
भविष्य का सम्पूर्ण व समग्र विज्ञान अध्यात्म
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आध्यात्मिक चिकित्सा के सम्बन्ध में विश्व दृष्टि इन दिनों सार्थक ढंग से बदली है। विश्व भर के मनीषियों के दृष्टिकोण आश्चर्यजनक ढंग से परिवर्तित हुए हैं। लोकदृष्टि भी इस सम्बन्ध में परिमार्जित व परिवर्तित हुई है। आज से कुछ सालों पहले आध्यात्मिक सिद्धान्तों, तकनीकों व प्रयोगों को अवैज्ञानिक कहकर खारिज कर दिया जाता था।
लोकमानस भी वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं से मिली जानकारियों को जीवन के सर्वोच्च सन्देश के रूप में सुनता व स्वीकारता था। पर इक्कीसवी सदी के इन चार सालों में स्थिति काफी कुछ बदली है। विश्व मनीषियों को लगने लगा है कि प्रायोगिक पड़ताल के बिना आध्यात्मिक दृष्टिकोण व तकनीकों को नकारना अवैज्ञानिकता की पराकाष्ठा है। इसी तरह से लोकमानस को यह अनुभूति हुई है कि प्रयोगशालाओं से मिली जानकारियों में शुभ के साथ अशुभ भी मिला हुआ है। और इनके अन्धे उपयोग से हानियाँ भी सम्भव है।
अनुभवों की इस शृंखला में कुछ और अनुभव भी हुए हैं। वैज्ञानिक चिकित्सा के सभी आयामों की अनेकों असफलताएँ व भारी दुष्प्रभाव भी सामने आए। इस सच को सभी जानते हैं कि सभी ने प्रायः सम्पूर्ण बीसवीं सदी साइड इफेक्ट्स से लड़ते- झगड़ते व पटखनी खाते गुजारी है। इस साइड इफेक्ट्स की वजह से न जाने कितने मासूम मौत की नींद सोए हैं। एक बीमारी ठीक करने के चक्कर में कितनी ही नयी बीमारियाँ उपहार में मिली हैं। दुनिया भर के कर्णधारों ने इस पर चर्चा भी की, चिन्ता भी जतायी परन्तु समाधान न खोज सके। अन्त में हार- थक कर सभी का ध्यान वैकल्पिक चिकित्सा की ओर गया। चुम्बक चिकित्सा, रंग चिकित्सा, एक्यूप्रेशर न जाने कितनी ही तकनीकें आजमायी गयीं। इसी क्रम में आध्यात्मिक तकनीकों को भी परखा गया। इससे जो नतीजे मिले, उससे सभी को भारी अचरज हुआ। क्योंकि इनमें आशातीत सफलता मिली थी। और इसमें सबसे बड़ी बात तो यह है कि ये आध्यात्मिक तकनीकें अभी तक केवल आधे- अधूरे ढंग से ही जाँची- परखी गयी हैं। इन्हें अव्यवस्थित एवं अस्त- व्यस्त तरीके से ही प्रयोग में लाया गया है। इनके प्रयोगिक क्रम में अभी इनकी वास्तविक और सम्पूर्ण विधि- व्यवस्था तो अपनायी ही नहीं गयी। इसके बावजूद मिलने वाले नतीजों ने वैज्ञानिकों को हैरान कर रखा है। इनसे मिलने वाली विश्रान्ति, घटने वाला तनाव, जीवनी शक्ति में भारी अभिवृद्धि आदि कुछ ऐसे परिणाम हैं, जिन्होंने सभी के दृष्टिकोण को परिवर्तित किया है। कभी इसे अवैज्ञानिक कहने वाले वैज्ञानिक इसकी वैज्ञानिकता को स्वीकारने पर विवश हुए हैं।
इनमें से कुछ ने तो इस बिन्दु पर अपने विचारोत्तेजक निष्कर्ष भी प्रकाशित किए हैं। इन्हीं निष्कर्षों में से एक है, मर्टिन रूथ चाइल्ड की पुस्तक ‘स्प्रिचुयैलिटी एण्ड इट्स साइन्टिफिक डामेन्शन्स’ यानि कि आध्यात्मिकता और इसके वैज्ञानिक आयाम। मर्टिन रूथ चाइल्ड प्रख्यात् न्यूरोलॉजिस्ट हैं। उनके द्वारा किए शोध कार्यों को विज्ञान जगत् में सम्मानपूर्वक स्वीकार किया जाता है। उन्होंने अपनी पुस्तक में आध्यात्मिक दृष्टि, सिद्धान्त व प्रयोगों से सम्बन्धित कई महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा की है। उनका कहना है, जो आध्यात्मिक सिद्धान्तों की वैज्ञानिकता पर बिना किसी प्रायोगिक निष्कर्षों के प्रश्र खड़ा करते हैं, उन्हें सबसे पहले अपने वैज्ञानिक होने की जाँच करनी चाहिए।
रूथ चाइल्ड का कहना है कि विज्ञान किसी पुस्तक या विषय का नाम नहीं है। यह एक विशिष्ट शोध विधि है। जो एक खास तरह से अध्ययन करके किसी सत्य या सिद्धान्त को प्रमाणित करती है। यह कहते हुए मर्टिन रूथ चाइल्ड एक सवाल उठाते हैं कि आध्यात्मिक सिद्धान्तों को क्या किसी ने वैज्ञानिक शोध विधि के आधार पर परखने की कोशिश की है। यदि हाँ, तो फिर उनके शोध पत्रों पर सार्थक चर्चा होनी चाहिए। यदि नहीं तो फिर इन्हें किसी को अवैज्ञानिक कहने के क्या आधार हैं। इस तरह से तो अवैज्ञानिकता की बातें करना स्वयं ही अवैज्ञानिक है।
रूथ चाइल्ड अपनी इसी पुस्तक के एक अन्य हिस्से में कहते हैं कि इन दिनों आध्यात्मिक चिकित्सा की ध्यान आदि जो भी तकनीकें प्रयोग में लायी जा रही हैं, उनके परिणाम उत्साहवर्धक हैं। ये न केवल चिकित्सा जगत् के लिए बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी हैं। योग और अध्यात्म की जो भी तकनीकें शारीरिक व मानसिक रोगों को ठीक करने के लिए प्रयोग में लायी जा रही हैं, उनके परिणाम किसी भी वैज्ञानिक को यह कहने पर विवश कर सकती हैं कि ‘स्प्रिचुयैलिटी इस द इन्टीग्रल साइन्स ऑफ द फ्यूचर’। यानि कि अध्यात्म भविष्य का सम्पूर्ण विज्ञान है।
शारीरिक रोगों के साथ आध्यात्मिक तकनीकों के प्रयोग मनोरोगों पर भी किए गए हैं। इस सम्बन्ध में विलियम वेस्ट की पुस्तक ‘साइकोथेरेपी एण्ड स्प्रिचुयैलिटी’ पठनीय है। इस पुस्तक में विख्यात मनोचिकित्सक विलियम वेस्ट का कहना है कि अब इस जमाने में मनोचिकित्सा व अध्यात्म विद्या के बीच खड़ी दीवार टूट रही है। मनोरोगों का सही व सम्पूर्ण इलाज आध्यात्मिक तकनीकों के प्रयोग से ही सम्भव है। उन्होंने एक अन्य शोधपत्र में यह भी कहा है कि आध्यात्मिक जीवन शैली को अपनाने से लोगों को मानसिक रोगों की सम्भावना नहीं रहती। इस क्रम में उन्होंने प्रार्थना व ध्यान को मनोरोगों की कारगर औषधि बताया है।
अध्यात्म चिकित्सा के सम्बन्ध में विश्वदृष्टि को परिवर्तित करने वालों में डॉ. ब्रायन वीज़ का नाम उल्लेखनीय है। पेशे से डॉ. वीज़ साइकिएट्रिस्ट हैं। परन्तु अब वे स्वयं को आध्यात्मिक चिकित्सक कहलाना पसन्द करते हैं। उनकी कई पुस्तकें जिनकी चर्चा पहले भी की जा चुकी है- अध्यात्म चिकित्सा की सार्थक उपयोगिता को प्रमाणित करती हैं। इनका कहना है कि आध्यात्मिक सिद्धान्तों व साधना से ही सम्पूर्ण जीवन बोध सम्भव है। चिकित्सा के सम्बन्ध में जब भी वैज्ञानिक असफलताओं की बात होती है, तो इसका कारण एकांगीपन होता है। विज्ञान कहता है कि इन्सान केवल देह मात्र है, जो सच नहीं है। हमारा जीवन देह, प्राण, मन व आत्मा का संयोग है। और ये सम्पूर्ण आयाम आध्यात्मिक दृष्टि के बिना नहीं जाने जा सकते।
एक अन्य वैज्ञानिक रिचर्ड कार्लसन का अपने शोध निष्कर्ष ‘स्प्रिचुयैलिटी कम्पलीट साइन्स ऑफ लाइफ’ यानि कि आध्यात्मिकता जीवन का सम्पूर्ण विज्ञान, में इन तथ्यों का खुलासा किया है। उनका मानना है कि अध्यात्म के बिना जीवन का सम्पूर्ण बोध असम्भव है। कार्लसन कहते हैं कि जिस तरह से कटी हुई अंगुलियों के सहारे मानवीय देह की समग्रता को नहीं जाना जा सकता, उसी तरह केवल देह के बलबूते सम्पूर्ण अस्तित्त्व को जानना असम्भव है। उन्होंने अपनी पुस्तक में इस सम्बन्ध में कई सत्यों व तथ्यों का विश्लेषण करते हुए कहा है कि जिस तरह बीसवीं सदी विज्ञान की सदी साबित हुई है। उसी तरह यह इक्कीसवीं सदी आध्यात्म की सदी के रूप में देखी, जानी व अनुभव की जाएगी। आध्यात्मिक जीवन दृष्टि, अध्यात्म चिकित्सा के सिद्धान्त व प्रयोगों को सभी इस सदी की महानतम उपलब्धि के रूप में अनुभव करेंगे। इसलिए यही उपयुक्त है कि आध्यात्मिक स्वास्थ्य का अर्थ समझें व अध्यात्म चिकित्सा की ओर बढ़ाएँ कदम।
लोकमानस भी वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं से मिली जानकारियों को जीवन के सर्वोच्च सन्देश के रूप में सुनता व स्वीकारता था। पर इक्कीसवी सदी के इन चार सालों में स्थिति काफी कुछ बदली है। विश्व मनीषियों को लगने लगा है कि प्रायोगिक पड़ताल के बिना आध्यात्मिक दृष्टिकोण व तकनीकों को नकारना अवैज्ञानिकता की पराकाष्ठा है। इसी तरह से लोकमानस को यह अनुभूति हुई है कि प्रयोगशालाओं से मिली जानकारियों में शुभ के साथ अशुभ भी मिला हुआ है। और इनके अन्धे उपयोग से हानियाँ भी सम्भव है।
अनुभवों की इस शृंखला में कुछ और अनुभव भी हुए हैं। वैज्ञानिक चिकित्सा के सभी आयामों की अनेकों असफलताएँ व भारी दुष्प्रभाव भी सामने आए। इस सच को सभी जानते हैं कि सभी ने प्रायः सम्पूर्ण बीसवीं सदी साइड इफेक्ट्स से लड़ते- झगड़ते व पटखनी खाते गुजारी है। इस साइड इफेक्ट्स की वजह से न जाने कितने मासूम मौत की नींद सोए हैं। एक बीमारी ठीक करने के चक्कर में कितनी ही नयी बीमारियाँ उपहार में मिली हैं। दुनिया भर के कर्णधारों ने इस पर चर्चा भी की, चिन्ता भी जतायी परन्तु समाधान न खोज सके। अन्त में हार- थक कर सभी का ध्यान वैकल्पिक चिकित्सा की ओर गया। चुम्बक चिकित्सा, रंग चिकित्सा, एक्यूप्रेशर न जाने कितनी ही तकनीकें आजमायी गयीं। इसी क्रम में आध्यात्मिक तकनीकों को भी परखा गया। इससे जो नतीजे मिले, उससे सभी को भारी अचरज हुआ। क्योंकि इनमें आशातीत सफलता मिली थी। और इसमें सबसे बड़ी बात तो यह है कि ये आध्यात्मिक तकनीकें अभी तक केवल आधे- अधूरे ढंग से ही जाँची- परखी गयी हैं। इन्हें अव्यवस्थित एवं अस्त- व्यस्त तरीके से ही प्रयोग में लाया गया है। इनके प्रयोगिक क्रम में अभी इनकी वास्तविक और सम्पूर्ण विधि- व्यवस्था तो अपनायी ही नहीं गयी। इसके बावजूद मिलने वाले नतीजों ने वैज्ञानिकों को हैरान कर रखा है। इनसे मिलने वाली विश्रान्ति, घटने वाला तनाव, जीवनी शक्ति में भारी अभिवृद्धि आदि कुछ ऐसे परिणाम हैं, जिन्होंने सभी के दृष्टिकोण को परिवर्तित किया है। कभी इसे अवैज्ञानिक कहने वाले वैज्ञानिक इसकी वैज्ञानिकता को स्वीकारने पर विवश हुए हैं।
इनमें से कुछ ने तो इस बिन्दु पर अपने विचारोत्तेजक निष्कर्ष भी प्रकाशित किए हैं। इन्हीं निष्कर्षों में से एक है, मर्टिन रूथ चाइल्ड की पुस्तक ‘स्प्रिचुयैलिटी एण्ड इट्स साइन्टिफिक डामेन्शन्स’ यानि कि आध्यात्मिकता और इसके वैज्ञानिक आयाम। मर्टिन रूथ चाइल्ड प्रख्यात् न्यूरोलॉजिस्ट हैं। उनके द्वारा किए शोध कार्यों को विज्ञान जगत् में सम्मानपूर्वक स्वीकार किया जाता है। उन्होंने अपनी पुस्तक में आध्यात्मिक दृष्टि, सिद्धान्त व प्रयोगों से सम्बन्धित कई महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा की है। उनका कहना है, जो आध्यात्मिक सिद्धान्तों की वैज्ञानिकता पर बिना किसी प्रायोगिक निष्कर्षों के प्रश्र खड़ा करते हैं, उन्हें सबसे पहले अपने वैज्ञानिक होने की जाँच करनी चाहिए।
रूथ चाइल्ड का कहना है कि विज्ञान किसी पुस्तक या विषय का नाम नहीं है। यह एक विशिष्ट शोध विधि है। जो एक खास तरह से अध्ययन करके किसी सत्य या सिद्धान्त को प्रमाणित करती है। यह कहते हुए मर्टिन रूथ चाइल्ड एक सवाल उठाते हैं कि आध्यात्मिक सिद्धान्तों को क्या किसी ने वैज्ञानिक शोध विधि के आधार पर परखने की कोशिश की है। यदि हाँ, तो फिर उनके शोध पत्रों पर सार्थक चर्चा होनी चाहिए। यदि नहीं तो फिर इन्हें किसी को अवैज्ञानिक कहने के क्या आधार हैं। इस तरह से तो अवैज्ञानिकता की बातें करना स्वयं ही अवैज्ञानिक है।
रूथ चाइल्ड अपनी इसी पुस्तक के एक अन्य हिस्से में कहते हैं कि इन दिनों आध्यात्मिक चिकित्सा की ध्यान आदि जो भी तकनीकें प्रयोग में लायी जा रही हैं, उनके परिणाम उत्साहवर्धक हैं। ये न केवल चिकित्सा जगत् के लिए बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी हैं। योग और अध्यात्म की जो भी तकनीकें शारीरिक व मानसिक रोगों को ठीक करने के लिए प्रयोग में लायी जा रही हैं, उनके परिणाम किसी भी वैज्ञानिक को यह कहने पर विवश कर सकती हैं कि ‘स्प्रिचुयैलिटी इस द इन्टीग्रल साइन्स ऑफ द फ्यूचर’। यानि कि अध्यात्म भविष्य का सम्पूर्ण विज्ञान है।
शारीरिक रोगों के साथ आध्यात्मिक तकनीकों के प्रयोग मनोरोगों पर भी किए गए हैं। इस सम्बन्ध में विलियम वेस्ट की पुस्तक ‘साइकोथेरेपी एण्ड स्प्रिचुयैलिटी’ पठनीय है। इस पुस्तक में विख्यात मनोचिकित्सक विलियम वेस्ट का कहना है कि अब इस जमाने में मनोचिकित्सा व अध्यात्म विद्या के बीच खड़ी दीवार टूट रही है। मनोरोगों का सही व सम्पूर्ण इलाज आध्यात्मिक तकनीकों के प्रयोग से ही सम्भव है। उन्होंने एक अन्य शोधपत्र में यह भी कहा है कि आध्यात्मिक जीवन शैली को अपनाने से लोगों को मानसिक रोगों की सम्भावना नहीं रहती। इस क्रम में उन्होंने प्रार्थना व ध्यान को मनोरोगों की कारगर औषधि बताया है।
अध्यात्म चिकित्सा के सम्बन्ध में विश्वदृष्टि को परिवर्तित करने वालों में डॉ. ब्रायन वीज़ का नाम उल्लेखनीय है। पेशे से डॉ. वीज़ साइकिएट्रिस्ट हैं। परन्तु अब वे स्वयं को आध्यात्मिक चिकित्सक कहलाना पसन्द करते हैं। उनकी कई पुस्तकें जिनकी चर्चा पहले भी की जा चुकी है- अध्यात्म चिकित्सा की सार्थक उपयोगिता को प्रमाणित करती हैं। इनका कहना है कि आध्यात्मिक सिद्धान्तों व साधना से ही सम्पूर्ण जीवन बोध सम्भव है। चिकित्सा के सम्बन्ध में जब भी वैज्ञानिक असफलताओं की बात होती है, तो इसका कारण एकांगीपन होता है। विज्ञान कहता है कि इन्सान केवल देह मात्र है, जो सच नहीं है। हमारा जीवन देह, प्राण, मन व आत्मा का संयोग है। और ये सम्पूर्ण आयाम आध्यात्मिक दृष्टि के बिना नहीं जाने जा सकते।
एक अन्य वैज्ञानिक रिचर्ड कार्लसन का अपने शोध निष्कर्ष ‘स्प्रिचुयैलिटी कम्पलीट साइन्स ऑफ लाइफ’ यानि कि आध्यात्मिकता जीवन का सम्पूर्ण विज्ञान, में इन तथ्यों का खुलासा किया है। उनका मानना है कि अध्यात्म के बिना जीवन का सम्पूर्ण बोध असम्भव है। कार्लसन कहते हैं कि जिस तरह से कटी हुई अंगुलियों के सहारे मानवीय देह की समग्रता को नहीं जाना जा सकता, उसी तरह केवल देह के बलबूते सम्पूर्ण अस्तित्त्व को जानना असम्भव है। उन्होंने अपनी पुस्तक में इस सम्बन्ध में कई सत्यों व तथ्यों का विश्लेषण करते हुए कहा है कि जिस तरह बीसवीं सदी विज्ञान की सदी साबित हुई है। उसी तरह यह इक्कीसवीं सदी आध्यात्म की सदी के रूप में देखी, जानी व अनुभव की जाएगी। आध्यात्मिक जीवन दृष्टि, अध्यात्म चिकित्सा के सिद्धान्त व प्रयोगों को सभी इस सदी की महानतम उपलब्धि के रूप में अनुभव करेंगे। इसलिए यही उपयुक्त है कि आध्यात्मिक स्वास्थ्य का अर्थ समझें व अध्यात्म चिकित्सा की ओर बढ़ाएँ कदम।