी महासमाधि हेतु भी 1990 की गायत्री जयंती (2 जून, 1990) को चुना। उसी दिन स्थूलशरीर से उसने मुक्त हो स्वयं को सूक्ष्म व कारण में विलीन कर दिया।

इस वर्ष गायत्री जयंती का पावन पर्व 10 जून मंगलवार को पड़ रहा है। सभी परिजन, गायत्री परिवार की शाखाएं, गायत्री शक्तिपीठ, प्रज्ञापीठ एवं प्रज्ञामंडल इसे मनाएंगे ही। इस दिन गायत्री मंत्र के अखंड जप (एक दिन पूर्व से) उस दिन प्रातः तक) का क्रम हर स्थान पर चलना चाहिए। जिससे जितना बन पड़े, उसे वहाँ बैठना चाहिए। सामूहिक साधना का अपना महत्त्व है। यदि वह न बन पड़े तो अपनी गुरुसत्ता को सूर्य के मध्य स्थित मानकर उनका ध्यान करते हुए कम-से-कम एक घंटा जप अपने-अपने घरों में अवश्य करना चाहिए।

यह गायत्री साधना का चमत्कार ही है कि इतना विशाल गायत्री परिवार खड़ा होता चला गया। हम सब जुड़े साधना के सूत्रों से ही हैं। साधना का यह बीज सतत अंकुरित-पल्लवित होता रहे, यह भाव मन में रख इस महामंत्र का अर्थ मन में धारण कर उन्हीं सद्गुणों का ध्यान करना चाहिए, जो उदीयमान सविता देवता के विषय में बताए गए हैं। वे सुखस्वरूप हैं, प्राणस्वरूप हैं, दुःखनाशक है, श्रेष्ठ हैं, तेजस्वी-पापनाशक तेज के रूप में है। उनके देवस्वरूप इस तेज को हम सोखते चले जा रहे हैं, अपने जीवन में इन्हीं सभी श्रेष्ठ वृत्तियों को धारण करते चले जा रहे हैं। इससे हमारी बुद्धि सद्पथ पर स्वतः ही जा रही है। हम भूलकर भी गलत चिंतन नहीं कर सकते। दुर्मित हम पर हावी न हो। हे परमात्मा, हे सदगुरु, हमें श्रेष्ठ चिंतन से, विचारों से ओत-प्रोत रखना, यह भावभरी प्रार्थना की जा सके तो कोई कारण नहीं कि इसके सत्परिणाम हमें न मिलें।

विकल्प रूप में एक ध्यान मातृशक्ति, भावमयी संवेदना की प्रतीक गायत्री माता के सौंदर्य का, सत्यं-शिवं-सुन्दरम् वाले स्वरूप का किया जा सकता है। भाव यह किया जाए कि हम माँ की गोद में बैठे हैं। उनका स्नेहभरा स्पर्श हमारे मस्तक पर हम अनुभव कर रहे हैं। उनकी कृपा भरी छाँव में हम पर कोई संकट आ ही नहीं सकता। उन्हीं की शक्ति हममें कुँडलिनी, प्राणशक्ति, प्राणाग्नि के रूप में विद्यमान है। हर नर-नारी में जाति, वर्ण, ऊंच-नीच भेद से परे, भाषा-प्राँत राष्ट्र वंश के भेद से ऊपर यह शक्ति हम सभी में है। जिस दिन यह विलुप्त हो जाएगी, हम शव रूप में बदल जाएंगे। हमारी यह प्राणशक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़े, हमारा तेज हमें लोकनेतृत्व करने की शक्ति दे, यह भाव ध्यान में सतत चलना चाहिए।

गायत्री जयंती का पर्व अभियान साधना के संकल्प लेने से पावन बेला भी है। अगले दिन एकादशी से प्रतिदिन दस माला, प्रति रविवार पंद्रह माला एवं प्रत्येक एकादशी को चौबीस माला करते चलने, तीनों नवरात्रियों वासंतेय (चैत्री), ज्येष्ठीय, आश्विन में 24,000 का जप करने से वर्षभर में पाँच लाख का जप हो जाता है। यह एक जमापूँजी के रूप में होता है। यदि पाँच वर्ष भी नियम चल गया तो 24 लक्ष न्यूनतम का एक महापुरश्चरण संपन्न हो जाता है। नियम भी सामान्य ही हैं। मात्र वर्षभर की चौबीस एकादशियों एवं बावन गुरुवार को आँशिक व्रत व ब्रह्मचर्यादि नियमों का पालन करना है। नवरात्रि के तीन दिन तो वैसे भी नियम के साथ संपन्न होते हैं। मनुष्य तन मिला है तो इसे अपना सौभाग्य मानना चाहिए कि हमें ऐसे सदगुरु मिले एवं हम बड़भागी हैं कि युगशक्ति गायत्री की अनुकंपा हम पर बरसी। हम युगपरिवर्तन अपनी इन्हीं आँखें से देखने से देखने जा रहे हैं। ऐसे संधिकाल की बेला को युगों के मिलन की नवरात्रि कहते हैं। अब से लेकर 2011-12 तक का समय कुछ ऐसा ही है। दुर्बुद्धि हम पर हावी हो जाए, इससे पूर्व ही रक्षाकवच हम धारण कर लें, इसी में कल्याण हैं। सभी परिजनों से अनुरोध है कि 2003 की एकादशी 11 जून से आगामी वर्ष की गायत्री जयंती के अगले दिन एकादशी (30 मई, 2004) तक वे यह साधना चलाते रहेंगे। नियम टूटने नहीं देंगे। यह न्यूनतम व्रत है। यदि यह क्रम 2208 तक चला सकें तो और भी श्रेष्ठ है।

सद्ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी गायत्री का प्रसाद ज्ञानप्रसाद के रूप में बाँटना भी उतना ही पुण्य का कार्य माना गया है। सुपात्रों को श्रेष्ठ पुस्तकों का स्वाध्याय कराना, युगशक्ति गायत्री पत्रिका से जोड़े रहने के लिए नए ग्राहक-पाठक बनाना, ब्रह्मभोज में अधिकाधिक साहित्य वितरित करना, इसी शृंखला में आता है। गायत्री तपोभूमि मथुरा की यह स्वर्ण जयंती वर्ष का समापन दिवस भी है। इस वर्ष के महानतम अभियान गायत्री मंत्र लेखन-साधना में जितने अधिक व्यक्तियों को जोड़ा जा सके, जोड़ना चाहिए। स्वयं भी चौबीस मंत्र न्यूनतम रोज लिखने का संकल्प लेना चाहिए। मंत्र लेखन से बड़ा तप कोई नहीं। इसका महत्त्व जप से भी अधिक बताया गया है। थोड़े से मंत्रों का लेखन दस गुना पुण्य देता है।

भारत से बाहर पूर्व व पश्चिम के देशों में जहाँ परिजन रहते हैं, उन्हें शनिवार-रविवार का दिन ही उपयुक्त पड़ता है। वे इस वर्ष को 7, 8 जून या 14, 15 जून को सुविधानुसार मना सकते हैं। इस वर्ष युवाशक्ति को मूल केंद्र में रख एक सप्तसूत्री कार्यक्रम के तहत कुल आठ दल विभिन्न देशों के लिए रवाना किए जा रहे हैं। तीन-तीन वरिष्ठ पूर्णतः प्रशिक्षित भाइयों के ये दल इन पर्वों को संपन्न कराने के लिए सही समय पर पहुँच जाएंगे। अधिक-से-अधिक नए परिजनों को सम्मिलित कर सभी को लाभ दिया जा सकता है। इस वर्ष अमेरिका व कनाडा के लिए तीन-तीन के तीन दल, एक विशिष्ट दल, यूके के लिए एक, पूरे यूरोप के लगभग पंद्रह देशों के लिए एक न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, फिजी के लिए एक तथा केन्या, यूगाँडा, तंज़ानिया, जाँबिया दक्षिण अफ्रीका, मारीशस के लिए तीन भाइयों का एक दल, इस तरह आठ दल जा रहे हैं। इससे देवमाता विश्वमाता बनेंगी एवं विश्व संस्कृति वैदिक ज्ञान से अनुप्रामाणित होगी। अपने कोई प्रियजन विदेश में रहते हों तो उनसे संपर्क कर उन्हें समीप की गायत्री परिवार की शाखा से संपर्क करने को कहना भी एक पुण्य में आता है। इस वर्ष गायत्री तपोभूमि में भी कई नए शिविर आरंभ हुए हैं। छात्र छात्राओं के लिए विशिष्ट शिविर आयोजित किए जा रहे हैं। सभी इसमें भागीदारी कर सकते हैं।

आशा है परिजन इस वर्ष की गायत्री जयंती को ऐतिहासिक बनाएंगे। नए आँदोलनों की शुरुआत हेतु व्रत लेंगे। अभी तक जो कुछ किया है, उसकी समीक्षा कर आगे के लिए नए कार्य हाथ में लेने का संकल्प लेंगे। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय का नया सत्र भी 24 जून से आरंभ हो रहा है। कई नए पाठ्यक्रम आरंभ हुए हैं। अपने बच्चों को पढ़ने हेतु गायत्री तपोभूमि मथुरा अथवा देवसंस्कृति विश्वविद्यालय भेजना चाहिए। हरिद्वार के देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में पात्रता हेतु जून माह के मध्य में एक परीक्षा आयोजित होगी। उसमें उत्तीर्ण पाए जाने व अनिवार्य शर्तों पर खरा उतरने पर ही प्रवेश मिल सकेगा। फीस मात्र 1000 रुपये प्रतिमाह है एवं विश्वविद्यालय पूर्णतः आवासीय है।

युगशक्ति का गायत्री का आलोक इस वर्ष राष्ट्र के कोने-कोने तक पहुँचे, यही हमारा लक्ष्य रहे। अब परमपूज्य गुरुदेव की जन्मशताब्दी वर्ष को आरंभ होने में मात्र आठ वर्ष रह गए हैं। 2011-2012 में मनाया जाने वाला यह शताब्दी वर्ष ऐतिहासिक हो एवं हम अपनी ढेर सारी उपलब्धियाँ लेकर गुरुसत्ता के चरणों में पुष्प चढ़ा सकें, यही हमारा लक्ष्य हो। सभी परिजनों को गायत्री जयंती पर्व की संपादन तंत्र की ओर से भावभरी मंगलकामनाएं।

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